(11)
अंजन अपने कमरे में आराम कर रहा था। लेकिन उसके मन में वही एक सवाल घूम रहा था।
क्या पंकज और तरुण उस पर हुए हमले के ज़िम्मेदार हैं ?
अगर ऐसा है तो ऐसी क्या वजह है कि दोनों उस पर हमला कर उसे मारना चाहते थे। अंजन उस वजह के बारे में सोचने लगा।
पंकज सुर्वे को वह तबसे जानता था जब उसकी उम्र केवल सोलह साल थी।
वह उत्तर प्रदेश के अपने गांव से भागकर मुंबई आ गया था। उसकी माँ कावेरी के मरने के बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। ना तो उसने अपनी नई माँ को स्वीकार किया और ना ही नई माँ ने उसे। घर में रहना मुश्किल हो गया। वह मुंबई आ गया।
साथ में जो पैसे लेकर आया था वह उसी तरह चुक गए जैसे चिलचिलाती धूप में पत्ते पर पड़ी पानी की चंद बूंदें। घर से भागते हुए उसने कुछ सोचा नहीं था। लेकिन अब उसके सामने पेट पालने की समस्या खड़ी हो गई थी। उसने हाथ पैर मारकर किसी तरह एक ढाबे में नौकरी हासिल कर ली थी।
ढाबे पर उसे दो वक्त का खाना, रात में सोने की जगह और कुछ पैसे मिलने की बात हुई थी। इसके लिए उसे सुबह से देर रात तक काम करना पड़ता था। कोई चारा नहीं था इसलिए वह चुपचाप काम कर रहा था। एक महीना बीतने पर अंजन ने मालिक से अपना पैसा मांगा। पैसे की बात सुनते ही मालिक मुकर गया। उसने कहा कि उसे ढाबे पर दो वक्त खाना मिलता है। रात में सोने की जगह। फिर पैसे किस बात के।
मालिक के इस तरह मुकर जाने पर अंजन भी अकड़ गया कि बात पैसों की भी हुई थी। उसे उसके पैसे चाहिए। उस समय ढाबे में कई लोग मौजूद थे। मालिक को उसका इस तरह अकड़ना अच्छा नहीं लगा। उसने अंजन को थप्पड़ मार दिया। गालियां देते हुए ढाबे से निकल जाने को कहा। यह बात अंजन को बुरी लगी। वह दुबला पतला था। पर उसमें ताकत और हिम्मत की कमी नहीं थी। उसने भी मालिक पर हाथ उठा दिया।
मामला बढ़ गया। मालिक ने ढाबे पर काम करने वाले अपने आदमियों से अंजन को धक्के मार कर बाहर फिंकवा दिया। अपमान और गुस्से में भरा अंजन ढाबे के बाहर सड़क पर बैठा था। तभी एक लड़के ने उसके पास आकर कहा,
"दम है तुम्हारे अंदर। ढाबे के मालिक को अच्छा झापड़ मारा।"
अंजन ने सर उठाकर देखा। उसने उस लड़के को ढाबे पर खाना खाते हुए देखा था। अंजन उस समय कुछ कहने सुनने के मूड में नहीं था। वह चुप रहा। उस लड़के ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। अंजन उसे पकड़ कर खड़ा हो गया। उस लड़के ने कहा,
"पंकज सुर्वे नाम है मेरा। अपना गैंग है। तुम्हारे जैसे हिम्मत वाले लड़के मेरे साथ काम करते हैं। तुम भी काम करोगे ?"
अंजन ने अचरज से उसकी तरफ देखा। पंकज उम्र में उससे साल दो साल ही बड़ा होगा। कुछ मोटा सा था। पंकज उसके मन की बात समझ गया। उसने कहा,
"दो लड़के हैं मेरे साथ। अच्छा कमाते हैं। ऐश करते हैं।"
अंजन ने पूँछा,
"काम क्या करते हो ?"
"बड़े हुनर का काम है। कुछ दिन सीखने में लगते हैं। पर तुम जल्दी सीख लोगे।"
अंजन कुछ समझ नहीं पा रहा था। उसने कहा,
"साफ साफ बताओ।"
"पॉकेट मारने का काम...."
