mrityu bhog - 5 in Hindi Horror Stories by Rahul Haldhar books and stories PDF | मृत्यु भोग - 5

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मृत्यु भोग - 5

मेट्रो से घर आते वक्त प्रताप को एक अलग
ही अनुभूति हो रही थी । ऐसा लग रहा है सर
पूरा खाली हो गया है दिमाग में कुछ था पर
अब नही है । सर पूरा ठंडा हो गया है । घर की
एक चाभी उसके पास ही रहता है , आज घर में जाते
ही एक सड़न की गंध उसके नाक पर पड़ी ।
फिर प्रताप ने महसूस किया कि उसके गले में वह माला
गरम हो गया है । प्रताप ने दरवाजा के पास चप्पल
खोला फिर खुद का शर्ट खोलते खोलते अपने पसीने
के गंध से उसे उल्टी आने लगी । कितने दिन से नही
धोया गया इस शर्ट को ? फिर उसका ध्यान ट्राउजर की
तरफ जाता है कितना गंदा , पसीने के सफेद धब्बे ; वह इस
गंदे कपड़े को पहनकर घूम रहा है । तुरंत ही आगबबूला
हो गया प्रताप , घर में काम करने वाली को रखकर
भी ये हाल । चिल्लाकर बुलाया – " डुमरी ! डुमरी !
कहाँ गई ।"
रसोईघर से तुरंत डुमरी निकली , जैसे ही प्रताप को
देखा तो हिल सी गई , पर इस एक नजर में प्रताप ने जो
देखा उसे वो कभी प्रमाण नही कर पायेगा , पर जो देखा
अस्वीकार भी नही कर पायेगा । उस एक क्षण में उसने
देखा डुमरी का पूरा चेहरा विभत्स काला हो गया , दोनों
आंख लाल और बड़े बड़े , सिर के बाल ऊपर की तरफ
उड़ रहे , लाल होठ कुछ फैला हुआ । नुकीले दो दांत
मुँह के पास दांतों में चमक रहें हैं , क्या वो सही के दांत
हैं । तुरंत ही प्रताप के सीने से लगे रुद्राक्ष के आकार
का स्फटिक जल उठा । स्पर्धा के विरुद्ध स्पर्धा की तरह
उस एक क्षण के लिए । फिर डुमरी हँसकर बोली
– " बोलिए बड़ेबाबू , मुझे बुलाया । "
प्रताप बिगड़कर बोला – " कपड़ें सब कितने गंदे हैं ,
तुम कुछ देखती हो कि नही , कल मुझे सभी कपड़े साफ
चाहिए , कल सुबह ही सब धो देना । गंदे कपड़े मुझे
एकदम पसंद नही है । "
प्रताप ने स्नान किया , गीजर चलाकर । और गले में
लटके स्फटिक को थोड़ा परीक्षण किया , वैसे उसे कुछ
विशेष नही मिला , कांच से बना था वो रुद्राक्ष के आकार
का स्फटिक खंड , कुछ भारी है और ज्यादा कुछ नही ।
स्नान करने के बाद प्रतिदिन की तरह प्रताप ने रक्तवस्त्र
पहना , उसके बाद स्टडी रूम के दरवाजे को खोला ,
एकदम पैक स्टडी रूम , देढ़ महीने से खिड़कियां बंद
है स्टडी रूम की , एक सड़न का गंध पूरे घर के वातावरण
को भारी कर दिया है । प्रताप ने स्पष्ट देखा , उस मूर्ति
के कपाल से एक लाल बिंदु की प्रकाश जल उठी और
साथ ही उसके गले में लटका स्फटिक भी नीला रंग छोड़ता
हुआ जल उठा । फिर उस घर के अंदर ही एक छोटा हवा
घूमता हुआ महसूस हुआ , मेज के पास से दो हवा का
घुमाव स्रोत मानो लड़ते हुए ऊपर उठ रहें हैं , धीरे धीरे
सांप के फुफकार जैसा भी आवाज सुना प्रताप ने ।
कमरे का लाइट जलाया प्रताप ने फिर जल्दी से खिड़कियों
को खोल दिया , पूरे देढ़ महीने बाद पहली बार ।
इसके बाद प्रताप ने खुद की तरह पूजा - पाठ शुरू
कर दिया , जो वह इन देढ़ महीने में प्रतिदिन करता है ।
पूजा के समाप्त होने पर तेजी से आवाज लगाया प्रताप
ने – " डुमरी ! डुमरी ! भोग कहाँ है । "
दूसरे दिनों की तरह आज डुमरी ने भोग नही लाया ।
वह अक्सर दरवाजे के पास भोग रख देती थी पर आज
रसोईघर से धीरे से बोली – " भोग को ले लीजिए बड़ेबाबू ,
शरीर आज कुछ ठीक नही लग रहा । "
भोग की थाली ले आकर देवी मां के सामने रखकर प्रणाम
किया प्रताप ने फिर खुद के हाथ से स्टडी रूम का
ताला बंद किया । डुमरी को कह देता है कि आज उसको
भूख नही है कहीं से रोटी सब्जी और जलेबी खाकर आया
है । फिर खुद के कमरे में सोने जाता है प्रताप ।
उस रात प्रताप को बहुत गहरी नींद आया , प्रसन्न ,
निश्चिंत व सुखमय नींद ।
हाय! प्रताप अगर जनता की कितने सारे छाया उसके
घर के चारों तरफ असफल आक्रोश , रक्तक्रोध में घूम
रहें हैं और वो सब अपना सिर पीट रहें हैं ।
पूरी रात प्रताप के सीने से जले एक नीले प्रकाश ने
पूरे कमरे को अपने अधिकार में रखा है ।

