पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा) in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा)

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पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा)

पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा)

अब साहब आपका पूछना जायज ही होगा कि पांडे जी कौन ? आपने पूछ ही लिया है तो हम बताएं देते है। पांडे जी हमारे शहर की कोई नामचीन हस्ती तो है नहीं। दुबली सी काया के मालिक, कभी पेंट शर्ट तो कभी पजामा कुर्ते में शहर में दिखाई दे जाते है। उनकी खासियत यह है कि वे कभी अकेले नही होते। उनके साथ हमेशा ही उनकी सुख-दुःख की साथी ......सायकिल होती है। उनकी सायकिल उनकी दिलरूबा है, प्रेमिका है और प्रयशी भी है। मजाल है उनकी सायकिल पर एक किचड़ का धब्बा भी दिखाई दे। कपड़ा उनकी सायकिल में हमेशा ही होता है। वे कभी भी कहीं भी अपनी सायकिल को पोछ कर सजाने संवारने में परहेज नहीं करते। मजाल है उनकी सायकिल से एक भी आवाज आ जाये, बस वे खुद ही खोल कर बैठ जाते है सुधारने के लिये। सायकिल क्या है एक चलता-फिरता कारखाना, सायकिल के पीछे लगे बक्से में पंचर सुधारने के सामान से लेकर हर प्रकार के औजार हमेशा ही मौजूद रहते है। जहाॅं जरूरत पड़ी कारखाना चालू।

पांडे जी अपनी सायकिल की सुरक्षा का भी खास ध्यान रखते है। एक ताला तो है ही, अक्सर वे चैन के साथ लगा हुआ एक ताला और लेकर चलते है। सुरक्षा की दृष्टि से किसी खम्भे, हुक या किसी अन्य वाहन से बांधना नही भूलते । वैसे पांडे जी अमूमन तो वहां अपनी सायकिल खड़ी ही नहीं करते जहाॅं आम तौर पर खड़ी की जाती है जैसे वे किसी कार्यालय में हुए तो उस खिड़की के पास जहाॅं उनका काम है सायकिल पाई जाती है । किसी के घर जाने पर बैठक कमरे से सीधे दिखने वाले स्थान पर ही उनकी सायकिल मौजूद होती है। वे अपने घर में शयन कक्ष में ही सायकिल को रखते है या यूं कहें कि सायकिल के साथ ही शयन कक्ष में सोते है।

ऐसा भी नहीं कि पाण्डे जी मोटर सायकिल या स्कूटर नहीं ले सकते। धर्म पत्नी की समझाईश पर मोटर सायकिल ले भी ली है लेकिन उन्हें तो सायकिल से ही मोहब्बत है। अब आपको लग रहा होगा कि पाण्डे जी की सायकिल वाले इस किस्से में कोई नाटकीय मोड आयेगा। आप बिल्कुल सही है। इस किस्से में अहम मोड़ तब आया जब सारी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद उनकी सायकिल भरे बाजार से चोरी हो गई। बेचारे पाण्डे जी ......उनके तो आंसू ही निकल गये। जिस खम्भे से सायकिल को चैन के साथ बांधा था वहाॅं अब केवल चैन थी बिना ताले की। वे पहले घर गये और मोटर सायकिल से थाने पंहुच कर रिपोर्ट लिखवाई । थानेदार से पूछा ‘‘साहब कब तक मिलेगी ?’’ थानेदार बोला ‘‘आप कैसे आये थे ?’’ पाण्डे जी बोले ‘‘ मोटर सायकिल से...’’ थानेदार बोला ‘‘ आपका काम तो चल रहा है न। ’’ पाण्डे जी समझ गये इन तिलों से तेल नहीं निकलेगा। पन्द्रह दिन बीत गये सायकिल न मिलनी थी और न मिली ।

एक दिन पाण्डे जी को तहसील आफिस के सामने एक काला सा लड़का किसी दूसरे की सायकिल के ताले से छेड़छाड़ करता हुआ दिखा। पाण्डे जी दबे पांव पहुंचे और उसे दबोच लिया। वो गिड़गिड़ाने लगा तो पाण्डे जी बोले ‘‘मै तुझे छोड़ दुंगा तू मुझे मेरी सायकिल दिला दे। ’’ चोर जिसका नाम कालू था बोला ‘‘ आप बताओ आपकी सायकिल कब और कहाॅं से चोरी हुई थी।’’ पाण्डे जी ने विस्तार से सायकिल चोरी का वृतांत बताया। कालू ने सिर खुजलाया और बोला ‘‘ वो .....वो ......वो.......इलाका तो भण्डारी का है भण्डारी के लोगों ने ही आपकी सायकिल उठाई होगी। पन्द्रह दिन हो गये तो अब तक तो वो बार्डर पार भी हो गई होगी।’’ पाण्डे जी बोले ‘‘ मै कुछ नही जानता मुझे तो बस मेरी सायकिल चाहिए।’’ कालू बोला ‘‘तो चलो प्रदेश के बार्डर पर चलते है।’’

पाण्डे जी और कालू बार्डर पर भण्डारी से मिले। भण्डारी ने पाण्डे जी को गौर से देखा जैसे उन्हें परख रहा हो फिर बोला ‘‘ चलो पंडित जी हमारे गोदाम में देखते है।’’ अब पाण्डे जी जहाॅं खडे़ थे वहाॅं सायकिलों, मोटर सायकिलों और स्कूटरों की सैकड़ों मे कतारंे लगी थी। ये सारे वाहन यहाॅं-वहाॅं से चुराकर लाये गये थे और आगे बिक्री के लिये तैयार थे। भण्डारी बोला ‘‘ देख लीजिए आपकी कौन सी सायकिल है।’’ पाण्डे जी ने बहूत ढूंढा पर उनकी सायकिल नही मिली। तब भण्डारी बोला ‘‘ अब पंडित जी आप कोई भी सायकिल, मोटर सायकिल या स्कूटर हमारी ओर से लेकर जाइये।’’ पाण्डे जी बोले ‘‘ नहीं ......हमें तो हमारी ही सायकिल चाहिए।’’ भण्डारी ने फिर एक बार उनसे चोरी का वृतांत पूछा। फिर बोला ‘‘ अच्छा बाजार में खम्भे से चैन के साथ बंधी थी वो वाली ।’’ पाण्डे जी झट से बोले ‘‘ हाॅ... हाॅ.. वही ।’’ भण्डारी बोला ‘‘ वो .....वो तो बिक गई...थानेदार के भाई के पास है। चलिये.... हम उन्हें दूसरी देकर आपकी आपके पास पहुंचा देंगे। ’’

पाण्डे जी की रात आॅखो-आॅखो में कटी। सुबह उनकी सायकिल लावारिस हालत में बिना सुरक्षा के दरवाजे पर खड़ी मिली । पाण्डे जी खुशी से रो ही पड़े। वे सायकिल से ऐसे मिले जैसे बिछड़ा हुआ आशिक अपनी महबूबा से मिलता है।

आलोक मिश्रा "मनमौजी"