Vishwasghat - 2 in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | विश्वासघात-भाग(२)

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विश्वासघात-भाग(२)


दयाशंकर ने डरते हुए पूछा___
कौन है भाई?
तभी दरवाज़े के पीछे से आवाज़ आई___
मैं हूँ शक्तिसिंह!दरवाज़ा खोलों भाई! मेरे छोटे भाई और उसकी पत्नी को डाकुओं ने मार डाला है,मैं जैसे तैसे अपने दस साल के भतीजे को बचाकर यहाँ आ पहुँचा कि किसी भी कोठरी में इसे छुपा दूँगा,कम से कम मेरे खानदान का इकलौता चिराग बचा है, वो ना बुझ पाएं,अगर तुम इसे इस कोठरी में छुपाने की जगह दे दोगे तो बहुत कृपा होगी,जिन्द़गी भर तुम्हारा एहसान मानूँगा,शक्तिसिंह बोलें।।
अरे,दयाशंकर भइया जल्दी से दरवाज़ा खोल दो,बच्चे की जान को खतरा है, लीला बोली।।
हाँ,लीला जीजी! अभी दरवाजा खोले देता हूँ, दया बोला।।
जैसे ही दया ने दरवाज़ा खोला,सामने एक हाथ में भतीजे को लिए और एक हाथ मे लालटेन लिए,शक्तिसिंह खड़े थे,उन्होंने लीला को देखा तो बोले____
अच्छा लीला! तुम भी यहीं हो,अब मुझे कोई चिंता नहीं,क्योंकि मैने अपनी धरोहर सुरक्षित हाथों में सौंपी है, लीला! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम मेरे भतीजे को आँच भी नहीं आने दोगी और बच्चे के गले में हमारा खानदानी लाँकेट है, यही इसकी पहचान है।।
नहीं जमींदार साहब ! आपको भी कुछ नहीं होगा,हम सब सुरक्षित यहाँ से भाग चलते हैं, लीला बोली।।
तभी दो डाकू वहाँ आ पहुँचे,उन्होंने जमींदार साहब से बच्चे को छीनने की कोशिश की लेकिन जमींदार ने बच्चा ना दिया,तब उन्होंने जमींदार के पेट में खंजर भोंक दिया,लीला ने देखा और दोनों के सिर पर डंडे से वार किया और बच्चे को अपनी गोद में उठाकर उसी समय दयाशंकर के संग,किसी की घोड़ागाड़ी बाहर खड़ी थी,उसी में दोनों अपने गाँव की ओर भाग निकलें।।
आधे से ज्यादा रात बीत चुकी थी,लीला ने दया से कहा,भइया! कुछ भी हो घोड़ागाड़ी रूकनी नहीं चाहिए जब तक सूरज की लालिमा ना दिखने लगे और दयाशंकर ने वही किया,सुबह हुई और वो एक मंदिर के पास घोड़ागाड़ी रोकर कुछ देर आराम करने के लिए रूकें, मंदिर में पूजा के बाद प्रसाद बँटा तो वहीं खाकर वो आगें अपने गाँव की ओर चल पड़े लेकिन अब बच्चा परेशान था और बार बार अपने माँ बाप के बारें में पूछ रहा था,लीला उसे बार बार समझाती लेकिन वो तो बच्चा था,भला कैसे बिना माँ बाप के रह सकता था,दोपहर होते होते बच्चा भूख से बिलबिलाने लगा।।
लीला और दयाशंकर सोचने लगें कि अब क्या किया जाएं, उनके पास तो पैसे भी नहीं है और ना बैलगाड़ी, उसी में खाने पीने का समान था,जल्दबाजी में भागनें के चक्कर में सबकुछ वहीं छूट गया,अब बच्चे को खाना कहाँ से दें,तभी रास्तें में एक छोटा सा गाँव पड़ा,वहाँ हाट लगी,दयाशंकर ने लीला से कहा...
