(5)
नर्स ने जाकर डॉक्टर मेहरा को बताया कि मरीज़ को होश आ गया है। डॉक्टर मेहरा फौरन अपने जूनियर के साथ अंजन के कमरे में पहुँचे। वहाँ पहुँच कर डॉक्टर मेहरा ने अंजन की जांच की। उसके बाद अपने सहयोगी को कुछ निर्देश दिए।
अंजन इधर उधर देख रहा था। वह अपने आसपास के वातावरण को समझने का प्रयास कर रहा था। उसके दिमाग में कुछ दृश्य तैर रहे थे। उन दृश्यों में वह बहुत खुश था। उसके हाथ में एक अंगूठी थी। वह घुटनों के बल बैठा था। उसने उस लड़की का हाथ पकड़ कर उसे चूमा। उसकी उंगली में अंगूठी पहना रहा था कि तभी एक गोली कमरे में रखे वाज़ पर लगी। वह फौरन चौकन्ना हो गया। उस लड़की का हाथ पकड़ कर सोफे के पीछे ले गया। अपनी गन निकाली और जिधर से गोली चली थी उधर एक गोली चला दी।
अंजन चिल्लाया,
"मीरा....."
डॉक्टर मेहरा ने कहा,
"भाई आप अपने ही हॉस्पिटल में हैं। आपको गोली लगी थी। पर अब खतरे से बाहर हैं। लेकिन स्ट्रेस मत लीजिए।"
अंजन ने कहा,
"पंकज कहाँ है ? पंकज को बुलाओ।"
"पंकज भाई को खबर कर दी है। वह आते ही होंगे। पर आप प्लीज़ आराम कीजिए।"
डॉक्टर मेहरा ने एक इंजेक्शन अंजन को लगा दिया। वह धीरे धीरे शांत होकर सो गया।
पंकज अस्पताल पहुँचा तो डॉक्टर मेहरा ने उसे बताया कि होश में आने पर वह किसी मीरा का नाम ले रहा था। वह अधिक स्ट्रेस ना ले इसलिए इंजेक्शन दिया है जिससे वह अभी सो रहा है।
पंकज कॉरिडोर में आ गया। उसने किसी को फोन लगाया। कुछ देर बात की। उसके बाद डॉक्टर मेहरा को कुछ हिदायतें देकर वह चला गया।
विनोद नफीस के कहे अनुसार अंजन के ड्राइवर मुकेश कांबले के बारे में पता करने केशव चॉल पहुँचा था। वह उस दरवाज़े के सामने रुका जिस पर मुकेश के नाम की तख्ती थी। लेकिन दरवाज़े पर ताला लगा हुआ था। उसने आसपास देखा। बगल वाले घर के बाहर एक बुज़ुर्ग बैठा अखबार पढ़ रहा था। विनोद ने उससे पूँछा,
"ये मुकेश के घर पर ताला लगा है। सब लोग कहीं बाहर गए हैं।"
उस बूढ़े आदमी ने अपने चेहरे के सामने से अखबार हटा कर विनोद को देखा।
"ताला लगा है तो कहीं बाहर ही गए होंगे।"
"जी सही कहा। मेरा मतलब था कि क्या आप जानते हैं कि कहाँ गए हुए हैं ?"
बूढ़े आदमी ने कहा,
"पता नहीं है। शायद सोलापुर अपने गांव चला गया है। जाते समय बड़ी जल्दी में लग रहा था। किसी से कुछ कह कर नहीं गया।"
बूढ़ा फिर से अखबार पढ़ने लगा। विनोद वहाँ खड़े होकर कुछ सोचने लगा। उसने बूढ़े आदमी से पूँछा,
"अच्छा यह तो बता सकते हैं कि कब गए सब लोग ?"
"कल सुबह करीब साढ़े पाँच बजे मुकेश अपनी पत्नी और बेटी को लेकर निकल गया।"
"धन्यवाद..."
