Baingan - 17 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 17

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बैंगन - 17

तो हुआ ये कि सब्ज़ी वाले की वो लड़की जिसके दहेज़ में तन्मय को तांगा पहले ही मिल गया था वो अचानक घर से भाग गई। उसी का नाम चिमनी था।
अब बेचारा तन्मय उस भारी भरकम दहेज का क्या करता? और दहेज़ को तो वो तब देखे न, जब उसे पहले पत्नी तो मिले। जब पत्नी ही नहीं मिली तो कैसा दहेज़, किसका दहेज़?
इसीलिए बेचारा तन्मय भी घर छोड़ कर काम की तलाश में भाग गया और काम मांगता हुआ मेरे पास चला आया।
ये थी सारी कहानी।
अब मैं बेचारे को कोई नौकरी तो दे नहीं सका, हां अपनी उलझन में उसे अपना दोस्त और साथी ज़रूर बना लिया।
मैंने उसे जब बताया कि मेरा भाई हाल ही में विदेश से बहुत पैसा कमा कर लौटा है और तुम्हारे ही शहर में रहता है तो उसकी आंखों में अचानक चमक आ गई। मैंने तन्मय को अपनी ये उलझन भी बता दी कि किस तरह मुझे अपने भाई पर किसी काले धंधे में फंसे होने का शक है तो वो और भी नज़दीक आ गया।
उसने मुझे भरोसा दिलाया कि वो मेरी पूरी मदद करेगा और मेरे भाई के बारे में जो तहकीकात की जाएगी उसमें मेरा सहयोगी बनेगा।
मैंने इसीलिए आज यहां आने से पहले ही उसे कुछ दिन पूर्व मेरे भाई के मकान को देख आने का काम दिया था। उसने बखूबी ये ज़िम्मेदारी निभाई और वह फूल वाला बन कर वहां दो एक बार हो आया था।
इतने बड़े और आधुनिक बंगले में सजावट के लिए ताज़ा फूलों की खपत होती ही थी और तन्मय ने बखूबी ये धंधा पकड़ कर मेरा काम आसान कर दिया था। अब वहां आना - जाना उसके लिए सहज था।
तन्मय ने मेरा परिचय अपने पिता पुजारी जी को ये कह कर कराया था कि मैं उसका सेठ हूं, जिसने अपनी दुकान पर उसे नौकरी दी है। उन्हें ये भी बताया था कि मैं दुकान का माल खरीदने इस शहर में आता रहता हूं और होटल में रुकता हूं पर इस बार वो मुझे अपने साथ घर पर ले आया है ताकि मुझे होटल में न रुकना पड़े।
पुजारी जी इस जानकारी से गदगद से हो गए थे और मेरे लिए उनके मन में बेतहाशा सम्मान उमड़ आया था।
उन्होंने मन ही मन अपने बेटे तन्मय की किस्मत का भी शुक्रिया अदा किया जिसे बीवी मिलने से पहले ही दहेज़ में तांगा मिल गया था और नौकरी मिलने से पहले ही उसका मालिक ख़ुद उसके घर रहने चला आया था।
पंडित जी ने मंदिर में झाड़ू- पौंछा लगाने वाले एक लड़के को घर में रोटी बनाने के लिए भी कह दिया ताकि मुझे या उनके पुत्र तन्मय को काम में कोई बाधा न आए। और उनका बेटा तन्मय मेरा ठीक से ख्याल रख सके।
रोटी खाकर रात को मैं और तन्मय सोने के लिए छत पर चले आए।
यहीं मैंने उसे पूरी कहानी सुना डाली कि किस तरह एक दिन मैं जब अपने भाई के घर वाशरूम में बैठा था तो अचानक वहां पुलिस आ गई थी और भाई को ढूंढने लगी थी जो अचानक वहां से गायब हो गया। लेकिन बाद में भाई और घर के सब लोग वापस इस तरह चले आए जैसे कुछ हुआ ही न हो, और उल्टे मुझे ही झूठा बना दिया।
तन्मय को इस सारी बात में बहुत मज़ा आ रहा था और वह ये सोच कर ख़ुश था कि मैंने अपने सगे भाई की जांच पड़ताल की इस ख़ुफ़िया मुहिम में उसे अपना साथी बनाया है।
रात को बहुत देर तक बातें करके हम दोनों सोए। तन्मय ने मुझे कहा कि घंटे- दो घंटे में उसके पिता का तो जागने का वक्त होने वाला था जो नीचे कमरे में सोए थे। उन्हें सुबह जल्दी नहा धोकर पूजा पाठ करने के लिए मंदिर भी जाना पड़ता था।
मैं नींद के आगोश में जाते- जाते भी भैया के ख़ुफ़िया बंगले के बारे में ही सोच रहा था और शायद तन्मय ये सोच रहा था कि कल वो बंगले पर कौनसे फूलों के गुलदस्ते ले जायेगा।