Baingan - 21 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 21

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बैंगन - 21

मुझे नींद के जोरदार झोंके आने के कारण मैंने पुजारी जी से चाय के लिए मना कर दिया और सीढ़ी यथास्थान लग जाने के बाद अब इत्मीनान से अपने बिस्तर पर आकर लेट गया।
थोड़ी ही देर में मेरी आंख लग गई।
मैं शायद दो तीन घंटे आराम से सोया। शायद और भी सोता रहता अगर नीचे से कलेजे को चीरने वाली ये आवाज़ मुझे नहीं सुनाई देती।
मैं हड़बड़ा कर नीचे झांकने लगा तो मेरे होश उड़ गए।
नीचे पुजारी जी ज़ोर - ज़ोर से किसी बच्चे की तरह रो रहे थे और आसपास दो - तीन लोग उन्हें घेरे सांत्वना दे रहे थे।
मैं आंखें मलता हुआ झटपट उनके नज़दीक आया और कुछ पूछना ही चाहता था कि उन्होंने रोते हुए ही अपने हाथ में पकड़ा एक अखबार मेरी ओर बढ़ा दिया।
अख़बार में उनकी अंगुली के नीचे छपे समाचार को देखते ही मेरे होश फाख्ता हो गए।
तन्मय की फ़ोटो छपी थी और छोटी सी खबर छपी थी कि शहर के एक गोदाम में कल चोर पकड़ा गया।
मंदिर के बाहर बनी दुकानों से ही तन्मय के किसी दोस्त ने ये खबर लोगों को सुनाई थी और वो लोग दौड़े दौड़े पुजारी जी को सूचना देने चले आए थे।
वही लड़का दौड़ कर पुजारी जी को मंदिर से बुला कर लाया था। अब सब रोते बिलखते पुजारी जी को संभालने की कोशिश कर रहे थे।
मेरा माथा ठनका।
मैंने एक बार खबर को फ़िर से पढ़ा और तीर की तरह बिना किसी से कुछ कहे वहां से निकल पड़ा।
खबर में चोर के जिस थाने में बंद होने की सूचना थी मैं वहीं के लिए रिक्शा करके दौड़ पड़ा।
पर जल्दी ही मुझे ख्याल आया कि मैं वहां जाकर करूंगा क्या? मैं तो इस शहर में किसी को जानता तक न था। दूसरे, सीधे नींद से उठ कर बिना मुंह तक धोए पायजामा - कुर्ता पहने वहां जाने पर और संदिग्ध मान लिए जाने का खतरा था।
अब मैंने रिक्शा वाले को तुरंत रिक्शा अपने भाई के घर की ओर मोड़ देने का आदेश दिया।
मैं जल्दी ही मानसरोवर पहुंच गया।
घर पर सबकी तरह - तरह की निगाहों से मेरा स्वागत हुआ पर भाई ने छूटते ही इतना कहा- घर पर भाभी को बता कर आया है न?
बच्चे कुछ हंसने को हुए, पर भाभी ने तुरंत सबको डांट दिया। फ़ौरन पानी का गिलास पकड़ाते हुए बोलीं- भैया, आप इस तरह? सब ठीक तो है न? कहां से आ रहे हैं, सामान कहां है, कौन सी गाड़ी से आए, खबर क्यों नहीं दी??
प्रश्नों की झड़ी के बीच सभी संजीदा हो गए। भाई बोला- पहले आराम से बैठ, फिर बता, माजरा क्या है?
भाभी भीतर शायद मेरे लिए चाय बनाने किचन में चली गईं। भतीजे ने अपनी बांहें मेरे गले में डाली और झूलता सा बोला- चाचू, क्या लफ़ड़ा हुआ?
मेरी पूरी बात सुनकर सबको चैन पड़ा। मैंने उन्हें बताया कि मैं कल ही यहां आ गया था पर मेरी दुकान में काम करने वाले एक लड़के के चोरी के इल्जाम में फंस जाने के कारण उसके घर चला गया और अभी वहीं से सीधा आ रहा हूं, सामान भी वहीं है।
भाई ने मेरी बात पूरी होते ही झटपट उठकर गैरेज से कार निकाली। भतीजा भी साथ हो लिया।
पुजारी जी मंदिर की सीढ़ियों पर पांच- सात आदमियों से घिरे बैठे हुए मिले। मुझे कार से उतरते देख कर उनकी आंखों में कुछ चमक आई। वो सब लोग किंकर्तव्यविमूढ़ से बैठे थे, पर हमारे पहुंचते ही वहां कुछ हलचल बढ़ गई।
पुजारी जी की सूनी आंखें आशा से दिपदिपाने लगीं।