Sholagarh @ 34 Kilometer - 32 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 32

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 32

रक्सीना और शेक्सपियर

सलीम ने टैक्सी ड्राइवर को शेक्सपियर कैफे पर रुकने के लिए कहा। टैक्सी रुकते ही उसका पीछा करने वाली कार तेजी से आगे निकल गई। सलीम पीछा किए जाने से पूरी तरह से बेखबर था। दरअसल एडवोकेट संदर्भ सिंह ने उससे जिस लहजे में बात की थी, उससे उसका मन उखड़ा हुआ था। दूसरे वह थक कर चूर हो रहा था।

उसनै टैक्सी का किराया अदा किया और कैफे में दाखिल हो गया। हाल में नाटककार शेक्सपियर की बड़ी सी मूर्ति लगी हुई थी। सलीम ने थोड़ा सा झुक कर बड़े अदब से मूर्ति को विश किया। इस वक्त हाल में काफी भीड़ थी। उसने हाल में बैठे लोगों पर एक उचटती सी नजर डाली और एक कोने की मेज के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।

कुछ देर बाद ही एक वेटर आर्डर लेने के लिए आ गया।

“दो टर्किश कॉफी। मुझे शेक्सपियर के किस्से सुनने हैं। किसी को भेज दीजिए प्लीज।” सार्जेंट सलीम ने वेटर से कहा।

टर्किश कॉफी कहें या तुर्किश कॉफी, बात एक ही है। तुर्किश कॉफी बनाने के लिए कॉफी बीन्सक को पीसकर पाउडर बना लिया जाता है। इस पाउडर को गर्म पानी में घोला जाता है। इसके बाद इस घुले हुए पेस्टि को उबाला जाता है। पूरे पानी को सुखा दिया जाता है और आखिर में पॉट में पाउडर बचा रह जाता है। इसमें फ्लेवर मिलाया जाता है। कॉफी की चौथी परत, मोटी और क्रीमी होती है। इसकी वजह से यह कॉफी पूरी दुनिया में पसंद की जाती है।

कुछ देर बाद एक खूबसूरत लड़की उसकी मेज के पास आकर खड़ी हो गई।

“क्या मैं यहां बैठ सकती हूं।” लड़की ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“वेलकम मिस...!”

“मिस रक्सीना।” लड़की ने सलीम की बात पूरी कर दी।

लड़की बड़ी अदा से सार्जेंट सलीम के सामने कुर्सी पर बैठ गई। “शेक्सपियर के बारे में क्या सुनेंगे? ट्रैजडी या ह्यूमर?” रक्सीना ने पूछा।

“कुछ भी सुना दीजिए।” सलीम ने कहा।

“आपको विलियम शेक्सपियर के कुछ दिलचस्प फैक्ट सुनाती हूं।” रक्सीना ने कहा।

शेक्सपियर कैफे की खास बात यह थी कि यहां आने वाले मेहमानों को लड़कियां शेक्सपियर के किस्से या नाटकों के प्रसंग सुनाती थीं। इसके बदले में वह एक कॉफी पीती थीं और ग्राहक खुशी से जो भी टिप दे दे। सलीम ने भी अपनी बोरियत दूर करने के लिए आज यह ख्वाहिश की थी। नतीजे में रक्सीना उसके सामने बैठी हुई थी।

“शेक्सपियर नए शब्दों को लेकर बहुत उत्साहित रहते थे और शब्दों को लेकर नये प्रयोग करते रहते थे। एक अनुमान के मुताबिक, उन्हों ने अंग्रेजी भाषा को तकरीबन तीन हजार नये शब्द दिए। उस वक्त अंग्रेजी इतनी रिच नहीं थी। उन्होंने कई सारे स्लैंग्स और मुहावरे भी लोगों में पॉपुलर किए।” रक्सीना ने बताया, “शेक्सपियर नये शब्दों को लेकर इतने उत्साहित रहते थे कि एक बार वह अपनी एक देहाती प्रेमिका को किस करने जा रहे थे। भावुक होकर प्रेमिका ने एक शब्द कहा। शेक्सपियर ने चुंबन बीच में ही रोक दिया और डायरी और कलम निकाल कर उस शब्द को पहले लिखा फिर चुंबन लिया।”

