Sholagarh @ 34 Kilometer - 33 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 33

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 33

डीएनए रिपोर्ट

सार्जेंट सलीम शेक्सपियर कैफे से सीधे गुलमोहर विला पहुंचा था। उसने इंस्पेक्टर मनीष को वहीं बुलाया था। सार्जेंट सलीम के पहुंचने के कुछ देर बाद ही मनीष भी पहुंच गया। सलीम लॉन में ही बैठा उसका इंतजार कर रहा था। मनीष ने जीप लॉन से कुछ पहले ही रोक दी थी। उसके साथ एक कांस्टेबल हाथ में पेंटिंग लिए नीचे उतर आया। उनके पहुंचे पर सलीम ने कहा, “आइए अंदर ही चलते हैं। यहां कुछ देर बाद अंधेरा हो जाएगा।”

तीनों वहां से ड्राइंग रूम पहुंच गए। सलीम ने मनीष और कांस्टेबल को सोफे पर बैठाने के बाद बेल का बटन दबा दिया। एक नौकर कुछ देर बाद ही अंदर आ गया। सलीम ने उस से सोहराब के बारे में मालूम किया तो पता चला कि वह अभी तक नहीं लौटा है। सलीम ने नौकर से तीन कॉफी और नाश्ता लाने के लिए कहा।

“क्या मामला है इस पेंटिंग का?” सलीम ने मनीष से पूछा।

जवाब में मनीष ने विक्रम के खान के स्टूडियो की पूरी दास्तान उसे शुरू से आखिर तक सुना दी। इसमें यह जिक्र भी शामिल था कि एक बार स्टूडियो में चोरी के अंदेशे में विक्रम के खान ने रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी।

“क्या यह बात सोहराब साहब को मालूम है?”

“शायद नहीं।” मनीष ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

“वह पिछले दिनों कई बार एक पेंटिंग का जिक्र कर चुके हैं। उनकी इसमें खासी दिलचस्पी है। हो सकता है यह वही पेंटिंग हो! जरा यह पेंटिंग मुझे भी दिखाना।” सलीम ने कहा।

कांस्टेबल ने चादर खोलकर पेंटिंग का रुख सलीम की तरफ कर दिया। सलीम पेंटिंग एकटक देखता रह गया। काफी खूबसूरत पेंटिंग थी।

“शेयाली मामाले में आप लोगों की तफ्तीश कहां तक पहुंची?” मनीष ने पूछा।

“इस मामले में सोहराब साहब ज्यादा बेहतर बता सकेंगे।” सलीम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।

मनीष समझ गया कि इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने हमेशा की तरह इस बार भी चुप्पी साध रखी होगी। दरअसल सोहराब की आदत थी कि जब तक किसी केस की तह तक न पहुंच जाए वह उसके बारे में बात करना पसंद नहीं करता था। सलीम को भी वह उतना ही बताता था, जितना उससे काम लेना होता था।

नौकर कॉफी लेकर आ गया। सलीम ने कॉफी बनाकर पहला कप कांस्टेबल को दिया। वह हमेशा इस बात का ख्याल रखता था कि पद में छोटे लोगों को इसका एहसास न कराया जाए कि उनकी अहमियत कम है।

कॉफी पी कर कुछ देर बाद मनीष और कांस्टेबल चले गए। सलीम पेंटिंग लेकर लाइब्रेरी आ गया। वहां उसने पेंटिंग को मेज पर रख दिया। उसके बाद लैपटॉप ऑन करके ऑफिस की मेल चेक करने लगा।

बालों की डीएनए रिपोर्ट आ गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक दो बाल एक लड़की के थे और दो बाल दूसरी किसी लड़की के। बिल्ली की लाश के पास मिले रुमाल का बाल हाशना के सर से तोड़े गए बाल से मैच कर रहा था। वहीं पेड़ और अलमारी पर मिला बाल किसी दूसरी लड़की के थे। यानी मामला साफ था कि विक्रम के खान की खुदकुशी वाले दिन हाशना तहखाने में नहीं गई थी। अब अहम सवाल यह था कि वह लड़की कौन है, जिसका यह बाल था?

