Vishwasghat - 14 in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात--भाग(१४)

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विश्वासघात--भाग(१४)

शक्तिसिंह जी को लीला का शुष्क व्यवहार पसंद नहीं आया,एक तो इतनो सालों बाद मिलती है और जब भी मिलती है तो ऐसा ही शुष्क व्यवहार करती है,शक्तिसिंह जी ने मन में सोचा।।
तब तक सब लौट आएं और भीतर आकर सब खाने पीने की तैयारी में लग गए,तब दया ने इशारों में शक्तिसिंह जी से पूछा कि जीजी से कोई बात हुई,शक्तिसिंह जी ने भी इशारें में कहा हुई तो लेकिन ना के बराबर।।
सबने चाय पी फिर खाने की बारी थी,इतने दिनों बाद सबके साथ बैठकर खाने का स्वाद और भी बढ़ गया साथ मेँ खूब हँसी ठिठोली भी होती रही,खाना खाने बाद बेला बोली___
मैं तो अभी जा रही हूँ क्योंकि कुछ मरीज शाम को आने वाले हैं दूसरे गाँव से,उन्हें दवा देनी है।।
और वो चली गई।।
शक्तिसिंह जी दयाशंकर से बोले___
अब मैं भी यहाँ रूककर क्या करूँगा? मैं और कुसुम बिटिया शहर लौट जाते हैं,विजयेन्द्र को देखने आया था,उसे देखकर मुझे संतुष्टि हो गई और फिर स्कूल छोड़कर वो मेरे साथ शहर भी नहीं चल सकता,इसलिए मैं और कुसुम चले जातें हैं,कुसुम को भी यहीं छोड़ देता लेकिन इतने बड़े घर में मेरा अकेले जी नहीं लगेगा।।
क्यों जमींदार साहब ! इतनी जल्दी क्यों वापस जा रहे हैं,हम क्या पराएं हैं,दया बोला।।
ना भाई! आज मन का भ्रम दूर हो गया,जिस मोह मे फँसा था वो मेरे मन का केवल वह़म था ,ये नहीं पता था कि सच्चाई तो कुछ और ही है,शक्तिसिंह जी बोले।।
मन को इतना छोटा ना करें,वो समझ जाएंगीं,उन्हें थोड़ा वक्त दीजिए,दयाशंकर बोला।।
वक्त ही तो दिया था इतनो सालों का,तब भी नहीं समझी तो बाद में क्या समझेगी,शक्तिसिंह जी बोले।।
मैं और मंगला उन्हें मना लेगें,आप चिंता ना करें,दयाशंकर बोला।।
तो ठीक है मुझे जाने दो,हो सकता है मेरे जाने के बाद उसे कुछ एहसास हो,शक्तिसिंह जी बोलें।।
अगर आपकी यही मर्जी है तो फिर मैं अन्दर बोलकर आता हूँ कि अब आप यहाँ ठहरना नहीं चाहते,दयाशंकर बोला।
और दयाशंकर ये कहने भीतर पहुँचा लेकिन ये सुनकर संदीप, प्रदीप और विजयेन्द्र बाहर आएं___
और विजयेन्द्र बोला___
ये क्या? ताऊ जी!हम भीतर इतनी बड़ी प्लानिंग कर रहे हैं और आप हैं के जाने की बात कर रहे हैं।।
कैसी ?प्लानिंग भाई! जरा मैं भी तो सुनूँ,शक्तिसिंह जी बोलें।।
अरे,नटराज के ख़िलाफ़ सुबूत इकट्ठा करने की प्लानिंग,विजयेन्द्र बोला।
वो कैसे करोगे? तुम सब,शक्तिसिंह ने पूछा।।
तभी विजयेन्द्र बोला,तो सुनिए,हमने क्या सोचा है?
