Risky Love - 10 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रिस्की लव - 10

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

Categories
Share

रिस्की लव - 10



(10)

एक दिन रघुनाथ परिकर ने अंजन को बात करने के लिए बुलाया। अंजन समझ गया था कि वह क्या बात करेगा। इसलिए वह सब सोचकर गया था कि क्या करना है। जब वह रघुनाथ परिकर के पास पहुँचा तो वह बहुत गुस्से में था। उसने अंजन से कहा,
"धोखेबाज़ तूने मेरी बहन को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया। उसे अपने झूठे प्यार के जाल में फंसाकर मेरे खिलाफ साजिश की। मुझे सब पता चल गया है। मानवी की प्रैगनेंसी की झूठी खबर तुमने मुझ पर दबाव बनाने के लिए गढ़ी थी। मानवी को भी अपने साथ मिला लिया। उससे शादी करके मेरे बिज़नेस तक पहुँच गए।"
रघुनाथ परिकर की बातें सुनकर अंजन ज़रा भी परेशान नहीं हुआ। वह बड़े इत्मीनान से पैर पर पैर रखकर उसके सामने बैठ गया। उसके इस आचरण से रघुनाथ परिकर और नाराज़ हो गया। लेकिन इतनी बात करते हुए ही वह हांफ गया था।‌ कुछ दिनों से उसकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। वह ऑफिस भी नहीं जा पा रहा था। पर उसे अंजन की कुछ गड़बड़ियों के बारे में पता चला था। उसने खुद को संभालते हुए कहा,
"पहले मेरे सामने नज़रें झुका कर खड़े रहते थे। आज इतनी हिम्मत कि मैं खड़ा हूँ और तुम बैठ गए। ऑफिस में तुम्हारे कारनामों की भी जानकारी मिली है मुझे।‌ मैं बीमार हूँ। यदुनाथ शराब में ही डूबा रहता है। उसका फायदा उठा रहे हो। पर मैं तुम्हें कामयाब नहीं होने दूँगा। मेरे हितैषी हैं ऑफिस में। मैं भी जल्दी ही ठीक होकर काम पर ध्यान दूँगा।"
अंजन अभी भी बड़े इत्मीनान से बैठा था। रघुनाथ ने कहा,
"तुम्हें लगता है कि मेरी बहन के पति होने का फायदा उठा लोगे तो तुम भूल कर रहे हो।‌ अब मानवी भी तुम्हें पहचान चुकी है।"
अब तक चुप बैठा हुआ अंजन उठकर खड़ा हो गया। कुछ पल रघुनाथ को देखता रहा। उसके बाद बोला,
"दूसरों पर पैर रखकर आगे बढ़ने का हुनर आपसे ही सीखा है। एक बार आपने कहा था कि तुम्हारे अंदर आगे बढ़ने की आग है। वही आग अब आपको जला रही है। बच सकें तो बचा लीजिए खुद को।"
यह कहकर वह चला गया।

दरवाज़े पर दस्तक हुई। अंजन ने देखा कि नर्स आई है। उसके साथ अंजन का एक नौकर था। उसके हाथ में एक ट्रे थी जिसमें ड्रेसिंग का सामान था। नर्स ने कहा,
"सर ड्रेसिंग करवा लीजिए।"
अंजन तैयार हो गया। नर्स नौकर की मदद से ड्रेसिंग करने लगी। ड्रेसिंग के बाद नर्स ने उसे दवाइयां खाने को दीं। सब करने के बाद जाते हुए वह कह गई कि कुछ देर में डॉक्टर आकर उसका चेकअप कर जाएगा।
नर्स के जाने के बाद वह फिर सोचने लगा।

अंजन ने अपने सारे मोहरे बहुत सोच समझकर चले थे। सब उसके प्लान के हिसाब से ही चल रहा था। रघुनाथ परिकर का बीमार पड़ना भी उसके प्लान का हिस्सा था। जो दवाएं वह ले रहा था उनमें मिलावट की जा रही थी।
पहले से ही शराब के आदी यदुनाथ का पूरी तरह उसमें डूब जाना ऐसा था जैसे कि किस्मत खुद उसका साथ देने की ज़िद पकड़े बैठी हो।
यदुनाथ परिकर हमेशा अपने भाई के साए में रहा था। रघुनाथ की बात उसने हुक्म की तरह मानी थी। वह एक औरत से शादी करना चाहता था। रघुनाथ इस बात के लिए राज़ी नहीं था। नतीजा यह हुआ कि यदुनाथ ने किसी से भी शादी नहीं की। लेकिन मानवी के समय रघुनाथ का नरमी बरतना उसे ‌अच्छा नहीं लगा। वह कुछ कह नहीं पाया। उसने अपने आप को शराब की बोतल का गुलाम बना दिया।

