Cholbe Na - 5 - Mantra of Electoral Chakkalas in Hindi Comedy stories by Rajeev Upadhyay books and stories PDF | चोलबे ना - 5 - चुनावी चक्कलस का मंत्र

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चोलबे ना - 5 - चुनावी चक्कलस का मंत्र

सुबह सुबह की बात है (कहने का मन तो था कि कहूँ कि बहुत पहले की बात है मतलब बहुत पहले की परन्तु सच ये है कि आज शाम की ही बात है)। मैं अपनी रौ में सीटी बजाता टहल रहा था। टहल क्या रहा था बल्कि पिताजी से नजर बचाकर समय घोंटते हुए मटरगश्ती कर रहा था (इसका चना-मटर से कोई संबंध नहीं है परन्तु आप भाषाई एवं साहित्यिक स्तर पर कल्पना करने को स्वतंत्र हैं। शायद कोई अलंकार या रस ही हो जिससे मैं परिचित ना होऊँ और अनजाने में मेरे सबसे बड़े साहित्यिक योगदान को मान्यता मिलते-मिलते रह जाए)। तभी मेरी नजर चच्चा पर पड़ी जो एक हाथ में धोती का एक कोन पकड़े तेज रफ्तार में चले जा रहे थे जैसे कि दिल्ली की राजधानी एक्सप्रेस पकड़नी हो! मैंने भी ना आव देखा ना ताव; धड़ दे मारी आवाज,

“चच्चा! कहाँ उड़े जा रहे हो?

पहले तो चच्चा भकुआए कि क्या हो गया? फिर उनको होश आया कि बंगाली बम नहीं फटा है बल्कि सामने से फायरिंग हुई है। मुझे मुस्कराते देखकर तड़ से बोले,

‘तोहार इहे रहन बहुत खराब लगे है! कई बार कहे हैं कि जब हम विचार कर रहे हों तो हमको डिस्टर्ब ना किया करो लल्ला! पर तुम हो कि अपनी आदत से मजबूर हो। बोलो! काँहे डिस्टर्ब किए?’

‘सॉरी चच्चा! हम सोचे कि कहीं निकल रियो हो तो हाल चाल ले लें! खैर किस विचार में ध्यान-मग्न थे कि बच्चा नहीं दिखा चच्चा?’

‘क्या बताएं लल्ला, ई देश बड़ा कमाल का है?’

हम भी चिहा के पूछ लिए, ‘क्या हुआ चच्चा? देश अपनी जगह पर ही है कि समुद्र में खिसक लियो किसी प्लेट के साथ?’

‘चुप्प!’, बहुत जोर से खिसिया के बोले, ‘हरदम मजाक ठीक नहीं लगता। कभी तो सीरियस हुआ करो।‘

हम भी हड़ककर मिमियाती आवाज में गंभीर होकर पूछे, ‘कुछ खास हो गया क्या चच्चा?’

अपने थोबड़े को विशेष कलर में लाते हुए बोले, ‘ई नेता लोग पगला गए हैं। जो मन में आता है, बोलते रहते हैं। बताओ ऐसे ये लोकतंत्र कहाँ जाएगा?’

‘अरे चच्चा कहाँ जाएगा? आखिर हुआ क्या है? कुछ तो बताओ।‘

‘अरे! केवनो नेता है, बउरा गया है। कह रहा है कि नतीजा गबड़ाया तो सड़क पर खुन बहेगा। अइसे कइसे बहने देंगे सड़क पर खून?’

मैंने भी पूछा, ‘अरे चच्चा! कुछ तो कारन होगा नेताजी के भड़कने का?’

‘अरे लल्ला! नेता और साँड़ के भड़कने का कोई कारण होता है क्या? कह रहा है कि ईवीएम गड़बड़ है। कइसे गड़बड़ है? परसो ही तो ड्यूटी कर के आ रहे हैं। एकदम चकाचक चल रही थी ईवीएम!‘

‘पर लोग तो कह रहे हैं कि ईवीएम बदला जा रहा है।‘

‘भक्क बुड़बक! अइसा कइसे हो सकता है!!‘

‘पर ढेर-ढेर विद्वान लोग कह रहे हैं कि इवीएम बदला जा रहा है।‘

‘बहुत टीवी देखते हो! उसी का असर है। रवीश ठीके कहता है कि टीवी देखना बन्द कर दो। टीवी देखोगे तो ऐसे ही बौराओगे।‘

‘पर चच्चा!’

