mrityu bhog - 3 in Hindi Horror Stories by Rahul Haldhar books and stories PDF | मृत्यु भोग - 3

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मृत्यु भोग - 3

(कुछ दिन बाद जिस दिन डुमरी को प्रताप घर ले
आया वह दिन था मंगलवार , और उसके ऊपर
अमावस्या भी था , आज सुबह आंशिक सूर्यग्रहण
भी लगा था । ).......

नही प्रताप का चरित्र एकदम अच्छा है , पर ये घटना
कैसे घट गई पुष्पा दीदी और भवेश बाबू किसी को
समझ नही आया ।
रायचौक रैडिसन फोर्ट में प्रताप के कंपनी का एक
मीटिंग चल रहा था । दो दिन का प्रोग्राम है , दूसरे
दिन के लॉस्ट में एक कॉकटेल डिनर । प्रतिवर्ष ही
यह होता है । एक साल पहले इस डिनर में प्रताप ने
पूरी रात मजा किया था ।
किन्तु कुछ महीने से प्रताप को यह सब अच्छा नही
लगता , कुछ भी अच्छा नही लगता । कहीं घूमना अच्छा
नही लगता , बात करना अच्छा नही लगता , सिनेमा
देखने की इच्छा नही करता , मुकेश के दुकान में जाना
अच्छा नही लगता , लोगों से मिलने की इच्छा नही करता,
हँसने की इच्छा नही करता , मजा करने की इच्छा नही
करता बल्कि दुख पाने की भी इच्छा नही करता ।
उसकी सारी चैतन्य व साम्रज्य केवल वह मूर्ति है ।
देवी मां ने खाया , मां खुश है , मां तृप्त हुई या नही ,
आज मां कब सोने जाएंगी , मां को क्या आज का
भोग पसंद आया ?, मां ने आज भी क्यों भोग ग्रहण
नही किया ?
उसको अपने काम में मन नही है , उसके अंदर कोई
उत्साह नही है । यह देवी ही उसके सारे अस्तित्व पर
अधिकार कर ली हैं एक ही महीने में ।
बहुत दिन की न कटी दाढ़ी , गाल पूरा टूट चुका है ,
बाल इधर उधर जैसे तैसे , कपड़े साफ सुथरे नही ,
शरीर से पसीने की गंध आती है , कोई भी चीज में
ध्यान नही है , कोई बंधन नही है , कोई प्यार नही है ,
कोई घृणा नही है , जीवन का कोई स्वाद नही है और
मृत्यु का कोई भय भी नही है ।

मुकेश आया था इस घर में , बहुत दिन उसके दुकान
पर न जाने की वजह से उसका खबर पूछने आया था ।
बात करने की बहुत कोशिश की पर अंत में हाल चाल
पूछ कर ही उठ गया । जाते वक्त पुष्पा दीदी को अलग
में बुलाकर खुद का नम्बर दे गया । बोल कर गया है
कुछ काम हो तो फोन करना ।
ऑफिस में भी इसी बात की गर्मागर्मी है समझता है
प्रताप , हंसी - खुशी में रहने वाले लड़के में तुरंत इतना
बदलाव से कोई भी अनभिज्ञ न रहा ।
मैनेजर साहब हैं बंगाली बहुत ही अच्छे ख्याल के , वो
भी केविन में बुलाकर यह जानने की कोशिश की कि
ऐसा हाल क्यों है ? प्रताप जवाब देते देते परेशान हो
गया है । इस अकारण जगत के कर्म व्यस्तता , कौतूहल
ये सब लेकर वो सम्पूर्ण उदासीन है ।