उस दिन जब रघुनाथ ने उसे बुलाकर बताया कि वह उसकी चाल समझ रहा है तो उसने अपनी राह के कांटों को हटाने का मन बना लिया।
हर ग्रीष्मकालीन नवरात्रि में रघुनाथ परिकर यदुनाथ और मानवी के साथ अपनी कुलदेवी के दर्शन के लिए जाता था। अंजन के लिए यह मौका हो सकता था। लेकिन समस्या यह थी कि परिवार का दामाद होने के नाते उसे भी जाना पड़ रहा था। यह उसके प्लान के लिए ठीक नहीं था।
अंजन ने सोचकर इसका उपाय निकाल लिया। वह मानवी के साथ अलग घर में रहता था। जिस दिन रघुनाथ को कुलदेवी की पूजा के लिए जाना था अंजन ने जानबूझकर अपने घर पर हवन पूजा रखवा लिया। उसने कहा कि उस हवन में पत्नी होने के नाते मानवी का उसके साथ बैठना ज़रूरी है। रघुनाथ को बुरा लगा पर वह मानवी और उसे छोड़कर यदुनाथ के साथ चला गया।
लौटते समय अंजन ने उनके एक्सीडेंट की व्यवस्था कर रखी थी।

दोनों भाइयों के जाने के बाद अंजन अब उनकी हर एक चीज़ का अकेला मालिक बन चुका था। एक अपराधी से सफेदपोश बिज़नेस मैन। पहले जो काम वह रघुनाथ के लिए किया करता था अब वही काम दूसरों से करवाता था। तेज़ी से वह कंस्ट्रक्शन बिज़नेस में आगे बढ़ने लगा था।
कंस्ट्रक्शन बिज़नेस के अलावा और कई बिज़नेस में उसने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पैसा लगाया था। उनका प्रयोग समय समय पर अपने लिए करता था।
अपने आप को सफेदपोश बनाए रखने के लिए वह कुछ ऐसे कार्य भी करता था जिनसे समाज का भला हो।

एक बार फिर उसे वर्तमान में लौटना पड़ा। डॉक्टर हॉस्पिटल से उसका चेकअप करने के लिए आया था। चेकअप के लिए ज़रूरी उपकरणों की व्यवस्था घर पर पहले ही हो चुकी थी। वह उठकर उस कमरे में गया जहाँ चेकअप की व्यवस्था थी। डॉक्टर ने उसे टेबल पर लिटा दिया। उसके बाद कुछ देर तक आवश्यक चीज़ॉ की जांच करता रहा।
चेकअप के बाद डॉक्टर ने कहा,
"सबकुछ कंट्रोल में है। कुछ दिन इसी तरह एहतियात बरतिए। दवाइयां वक्त पर लेते रहिए।"
हिदायत देकर डॉक्टर चला गया।‌ उसके जाने के बाद नौकर ने आकर कहा,
"सर खाने का समय हो गया है। कमरे में ही ले आऊँ।"
अंजन कमरे में बैठे हुए ऊब रहा था। उसने कहा,
"डाइनिंग टेबल पर ही लगाओ। मैं आता हूँ।"
नौकर ने कहा,
"मैं ले चलूँ..."
अंजन ने कहा,
"तुम जाओ....इतनी दूर चल लूँगा।"
नौकर चला गया। अंजन ने पंकज को फोन करके मिलने के लिए बुलाया। कुछ देर बाद अंजन डाइनिंग टेबल पर पहुँच गया।