अब की बार चच्चा जोर लगाकर बोले, ‘हम कह रहे हैं न कि इवीएम बदला नहीं जा सकता तो तुम मान क्यों नहीं रहे हो?’

‘तब लोग काँहे हल्ला किए हैं? कुछ तो बात होगा? बिना धुँआ के आग थोड़े न लगती है।’

‘क्या बात है लल्ला? कहावत के भी कान तोड़ दिए। लगता है तुम्हारे ही स्कूल से पढ़े ई सब नेता लोग।‘

अब मेरे हैरान होने का टाइम था, ‘मतलब समझे नहीं हम।‘

‘बबुआ बस इतनी सी बात है कि वीवीपैट ने उनकी पोल खोल दी है। उनको लग रहा है कि पार-घाट नहीं लगेगा, तो शोर मचाएंगे ही।‘

‘पर चच्चा! तुम तो इस सरकार के विरोधी हो। तब काँहे सपोर्ट कर रहे हो?’

‘एतना बड़ देंह हो गया पर दिमाग में कुछो नहीं भरा। एकदम घोंचू हो। चिहा क्या रहे हो? अरे भाई! इहाँ सरकार की बात नहीं है; चुनाव आयोग की बात है। हम ट्रेनिंग किए हैं। हमको पता है। इस सरकार में तऽ इहे एगो बढ़िया काम हुआ है कि सबको ट्रेनिंग करा दिया।‘

‘चच्चा! तुम सरकार और चुनाव आयोग में फिर गबड़ा गए।‘

चच्चा को इतना सुनना था कि ताव में आ गए। जोर से दहाड़े (उनके दहाड़ को सुनकर लगा कि शेर अकेला ही होता है),

‘तो क्या चाहते हो कि चुनाव-वुनाव में टाइम खोटा ना किया जाए और हर उम्मीदवार को तलवार दे दिया जाए कि जो उम्मीदवार अपने चुनाव क्षेत्र के अन्य सभी उम्मीदवारों को मार देगा वही विजयी माना जाएगा।‘

‘नहीं चच्चा! मेरा ये मतलब नहीं था।‘

‘नहीं! नहीं! यही ठीक रहेगा। इसके अनेकों फायदे भी हैं। पहला कि उम्मीदवार निष्कंटक पाँच साल तक राज कर सकेगा।‘

‘नहीं चच्चा!’

चच्चा फार्म में आ गए थे, ‘और दूसरा फायदा ये है कि ना रहेगा बाँस, ना बाजेगी बाँसुरी। लगे हाथ ईवीएम का रोना भी खत्म हो जाएगा। तीसरा फायदा ये होगा लोकतंत्र तलवारों के सहारे और मजबूत हो जाएगा क्योंकि इस महान लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हर बार नए-नए लोगों को मौका मिलेगा और इस तरह परिवारवाद की समस्या से ये भारतीय लोकतंत्र मुक्त हो जाएगा। अब तो ठीक है!‘

चच्चा इतना कहकर हाँफने लगे थे।

मैंने मनाने के उद्देश्य से कहा, ‘नहीं चच्चा! आप मेरी बातों का गलत मतलब निकाल रहे हैं।‘

चच्चा गुस्से में थे तो उनकी हिन्दी एकदम साफ हो गई, ‘नहीं बेटा! तुम्हारे कहने का यही मतलब है कि पूरी चुनावी प्रक्रिया ही बेकार है। तुमसे पूछकर चुनाव कराना था ना। परन्तु चुनाव आयोग को क्या पता कि तुम क्रान्तिकारी-प्रगतिशील हो गए हो। नहीं तो तुमसे ही राय लेकर चुनाव आयोग परिणाम घोषित कर देता।‘

चच्चा इतना कहकर धड़धड़ाते हुए निकल गए।