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ईधर दिजुक्तम मिश्र के घर पर ……….

दिजुक्तम मिश्र ने कुछ देर शांति रखा और फिर बोलना
शुरू किया – “ देवी मातंगी को कहतें हैं सरस्वती देवी
की तांत्रिक रूप , निगूढ़ अतिरिक्त प्राकृतिक शक्ति के लाभ
के लिए तांत्रिक इनकी साधना करतें हैं ।
शत्रुनाश , वशीकरण , व गूढ़ रहस्य विद्या के आहरण के
लिए इनकी पूजा ही जरूरी है । देवी मातंगी अगर प्रसन्न
हुईं तो महाविद्या देतीं हैं और साधक का बह्मज्ञान लाभ
होता है । पर इनकी पूजा पद्धति बहुत ही कठिन है , सिद्ध
साधक के सिवा इनकी पूजा सम्भव नहीं है । अगर थोड़ी
सी कुछ भी गलती हुई तो देवी क्रोध से आतुर हो जातीं हैं
साधक का महाविनाश उपस्थित होता है ।
देवी मातंगी के पूजा की एक विशिष्ट विधि है जो बाकी
सब देव - देवी से अलग है । ये जो सब अशिष्ट , अपवित्र ,
गंदा , जो चीजें फेंक दी जातीं हैं उन सब चीजों की
अधिष्ठात्री देवी हैं । फेंक दिए जाने वाला उच्छिष्ट जूठा ही
इनका भोजन है । ये पहनतीं हैं रजस्वला नारी की
रक्तरंजित लाल कपड़ा ।
और इसीलिए इनको भोग देने के लिए एक विशिष्ट
विधि है ये बाकी देव - देवी की तरह सजाकर दिया हुआ
भोग ग्रहण नही करतीं हैं । ये केवल उच्चिष्ट जूठा भोजन
ही स्वीकार करतीं हैं । अन्यथा देवी भोग स्वीकार नहीं करती और भूखी देवी की क्रोध बहुत विभत्स होती है
साधकके ऊपर । पुजारी भी तब उनके क्रोध को
शांत नही कर पाते ।"

