किरण व कुमार का जीवन अब पूरी तरह से पटरी पर लौट आया था। शिवानी का बेटा 6 महीने का हो गया था। हां, शिवानी के ससुर की तबीयत अब ज्यादातर खराब ही रहने लगी थी। उनकी बिगड़ती हालत के बारे में सुनकर बीच में एक बार शिवानी बच्चों व दिनेश के साथ जाकर उनसे मिल आई थी।
अपने ससुर को देख शिवानी की आंखों में आंसू आ गए। उनका शरीर पहले से काफी कमजोर हो गया था और चेहरा भी निस्तेज। एक अनजानी आशंका से शिवानी का दिल घबरा गया था, जब वह उनसे मिली।
उसे यूं भावुक होते हुए देखकर उसके ससुर बोले "अरे बहू इतनी जल्दी मैं मरने वाला नहीं! देखना अपने पोते पोतियो की शादी देख कर जाऊंगा। बड़ी तमन्ना है मेरी कि रिया को अपने हाथों से डोली में बिठाऊं और अपने पोते की शादी में जी भर कर नाचू जैसे इस नालायक की शादी में नाचा था।"
दिनेश की ओर इशारा करते हुए, वह हंसते हुए बोले।
उनके हंसने से थोड़ा माहौल हल्का हो गया। उसकी सास
अपनी आंखों के गीले कोर पोंछते हुए बोली " बहू अब तुम आ गए हो ना ,देखना अपने पोते पोती के साथ कुछ दिन रह कर इनकी सारी बीमारी कट जाएगी।"
"मांजी आप बिल्कुल सही कह रही हो, मेरी तो भगवान से यही प्रार्थना है कि पिताजी को लंबी उम्र दे और उनका साया सदा हमारे सिर पर यूं ही बना रहे।"
सुनकर उसकी सास की आंखें भर आई।
"मां जी अभी तो आप मुझे समझा रहे थे और अब खुद भी! चलो ,जल्दी से आज अपने हाथों से मक्के की करारी रोटियां चूल्हे पर उसी तरह से सेंक कर खिलाओ, जैसे जब मैं नई नई आई थी। तब आप मुझे कितने प्यार से रोटियों में मक्खन भर भर कर खिलाते थे। देखो तो वह मक्खन अब जाकर मेरी चर्बी पर चढ़ा है। देखो फूल कर कैसे कुप्पा हुई जा रही हूं मैं!" शिवानी हंसते हुए बोली।
"तुम भी ना आजकल की लड़कियां बस पूछो मत। जरा सा वजन बढ़ा नहीं कि टेंशन ले लेती हो। तुमने तो रियान के समय भी घी बस सूंघ सूंघ कर रख दिया। हमारी सास तो बच्चों के समय हमें 20-20 किलो घी खिला देती थी। हम तो कहीं नहीं फूले!"
"मांजी गांव में कितना काम होता है, घर बाहर, खेत खलियान ,जानवरों का। शहरों में तो बस बनाओ, खाओ और आराम करो।
इतना घी कहां से हजम करेंगे हम बैठे बैठे। इसलिए सूंघ सूंघ कर रख देते हैं।" शिवानी हंसते हुए बोली
1 सप्ताह पंख लगा कर उड़ गया। सभी कितने खुश थे। रिया का तो गांव से आने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा था। बच्चों क्या ,उसका कौन सा मन कर रहा था। अपने सास-ससुर के पास से आने का। 1 सप्ताह में उसके ससुर की हालत पहले से कितनी बेहतर हो गई थी। कितना मन था, उसके सास ससुर का कि वह कुछ दिन और वहां पर ठहरे लेकिन क्या करें! दिनेश के काम की मजबूरी।
उनको जाते हुए उसके सास ससुर कैसे निरीह आंखों से देख रहे थे। बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभालते हुए दिनेश व शिवानी ने जल्दी ही फिर मिलने का वादा करते हुए विदा ली थी।
उन दोनों से आश्वासन पाकर दोनों ही बुजुर्गों के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान तैर गई थी।
उनको गांव से आए 2 महीने बीत गए थे। शिवानी हर रोज फोन पर अपने सास ससुर के हालचाल पूछती और रिया से उनकी बात कराती थी। दिनेश इस बीच दो बार गांव हो आया था। डॉक्टर्स ने भी शिवानी के ससुर की हालत में अब पहले से बहुत सुधार बताया था। दवाइयां भी लगभग बंद ही हो गई थी उनकी। सभी खुश थे उनको तंदुरुस्त देखकर।
एक दिन सुबह सुबह 5:00 बजे फोन की घंटी बज उठी। इतनी सुबह फोन की घंटी सुन अनजानी आशंका से दिनेश
व शिवानी कांप उठे।
दिनेश ने हिम्मत कर फोन उठाया तो पीछे से उसके गांव के पड़ोसी का फोन था। उन्होंने बताया कि उसके पिताजी की हालत गंभीर है। जल्दी से बच्चों के साथ गांव आ जाए।