प्रदीप अब मधु से दोस्ती बढ़ाएगा,प्रदीप है आपका अमीर भतीजा ,जो धीरे धीरे मधु के घर जाना शुरु करेंगा,,फिर लीला माँ भी शामिल होगीं इस खेल में वो मधु की माँ से जान पहचान बढ़ाकर उनका विश्वास जीतेंगीं और तभी हम नटराज के राज जान पाएंगे।।
लेकिन मधु बेचारी को इस काम में इस्तेमाल करना क्या ठीक रहेगा? शक्तिसिंह जी बोलें।।
हम मधु को सारी सच्चाई बता देंगें,संदीप बोला।।
सच्चाई जानकर क्या वो अपने बाप के खिलाफ़ कुछ भी सुन पाएंगी,शक्तिसिंह जी बोलें।।
तो सच्चाई हम इतनी जल्दी नहीं बताएंगे,अब लीला माँ और प्रदीप आपके साथ शहर में रहेंगें,इसके लिए लीला माँ और ताऊ जी ,नटराज के सामने आपको पति पत्नी बनने का नाटक करना पड़ेगा,उसके घर आना जाना शुरू करना पड़ेगा,उसका विश्वास जीतना पड़ेगा,विजयेन्द्र बोला।।
तब तो मैं तैयार हूँ,देर किस बात की, ये नाटक जल्द ही शुरू करते हैं,शक्तिसिंह जी बोले।।
तो फिर आप यहाँ एकाध दिन और ठहरें,सारी योजना बन जाएं फिर शहर चले जाइएगा आखिर जल्दी किस बात की है,मैं भी आपके संग चलूँगा,संदीप बोला।।
ये तो बहुत बढ़िया रहा,लेकिन लीला से पूछ लिया है कि वो मेरी पत्नी बनने को तैयार है,नाटक के लिए,शक्तिसिंह जी बोलें।।
मैनें माँ को मना लिया है,उन्हें बहुत समझाया,वो अब आपकी नकली नहीं असली पत्नी बनने को तैयार हैं,आप दोनों के इतने सालों के पवित्र प्रेम को सार्थक हो जाना चाहिए,उसे एक नाम मिल जाना चाहिए,ये एक पवित्र बंधन था जो अब तक नहीं टूटा,जब परमात्मा ही आप दोनों को एक दूसरे के दिल से अभी तक अलग नहीं कर पाया तो फिर हम इंसान कौन होतें हैं,कल ही मंदिर में आप दोनों का ब्याह होगा,मैं अपने माता पिता को मिलवाकर रहूँगा,विजयेन्द्र बोला।।
और लीला की मर्जी,पूछी तूने,शक्तिसिंह जी बोले।।
वो मेरी माँ हैं और वो मेरी बात नही टाल सकतीं और इसी में हम सबकी भलाई है,विजयेन्द्र बोला।।
लेकिन तब भी मैं उसकी मर्जी के खिलाफ़ जाकर ये शादी नहीं सकता,शक्तिसिंह जी बोले।।
लेकिन वो तैयार हैं,उन्होंने हम सबसे कहा है,विजयेन्द्र बोला।।
तो ठीक है,ये रही मेरी अँगूठी और उसने बाहर आकर इसे अपनी ऊँगली मे डाल ली तो मै समझूँगा कि वो राजी़ हैं और शक्तिसिंह जी ने अपनी अँगूठी उतारकर एक तश्तरी में रख दी।।
लीला को मंगला बाहर लेकर आई और लीला ने अँगूठी उठाई और अपनी ऊँगली में डाली लेकिन अँगूठी उतरकर नीचे गिर गई,सब हैरान होकर देखने लगें।।
अरे,उनकी ऊँगली देखो और मेरी ऊँगली देखों,अँगूठी ढ़ीली है,मैं क्या करूँ? लीला बोली।।
और सब हँस पड़े,सबकी हँसी सुनकर लीला शरमाकर भीतर भाग भाग गई,अब शक्तिसिंह के मुँख की सारी सिकन दूर हो गई थी और वो भीतर ही भीतर मंद मंद मुस्कुरा रहें थें।।
ऐसे ही बातों ही बातों में सारा दिन निकल गया,दोपहर में सबने इतना खाया कि रात को सबने खानें में खिचड़ी और रायता ही लिया और खाना खाकर फिर लग गए गप्पों में,करीब आधी रात तक सबकी बातें हुई,फिर कुछ लीला के घर सोए और कुछ मंगला के घर।।।
