वो उसे कोई पागल आत्मा समझ कर भूल जाना चाहती थी। पर उसकी आंखो मे अलग चमक थी। आज तक वो जितनी आत्माओसे मिली थी, ये उनसे अलग था।
" सॉरी बेटा। लेकिन हम तुम्हे नौकरी नहीं दे सकते।" वो जिस जिस होटल मे काम मांगने गई, हर जगह उसे मना कर दिया गया। अब उसका आत्मविश्वास भी जवाब देने लगा था। आखिरी होटल से थक हार वो बगीचे मे एक बेंच पर बैठी। सामने से जाते हुए किसी लड़के ने जलती सिगरेट कूड़े मे फेकी। कूड़ेदान कागज के टुकड़ों से भरा होने की वजह से वहा आग लग गई। जूही ने जब ये देखा वो तुरंत कूड़े दान की तरफ भागी अपनी पानी की बोतल उसने कूड़े दान पर पलट दी और फुक मार कर बची कूची आग बुझाने लगी तभी।
" फिर तुम। आखिर ये कर कैसे लेती हो ?" जूही ने जब पीछे मुड़ कर देखा वीर प्रताप वही खड़ा था।
" ओ। तुम।" जूही।
वीर प्रताप ने उसे इशारा कर कूड़ेदान से दूर होने के लिए कहा। फिर एक चुटकी बजा कर कूड़ेदान की आग बुझाई।
" अब ये मत कहना की इस आग की वजह से तुमने मुझे बुलाया।" वीर प्रताप।
" क्या तुम कोई परी हो ?" जूही।l
" सच मे। तुम्हारा इतना बुद्धु होना जरूरी है। क्या मुझे पंख है ? मैने कोई चमकीली अजीब ड्रेस पहनी है ? क्या में परी होने के लिए कोई औरत हू ?" वीर प्रताप।
" हा हा। मेरा मतलब रक्षक से था। क्या तुम मेरे रक्षक हो ? जिसे सिर्फ मेरे लिए यहां भेजा गया हो।" जूही।
" बिल्कुल नही। में खुद जानना चाहता हु के तुम मुझे कैसे बुला लेती हो ? " वीर प्रताप।
" क्या तुम पिशाच हो ? " जूही के इस सवाल से वीर प्रताप चौक गया।
" ह ??????"
" सारी आत्माएं मुझे अनोखी दुल्हन कह कर बुलाती है। उनका मानना है, के में उस पिशाच की बीवी हू जो उनका राजा है।" जूही।
" तुम्हे मुझ में क्या क्या दिखता है बताओगी।" वीर प्रताप ने एक सांस छोड़ते हुए कहा।
" तुम्हारे कपड़े अच्छे है। काफी अमीर लग रहे हो। बात करने का तरीका अजीब है। पर कोई बात नही।" जूही।
" और कुछ ? कुछ औरों से अलग ? " वीर प्रताप।
" क्या तुम हैंडसम सुनना चाहते हो ? " जूही।
" अगर तुम मुझ में इतना ही देख सकती हो। तो तुम अनोखी दुल्हन नही हो। समझी।" वीर प्रताप।
" तो मतलब तुम पिशाच हो।" जूही।
" नहीं। और क्यों की तुम्हे कोई काम नही है में यहां से जा रहा हु।" इतना कह वो वहा से गायब हो गया।
" अरे अपना नंबर तो देते जाओ। शीट फिर नंबर लेना भूल गई। अब तो मुझे पता लगाना ही होगा आखिर ये है कौन?" जूही ने सोचा।
वीर प्रताप अब यमदूत के साथ रह रहा था। घर के हालात अब और खराब होते जा रहे थे। दोनो अपना अपना खाना ले कर टेबल पर बैठे।
" वाउ ताजी सब्जियां।" यमदूत।
" मौत के सौदागर कहलाते हो पर खाना देखो कितना बेस्वाद खाते हो।" वीर प्रताप ने अपने प्लेट से मछली का टुकड़ा तोड़ते हुए कहा।
यमदूत ने हाथ उठाया जिस के चलते नमक की बोतल वीर प्रताप के पानी के गिलास मे जा गिरी।
" ओ। मुझे माफ कर देना। मुझे सब्जियों मे ज्यादा नमक पसंद है।" यमदूत।
वीर प्रताप ने जैसे ही अपना हाथ उठाया टेबल पर पड़ी मिर्ची के पाउडर की बोतल यमदूत के खाने मे जा गिरी।
" ओ मुझे बिल्कुल माफ मत करना मुझे तुम्हारी सब्जियों मे मिर्च ही डालनी थी।" वीर प्रताप।
दोनो ने जैसे ही टेबल पर हाथ पटका छूूरी और काटो की जंग शुरू हो गई थी।
" अंकल। " राज के आने की आवाज से दोनो ने अपनी ताकत को वही रोक इंसानों जैसा रूप धारण कर लिया।
" अंकल। दादाजी आपको शाम को मिलने आना चाहते है। क्या आप प्लीज उनसे वही जाकर मिल सकते है ? मेरे लिए प्लीज।" राज ने घुटनो के बल बैठ वीर प्रताप से कहा।
" में भी तो देखूं राज तुम्हारा ये झूठ कितने दिन चलता है। इसीलिए मेरा जवाब है। नहीं।।।।।।।।" वीर प्रताप टेबल से उठा और अपने कमरे मे चला गया।