उसकी बात सुनकर अंजन ने पीछे हटते हुए कहा,
"ना...ना.... मैं ईमानदारी से काम करूँगा।"
उसकी बात सुनकर पंकज हंसकर बोला,
"तुम्हारी मर्जी। देख तो लिया ईमानदारी से काम करके। सिर्फ यह ढाबेवाला ही नहीं, दुनिया के ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं। फिर भी तुम्हारा मन सड़क पर भटकने का है तो भटको।"
अपनी बात कहकर पंकज चला गया।
अंजन ने दोबारा कोशिश शुरू की। कई जगह काम किया। पर हर जगह सबने दबाने की कोशिश की। अंजन को पंकज की बात याद आई कि इस दुनिया में ज्यादातर लोग उस ढाबे के मालिक जैसे ही हैं। लोगों की ज्यादतियों ने उसके मन में गुस्सा भर दिया। वह सोचने लगा कि उस दिन पंकज की बात मान लेता तो अच्छा होता।
ढाबे वाली घटना को दो महीने बीत चुके थे। किस्मत उसे दोबारा पंकज से मिलवाना चाहती थी। एक दिन वह चौपाटी पर एक ठेले पर खड़ा भेलपुरी खा रहा था। तभी पंकज दो लड़कों के साथ वहाँ आया। बड़े स्टाइल से भेलपुरी वाले से बोला,
"मेरे लड़कों के लिए स्पेशल बनाओ।"
उसे देखकर अंजन उसके पास जाकर बोला,
"पंकज भाई...पहचाना ?"
पंकज ने एक उचटती सी नज़र डालकर कहा,
"कौन हो ?"
अंजन ने याद दिलाया।
"भाई वो ढाबे के मालिक से मेरा झगड़ा हुआ था। मैंने भी उसे थप्पड़ मार दिया था। तब ढाबे के बाहर आप मिले थे। आपने कहा था कि आप मुझे अपने गैंग में मिला लेंगे। तब मैंने मना कर दिया था।"
पंकज ने एक बार फिर उसकी तरफ देखा। फिर बोला,
"तो अब क्या चाहते हो ?"
"भाई उस समय गलती हो गई थी। अब मैं आपके साथ काम करूँगा।"
"तमाशा है क्या ? अपनी मर्जी हुई मना कर दिया। अपनी मर्जी हुई तो हाँ।"
कहकर पंकज अपने लड़कों के पास चला गया। उनसे कुछ बातें करने लगा। अंजन इससे हतोत्साहित नहीं हुआ। वह उसके पास जाकर बोला,
"भाई सुनिए...."
पंकज ने उसे अनसुना कर दिया। अंजन ने एक बार फिर कहा,
"भाई मन लगाकर काम करूँगा।"
पंकज के साथ बात कर रहा एक लड़का उसकी तरफ घूम कर तैश में बोला,
"भाई को परेशान क्यों कर रहा है बे.."
पंकज ने उस लड़के को रोकते हुए अंजन से कहा,
"ईमानदारी का भूत उतर गया तुम्हारा। लेकिन अब मुश्किल है। काम सीखने में समय लगता है।"
"भाई यकीन मानिए। मैं अधिक समय नहीं लूँगा। बस अपने साथ रख लीजिए। आपने सही कहा था कि दुनिया अच्छी नहीं है। सब फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।"
पंकज कुछ देर सोचकर बोला,
"ठीक है...पर जब तक सीख नहीं जाते अपना खर्च खुद उठाना।"
अंजन कुछ सोचकर बोला,
"मेरे पास इस समय ना पैसे हैं ना काम। पर भाई मैं जल्दी ही सीख लूँगा। इस बीच खाने पर जो खर्च होगा, बाद में कमाई से उतार दूँगा।"
पंकज ने उसे वहीं रुकने को कहा। अपने साथियों को एक तरफ ले जाकर कुछ बात की। उसके बाद आकर बोला,
"ठीक है...कल सुबह यहीं मिलना। कल से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू।"
जल्दी ही अंजन पॉकेट मारने में उस्ताद हो गया। उसकी महारत इतनी थी कि उसने पंकज और दोनों लड़कों को भी इसमें पीछे छोड़ दिया था। लेकिन एक बार उनके साथियों में से एक पॉकेट मारते हुए पकड़ा गया। कुछ दिनों के लिए पॉकेट मारने का काम बंद हो गया।