उसकी चाल - चलन बदल जाती है केवल रात के समय
आंख में आती है एक उज्ज्वल दीप्ति , तब वो नहाकर
एकाग्रचित्त में बैठता है पूजा करने । बहुत रात तक
पूजा - पाठ करके फिर कुछ खाने जाता है । खाने के
पहले उस देवी मूर्ति के सामने अच्छे से सजाकर जाता
है भोग । विशेष कुछ नही उसके घर में जो कुछ भी
खाना बनता है वही सब , वो एक थाली में सजा देता है ।
उसका विश्वास है बेटा जो खाता है मां भी वही खाती हैं ।
अगले दिन उठ कर भोग को जैसे के तैसा देख कर वह
मायूस हो जाता है , आज भी मां ने उसका भोग ग्रहण
नही किया , और कितने दिन मां अपने संतान की परीक्षा
लेंगीं । तब वो वही महाप्रसाद खाकर ऑफिस जाता है ।

भवेश बाबू चौराहे के पंडित पुरोहित को एक दिन बुलाया
था , वह तो मूर्ति को पहचान ही नही पाए बल्कि प्रताप
के यह सब कार्य को देखकर स्तम्भ रह गए ।
प्रवीन पुरोहित बहुत दिन से इसी जगह पूजा कर रहें
हैं प्रताप को अपने आंख के सामने उन्होंने बड़ा होते
देखा है । वह व्याकुल होकर प्रताप का हाथ पकड़कर
वृद्ध स्वर में बोले – " बेटा , ये सब मत करो , कुछ मना
कर रहा है इनको पहचान नही रहा , इनका बीज मंत्र भी
नही जानता , ऐसे ही देवी की पूजा नही करते बेटा , देवी
क्रोधित होतीं हैं । बेटा तिब्बती मूर्ति है उनका तंत्र मंत्र
बहुत विभत्स है , अनेक अपदेवी व डाकिनी विद्या का
उल्लेख है । पूजा का प्रकार अलग अलग है , विभिन्न
मुद्रा है यौगिक मंडल होता है । बेटा तुम इसको ससम्मान
लौटा दो , कहीं से कुछ अनर्थ हो जाएगा बेटा दया करके
वापस लौटा आओ । "
पागलों की तरह खिलखिलाकर हँस उठा प्रताप ,वह
विभत्स हंसी को सुनकर चहक उठे थे प्रवीन पुरोहित
हंसते हंसते प्रताप ने बोला था – " मां का मामला है काका
टेंसन मत लीजिए , मां मेरे साथ बात करतीं हैं , हंसती
हैं , मेरे माथे को सहलाती हैं , खाएंगी खाएंगी मां एकदिन
जरूर खाएंगी । मेरा दिया हुआ भोग मां जरूर खाएंगी ।
मैं आपको दिखाऊंगा काका , आप सुन रहें हैं , हाँ मां
का बुलावा , आप सुन रहें हैं । क्या हुआ आप नही सुन
पा रहें हैं मां का बुलावा , बोलिये ।
जहां तक वृद्ध पुरोहित रो ही दिए थे और बोले – " तू
शांत हो जा , बेटा शांत हो , ऐसे नही होता है ऐसे ही
खाना रख देने पर देवी ग्रहण नही करतीं हैं । भोग निवेदन
की पद्धति होता है , मंत्र होता है , नियम होता है ।"
पुरोहित को खींचकर बाहर लाये थे भवेश बाबू कुछ बात
होती है उन दोनों के बीच , यह विशेष किसी को पता नही ।