सलीम कुछ देर तक बैठा सर धुनता रहा। उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वजह यह थी कि उसके पास ज्यादा जानकारी ही नहीं थी, इस केस के बारे में। वैसे भी उसने एक लंबा वकफा जंगल में श्रेया के साथ गुजारा था। श्रेया का ख्याल आते ही वह बेचैन हो उठा। जब से वह अपने घर गई थी, उसने एक बार भी उसका हाल नहीं लिया था, जबकि इंस्पेक्टर सोहराब ने इसके लिए उसे खास तौर से ताकीद की थी। उसने तय किया कि वह कल सुबह सबसे पहले श्रेया से ही मिलने जाएगा।

सार्जेंट सलीम लाइब्रेरी से बाहर निकल आया। उसने इंस्पेक्टर सोहराब को फोन मिलाया, लेकिन वह नॉट रीचेबल था। सलीम डायनिंग रूम में आ गया और नौकर से खाना लगाने के लिए कहा। आज उसने काफी भागदौड़ की थी। उसका इरादा जल्दी खाना खाकर सो जाने का था।

उसने हल्का-फुल्का खाना खाया और अपने रूम में जाकर कपड़े बदले और बिस्तर पर पड़ रहा। कुछ देर बाद ही उसके खर्राटे गूंजने लगे।

नकली पेंटिंग

सलीम को ऐसा लगा था कि जैसे भूचाल आ गया हो। नींद में पहले तो उसे तेज-तेज पुकारे जाने की आवाज सुनाई दी थी, फिर उसे झिंझोड़ कर बैठा दिया गया था। वह हवन्नकों की तरह बैठा इधर-उधर देख रहा था। तभी उसके कानों में फिर से सोहराब की आवाज गूंजी, “चलो जल्दी से तैयार हो जाओ... हमें तुरंत ही यहां से निकलना है।”

“कक्कहां चलना है?”

“शोलागढ़। श्रेया की जान को खतरा है।”

श्रेया का नाम सुनते ही सार्जेंट सलीम की आंखों की नींद गायब हो गई। वह तेजी से बिस्तर से उठ बैठा और वाशरूम में घुस गया। जब वह बाहर निकला तो वहां सोहराब नहीं था। उसने जल्दी से कपड़े बदले और बाहर आ गया। ड्राइंग रूम में सोहराब उसका इंतजार कर रहा था। उसने ब्लैक कॉफी का कप सलीम को पकड़ाते हुए कहा, “इसे पी लो। नींद और थकान दोनों ही गायब हो जाएगी।”

कॉफी का जायका काफी कड़वा सा था, लेकिन सलीम ने उसे हलक से नीचे उतार ही लिया। कॉफी पीकर उसे यकीनन राहत मिली थी।

“पिस्टल और गोलियां रख तो ली हैं न! उसकी जरूरत पड़ सकती है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“यस बॉस!” सलीम ने आवाज में जोश पैदा करते हुए कहा।

दोनों ड्राइंग रूम से बाहर निकल आए। लॉन के पास घोस्ट खड़ी थी। सोहराब ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और सलीम बगल की सीट पर। घोस्ट तेजी से आगे बढ़ गई।

सलीम ने जेब से पाइप निकाल लिया और वानगॉग का तंबाकू उसमें भरने लगा। पाइप सुलगाने के बाद उसने सोहराब से पूछा, “आपको कैसे पता चला कि श्रेया की जान को खतरा है?”

“मैं तुम्हारी तरह बेखबर नहीं रहता। तुमसे श्रेया पर नजर रखने को कहा था, लेकिन उसने तुम्हें उस दिन इग्नोर क्या कर दिया कि तुम दोबारा उधर भूल कर भी नहीं गए।”

सोहराब की बात पर सलीम खामोश रह गया। यकीनन वह श्रेया की तरफ दोबारा नहीं गया था। कुछ देर की खामोशी के बाद सलीम इंस्पेक्टर सोहराब को पेंटिंग के बारे में बताने लगा कि किस तरह वह इंस्पेक्टर मनीष को विक्रम के स्टूडियो में मिली थी। सोहराब ने पूरी बात सुनने के बाद कहा, “वह पेंटिंग नकली है।”

“आपको कैसे पता?” सलीम ने पूछा।

“मैं लाइब्रेरी में पेंटिंग देख चुका हूं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“हम सब तो असली हैं न!” सार्जेंट सलीम पाइप का एक गहरा कश लेते हुए बड़बड़ाया, “पहले नकली शेयाली से साबका पड़ा और अब नकली पेंटिंग।”

घोस्ट रात के सन्नाटे को चीरती हुई भागी चली जा रही थी। शहर पीछे छूट गया था। अब यह सीधी सड़क शोलागढ़ की तरफ ही जाती थी। सोहराब ने घोस्ट की स्पीड काफी बढ़ा दी थी। वह जल्द से जल्द शोलागढ़ पहुंच जाना चाहता था।

“मैंने शेयाली की प्रॉपर्टी के बारे में भी पता किया था।” कुछ देर की खामोशी के बाद सार्जेंट सलीम ने कहा।

“क्या जानकारी मिली?” इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने पूछा।