अब भवेश बाबू बोले – " और अगर पुजारी व साधक
एक ही हों तो । "
दिजुक्तम मिश्र – " वो क्या तंत्र सिद्ध हैं ? "
भवेश बाबू बोले – " नही , बल्कि वह तो पूजा पद्धति
भी नहीं जानता है । "
दिजुक्तम मिश्र बोले – " पूजा विधी , मंत्र , निवेदन ,इन सब
के बिना देवी मातंगी को भोग , वो भी जूठा नही ऐसा भोग ।
कौन है वो पागल , आपके वो दोस्त का लड़का है क्या ?
हे भगवान रोकिए , रोकिए । उस पागल को तुरंत रोकिए
देवी की क्रोध बहुत खराब है जो हमारे कल्पना के
बाहर है । मृत्यु , साक्षात मृत्यु को चुन लिया है उसने ।
हे महामाया ! मैंने ये क्या कर दिया , क्यों मैंने
उस मूर्ति का कोई दूसरी व्यवस्था नही किया । आप
लोग क्या कर रहें हैं अबतक ? "
मुकेश बोला – " ठीक कैसे विपत्ति आएगी , कुछ बता
सकतें हैं आप । तब कुछ करके इसे रोका जाए । "
दिजुक्तम मिश्र बोले – " ये देवी सरस्वती की तांत्रिक रूप
हैं , ये वाक व बुद्धि की देवी हैं । पहले अभाग्य का बुद्धि
नाश करतीं हैं , उसका बोध , चिंता शक्ति हरण करती
रहतीं हैं । उसके जीने की इच्छा खत्म करतीं रहतीं हैं ।
उसको गंदा कपड़ा पहनने , गंदी जगह रहने के लिए बाध्य
करतीं हैं । उसका भूख , प्यास सब कम होने लगता है ।
जीवन की शक्ति कम व स्वास्थ्य खराब होती है । उसका
सम्मान नष्ट होता है व घरवालों पर दुखों का अंबार टूट
पड़ता है । और उसके बाद भी अगर वो पूजा करना
नही छोड़ता तब शुरू होती है सर्वनाश की कहानी ।
दसों महाविद्या की अधीन सेवा करने वाली कोई एक
पिशाचिनी उस आदमी का पीछा करती है । वो एक
एक कर उस आदमी के परिवार के सदस्यों को खत्म
करती है फिर बहुत तड़पाने के बाद उसका हत्या
करती है । "

कुछ शांत रहकर भवेश बाबू बोले – " उस पिशाचिनी को
पहचानने का उपाय । "
दिजुक्तम मिश्र धीरे से बोले – " वह आती है मनुष्य के
भेष में , केवल सिद्ध योगी को छोड़कर उसे कोई नही
पहचान सकता । उससे पशु जगत दूर रहती हैं , उसकी
परछाई माटी में नही दिखती , जहां वह रहती हैं वहां
अलौकिक सब घटनाएं घटती है बुध्दि में जिसकी
व्याख्या नही है । "

मुकेश ने देखा इस ठंडी में भी भवेश बाबू के चेहरे पर
पसीने के बून्द आ गए हैं , जेब से रुमाल निकाल पसीना
पोंछा प्रौढ़ अध्यापक ने फिर बोले – " कितना दिन समय
लेती है ये पिशाचिनी , काम खत्म करने में ।"
काम खत्म इस बात को कहते समय गला कांप गया
भवेश बाबू का ।
दिजुक्तम मिश्र बोले – " एक महीना , एक चंद्रमहीना ।
एक अमावस्या तिथि को वह अभाग्य का पीछा करती
है और अगले अमावस्या के पहले सब खत्म । "

याद करने की चेष्टा की भवेश बाबू ने डुमरी उस घर में
प्रताप के साथ कब आयी थी । उनका गला अब थर थर
कर कांपने लगा – " माने वह अगर उस अमावस्या को
मेरे बंधुपुत्र का पीछा करती है तब तो आपके बात के
अनुसार ।"
उस अंधकार में एक अंगुली को दिखाया तंत्र विद्य
दिजुक्तम मिश्र ने और बोले – " कल ही अमावस्या है ,

एक दिन ,आपके बंधुपुत्र की आयु मात्र एक दिन है । "………

……………

।।क्रमशः।।


@rahul