..........................---------------------------------__________
सूर्यग्रहण की रात
बहुत जोर देने के बाद भी मीटिंग के खत्म होते ही गाड़ी
लेकर निकल गया था प्रताप , रात में मां को भोग न देने
पर उसका खाना और सोना नही होता । इसीलिए खूब
तेज ही गाड़ी लेकर आ रहा था वो , मध्य नवम्बर की
संध्या ,ग्रामीण इलाका , कुछ घना कोहरा छाया हुआ है
रास्ते में, उसके भी ऊपर अमावस्या का अंधकार ।
दोपहर में एक बार बरसात होने के कारण काफी
ठंडी है हवा में , रास्ता जनशून्य है एक कुत्ता भी नही
दिख रहा । आसपास के बंद दुकानों को देखकर
समझा जा सकता था कि यह अमावस्या के कारण ही
है । कुछ दूर चलते ही एक मोड़ पर गाड़ी रोकने पर विवश
होता है प्रताप , रास्ते के बीचोबीच खड़ी एक महिला
हाथ उठाकर गाड़ी को रोकने का इशारा कर रही है ।
दूसरे समय होने पर प्रताप गाड़ी को लेकर पास से
चला जाता , हाइवे डकैती के लिए ये जगह खासा
प्रसिद्ध है । बहुत तरीकें हैं इन गैंग का लूट करने के
लिए , पर कुछ सोचकर महिला के पास आकर
गाड़ी को रोका प्रताप ने और बोला – " क्या हुआ ?
गाड़ी क्यों रोका आपने ।"
महिला ड्राइवर के विंडो के पास आई , गेट के कांच
को नीचे किया प्रताप ने , रोते हुए वह महिला बोली
– " मैं खूब परेशानी में हूँ बड़ेबाबू , मुझे बचाइए , मेरा
कोई नही है , कहीं नही जा सकता । देवरों ने एक
कपड़ा देकर घर से भगा दिया । पूरा दिन कुछ नही
खाया हूँ मुझे बचाइए । "
गाड़ी को लॉक करके नीचे उतरा प्रताप , कंपनी से
रात का खाना मिला था , वही उसे दे दिया । वह
महिला मानो बहुत भूखी है तभी इतनी तेजी से सब
खा रही है । उसके वेशभूषा में दरिद्र की छाप स्पष्ट है ,
कुछ गाढ़ा शरीर का रंग , इधर उधर बिखरे बाल ।
म्लानि मध्यम उम्र की महिला होने के बाद भी प्रताप
की नजर इधर उधर पड़ ही जाती हैं , लगता है यौवनकाल
में अच्छा खासा सुंदर थीं । अभी लगता है इस असहाय
महिला की देखभाल करने वाला कोई नही है । दो वक्त
की रोटी के लिए परिवार ने खुद से अलग कर दिया है ।
खाना खत्म होने पर पानी की बोतल आगे कर देता है
प्रताप , महिला ने हाथ धोकर बहुत सा पानी पीया ।
तब तुरंत प्रताप के पैरों पर गिरकर रोते हुए बोली –
" मुझे बचाइए बड़ेबाबू , मेरा तीन कुल में कोई नही है ,
मैं कहाँ जाऊं , ये सियार कुत्ते मुझे खा जाएंगे ।
बड़ेबाबू मुझे ऐसे ही मत छोड़ कर जाइये , मैं सब कुछ
कर लेती हूं , घर के काम , बर्तन धोना सब कुछ ।
मैं ब्राह्मण की लड़की हूँ खाना बनाना भी अच्छे से
जनता हूँ आपको कोई असुविधा नही होगी । मुझे
छोड़ के मत जाइए बड़ेबाबू , मेरी कसम दो मुट्ठी खाने
को दीजिएगा व एक कपड़ा , पर मुझे ऐसे छोड़ कर मत
जाइए ।"
प्रताप अविवेकी नही है , पर इस अंधेरी ठंडी की
रात में प्रताप की चिंता भावना कुछ खो गया । ऐसा
हुआ मानो प्रताप की सभी चैतन्य शक्ति क्षीण होने लगी
ऐसा लग रहा है मानो एक काला लम्बा छाया उसकी
बुद्धि को हर ले रहा है । अगर ये मां का आदेश हुआ तो
मां अगर ऐसे ही अपने संतान की परीक्षा ले रही हो तो ।
क्या करेगा प्रताप ? क्या वो इसे अनदेखा करके चला
जाए , या उसे लेकर ही जाए । पता नही कौन है , कुछ
खायी नही थी खिला दिया अब गाड़ी लेकर चले जाना ही
ठीक है । नही , खाना बनाने के काम में पुष्पा दीदी
की हेल्पिंग हैंड हो सकती है ।
महिला को उठाकर खड़ा कराया प्रताप ने फिर बोला
– " तुम खाना बनाना जानती हो ।"
" हाँ सब जानती हूं ।" एक सटीक उत्तर ।
प्रताप बोला – " अच्छा है , चलो फिर , साथ में कुछ
लेना है । "
" नही बड़ेबाबू कुछ नही है ।"
एक खटक प्रताप के मन में सवाल को लेकर आया ।
कुछ भी नही है लेने के लिए , निदान के लिए एक पोटली
तक नही ? लोग ऐसे एकदम खाली हाथ में ही घर
छोड़ते हैं क्या ?
फिर प्रताप बोला – " नाम क्या है तुम्हारी ? "
महिला धीरे से बोली – " डुमरी , मेरा नाम डुमरी है ।"