जवाब में सार्जेंट सलीम ने उसे एडवोकेट संदर्भ सिंह से मुलाकात और वहां से मिली डिटेल के बारे में पूरी बात बता दी।

“अपराधी बहुत शातिर है।” कुमार सोहराब ने गंभीर आवाज में कहा।

“मैं आपकी बात नहीं समझा।” सलीम ने कहा।

“अभी वक्त नहीं है कुछ भी समझाने का।” इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने गंभीरता से जवाब दिया।

उसने घोस्ट की स्पीड और बढ़ा दी थी। सलीम स्पीडोमीटर की सुई देख कर सिहर उठा। सलीम ने सोहराब को कभी इतनी तेज रफ्तार से गाड़ी चलाते नहीं देखा था।

सोहराब ने शोलागढ़ तक का रास्ता आधे वक्त में पूरा कर लिया था। उसने घोस्ट को सड़क के किनारे उतार दिया और बाईं तरफ जंगल के अंदर गाड़ी लेता चला गया। सोहराब ने कार की हेड लाइट्स भी बुझा दी थीं। कार की रफ्तार काफी कम हो गई थी। कुछ देर बाद उसने कार को एक झाड़ी की आड़ में रोक दिया और कार से नीचे उतर आया। उसके हाथ में एक छोटा सा झोला था। सलीम भी कार से बाहर निकल आया।

आधी रात गुजर चुकी थी। पूरा इलाका सांय-सांय कर रहा था। झींगुर और सियार के अलावा किसी की भी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। तभी उनके करीब ही एक बड़ा सा उल्लू चीखा। उसकी आवाज से सलीम चौंक पड़ा था। शायद उल्लू ने कोई शिकार देख लिया था।

दोनों पूरी सतर्कता से पैदल ही चले जा रहे थे। सोहराब का हाथ कोट की जेब में था और उसने पिस्टल पर अपनी ग्रिप मजबूत कर रखी थी। जरूरत पड़ने पर वह अगले दो सेकेंड में फायर कर सकता था। रात की स्याही में उनके पैरों के नीचे पड़ने पर सूखी पत्तियां चीख रही थीं।

कुछ दूर चलने के बाद उन्हें एक इमारत नजर आने लगी। साथ ही कुछ आवाज भी आ रही थी।

“इतनी रात को यह आवाज कैसी है?” सलीम ने फुसफुसाते हुए पूछा।

“शूटिंग हो रही है।” सोहराब ने धीमी आवाज में कहा।

कुछ देर बाद वह दोनों इमारत की चहारदीवारी के पास खड़े थे। यह इमारत का पिछला हिस्सा था। सोहराब ने सलीम से दीवार फांदने के लिए कहा। दोनों ही बड़ी फुर्ती से दीवार फांद कर अंदर दाखिल हो गए।

सलीम ने सोहराब की तरफ देखा। वह यह जानना चाहता था कि अब क्या करना है। सोहराब ने साथ लाए झोले से रेशम की एक डोर निकाली। उसके एक सिरे में स्टील का छोटा सा ऐंकर बंधा हुआ था। सोहराब ने झोले से एक छोटी सी कमान और तीर निकाली। तीर के आगे के सिरे पर ऐंकर को फंसा दिया। तीर को कमान में लगाने के बाद सोहराब ने उसे छत की तरफ छोड़ दिया।

कुछ देर बाद उसने रेशम की डोर को खींचना शुरू किया। डोर खिंचती चली आ रही थी। उसके बाद डोर तन गई। यानी ऐंकर किसी चीज में फंस गया था। सोहराब ने तीन-चार बार पूरी ताकत से डोर को झटका दिया, लेकिन डोर टस से मस न हुई।

सोहराब ने धीमी आवाज में सलीम से दस्ताने पहनने को कहा। जब वह दस्ताने पहन चुका तो उसने उसके हाथों में डोरी थमाते हुए ऊपर चढ़ जाने को कहा। सलीम किसी कलाबाज की तरह बड़ी फुर्ती से ऊपर चढ़ गया। उसके बाद सोहराब ने भी हाथों पर दस्ताने चढ़ाए और डोरी थाम ली और तेजी से ऊपर पहुंच गया। सोहराब ने डोर को ऊपर खींच लिया था।

यह इमारत की आखिरी मंजिल की छत थी। अब उन्हें आवाज साफ सुनाई दे रही था। वह इमारत के अगले हिस्से से आ रही थी।

सोहराब नीचे उतरने के लिए रास्ता तलाश करने लगा। उसने नीचे जाने का रास्ता खोज तो लिया, लेकिन वहां दरवाजा लगा हुआ था और वह दूसरी तरफ से बंद था। दोनों इमारत के अगले हिस्से की तरफ बढ़ गए। आवाज उधर से ही आ रही थी।