सुबह का नाश्ता करके सब ब्याह की तैयारी में लग गए,सब जल्दबाज़ी में हुआ तो जिसके पास जो सबसे अच्छा था वो पहनकर तैयार हो गया,लीला के पास उसकी पुरानी लाल रेशमी साड़ी थी जिसे पहनकर वो भी तैयार हो गई,मतलब़ उसे मंगला ने तैयार किया,बालों का जूड़ा बनाकर गजरा लगा दिया,जो गहने थे वो पहनाकर तैयार कर दिया,लीला बहुत ही सुन्दर दिख रही थीं,वो तो पहले ही सुन्दर थी,कुछ हालातों और अपनों ने उसे समय पहले बूढ़ा बना दिया था लेकिन अब उसकी जिन्दगी में खुशियों ने दस्तक दे दी थी और उसकीं इस खुशी में वो लोग शामिल थे जो उसके अपने सगे नहीं थे लेकिन सगों से बढ़ कर थे।।
सब मंदिर पहुँचे और पंडित जी ने मंत्रोच्चारण शुरू कर फेरें पड़वाएं और ब्याह अब सम्पन्न हो चुका था।।
विजयेन्द्र बोला,अब विदा होकर माँ अपने घर जाएंगी,ताऊ जी के साथ।।
हाँ...हाँ...लीला बहन! अब तुम अपनी घरगृहस्थी सम्भालों,थोड़ा सुख तुम भी भोग लो,बहुत कष्ट उठाएं हैं तुमने जीवनभर हमसब के लिए,दयाशंकर बोला।।
हाँ..अब लीला माँ ! हमारे साथ रहेंगीं,कुसुम बोलीं।।
हाँ...हाँ..अब तू भी तैयार रहना,हमारी बहु बनने के लिए,जल्द ही मैं भी संदीप के संग तेरी गाँठ जोडने वाली हूँ,मैनें सब देख लिया है,मंगला बोली।।
और कुसुम शरमाते हुए बेला के पीछे छुपते हुए बोली और बेला दीदी...ये तो सबसे बड़ी हैं,पहले तो इनका ब्याह होना चाहिए।।
इसमें क्या है? पहले बेटी थी,अब हमारी बहु बन जाएंगी,शक्तिसिंह जी बोले।।
सच,में जमींदार साहब! दया बोला।।
हाँ...हाँ... और क्या?क्यों रे नन्हें! पसंद है ना तुझे बेला! शक्तिसिंह जी ने विजयेन्द्र से पूछा।।
आप भी ताऊ जी ! सबके सामने कैसीं बातें कर रहे हैं,विजयेन्द्र सिर खुजाते हुए बोला।।
अरे,बड़ा शरमा रहा रे तू! तेरा ताऊ इस उमर मे ब्याह रचा सकता है तो माश़ाल्लाह तू तो अभी जवान है,शक्तिसिंह जी बोलें।।
और ऐसे ही हँसी ठिठोली के बीच प्रदीप ,संदीप,कुसुम,लीला और शक्तिसिंह जी मोटरों में बैठकर शहर की ओर रवाना हो गए।।
बँगले पहुँचकर कुसुम ने लीला का गृहप्रवेश कराया और ऐसे ही रात बीत गई।।
दूसरे दिन प्रदीप और संदीप शक्तिसिंह के बँगले पहुँचे,केस के सिलसिले में क्योंकि तीनों मिल कर व़ाज़िद अन्सारी साहब के पास कुछ सलाह मशविरा करने जाने वाले थे।।
सब अन्सारी साहब के पास पहुँचे,अन्सारी साहब ने पूरा केस सुना और बोले,केस तो बहुत पेचीदा है ऊपर से हमारें पास अभी तक उसके ख़िलाफ़ कोई सूबूत ही नहीं है,ये सब जानते हैं यहाँ तक कि पुलिस को भी सब पता है कि वो स्मगलर है,उसके सारे धन्धे दो नम्बर के हैं लेकिन कोई उसके ख़िलाफ़ बोलने की हिम्मत नहीं रखता क्योंकि वो रूपए भरकर सबका मुँह बन्द कर देता है,मैंने भी कम से कम दस साल पहले इसके खिलाफ़ बोलने की हिमाक़त की थी लेकिन इसने मेरे इकलौते बेटे को मरवाने की धमकी दी थी इसलिए मैने इसका केस छोड़ दिया था।।