अंजन खाना खा रहा ‌था जब पंकज उससे मिलने आया। अंजन ने उसे बैठकर साथ खाने के लिए कहा। पंकज टेबल पर बैठ गया। नौकर ने एक प्लेट लगाकर उसे दी। पंकज खाना खाने लगा। अंजन ने कहा,
"क्या बात है पंकज ? मैं हॉस्पिटल से डिस्चार्ज लेकर आया लेकिन तुम मिलने नहीं आए।"
खाते हुए पंकज रुक गया। पानी पिया फिर बोला,
"भाई वो आपके ‌काम में लगा था। इसलिए नहीं ‌आ पाया। पर सोचा था कि ‌शाम तक आऊँगा।"
पंकज बात करते हुए नज़र नहीं मिला रहा था। अंजन ने कहा,
"तो क्या पता चला ? उस दिन बीच हाउस पर किसने हमला किया था ?"
"भाई वो अभी कोशिश कर रहा हूँ...."
अंजन ने बीच में ही टोकते हुए कहा,
"लगता है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती है। कभी इतने ढीले तो नहीं रहे तुम। कोई बात हो तो बताओ। हम दोनों बरसों से एक दूसरे को जानते हैं।"
पंकज ने धीरे से कहा,
"नहीं भाई कोई बात नहीं है। मैं जल्दी ही पता करता हूँ।"
"ठीक है। अब आराम से खाना खाओ।"
पंकज खाना खाने लगा। अंजन चुपचाप उसके चेहरे के भावों को देख रहा था।

अंजन के घर से ‌निकल कर पंकज उस जगह के लिए चल पड़ा जहाँ पहले भी तरुण काला से मुलाकात कर चुका था। कार चलाते हुए रास्ते में वह‌ अंजन के बारे में सोच रहा था। उसे महसूस हो रहा था कि भले ही अंजन ने उससे कुछ कहा ना हो पर उसे उस पर शक हो गया है। खाना खाते हुए उसने लगातार घूरती हुई अंजन की निगाहों को महसूस किया था।

जब वह पहुँचा तो तरुण काला उसकी राह देख रहा था। बसंत ने पीने की व्यवस्था करके रखी थी। पंकज के आने पर उसने उसके और तरुण के लिए पेग बनाया। उसके बाद चुपचाप बाहर चला गया। तरुण ने पंकज से कहा,
"तुम्हारे चेहरे पर परेशानी दिखाई पड़ रही है। क्या बात है ?"
"अंजन हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आ गया है। मुझे मिलने के लिए बुलाया था। उसके बात करने के तरीके से लग रहा था कि जैसे उसे मुझ पर शक हो गया है।"
पंकज की बात सुनकर तरुण भी कुछ परेशान हो गया। उसने कहा,
"बात तो परेशान करने वाली है। अंजन बहुत चालाक है।"
अपने ड्रिंक से एक सिप लेकर उसने कहा,
"तो क्या सोचा है तुमने ? हमला किसने किया था यह तो हम भी नहीं जानते हैं। क्या बताओगे उसे ?"
"मुझे नहीं लगता है कि वह मेरे कुछ बताने के इंतज़ार में बैठा होगा। ज़रूर उसने अपनी तरफ से पता लगाना शुरू कर दिया होगा।"
"कोई अंदाजा है कि तुम्हारे अलावा और कौन हो सकता है जिसे अंजन यह काम सौंपे।"
पंकज ने कोई जवाब नहीं दिया। वह किसी सोच में डूबा था। तरुण ने आगे कहा,
"खैर जो भी हो... हम क्यों परेशान हों ? हमने तो हमला करवाया नहीं है।"
अपनी बात कहकर तरुण ने पंकज के चेहरे पर अपनी निगाहें टिका दीं। उसे ऐसा लगने लगा था कि पंकज उससे पूरी बात नहीं बता रहा है। इसलिए उसने जानबूझकर यह बात की थी। उसे और कुरेदने के लिए उसने पूँछा,
"डरने वाली कोई बात है ??"
पंकज ने अपना गिलास खाली करते हुए कहा,
"बिल्कुल नहीं...हम तो खुद परेशान हैं कि हमला किसने काराया है। मैं तो यह सोच रहा था कि उसे मेरे और तुम्हारे बारे में ना पता चल जाए।"
उसकी बात सुनकर तरुण भी सोच में पड़ गया।
उस टूटे हुए मकान के बाहर पंकज की कार से टेक लगाकर कोई अंजन को फोन कर रहा था।
अपने घर पर बैठा अंजन फोन पर मिली जानकारी के बारे में सोच रहा था। पंकज पर उसे कुछ शक तो था। लेकिन वह समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर तरुण काला और पंकज एक साथ क्यों आए होंगे।
उसके मन में सवाल उठा। कहीं पंकज और तरुण तो उस हमले के पीछे नहीं हैं ?
उसने फोन करके अपने आदमी को दोनों पर नज़र बनाए रखने के लिए कहा।