अगर हमारें पास पैसे होते तो बच्चे को कुछ खानें को दिलवा देते।।
अच्छा ऐसा करो,दयाशंकर भइया! ये रही मेंरी अँगूठी जाकर इसे बेचकर बच्चे के लिए खाने को ले आओ,लीला बोली।।
ठीक है जीजी मजबूर हूँ, नहीं तो ये कभी ना होने देता,क्या करूँ बच्चे को भूखा नहीं देख सकता,दयाशंकर बोला।।
और दयाशंकर लीला की अँगूठी लेकर गया और खाने के लिए कुछ फल और मिठाइयाँ खरीद लाया,बच्चे ने पेट भर के खाया और जो बचा वो दोनों ने खा लिया और सफर फिर से शुरु कर दिया।।
शाम तक सब गाँव पहुँचे, मंगला को कुछ अजीब लगा कि इतने जल्दी कैसे दोनों लौट आएं,बैलगाड़ी और बाकी़ के टोली वाले कहाँ है?
तब दयाशंकर ने सारी घटना कह सुनाई और बोला ये बच्चा भी किसी की अमानत है,कुछ दिनों में वहाँ के हालात ठीक हो जाएंगें तो इसे फिर से हवेली छोड़ आएंगें।।
लेकिन तुमने तो अभी कहा कि डाकुओं ने इसके माँ बाप को मार डाला है और ताऊ के पेट में खंजर भोंक दिया है, ऐसे में क्या बच्चे को वापस हवेली ले जाना ठीक रहेगा, बच्चे की जान को फिर कोई खतरा हुआ तो,मंगला बोली।।
तुम सही कहती हो बेला की माँ! लेकिन अब इस बच्चे का करें तो क्या करें,दयाशंकर बोला।।
कोई बात नहीं भइया,वैसे भी जमींदार शक्तिसिंह ने इसे अमानत समझ कर मुझे सौंपा था,मेरा अपना कहने को कोई भी नहीं है,इसकी देखभाल अब से मैं करूँगी, इसे अपने बच्चे सा प्यार दूँगी, लीला बोली।।
लेकिन जीजी एक बात बताओ,तुम्हें शक्तिसिंह कैसे जानते थे, जो इतना भरोसा कर लिया तुम पर ,दयाशंकर ने पूछा।।
बहुत लम्बी कहानी है भइया! लीला बोली।
कोई बात नहीं,तब भी हम सब सुनना चाहते हैं, मंगला बोली।।
और लीला ने अपनी कहानी कहनी शुरु की____
बहुत पुरानी बात है भइया,जब मैं यही कोई सोलह साल की रही हूँगी,मेरे दो छोटे भाई और एक बहन थीं,माँ बाप थे नहीं तो हमारे संग दादी रहतीं थीं लेकिन एक दिन वो भी भगवान को प्यारी हो गई, अब हम चारों का पेट पालने के लिए मैनें गलियों में नाच गाना शुरु कर दिया।।
जो भी मिलता था,उसे बस सुबह शाम की रोटी का ही गुजारा हो पाता था,एक दिन मैं ऐसे ही गलियों में नाच गा रही थी,तब जमींदार साहब के छोटे बेटे की नज़र मुझ पर पड़ी,वो लगभग मेरे ही हमउम्र रहें होगें या शायद एकाध साल बड़े होगें, मेरा नाच देखने के बाद उन्होंने मुझे सबकी अपेक्षा ज्यादा रूपए लिए लेकिन मैने उतने ही लिए जितना कि सबसे लेती थी,बाकी़ के मैने वापस कर दिएं।।
ये पैसे वापस क्यों कर रहीं हो?शक्तिसिंह ने पूछा।।
मुझे इतने की जुरूरत नहीं, लीला बोली।।
रख लो,काम आएंगें, शक्तिसिंह बोला।।
बोला ना! जरूरत नहीं है, फिर क्यों पीछे पड़े हो,लीला बोली।।
बड़ी तुनकमिजाज हो जी तुम! वो तो तुम हो इसलिए बरदाश्त कर रहा हूँ,कोई और होता तो उसकी अकल ठिकाने पर लगा देता ,शक्तिसिंह बोला।।
क्यों ?आपको मेरा मिज़ाज बरदाश्त करने की क्या जुरूरत आ पड़ी?लीला ने पूछा।।
बस,ऐसे ही मन किया के तुम से दोस्ती कर लूँ,वो भी बहुत पक्की वाली,जो कभी ना टूटे,शक्तिसिंह बोला।।
लेकिन मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है और मैं घर जा रहीं हूँ, मेरे भाई बहन मेरा इंतज़ार कर रहें होगें, लीला इतना कहकर चलीं गई।।