डुमरी को लेकर रात में घर घुसते हुए देख , भौंह फैलाकर
पुष्पा दीदी बोली – " ये किसको लेकर आये हो प्रताप ? "
डुमरी एक कोने में सिकुड़कर खड़ी हो गयी , जूता खोलते
खोलते पूरी घटना पुष्पा दीदी को बताया । फिर बोला
– " ऊपर पुराने समान के घर को खोल दो पुष्पा दी ,
डुमरी वहीं पे रहेगी , और हाँ आज से खाना व अन्य काम
वही करेगी । उसको सब बता देना । "
फिर डुमरी से बोला – " आज किसी तरह चला लो ,
कल पुष्पा दीदी लोग बुलाकर साफ करवा देंगी घर को ।
जो कुछ लगे पुष्पा दी को बोलना , और पुष्पा दी के
बात ही मानना ये जो बोलती हैं वही होता है इस घर में ।
ठीक ।"
अत्यंत अप्रसन्न मुख से डुमरी को ऊपर ले गई पुष्पा दी ।
कुछ देर बाद आकर प्रताप को बोल पड़ी – " तुम्हारा
दिमाग तो नही खराब हो गया , कहाँ की है कौन है जानते
पहचानते नही हो , कौन सी जाति की है पागल तो
नही है । तुम क्या कुछ जानते हो ? कहीं चोर व गुंडा
के लोग भी तो हो सकती है । रास्ता में मिली तो लेकर
चले आये । क्या बुद्धि , विवेक सब वह मूर्ति
ने खा लिया है । "
गुस्सैल आंख उठाया प्रताप ने , उसके दोनों आंख
को देखकर पुष्पा दी की हृदयगति बढ़ गयी । डर से
कांप गयी ।
प्रताप भारी आवाज में बोला – " पुष्पा दी ! देवी मां ने
उसे मेरे पास भेजा है । मां के आदेश को अनदेखा नही
किया जाता । वो तो तुम जानती ही हो पुष्पा दी ।
देखिएगा उसको कोई असुविधा न होने पाए । और सुनो
मेरी तौलिया देकर जाओ स्नान करने जाना है , मेरा खाना
और मां का भोग तैयार तो है न । "
यही बोलकर धीरे से बाथरूम की तरफ चला जाता
है प्रताप , ऐसा लगता है पुष्पा दीदी के साथ आमने
- सामने यही अन्तिम बात हुई प्रताप की ।
क्योंकि सबेरे उठकर पता चला पुष्पा दी अपने बिस्तर
पर नही हैं ।
अगले दिन पूरा आस - पड़ोस एक साथ जुट गए प्रताप
के घर पर , इलाके में खूब उत्तेजना है । मुखर्जी परिवार
इस इलाके के एक सम्मानित परिवार हैं , प्रताप को भी
लोग पसंद करतें हैं और पुष्पा दी को भी इलाके में सभी
जानतें हैं मुखर्जी के घर के एक सदस्य की तरह ।
प्रताप पूरी घटना से हतप्रभ हो गया ।क्या करे कुछ समझ
नही आ रहा था । अंत में भवेश बाबू ही आकर पुलिस
को संदेश दिया । पुलिस ने बहुत खोजा पर पुष्पा दी की
खोज कहीं न मिली । भद्र महिला एक वस्त्र में घर छोड़कर
चली गई , चप्पल तक नही ले गयी । एक भी खुद की
सामान नही ले गई एक रुपया तक नही । पुलिस आकर
आसपास पूछताछ की , प्रताप और भवेश बाबू से
बहुत कुछ जानना चाहा पर दोनों के कई बयान के
बाद भी कोई साक्ष्य न मिली । डुमरी को पुलिस ने
पहले दिन ही क्लीनचिट दे दिया । दोनों एकदूसरे
को नही जानते, कुछ देर की साथ थी । और क्रमागत
क्रंदननयन के ग्रामीण महिला से और कितना सवाल
पूछा जाए । मतलब एक सभ्य महिला अपने आप
गायब हो गयी । भवेश बाबू चिंतित थे उन्हें इन सब
के बीच किसी अलौकिक घटना की सुगंध आ रही थी ।
पर ये बात पुलिस को बताने से कुछ नही होगा , वो
इसे हंसी में ही उड़ा देंगे । प्रताप इन सब चीजों को
शांत होकर ही देख रहा है , पुलिस की सहायता से लेकर
खबर ऑफिस के भाग दौड़ निराश दुख के साथ ।
उसको कोई विकार नही है , जैसे उसने मान लिया
है कि पुष्पा दीदी और कभी वापस नही आएंगी ।
फिर नही आएंगी , फिर खाने को नही बुलाएंगी ,
फिर कपड़े सजाकर नही रखेंगी , और प्रताप के
बीमार होने पर पागल की तरह नही बनेगी ।
ऐसा लग रहा है उसका मन किसी और वस्तु के प्राप्ति
में मशगूल है जहां पुष्पा दीदी के अस्तित्व की जरूरत नही ।
हाय भवेश बाबू काश जानते इसके पीछे का कारण ।
पुष्पा दीदी के खोने के बाद इस घर में आना बंद किया
भवेश बाबू ने , इस शोक हीनता का कारण केवल
प्रताप और डुमरी ही जानतें हैं ।