सलीम ने एक मोखे से झांक कर नीचे देखा। सामने का सीन देख कर वह चौंक पड़ा। उसे अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। सामने लॉन में फिल्म की शूटिंग चल रही थी और कैमरे के सामने शेयाली खड़ी थी।

सोहराब भी सलीम के बगल आकर खड़ा हो गया। उसे फिल्म का डायरेक्टर शैलेष जी अलंकार कहीं नजर नहीं आ रहा था। उसे आश्चर्य हुआ।

अचानक एक रोशनदान से उन्हें रोशनी आती नजर आई। कमरे की लाइट अभी ही जलाई गई थी, क्योंकि जब वह ऊपर आए थे तो यह उजाला उन्हें नजर नहीं आया था। कुमार सोहराब रोशनदान के पास जाकर खड़ा हो गया और अंदर झांक कर देखा। यह एक बड़ा सा हाल था। एक लड़की कुर्सी पर बैठी थी। उसे कुर्सी से बांध दिया गया था। सामने एक आराम कुर्सी पर शैलेष जी अलंकार बैठा मुस्कुरा रहा था। उसके हाथ में रिवाल्वर था।

सार्जेंट सलीम भी सोहराब के बगल में जाकर खड़ा हो गया और रोशनदान से नीचे झांकने लगा। यह मंजर देखने के बाद उसके तो होश फाख्ता हो गए। मरा-मींजा सा नजर आने वाला शैलेष जी अलंकार का यह रूप देख कर वह आश्चर्य से भर गया था।

अंदर शैलेष कह रहा था, “हां तो मिस श्रेया! आपको हीरोइन बनना है फिल्म की। वरना आप अपना मुंह खोल देंगी। है न!”

शैलेष की बात का श्रेया ने कोई जवाब नहीं दिया। शैलेष की इस बात पर श्रेया के चेहरे के भाव भी सोहराब और सलीम नहीं देख सके थे। उनकी तरफ श्रेया की पीठ थी।

“पिछली बार तो आप दफ्न होने से रह गईं थीं, लेकिन इस बार नहीं बच पाएंगी। वह गड्ढा अभी भी आपका इंतजार कर रहा है। आपको गड्ढे में दफ्न करने के बाद ऊपर एक पौधा लगा दिया जाएगा। फिर कोई नहीं जान पाएगा कि आपको जमीन निंगल गई या आसमान खा गया।” शैलेष ने फुफकारते हुए कहा।

इस बार भी श्रेया ने कोई जवाब नहीं दिया।

शैलेष ने कहा, “हम तुम्हारी जान बख्श सकते हैं। अगर तुम हमें साफ-साफ बता दो कि तुमने उस जासूस को क्या-क्या बताया है।”

“मेरी बात का यकीन करो... मैंने उसे कुछ नहीं बताया है।” श्रेया के लहजे में इल्तिजा थी।

“हम कैसे मान लें। आखिर उन्हें इस बात का यकीन क्योंकर नहीं हुआ कि शेयाली जंगल में है और जिंदा है! तुमने ही उन्हें डुप्लीकेट के रहस्य से वाकिफ कराया होगा।”

“मैंने उसे कुछ नहीं बताया है... मेरी बात का यकीन करो।” श्रेया ने तेज आवाज में कहा।

“तुम्हारा वह जासूस वकील के पास कैसे पहुंचा... यह जानने के लिए कि शेयाली की प्रॉपर्टी का वारिस कौन है? वकील के बारे में उसे किसने बताया?”

“मैं इस बारे में भी कुछ नहीं जानती।” श्रेया ने धीमी आवाज में कहा।

“मुझे तो यही आश्चर्य है कि तुम जंगल से जिंदा कैसे लौट आईं।” शैलेष ने कहा।

तभी हाल का दरवाजा खुला और शैलेष जी अलंकार अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो गया। आने वाले के पैर सोहराब को नजर आ रहे थे, लेकिन वह उसकी शक्ल नहीं देख पा रहा था।

*** * ***

क्या श्रेया को शैलेष मारने में कामयाब हो सका?
हाल में दाखिल होने वाला कौन था?
आखिर श्रेया कौन सा राज जानती थी?
क्या शेयाली ने खुदकुशी की थी या वह हादसा था या फिर कत्ल?
क्या न्यूड पेंटिंग मिल सकी?
विक्रम के खान ने खुदकुशी क्यों की थी?
हाशना क्या नकाबपोश के हाथों से बच सकी?
आखिर इन साजिशों के पीछे कौन है और उसका मकसद क्या है?

इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का आखिरी भाग...