रक्सीना की किस्सागोई का अंदाज बहुत निराला था। सलीम उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। उसने पर्स से पांच सौ रुपये का नोट निकाल कर टिप के तौर पर रक्सीना के हाथों पर रख दिया। रुपये मिलते ही रक्सीना सीट से उठ गई।

“नहीं प्लीज बैठिए। मैंने कॉफी मंगाई है।” सलीम की बात पूरी होते ही मोबाइल की घंटी बज उठी। उसने फोन निकाल कर देखा। इंस्पेक्टर मनीष की काल था।

“एक्सक्यूज मी!” सलीम ने रक्सीना से कहा और सीट से उठ गया। फोन रिसीव करते ही उधर से मनीष की आवाज आई, “कुमार सोहराब साहब का फोन नहीं मिल रहा है। मुझे विक्रम के खान के स्टूडियो से एक न्यूड पेंटिंग मिली है। मैं उन्हें यह दिखाना चाहता था।”

“आप कोठी पर पहुंचिए। शायद वह वहीं हों। मैं भी कुछ देर में पहुंच रहा हूं।” सार्जेंट सलीम ने कहा और वापस टेबल पर लौट आया। वहां रक्सीना उसका इंतजार कर रही थी। टेबल पर कॉफी रखी हुई थी।

सलीम के पहुंचते ही रक्सीना कॉफी बनाने लगी। पहला कप उसने सलीम को थमा दिया। उसके बाद एक कप कॉफी उसने अपने लिए बनाई। सलीम का दिमाग पेंटिंग में उलझ गया था। उसने जैसे-तैसे कॉफी खत्म की और रक्सीना से इजाजत लेकर उठ खड़ा हुआ।

“हम फिर फिलेंगे शेक्सपियर के किसी नए किस्से के साथ।” सार्जेंट सलीम ने जाते हुए रक्सीना से कहा और काउंटर पर कॉफी के पैसे अदा करके बाहर निकल आया।

रक्सीना की निगाहें देर तक उसका पीछा करती रहीं। उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कुराहट थी।


भगदड़


लड़की की चीख के साथ ही उसके हाथ से टार्च छूट कर गिरी थी। गिरने की वजह से टार्च जल उठी। नकाबपोश ने तुरंत ही एक हाथ से लड़की का मुंह दबाया और दूसरे हाथ से टार्च बुझा दी। बंगले के अंदर से लड़की के गिरने की धमक, चीख और रोशनी के जलने और तुरंत बुझ जाने का यह दृश्य बाहर से बहुत रहस्यमय लगा था। दरअसल बाहर पुलिस वाले आपस में बातें कर रहे थे। धमक की आवाज के साथ ही उनकी निगाहें बंगले की तरफ उठी थीं। उन्होंने कॉरीडोर के शीशे से रोशनी भी देखी थी और एक साया भी, जो तेजी से नीचे झुक गया था।

इस दृश्य के बाद कुछ कांस्टेबल भूत-भूत चिल्लाने लगे, लेकिन तुरंत ही एसआई ने उन्हें डपट दिया और वह तेजी से गेट खोलकर लॉन की तरफ आया। डरते-दुबकते कुछ कांस्टेबल भी उसके पीछे से अंदर दाखिल हुए। एसआई ने जेब से टार्च निकाल कर कॉरीडोर के शीशे पर मारी। उसने बुलंद आवाज में पूछा, “कौन है अंदर?”

अंदर नकाबपोश ने लड़की को पीठ पर लाद लिया और लेटे ही लेटे धीरे-धीरे पीछे के हिस्से में सरकने लगा। कॉरीडोर के मोड पर पहुंचे के बाद वह खड़ा हो गया और तेजी से पीछे की तरफ भागा। लड़की अभी भी उसकी पीठ पर लदी हुई थी। शायद वह डर गई थी, क्योंकि उसके मुंह से अजीब सी आवाजें आ रही थीं। नकाबपोश लड़की को लिए हुए पाइप के सहारे नीचे उतरने लगा। अभी वह कुछ ही नीचे सरक पाया था कि वजन की वजह से पाइप का ज्वाइंट खुल गया और वह दोनों नीचे आ रहे। इस बार गिरने की दो बार धमक शांत माहौल में गूंजी थी और लड़की के चीखने की आवाज भी।

