Betrayal - Part (14) in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात--भाग(१८)

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विश्वासघात--भाग(१८)

साधना और मधु की मोटर शक्तिसिंह जी के बँगलें के सामने रूकी,दोनों माँ बेटी ने ड्राइवर से कहा कि पहले दरबान से पूछकर आओ कि ये शक्तिसिंह जी का ही बँगला है क्योंकि लीला बहन ने जो पता बताया था,उसी पते पर हम लोग आएं हैं____
जी,मालकिन! अभी पूछकर आता हूँ,ड्राइवर ने कहा।।
ड्राइवर मोटर से उतरा और उसने दरबान से पूछा कि ये शक्तिसिंह जी का बँगला है,दरबान ने कहा हाँ! आप सही पते पर आएं हैं,ड्राइवर ने साधना से कहा कि मालकिन यही उनका बँगला है।।
दोनों माँ बेटी मोटर से उतरीं और ड्राइवर से मोटर पार्किंग में लगाने को कहा,ड्राइवर मोटर को पार्किंग में लगाने चला गया और वो दोनों भीतर पहुँची।।
सब उन्हीं दोनों का इंतज़ार कर रहे थें और तो सारे मेहमान आ चुके थे,जैसे ही लीला ने साधना और मधु को देखा तो बोली____
आइए...आइए..बहनजी!, हम सब आपका ही इन्त़जार कर रहे थे।।
जी,माफ़ कीजिएगा बहन! थोड़ी देर हो गई,साधना बोली।।
कोई बात नहीं बहन! लीला बोली।।
तभी लीला की नज़र मधु पर पड़ी,मधु को देखकर लीला बोली___
अच्छा! तो ये है मधु बिटिया! बहुत ही प्यारी लग रही हो,लीला बोली।।
पार्टी चल ही रही थी,मधु और साधना भी जाकर बैठ गए लेकिन तभी कुसुम आई और मधु से बोली___
यहाँ क्या बैठी हो? चलो ना मधु! तुम्हें मेरी सहेलियों से मिलवाती हूँ॥
और कुसुम ,मधु को अपनी सहेलियों से मिलवाने ले ही जा रही थी कि प्रदीप की नज़र उस पर पड़ी,प्रदीप ने मधु को देखा तो पहचान ही नहीं पाया,मधु लग ही इतनी सुन्दर रही थी कि उस पर ही सबकी निगाहें आकर अटकती थीं____
हल्की गुलाबी सुनहरे बार्डर वाली पारदर्शी साड़ी खुले पल्लू मे पहनी हुई,स्लीपलेस ब्लाउज,घने बालों का ऊँचा जूड़ा बनाया हुआ,कजरारी बड़ी बड़ी आँखें,गुलाबी होंठ,गले में मोतियों का गुलुबंद,कानों में मोतियों के टाप्स और दाएं बाजू में मोतियों का ही बाजूबन्द,पारदर्शी गुलाबी साड़ी में मधु की छरहरी काया साफ साफ झलक रही थी,साड़ी पहनने के बाद मधु में एक अज़ब ही सादगी आ गई थी,चेहरे पर एक लज्जा सी दिख रही थी।।
प्रदीप ने मधु को देखा तो अपने होश़ ही खो बैठा,इससे पहले उसने मधु को कभी भी इतने गौर से नहीं देखा था,मधु जहाँ जहाँ जाती,प्रदीप की नजरें उसका पीछा करतीं,मधु कुछ खाने गई तो प्रदीप ने उसकी तरफ़ नाश्ते की प्लेट बढ़ा दी,लेकिन मधु ने प्रदीप की दी हुई प्लेट नहीं ली और दूसरी ओर मुड़ गई,लीला ये सब दूर से देख रही थी,उसने भाँप लिया कि लगता है अभी भी मधु और प्रदीप में बोलचाल शुरू नहीं हुई है।।
तभी संदीप ने कहा कि अब कुछ गाने और शायरी का प्रोग्राम हो जाए, महफिल सूनी सूनी अच्छी नहीं लग रही और कुसुम की सहेलियों ने फरमाइश की कि कुसुम अब एक गाना सुनाएंगी___
कुसुम ना नहीं कह सकीं और उसने सबको अपनी मधुर आवाज़ में गाना सुनाया।।
एक एक करके जिससे जो फरमाइश की जा रही थीं,वो सुनाएं जा रहा था अब बारी थी प्रदीप की___
संदीप बोला___
क्यों शायर साहब! वैसे तो बहुत शायरियाँ लिखते रहते हो आज शायरी नहीं सुनाओगे।।
सबको ये सुनकर आश्चर्य हुआ कि प्रदीप शायरी लिखता है और सबने भी प्रदीप की शायरी सुनने की जिद़ की,मजबूरी में प्रदीप को शायरी सुनानी पड़ी जो इस तरह थी___

तेरे हुस्न की क्या तारीफ़
क्या करूँ ,महबूब मेरे....
तू करीब आती है तो इत्र की
तरह महक़ जाता हूँ...
तू नज़रे मिलाती है तो शराबी
सा बहक जाता हूँ...
फिर सोचता हूँ कि तू इत्र है
या के शराब....
या फिर दोनों ही...
ये सोचकर मैं तेरे ख्यालों
में उलझ जाता हूँ...!!