कहकर विनोद वहाँ से निकल लिया। अभी वह चॉल से बाहर ही निकला था कि कावेरी हॉस्पिटल के वॉर्ड ब्वॉय ने फोन करके उसे अंजन के होश में आ जाने के बारे में बताया। उसने यह भी बताया कि अंजन किसी मीरा का नाम ले रहा था।
उस वार्ड ब्वॉय ने एक और बात बताई। पंकज जब हॉस्पिटल के कॉरीडोर में फोन पर बात कर रहा था तो उसने किसी तरुण काला का नाम लिया था। वार्ड ब्वॉय ने जो खबर दी थीं वह काम की थीं। विनोद ने फौरन नफीस को फोन करके कहा कि वह मिलना चाहता है। नफीस ने उसे मिलने के लिए बुला लिया।
नफीस की बिल्डिंग के पास एक छोटा सा रेस्टोरेंट था। विनोद और वह वहीं बैठे थे। नफीस ने अपनी ब्लैक कॉफी का एक सिप लिया। जो कुछ विनोद ने उसे बताया था वह उसके बारे में ही सोच रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि तरुण काला का नाम उसने कहीं सुना था। पर बहुत ज़ोर देने पर भी उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। विनोद ने कहा,
"सर आप अचानक इतने खामोश हो गए। क्या सोच रहे हैं ?"
नफीस अभी कुछ कहना नहीं चाहता था। उसने कहा,
"विनोद मुकेश जाते समय बहुत जल्दी में था। इसका मतलब वह किसी खतरे में था। ऐसे में नहीं लगता है कि वह सोलापुर जाएगा। क्योंकी उसे वहाँ आसानी से खोजा जा सकता है।"
"हाँ सर हो सकता है। वैसे सोलापुर का नाम तो उसके पड़ोसी ने अंदाज़े से लिया था। पर अगर वह कहीं और गया है तो उसे खोज पाना मुश्किल होगा।"
"लेकिन सच जानने के लिए उसका पता लगाना ज़रूरी है। तुम अपनी पूरी कोशिश करो।"
नफीस एक बार फिर अपनी कॉफी पीने लगा। वह अभी भी तरुण काला के नाम पर उलझा हुआ था। विनोद अपनी चाय की चुस्की लेते हुए बोला,
"सर पता तो बहुत कुछ लगाना है। अंजन के साथ मीरा नाम की जो लड़की थी वो कौन थी ? पंकज ने जिससे बात की थी उस तरुण काला से उसका क्या संबंध है ?"
"विनोद गांठों को धैर्य से एक एक करके खोलना ही अच्छा होता है। तुम अभी अपना पूरा ध्यान मुकेश का पता करने में लगाओ। यह भी हो सकता है कि एक गांठ खुलते बाकी के सवालों का जवाब भी मिल जाए।"
"ठीक है सर फिर मैं मुकेश वाली गांठ खोलने में जुट जाता हूँ।"
विनोद ने अपनी चाय खत्म की। वह चलने को हुआ तो नफीस ने कहा,
"तुम्हारे पैसे अकांउट में ट्रांसफर कर दिए हैं।"
अपना वॉलेट निकाल कर कुछ पैसे निकाले। विनोद की तरफ बढ़ाकर बोला,
"मुकेश को खोजने में खर्च होगा। ये रख लो। अगर और ज़रूरत पड़े तो बता देना।"
विनोद ने पैसे लेकर अपने बटुए में रख लिए। चलते समय बोला,
"पूरी कोशिश करूँगा कि अगली मुलाकात में आपको कोई खुशखबरी दूँ।"
नफीस और शाहीन डिनर कर रहे थे। डिनर करते हुए भी नफीस तरुण काला के बारे में ही सोच रहा था। शाहीन ने खाना खाते हुए नफीस से कहा,
"आज मैंने मिस्टर जॉर्ज को फोन किया था। उनसे दोबारा काम शुरू करने की बात की। उन्होंने कहा है कि वो मेरे बारे में सोचेंगे।"
शाहीन नफीस की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी। लेकिन जब कोई जवाब नहीं मिला तो उसने नफीस की तरफ देखा। वह अपने ही खयालों में खोया हुआ था। शाहीन को बहुत बुरा लगा। उसने जोर से चमचा अपनी प्लेट पर मार दिया। आवाज सुनकर नफीस अपने विचारों से बाहर आया। उसने शहीन की तरफ देखा। उसके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा अपसेट है। शाहीन ने गुस्से से कहा,
"नफीस तुम्हारे पास मेरे लिए ज़रा सा भी वक्त नहीं है।"
यह कहकर वह खाना छोड़कर जाने लगी। नफीस को अपनी गलती समझ आ गई थी। उसके पास रहते हुए भी वह अपने खयालों में खोया हुआ था। उसने शाहीन का हाथ पकड़ लिया।
"प्लीज़ शाहीन...."
