दानी की कहानी
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दानी की नानी बड़ी बोल्ड थीं | लोग कहते हैं कि दानी अपनी नानी पर गईं हैं |
अँग्रेज़ों का ज़माना था तब और दानी की नानी अपने एक ड्राइवर के साथ दिल्ली से बंबई गईं थीं | बीच में वे अहमदाबाद भी रुकीं ,जहाँ उनकी दोस्त रहती थीं |
दानी बताती हैं कि उनकी नानी बिलकुल कस्तूरबा बाई जैसी लगती थीं | हम बच्चों ने तो उनके मुँह से बात सुनी है वरना बच्चों को कैसे पता चलता कि दानी की नानी ऎसी थीं | दानी अपनी कहानी में अपने चरित्रों का ऐसा खाका खींचती हैं कि सब बच्चे उन्हें घेरकर बैठ जाते हैं | उनके मन में जिज्ञासा पसरने लगती है और वे इंतज़ार करते रहते हैं की आज दानी क्या सुनाने वाली हैं |
हाँ.तो दानी बताती हैं अपनी नानी की बात ! उनकी नानी वैसे तो गाँव की थीं किन्तु उनके नाना जी दिल्ली में पहले बैंक में काम करते थे | दानी बताती हैं कि उनके नाना जी एंट्रेंस पास थे और अँग्रेज़ों से कैसी गिटर -पिटर बात करते थे | दानी की नानी को अँग्रेज़ी बोलनी नहीं आती थी लेकिन उनके घर उनके पति के इतने मित्र आते थे कि वे अँग्रेज़ी बहुत अच्छी तयह से समझने लगीं थीं और जब वो दिल्ली से बंबई अकेली गाड़ी में गईं तब उन्होंने रास्ते में टूटी-फूटी अँग्रेज़ी में ही सही अपनी बात रास्ते में मिलने वालों को समझा दी थी |
इतना लंबा रास्ता ! जाना इसलिए ज़रूरी था कि उनकी बिटिया यानि दानी की माँ के लिए एक लड़का बताया था किसीने ,दानी बिना लड़के का घर-द्वार देखे अपनी एकमात्र बिटिया को इतनी दूर भेजने के पक्ष में नहीं थीं | दानी के नाना जी ने उन्हीं दिनों अपना बैंक का काम छोड़कर एक बड़ा व्यवसाय शुरू किया था ,उस समय उनका दिल्ली से निकलना मुमकिन नहीं था ---बस ,दानी की नानी बन गईं झाँसी की रानी और आराम से घूमते -घामते अहमदाबाद से अपनी सहेली को लेकर वे पहुंचीं बंबई और वहाँ से निराश होकर लौटीं |
उन्हें न तो लड़का पसंद आया था ,न ही उसका घर-द्वार ! सो ,नानी अपनी सखी के साथ बंबई घूमकर वापिस दिल्ली आ गईं थीं और शिद्द्त से दानी की माँ के लिए आए हुए रिस्ज्ते को मन कर दिया था |
ऎसी थीं दानी की नानी ! बच्चों को सुनकर बड़ा मज़ा भी आया और उन्होंने दानी की कहानी पर आश्चर्य प्रगट भी किया | लेकिन ---हाँ,बच्चों को यह सुनकर कि उनकी दानी की नानी भी इतनी बोल्ड थीं ! इतनी दमदार !
सभी बच्चों ने अपने-अपने दोस्तों के ग्रुप्स मेन दानी की नानी की कहानी सुनाई वो भी खूब नमक-मिर्च लगाकर ! बल्कि कुछ छोटे बच्चे तो अपने माता-पिता के पीछे पड़ गए कि उन्हें भी एक दानी चाहिए –बिल्कुल उनके जैसी जो अपने को बच्चों मे घिरा छोड़ दे और उस अंग्रेजों के ज़माने की बात बताएं जिसकी बात दानी सुनाती थीं |
बच्चों के माता-पिता के पास कोई ऐसी मशीन तो थी नहीं जिससे वे दानी बना सकते –सो ,वे अपने बच्चों की बात सुनकर हाँ—हूँ करते रहे और दानी अपने घर व पड़ौस के बच्चों को कहानियाँ सुनाकर उनके साथ उनकी मुस्कुराहट में खिलती रहीं |
डॉ.प्रणव भारती