तो हम सब क्या करें,अन्सारी साहब! बहुत उम्मीद लेकर आपके पास आए थे,शक्तिसिंह जी बोलें।।
नाउम्मीद होनें की जुरूरत नहीं है,जमींदार साहब! मैने कहा ना कि पहले इसके ख़िलाफ़ कुछ पुख्ता सुब़ूत इकट्ठे करने होगें,चूँकि आपका केस भी बहुत पुराना हो चुका है तो उसका का भी कोई सुब़ूत अब शायद ही बचा हो इसलिए ऐसे हालात पैदा करने होगें कि वो अपना जुर्म अपने मुँह से कुब़ूल करें,अन्सारी साहब बोले।।
तो अब कल से ही शुरुआत करते हैं,सुब़ूत इकट्ठा करनें की,शक्तिसिंह जी बोलें।।
आप ऐसा कीजिए,उससे दोस्ती बढ़ाइए,पहले नज़र रखिए कि वो कहाँ कहाँ जाता है,किस क्लब,या कौन से बार में जाता है क्योंकि रईसों के शौक कुछ ऐसे ही हुआ करतें हैं,वहाँ से दोस्ती की शुरुआत कीजिए,फिर घर पर डिनर वगैरह और हाँ! मैं उसके बारें में आपकों एक बात बताना तो भूल ही गया,उसकी पहली बीवी से उसको एक बेटा भी है लेकिन ये राज बहुत कम लोग जानते हैं।।
पता है,जो कभी इस वक्त उसकी पत्नी है,उसका पिता ही इस सबका मालिक हुआ करता था,वो बहुत ही अमीर बाप की बेटी थी,उसे नटराज ने अपने झूठे प्यार के जाल में फँसाया और शादी कर ली,जबकि व़ो पहले से ही शादीशुदा था,धीरे धीरे उसने अपने बूढ़े ससुर का विश्वास जीतकर सब कुछ अपने नाम करवा लिया और एक रात ज़हर देकर उसे मार दिया,उसकी पत्नी को जब इस बात का पता चला तो वो इससे नफ़रत करने लगी और शायद अभी तक वो नफ़रत जा़री है,सुनने में आया है कि वो उससे बात भी करना पसंद नहीं करती और उसकी पहली बीवी का बेटा भी उसे पसंद नहीं करता,पहली बीवी तो शायद अब जिन्दा नहीं है,अगर हम उसके बेटे को ढू़ढ़ने में कामयाब हो जाएं त़ो शायद कुछ काम बन सकता है,वो अगर अपने पिता के खिलाफ़ गवाही दे तो केस मजबूत बन सकता है,अन्सारी साहब बोले।।
बहुत बहुत शुक्रिया अन्सारी साहब ! जो आपने हमें ये सब बताया और मैं कल से ही एक प्राइवेट जासूस हायर करता हूँ जो मुझे नटराज के बारें में सब जानकारी देगा,तभी हम कामयाब हो सकते हैं,शक्तिसिंह बोलें।।
और सब अन्सारी साहब का शुक्रिया अद़ा करके वापस आ गए।।
दूसरे दिन डिटेक्टिव एजेंसी से शक्तिसिंह ने एक डिटेक्टिव को हायर किया ताकि वो नटराज की ख़ास आदतों के बारें में पता कर सकें।।
और उधर प्रदीप काँलेज पहुँचा और उसे वहाँ मधु दिखी वो मधु के पास पहुँचा और बोला___
मधु!माफ़ कर दो मुझे,उस दिन बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे,मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।।
कोई बात नहीं प्रदीप! गलती मेरी थी और जो सज़ा तुमने मुझे दी,वो उस गलती के मुकाबले बहुत ही कम थी,अच्छा अब चलती हूँ देर हो गई है माँ इन्तज़ार कर रही होगी और मधु ने अपनी साइकिल उठाई और चली गई।।
प्रदीप हैरान था मधु मे इतना बदलाव देखकर,मोटर की जगह अब वो साइकिल से आने लगी थी।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___