प्रदीप की शायरी सुनकर महफिल तालियों से गूँज उठी,अब बारी थी केक काटने की शक्तिसिंह जी ने एलान किया कि आओ भाई अब केक काटने की बारी है,प्रदीप ने केक काटा और सबको खिलाकर बड़ो के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया।।
केक काटने के बाद रात के डिनर की बारी थी,लीला ने सारे नौकरों से खाने की टेबल पर खाना सजाने को कहा और कहा कि देखे रहना,खाना कम ना पड़े और कुछ भी खतम हो सबसे पहले मुझे ख़बर करना,वैसे खाना कम नहीं पड़ेगा,इतना तो मेरा अन्दाजा है लेकिन फिर भी मुझे बता जरूर देना।।
सभी नौकरों ने कहा कि अच्छा मालकिन!!
सब खाना खाने बैठे,खाना सबको बहुत पसंद आया क्योंकि खाना वाकई बहुत स्वादिष्ट बना था,सभी मेहमानों का पेट तो भर गया लेकिन मन नहीं,तभी लीला ने फिर देखा कि प्रदीप ज्यों ही मधु से बात करने की कोशिश करता है,मधु उससे दूरियाँ बना लेतीं है।।
तब लीला ने कुसुम के कान में कुछ कहा।।
ठीक है माँ! हो जाएगा,आप चिंता ना करो,कुसुम बोली।।

सबके खाना खाने के बाद कुसुम ने मधु से कहा___
चलो ना मधु! थोड़ा देर बगीचें की खुली हवा में बैठते हैं।।
मधु ,कुसुम की गुज़ारिश को टाल ना सकी और उसके संग बगीचें में चली आई,बाहर हल्की गुलाबी ठंड थी,मधु को बाहर आकर अच्छा लगा,दोनों आकर बगीचें में पड़ी बेंच पर बैठ गई।।
देखों तो कितनी चाँदनी रात है,कुसुम बोली।।
हाँ! दीदी! और चाँद भी कितना खूबसूरत लग रहा है,मधु बोली।।
सही कह रही हो मधु! बहुत खूबसूरत है आज की रात,कुसुम बोली।।
और ऐसे ही मधु और कुसुम के बीच बातें चलती रहीं,दोनों एक दूसरे की पसंद और नापसंद को जानने का प्रयास करती रहीं और कुछ ना कुछ बातें करके हँसती रहीं।।

और वहाँ भीतर लीला ने अपनी योजना अनुसार प्रदीप को पुकारा___
प्रदीप बोला,जी बुआ जी!
अरे,धीरे बोल,अभी मैं तेरी बुआ नहीं माँ हूँ,पगले! लीला ने प्रदीप से कहा।।
माफ़ करना बुआ ! भूल गया था,प्रदीप बोला।।
अच्छा!ठीक है,जरा देख तो कुसुम कहाँ है? उससे थोड़ा काम है,लीला बोली।।
जी माँ! अभी देखता हूँ कि कुसुम दीदी कहाँ हैं,प्रदीप बोला।।
देख शायद अपनी सहेलियों के साथ बगीचें की ओर गई हैं,लीला बोली।।
ठीक है और प्रदीप इतना कहकर बगीचे की ओर कुसुम को ढ़ूढ़ने चला गया ,उसने वह जाकर देखा कि कुसुम और मधु बेंच पर बैठीं बातें कर रही हैं,वो उनके नजदीक पहुँचा और कुसुम से बोला।।
दीदी! तुम्हें माँ बुला रहीं हैं...
ठीक है तो मैं जाती हूँ,प्रदीप ! तुम जब तक मधु के पास बैठकर बातें करो,कुसुम इतना कहकर चली गई।।
अब कुसुम की जग़ह पर प्रदीप आ बैठा___
मधु इधर उधर देखने लगी,प्रदीप की भी हिम्मत ना हो रही थी कि वो कुछ बोले,दोनों कुछ देर ऐसे ही खा़मोश होकर चाँद को निहारते रहें,एकाएक प्रदीप ने अपनी चुप्पी तोड़ी और बोला____
आज की रात कितनी हसींन हैं...
हाँ..,मधु बोली।
और उस पर ये चाँद भी कितना ख़ूबसूरत लग रहा है,प्रदीप बोला।।
मधु फिर बोली,हाँ...
लेकिन मेरे बगल में बैठें चाँद से ज्यादा खूबसूरत नहीं है वो बादलों का चाँद,प्रदीप बोला।।
मधु ने बिना सोचे समझे फिर बोल दिया...हाँ..अचानक उसे लगा कि ये उसने क्या बोल दिया,
उसने बोला,साँरी! मेरा ये मत़लब नहीं था।।
लेकिन मेरा मत़लब यही था कि आज तुम बहुत ही खूबसूरत लग रही हो,तुम हमेशा साड़ी ही पहना करो,प्रदीप बोला।।
मधु ने शरमाते हुए कहा,थैंक्यू!!
सच!सोचता हूँ कि आज रात कैसे सो पाऊँगा,प्रदीप बोला।।
क्यों? क्या हुआ? मधु ने पूछा।।
अरे,किसी ने नींदें उड़ा दी हैं,चैन चुरा लिया है,प्रदीप बोला।।
कौन है वो? मधु ने पूछा।।
प्रदीप ने शायरी भरें अन्द़ाज में कहा___