लेकिन शक्तिसिंह की रोजाना की आदत हो गई लीला का नाच देखने की और एक दिन लीला से अकेले में जाकर कह दिया कि वो उससे मौहब्बत करता है लेकिन लीला ने उसकी मौहब्बत यह कहकर ठुकरा दी कि वो मौहब्बत की खातिर अपने भाई बहनों को नहीं छोड़ सकती,शक्तिसिंह ने कहा भी कि वो उसके भाई बहनों की जिम्मेदारी लेने को तैयार है उसके पास बहुत पैसा है।।
लीला बोली,माफ़ कीजिएगा जमींदार साहब आपके पास होगा बहुत पैसा लेकिन मेरे भाई बहन बिकाऊँ नहीं हैं और इसके बाद दुखी होकर शक्तिसिंह शहर चला गया पढ़ाई के लिए और लीला को नौटंकी में काम मिल गयग इसलिए उसको वो गाँव छोड़ना पड़ा इसके बाद उसकी मुलाकात शक्तिसिंह से कल ही हुई थी।।
कहानी कहते कहते लीला की आँखों से दो बूँद आँसू गिर पड़े और वो बोली,अगर कभी कोई सच्चा प्यार करने वाला मिलें तो कभी भी उसका प्यार नहीं ठुकराना चाहिए।।
अब क्या कर सकते हैं ?कभी कभी हमारे कर्तव्य हमारें प्यार के आड़े आ जाते हैं, दयाशंकर बोला।।
तो ऐसा करो लीला जीजी! फिर बच्चे को तुम ही रख लो,यही सही रहेगा और फिर हम लोंग है ही अगर कभी कोई परेशानी होती है तो,लीला बोली।।
इधर सब बच्चे आपस में मिलें और उस बच्चे ने बेला से पूछा___
क्या नाम है ? तुम्हारा!
बेला नाम है मेरा और तुम्हारा क्या नाम है, बेला ने पूछा।।
विजयेन्द्र प्रताप सिंह नाम है मेरा,विजयेन्द्र बोला।।
ठीक है तो हम सब तुम्हें विजय बुलाया करेंगें, बेला बोली।।
इसी तरह सब बच्चे आपस में हिल मिल गए और लीला को ही विजय अपनी माँ मानने लगा था धीरे धीरे वो अपनी हवेली और माँ बाप को भूलने लगा था,सबको साथ में रहते रहतें अब एक साल होता जा रहा था ,बेला और विजय आपस में इतने हिल मिल गए कि एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे।।
दशहरे का त्यौहार आया और नदिया पार दूसरें गाँव में बहुत बड़ा मेला लगा,सब अपनी अपनी बैलगाड़ियों से मेला देखने निकल पड़े,मेले मे सबने बहुत मज़े किए और अपनी अपनी पसंद के खिलौने खरीदे,दयाशंकर बच्चों से बोला चलो सब अपने अपने नाम का गोदना गुदवा लो और सबने अपने अपने नाम का गोदना गुदवाया लेकिन विजय बोला,मैं जो अपनी बाँजू में बेला का नाम गुदवाऊँगा क्योंकि वो ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं, बेला भी कहाँ पीछे हटने वाली थीं,वो बोली तो मैं भी अपनी बाँजू में विजय का नाम गुदवाऊँगीं,इस तरह दोनों ने अपनी अपनी बाँजू पर एक दूसरे का नाम गुदवा लिया और शाम तक मेले से लौट आएं।।
उस रात नौटंकी की टोली के कुछ लोग तो सकुशल वापस बचकर आ गए थे लेकिन कुछ मारे गए और इसलिए दयाशंकर की नौटंकी की टोली में कुछ नाए लोग शामिल हुए,उसमें से एक का नाम नटराज था जो बहुत अच्छा नाचता था और उसकी जोड़ी अब लीला के संग बना दी गई थी लेकिन वो बहुत शातिर था,नौटंकी के मैनेजर और मालिक से लगाई बुझाई ही करता रहता था,इसी कारण दयाशंकर उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करता था।।
त्यौहार का समय चल रहा था,इसी बीच उन्हें नौटंकी के लिए किसी गाँव में जाना था लेकिन लीला कुएँ से पानी भर कर ला रही थी और वो फिसल गई ,उसके पैर में काफी चोट आई ,उसने कहा कि इस सूजनमें वो नहीं नाच पाएंगी, अब सब चिंतित हो उठे कि लीला के बिना नौटंकी कैसे होगीं?