जुर्म के रास्ते में कदम रख चुका अंजन अब कुछ बड़ा करना चाहता था। ऐसा कुछ जिससे लोगों पर अपना रौब जमा सके। उसकी दोस्ती राजन के गैंग के एक लड़के से हो गईं थी। वह लड़का राजन के लिए रेड़ी खोमचे वालों से वसूली करता था। अंजन ने उसे वसूली करते देखा था। तब सब उसे सलाम करते थे। सत्रह साल के अंजन के लिए यह बड़ी शान की बात थी। उसने अपने दोस्त से कहा कि राजन भाई से उसकी सिफारिश कर दे।
पंकज ने अंजन की मदद की थी इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहता था। राजन के गैंग में शामिल होते समय उसने पंकज की भी सिफारिश की। उस समय राजन को नकली शराब की बोतलें एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने के लिए लड़कों की ज़रूरत थी। अंजन की बातचीत से उसे यकीन हो गया कि वह उसके काम आ सकता है।
धीरे धीरे अंजन ने तरक्की कर ली। अब वह वसूली करने व लोगों को धमकाने का काम करता था। पंकज अब उसके पीछे सपोर्ट के लिए रहता था।
जब अंजन राजन के गैंग को छोड़कर रघुनाथ परिकर के लिए काम करने लगा तो वह पंकज को भी अपने साथ ले आया था। अब स्थिति पलट चुकी थी। उन दोनों में अंजन लीडर की भूमिका में था। पंकज उसे भाई कहने लगा था।
मानवी से शादी करने के बाद अंजन जब रघुनाथ परिकर के बिज़नेस का मालिक बन गया तो उसने भी सफेदपोश बिज़नेस मैन का चोला पहन लिया। पंकज को सिक्योरिटी के नाम पर अपने साथ रखता था। पर उससे अपने काले धंधों के काम लेता था।
समय के साथ वह पंकज पर कम भरोसा करने लगा था। बहुत से काम ऐसे थे जिनसे उसने उसे दूर रखा था।
चाहे वह रघुनाथ परिकर और उसके भाई का एक्सीडेंट कराने का काम हो या फिर मानवी को रास्ते से हटाने का काम।
इन दोनों कामों में उसने तरुण काला की सहायता ली थी।
पंकज को दूर रखने के पीछे कारण यह था अंजन अपने सारे राज़ एक ही आदमी को नहीं बताना चाहता था। वह समझ चुका था कि ऐसा करना उसके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। पंकज ने उसके साथ ही सफर शुरू किया था। लेकिन अपनी सूझबूझ से वह तो आगे बढ़ गया था जबकी पंकज वहीं रह गया था।
अंजन को लगता था कि पंकज को अपने मामलों से दूर रखकर वह अपने लिए पैदा होने वाले खतरे को दूर कर रहा है।
पर अब उसे लग रहा था कि उससे चूक हो गई। उसे पंकज को अपने मामलों से दूर रखना चाहिए था पर अपनी नज़रों से दूर नहीं होने देना चाहिए था। अपनी जीत के नशे में डूबा हुआ वह लापरवाह हो गया। उसने पंकज पर ध्यान देना ही छोड़ दिया।
अब उसका ध्यान इस बात पर जा रहा था। उस दिन शिमरिंग स्टार्स जाते हुए अंजन ने पंकज को मना किया था कि वह अकेला चला जाएगा। पर पंकज ने कहा कि वह अपने दो आदमियों के साथ दूसरी गाड़ी में साथ साथ चलेगा। उसके साथ उसकी गाड़ी में नहीं बैठेगा। उसने कहा था कि वह उसे और मीरा को अकेले रहने देना चाहता है।
अंजन सोच रहा था कि क्या उसने ही हमलावर को बताया होगा कि वह अपने बीच हाउस जा रहा है। वह उसके साथ केवल इसलिए गया होगा ताकी बाद में कोई उस पर उंगली ना उठाए।
अंजन सही बात जानने के लिए परेशान हो उठा।