कुछ भागते हुए कदमों की आवाज पीछे की तरफ बढ़ती चली आ रही थी। यह पुलिस वाले थे। सन्नाटे में लड़की की चीख की आवाज पुलिस वालों ने साफ सुनी थी। यही वजह थी कि वह अंदाजे के मुताबिक बंग्ले के पीछे की तरफ जा रहे थे।

नकाबपोश बहुत फुर्तीला साबित हुआ। वह न सिर्फ तुरंत ही उठ खड़ा हुआ था, बल्कि लड़की को पीठ पर लाद कर तेजी से पीछे की दीवार की तरफ भागा। उसने किसी नट की तरह भागते हुए एक पैर दीवार पर टिकाया और हाथों को दीवार पर जमाकर तेजी से ऊपर चढ़ गया। दीवार ज्यादा ऊंची नहीं थी। नकाबपोश लड़की को लेकर तुरंत ही दूसरी तरफ कूद गया।

जब पुलिस वाले पीछे के हिस्से में पहुंचे तो वहां सन्नाटा था। एसआई ने टार्च की रोशनी ऊपर से लेकर नीचे तक सभी जगह मारी, लेकिन कहीं कुछ नजर नहीं आया। दीवार के उस तरफ नकाबपोश लड़की को थामे एक मोटे से पेड़ की आड़ में दम साधे खड़ा था। उसने कुछ देर बाद झांक कर देखा पीछे के हिस्से में रोशनी का दायरा इधर-उधर मंडरा रहा था।

अचानक उसे पीछे की दीवार पर एक सर नजर आया। उसने खतरा भांप लिया था। वह तेजी से आगे की तरफ सरकने लगा। कुछ दूर निकल जाने के बाद वह तेजी से भागने लगा। लड़की सहमी सी उसकी पीछ पर लदी हुई थी। उसने मजबूती से उसे पकड़ रखा था।

काफी दूर पहुंचने के बाद नकाबपोश रुक गया। उसने पेड़ों के झुरमुट के बीच खड़ी कार की पिछली सीट पर लड़की को बैठा दिया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और कार तेजी से आगे बढ़ गई। कुछ दूर जाने के बाद नकाबपोश ने पीछे मुड़े बिना कहा, “घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा दोस्त हूं। तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा।”

पीछे बैठी लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। वह आंखें फाड़े अंधेरे में देख रही थी।

“मैं जान सकता हूं कि आप इतनी रात को चोरों की तरह उस बंग्ले में क्या करने गईं थीं?”

“यह बात आप पर भी लागू होती है।” लड़की ने बड़ी दिलेरी से जवाब दिया।

“ओह हाशना!” नकाबपोश ने कहा।

नकाबपोश के मुंह से अपना नाम सुन कर लड़की चौंक पड़ी। वह विस्मय से नकाबपोश की तरफ देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसे अंधेरे के सिवा कुछ नजर नहीं आया।

“तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?” लड़की ने कहा।

“पहले मेरे सवाल का जवाब!” नकाबपोश ने भारी आवाज में पूछा।

“मैं न बताऊं तो।” हाशना ने कहा।

“फिर मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा, क्योंकि किसी के घर में बिना इजाजत घुसना कानूनन जुर्म है।”

“यह अपराध तो तुमने भी किया है मिस्टर!” हाशना ने बड़ी दिलेरी से कहा।

“मैं पुलिस वाला हूं।” नकाबपोश ने कहा।

“पुलिस वाले नकाब पहनकर घूम रहे हैं! अजीब बात है।” हाशना ने व्यंगात्मक हंसी के साथ कहा।

“चलो मैं ही बताए देता हूं कि तुम वहां क्या करने गईं थीं!” नकाबपोश ने हंसते हुए कहा।

हाशना ने कोई जवाब नहीं दिया।

कुछ देर बाद नकाबपोश ने कहा, “तुम वहां पेंटिंग की तलाश में गईं थीं। न्यूड पेंटिंग की।”

“कौन हो तुम?” हाशना पहली बार बुरी तरह सहम गई थी।

*** * ***

वह नकाबपोश कौन था?
इंस्पेक्टर मनीष को मिली पेंटिंग की हकीकत क्या थी?

इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...