भोला की भोलागिरी
(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)
कौन है भोला ?
भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.
उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.
भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.
भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.
और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!
और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.
तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’
... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.
कहानी नं.19
भोला हारमोनियम घर लाया
कबाड़ी बाजार से गुजरते हुए भोला ने अनवर कबाड़ी को एक डंडा लिए खंभे की आड़ में छिपते देखा.
उसकी दुकान खुली थी. सामान बाहर तक बिखरा था. नजर मिली तो अनवर ने इसे इशारे से बुलाया और बोला, ‘‘ भोला डंडा पकड़ और खड़े हो जा.’’
भोला चकराया, ‘‘ क्यों?’’
अनवर: जब से ये हारमोनियम उठा के लाया हूं. बहुत परेशान हूं, इसके ऊपर से मुर्गियां, बिल्लियां कूदती फिरती हैं और ये सारा दिन ‘ पैं-पैं’ बजता रहता है. सब उसके ऊपर बैठ कर गंदगी भी करते रहते हैं.
यह सुन भोला हंसने लगा, तो अनवर उसे डांट कर बोला, ‘‘ हंस मत! दो दिन से बंदर भी इसे बजाने आने लगे हैं. इस पर हाथ मारते हैं, ये बजता है, वो कलाबाजी खाते हैं. और मुझे देखते ही दांत दिखाकर भाग जाते हैं. इसलिए डंडा पकड़ और सबको भगा.’’
भोला बोला: मैं नहीं करता! मुझे घर जाना है.
अनवर बोला: तो इस हारमोनियम को भी ले जा. ये तो बिकने से रहा, तू मुफ़्त में ले जा.
और फिर मुफ़्त में मिले हारमोनियम को गले में टांग भोला शान से घर चल दिया.
रास्ते में कोई हंसा, तो कोई हैरान हुआ और किसी ने फुसफुसाकर कहा, ‘‘ भोला रहा बुद्धू का बुद्धू.’’
भोला घर पहुंचकर बुआ, ताऊ, चाचा की अजीब-अजीब सवाल पूछती नजरों से बचता हुआ चबूतरे पर पहुंचा. हारमोनियम उतारा और उसे बजाने लगा.
पैंऽऽ मैंऽऽऽ हैंऽऽ कैंऽऽसाऽऽपाऽऽऽधाऽऽमाऽऽ और पसीना आने तक, पड़ोस में बंधे मेमने द्वारा सुर मिलाकर ‘में में’ करने तक बजाता रहा. और फिर थक कर रूक गया.
फिर एक ‘खीं खीं’ वाली आवाज सुनाई दी. उसके बाद, हारमोनियम के सुरीले स्वर. भोला ने मुड़ कर देखा, एक भिखारी गले में हारमोनियम लटकाए खड़ा था. नजरें मिलते ही भोला बोला ‘‘ मुझे भी सिखा दो.’’
भिखारी हंस कर बोला: फोकट में ?
भोला : खाना खिला दूंगा. दो रोटी और सब्जी.
भिखारी: नहीं चार रोटी-सब्जी और गुड़.
और फिर भोला ने भिखारी से हारमोनियम बजाना सीखना शुरू किया. रोजाना दोनों घंटों तक हारमोनियम बजाते रहते.
दस-बारह दिन बाद उस भिखारी ने अचानक आना बंद कर दिया. पता नहीं वह कहां गायब हो गया.
लेकिन इस बीच भोला ने इतना हारमोनियम बजाना तो सीख लिया था कि स्कूल के सालाना जलसे में प्रोग्राम पेश कर सके.
कहानी नं. 20
भोला ने ड्रॉइंग बनाई
भोला को देर से खबर हुई ड्राइंग प्रदर्शनी की. तब तक सब बच्चे अपनी-अपनी ड्राइंग जमा करा चुके थे और उन्हें लाइब्रेरी में लगाया जाना शुरू हो गया था.
दोपहर बाद जिला शिक्षा अधिकारी स्कूल का इंस्पेक्शन करने आ रहे थे. इसी अवसर पर यह ड्रॉइंग प्रदर्शनी आयोजित की जा रही थी.
भोला ने कहा, ‘‘ मैं भी ड्राइंग प्रदर्शनी में भाग लूंगा.’’
और सब हंस दिए, गोपू बोला, ‘‘भोला , भूल जा! ड्राइंग तेरे वश की बात नहीं है.’’
मगर भोला जिद पर अड़ गया. दोस्तों से बोला, ‘‘ तुम लोग मेरे लिए ड्राइंग पेपर और रंगीन पेन्सिलों का इंतजाम करो और मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो.’’
दोस्तों ने ऐसा ही किया.
और एक घंटे के बाद अपनी आर्ट को हाथ में लिए भोला ड्राइंग टीचर ठाकुर सर को ढूंढने लगा. उन्हें गेट की तरफ जाते देख वह दौड़ता हुआ उनके पास पहुंचा और हांफते-हांफते बोला, ‘‘ सर, मेरी ड्राइंग!’’
ठाकुर सर ने उसे चश्मे की आड़ से देखा और ड्राइंग को देखे बिना ही बोले, ‘‘ जा, लाइब्रेरी में जगह देखकर लगा दे.’’
भोला ने वैसा ही किया.
और फिर हंगामा हो गया. ऐसी ड्राइंग स्कूल के इतिहास में तो क्या शायद ड्राइंग के इतिहास में भी कभी किसी ने नहीं बनायी थी ऐसी ड्राइंग.
ड्रॉइंग टीचर ठाकुर सर ने उसे दूर से घूरकर देखा. जैसे कह रहे हो-बच्चू , बाद में मिलना.
और सारा स्कूल अपनी ड्राइंग पर ‘खीं-खीं’ कह रहा था.
उसने क्या बनाया था?
पूरे ड्राइंग पेपर पर एक विशाल वृक्ष. जिसकी हर पत्ती दूसरे से अलग थी. उस वृक्ष में तरह-तरह के फूल खिले थे. एक तो कमल के फूल जैसा था.और पेड़ में लगे थे तरह-तरह के फल और सब्जियां. अंगूर, सेब, अमरूद, केले, लौकी, कद्दू और बैंगन. हां एक ही वृक्ष पर. और इन पत्तियों, फूलों, फलों और सब्जियों के रंगों को भरने में भोला ने पूरी उदारता दिखाई थी.
जिला शिक्षा अधिकारी ने स्कूल का निरीक्षण करने के बाद जब बच्चों को संबोधित किया तो उनके हाथ में एक ड्राइंग थी. और वो भोला की ड्राइंग थी. उन्होंने कहा, ‘‘जिस बच्चे ने ये ड्राइंग बनायी है उसने भविष्य को देखा है! शायद एक दिन हमारे कृषि वैज्ञानिक भी ऐसे किसी वृक्ष की रचना कर सकेंगे. यह ड्राइंग नहीं बल्कि वैज्ञानिक कल्पना है. दूरदर्शी है. यह कला का विज्ञान को संदेश है. इस चित्र को सभी विद्यालयों की वार्षिक पुस्तिका में कवर पेज के रूप में प्रकाशित किया जाएगा. और इसके लिए भोला राम को एक अच्छा पुरस्कार दिया जाएगा.’’
अब सारा स्कूल भोलाराम की तरफ देख रहा था और भोलाराम समझ नहीं पा रहा था कि उसने कौन सा महान कार्य कर दिया है.
अब, दुनिया चाहे जो कहे, भोला को अपना संगीत गुरू तो ऐसे ही मिला.