आँखों में शरारत और गालों पर रंगत
होंठों पर शोख़ी और दिल में मौहब्बत
ए..यार इतनी अदाएं हैं तुझमें कि कोई
पल भर में तेरा दीवाना हो जाएंं....!!

शायरी तो बहुत अच्छी कर लेते हो,शरमाते हुए मधु ने कहा।।
मौहब्बत भी बहुत अच्छी करता हूँ कोई करके तो देखें,प्रदीप बोला।।
लगता नहीं था मुझे कि उस खड़ूस चेहरे के पीछे ये चेहरा भी छिपा है,मधु बोली।
हमारा मौहब्बत भरा दिल भी तो देखिए मोहतरमा! प्रदीप बोला।।
जी!वो हम बाद में देखेंगे,अच्छा! पहले एक बात पूछनी थी तुमसे जवाब दोगें,मधु बोली।।
हाँ पूछो ना! प्रदीप बोला।।
जब ये तुम्हारा घर है तो जहाँ मैं गई थी तुम्हें ढू़ढ़ने, वो कमरा,वो क्या था? मधु ने पूछा।।
मैने वो कमरा पढ़ने के लिए ले रखा है किराए पर,मेरा एक और दोस्त वहाँ रहता है,प्रदीप ने झूठ बोल दिया।।
अच्छा! तो ये बात है,मैं तो कुछ और ही समझी थी,मधु बोली।।
क्या समझी थी भला? प्रदीप ने पूछा।।
यही कि तुम बहुत गरीब हो,मधु बोली।।
गरीब तो हूँ लेकिन कोई अगर अपनी मौहब्बत से मेरी झोली भर दे तो अमीर बन जाऊँ,प्रदीप बोला।।
तो फिर ढ़ूढ़ लो ऐसी कोई जो तुम्हारी झोली मौहब्बत से भर दे,मधु बोली।।
ढ़ूढ़ तो मैने ली है लेकिन ये नही पता कि वो राज़ी है या नहीं।।
ऐसे ही प्यार से बात करोगें तो एक ना एक दिन राज़ी भी हो जाएंगी,मधु बोली।।

उफ्फ़!! ये आँखें उस पर ये काजल की धार
दिल हमारा कैसे ना हो बेकरार...
कत्ल तो कर दिया उन्होंने अपनी निगाहों से मेरा
बेफ़जूल मारे गए हम और हल्ला भी ना हुआ...!!

तुम शायरी भी करते हो ये आज मालूम हुआ,मधु बोली।।
अच्छा जी! अच्छा लगा सुनकर लेकिन ये तो बताया ही नहीं कि अच्छी लगी या नहीं,प्रदीप ने पूछा।।
बहुत ही खूबसूरत ,मधु बोली।।
लेकिन आप से खूबसूरत नहीं है शायद,प्रदीप बोला।।
ये क्या? आप ...आप...लगा रखा है,एकाएक इतनी तहज़ीब कैसे सीख ली,मधु ने पूछा।।
किसी की अदाओं ने इस नाचीज़ को इंसान बना दिया,प्रदीप बोला।।
भला हो उसका,जिसने ये काम किया,मधु बोली।।
उनकी अदाओं में जादू था,अब तो रातों को बस तड़पा करेंगें,प्रदीप बोला।।
ओ शायर साहब! बहुत हो गया,अब मैं जाती हूँ,बहुत सुन ली आपकी बक़वास,मधु बोली।।
ये बकवास नहीं,इश्क़ की ख़ुमारी है मोहतरमा!प्रदीप बोला।।
तभी कुसुम ,मधु को बुलाने बगीचें आ पहुँची और बोली ___
साधना चाची तुम्हें बुला रहीं हैं,मधु!घर जाने के लिए और इतना कहकर कुसुम जाने लगी___
ठीक है दीदी! उनसे कहिए मैं आती हूँ ,मधु बोली।।
अच्छा! तो आप जा रहीं हैं,प्रदीप बोला।।
जी हाँ,जनाब! मधु बोली।।
अब कब मिलिएगा,प्रदीप ने पूछा।।
कभी नहीं,मधु बोली।।
इतना सित़म,प्रदीप बोला।।
मैं चलती हूँ,आप चाँद को निहारिए,मधु बोली।।
हमारा चाँद तो जा रहा है,प्रदीप बोला।।
चलिए हटिए और इतना कहकर मधु चली गई और प्रदीप उसे जाते हुए देखता रहा।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___