शाहीन ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा,
"क्या प्लीज़ ? तुम्हें पता है तुम्हारा यह बर्ताव मुझे कितनी तकलीफ देता है। मैं अगर तुमसे कुछ कहना चाहूँ तो कह भी नहीं सकती।"
"ऐसा नहीं है शाहीन।"
"ऐसा ही है। मैं अभी तुमसे कुछ कह रही थी। लेकिन तुमने उसका एक शब्द भी नहीं सुना। बोलो सुना था क्या ?"
नफीस शर्मिंदा था। उसने सचमुच कुछ भी नहीं सुना था। वह तो बस अपने ही विचारों में खोया हुआ था। उसने भी अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा,
"आई एम सॉरी। मैं अपनी गलती मानता हूँ। अब प्लीज़ बैठकर मुझे बताओ क्या कह रही थी।"
शाहीन कुर्सी पर बैठ गई। उसने नफीस को बताया कि उसने दोबारा अपना काम शुरू करने का मन बनाया है। इसके लिए उसने अपने पुराने बॉस से बात की है। उन्होंने कहा है कि वह उसके लिए ज़रूर कुछ करेंगे। शाहीन की बात सुनकर नफीस ने कहा,
"ये तो तुमने अच्छा फैसला लिया है। काम करोगी तो मन लगा रहेगा।"
शाहीन ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"सोचती हूँ काम में खुद को इतना डुबो लूँ कि इस बात की तकलीफ ही ना रहे कि तुम मुझे इग्नोर कर रहे हो।"
शाहीन का यह तंज सुनकर नफीस और भी अधिक लज्जित हुआ। उसने कहा,
"शाहीन ऐसा मत कहो।"
"मैं क्या गलत कह रही हूँ। जबसे हम मुंबई दोबारा लौटकर आए हैं तबसे ही देख रही हूँ कि तुम बस अपने में ही खोए रहते हो। मेरे पास रहते हुए भी मुझसे दूर रहते हो। जैसे मेरा कोई वजूद ही ना हो तुम्हारे लिए।"
नफीस जानता था कि शाहीन जो कुछ कह रही है वह सच है। उसे खुद भी इस बात का बुरा लगता था कि वह उसे समय नहीं दे पा रहा है। उसने कुछ नहीं कहा। रोटी का टुकड़ा तोड़ कर निवाला बनाया और शहीन की तरफ बढ़ा दिया। शाहीन ने मुंह घुमा लिया। नफीस बोला,
"नाराज़गी मुझसे है। खाने पर क्यों निकाल रही हो। मैं मानता हूँ कि मैं तुम पर अधिक ध्यान नहीं दे पा रहा हूँ। लेकिन किसी भी सूरत में मैं तुम्हारे वजूद को नकार नहीं सकता। तुम्हारा होना ही मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी खुशी है।"
शाहीन ने उसकी तरफ देखा। नफीस की आँखों में नमी थी। शाहीन ने उसके हाथ से निवाला खा लिया। नफीस ने दूसरा निवाला बढ़ाया तो वह बोली,
"अब मैं खा लूँगी। तुम अपना खाना खाओ।"
नफीस खाने लगा। खाते हुए उसे एहसास हो रहा था कि अभी उसने जो कहा वह कितना सच है। शाहीन का उसकी जिंदगी में होना उसके लिए बहुत महत्व रखता है। उसके बिना वह अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता। इसके बावजूद भी वह पिछले काफी वक्त से उस पर अधिक ध्यान नहीं दे रहा था। उसने तय कर लिया कि वह अपने काम और अपनी निजी जिंदगी के बीच एक लकीर खींचेगा। जो वक्त शाहीन को मिलना चाहिए उसमें अपने काम को नहीं आने देगा।
शहर से दूर पंकज ने अपनी कार एक पुराने से घर के सामने रोकी। कार से उतर कर अपनी आदत के अनुसार चेक किया कि उसकी गन साथ है या नहीं। हर बार की तरह वह गन लेना नहीं भूला था। वह मकान के अंदर चला गया। दरवाज़े की घंटी बजाई। उसके आदमी बसंत ने दरवाज़ा खोला। अंदर घुसते हुए पंकज ने पूँछा,
"सब ठीक है ना ?"
"हाँ भाई..."
पंकज मकान के भीतरी हिस्से में गया। आंगन पार करके उस कमरे में पहुँचा जहाँ एक शख्स उसकी राह देख रहा था।
पंकज को देखकर वह शख्स मुस्कुराते हुए उसकी तरफ बढ़ा।