तभी नटराज बोला ,अगर किसी को कोई एतराज़ ना हो तो मैं इस काम के लिए अच्छी नाचने वाली को ला सकता हूँ, नई है लेकिन नाचती अच्छा है, डूबते को तिनके का सहारा ही बहुत होता है, उसका नाच देखकर मैनेजर ने उसे फौरन काम पर रख लिया उसका नाम बिंदिया था।।
अब नौटंकी की टोली चल पड़ी बिना लीला के,दयाशंकर को अच्छा तो नहीं लगा लेकिन रोजी रोटी का सवाल था,खासकर ये नटराज उसे एक नम्बर का घटिया इंसान लगता था एकदम झूठा और मक्कार,उसकी फितरत देखकर दयाशंकर का खून खौल जाता था लेकिन वो करता ही क्या ? सबकुछ उसके हाथ में थोड़े ही था।।
नौटंकी हुई और बहुत पैसा इकट्ठा हो गया,सारा पैसा मैनेजर के हाथ में था,और पैसे पर नटराज की नज़र थी,वो उसे पाने के लिए अपनी तिकड़म लगाने लगा,उसके दिमाग़ में एक विचार कौंधा,उसने एक रात दयाशंकर के साथ बैठकर शराब पी,जब दयाशंकर शराब पीकर नशे में वहीं सो गया तो उसने बिंदिया का खून कर दिया क्योंकि बिंदिया,नटराज की प्रेमिका थी और उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी,वो कोई नाचने वाली नहीं थीं,उसे भी नटराज ने धोखा दिया था और वो भी नटराज के जाल में फँस चुकी थीं, नटराज उसे भगाकर लाया था।।
फिर नटराज ने मैनेजर के पैसे चुराएं और उसका भी खून कर दिया,जब दयाशंकर को होश आया तो उसके पास पड़ी बिंदिया की लाश को देखकर बोला कि तुमने बिंदिया का खून कर दिया।।
नहीं मैने ये खून नहीं किया,दयाशंकर बोला।।
तुम्हारा विश्वास कौन करेंगा, नटराज बोला।।
तो मैं क्या करूँ,दयाशंकर बोला।।
तुम अभी यहाँ से भाग जाओं,मैं सब सम्भाल लूँगा, नटराज बोला।।
ठीक है जो तुम कहोगे,मै करूँगा लेकिन मुझे बचा लो,दयाशंकर बोला।।
और हाँ,जब तक मामला ठीक ना हो जाएं तो किसी के भी सामने ना आना,नटराज बोला।।
ठीक है तो मै यहाँ से जाता हूँ और इतना कहकर दयाशंकर वहाँ से भाग गया।।
इधर नटराज ने झूठी खबर फैला दी कि दयाशंकर ने ही बिंदिया और मैनेजर का खून किया है और सारे पैसे लेकर भाग गया,वो सबसे बड़ा विश्वासघाती है,उसने ही इतना बड़ा विश्वासघात किया है.....
और दयाशंकर अपने आप को बेगुनाह साबित करने के वजाय, इधर ऊधर मारा मारा फिरने लगा और अब ये खबर लीला और मंगला तक पहुँची तो दोनों के होश़ उड़ गए, मंगला को गाँववालों ने एक विश्वासघाती की पत्नी कहकर गाँव से निकाल दिया लेकिन लीला को दया पर अभी भी विश्वास था,उसने कहा कि मैं जानती हूँ कि दया भइया कभी भी विश्वासघाती नहीं हो सकते और मैं भी इनके साथ ही ये गाँव छोड़कर जा रही हूँ और वो सब गाँव छोड़कर चल दिए ना जाने कहाँ?

क्रमशः___
सरोज वर्मा__