दिनेश के चेहरे के भाव देख शिवानी घबरा गई। दिनेश ने उसे सारी बात बताते हुए कहा "शिवानी घबराओ नहीं। सब सही हो जाएगा। बस तुम जल्दी से चलने की तैयारी करो। वहां मां को हमारी जरूरत है।"
आनन-फानन में उन्होंने गांव जाने के लिए टैक्सी की।
शिवानी ने किरण को सारी बातें बताई ।सुनकर किरण बोली "दीदी घबराओ नहीं सब सही होगा। आप अम्मा जी को भी तसल्ली देना। देखना , भगवान पिताजी को जल्द सही करेंगे।"
"पता नहीं किरण मेरा दिल बहुत घबरा रहा है । ऐसा लग रहा है जैसे कुछ बहुत ही बुरा हुआ है।"
"ऐसा मत कहो दीदी। आप ऐसे धैर्य छोड़ दोगे तो अम्मा जी को कैसे संभालोगे। मन में विश्वास रखो। सब सही होगा।"
दोपहर ढले तक वह गांव पहुंच गए थे। अपने घर के बाहर लोगों की भीड़ देख , उनकी रही सही उम्मीद भी जाती रही।
दोनों घर के अंदर पहुंचे। पिताजी का मृत शरीर धरती पर लेटा था। उन दोनों को देखते ही, उसकी मां और बहन उनसे लिपट फूट-फूट कर रोने लगे।
दिनेश व शिवानी भी पिताजी के मृत शरीर से लिपट बहुत देर तक रोते रहे। यह देखकर सभी के आंसू निकल आए।
अंतिम क्रिया के बाद ज्यादातर रिश्तेदार व पास पड़ोस वाले वापस चले गए। दिनेश की मां बहन की आंखों के आंसू तो अब तक भी सूखने में नहीं आ रहे थे। शिवानी उन्हें जितनी तसल्ली देती , उतनी ही उनके साथ साथ उसकी भी आंखें नम हो जाती।
दिनेश ने अपनी मां और बहन को समझाते हुए कहा " मां आप अगर ऐसे कमजोर पड़ जाओगे तो दीदी और हमें कौन संभालेगा। इस दुख की घड़ी में हमें एक दूसरे का सहारा बनना है।"
"बेटा सहारा देने वाला तो बीच मझधार में छोड़ कर चला गया। कहता था, आखिर तक तेरा साथ निभाऊंगा !" कहते हुए दिनेश की मां फिर से फफक-फफक कर रोने लगी।
शिवानी और उसकी ननद ने किसी तरह उन्हें ढांढस बंधाया। शिवानी उन्हें पानी देते हुए बोली "मां जी कल रात को जब हमने आपसे बात की थी। तब तक तो पिताजी बिल्कुल सही बात कर रहे थे। आपने भी नहीं बताया कि उन्हें कुछ तकलीफ है! वरना हम उसी वक्त ना चल पड़ते हैं। शायद तब पिताजी हमारे बीच होते!
"नहीं बेटा उन्हें कोई तकलीफ नहीं थी! सही थे, अच्छे से खाना खाया उन्होंने। 11:00 बजे तक तो हम दोनों बैठे बातें कर रहे थे। रात को 3:00 बजे अचानक मेरी आंख खुली तो देखा तेरे पिताजी चारपाई पर बैठे बुरी तरह हांफ रहे थे। पूछने पर उन्होंने बताया दिल घबरा रहा है और बेचैनी हो रही है।
मैंने जल्दी से तेरे रामकरण चाचा व दूसरे पड़ोसियों को बुलाया । वह उन्हें जैसे ही हॉस्पिटल ले जाने लगे, उससे पहले ही उन्होंने यही प्राण त्याग दिए।" वह रोते हुए बोली।
"पर हमें तो बताया गया था कि पिताजी की हालत गंभीर है!"
"बेटा , मैंने ही यह सब बताने के लिए कहा था। इतने बड़े सदमे की खबर सुनकर इतना लंबा सफर! मैं नहीं चाहती थी कि......! " बोलते बोलते उनकी आवाज भर्रा गई।
रात को शिवानी ने किसी तरह से अपनी ननद व सास को समझा-बुझाकर 2-2 कौर उनके मुंह में डालें।
तेरहवीं के बाद दिनेश तो वापस लौट गया लेकिन शिवानी बच्चों के साथ अपनी सास के पास ही रुक गई। इस दुख की घड़ी में वह अपनी सास को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। दो-चार दिन बाद उसकी ननंद भी चली गई। शिवानी साए की तरह अपनी सास के साथ रहती । अपनी बातों से उनका दिल बहलाए रखती।
बच्चों को उनके साथ सुलाती। उसे पता था, जीवनसाथी के जाने का दुख एक औरत के जीवन का सबसे बड़ा दुख है। जो शायद ही कभी भर पाए लेकिन हां वह अपनी तरफ से उस तकलीफ को थोड़ा कम करने की कोशिश जरूर कर रही थी।
क्रमशः
सरोज ✍️