प्रताप यह मानने को बाध्य हो गया कि डुमरी बहुत
ही बुद्धिमान महिला है , इन सब घटनाओं के बीच
में भी घर की सभी काम खुद के ऊपर ले ली है ।
उसको रसोईघर व घर के कोई भी काम दिखाना
नही पड़ा। वह सब कुछ जानती थी मानो वह बहुत
समय से इसी घर में ही रहती है । अविष्वसनीय तेजी
से काम करती है वह । प्रताप को कुछ मांगने की
जरूरत ही नही होती ।
पुष्पा दी जिस दिन खो गई उस दिन खाना बनाया था
डुमरी ने , प्रताप स्नान करके पूजा में बैठा और भोग
लगाया मां को उसके बाद प्रतिदिन की तरह बाहर
आकर स्टडी रूम के दरवाजे में ताला लगा देता है ।

अगले दिन सुबह स्टडी रूम के दरवाजे को खोला
प्रताप ने और तीव्र आनन्द में झूम उठा । मन के
अंदर आ गया समुद्र जैसी लहर । देवी मां ने सुन ली
, मां ने सुन ली , अंत में बालक के प्यार के आगे
मां हार गई ।
मां , मां बोलते हुए दरवाजे को पकड़कर कांपते हुए प्रताप
रो पड़ा । उस देवी मूर्ति के सामने रखा सभी खाना
इधर - उधर बिखरा हुआ है । किसी ने दोनों हाथों से
कुछ खाया है और कुछ कुछ मेज के पास से ही
गिराया और फैलाया है । एक दो दाना मूर्ति के मुँह
पर भी लगा हुआ है । शाष्टांग प्रणाम किया प्रताप ने ।
रोने की आवाज सुन डुमरी भी आई थी वह भी उसी
अवस्था में नमस्कार करती रही ।
उसके बाद से एक ही क्रिया प्रतिदिन घटित हो
रहा है , रोज रात को पूजा करके डुमरी की बनाई
खाना भोग के रूप में सजा कर , फिर खुद खाकर
सोने जाता प्रताप ।
आजकल उसको बहुत गहरी नींद लगती , कभी -
कभी एक हँसने व चूड़ी की आवाज उसके कानों
को छूकर निकल जाती । फिर जब नींद खुलती तो
सुबह खुद के हाथों से स्टडी रूम के दरवाजा खोलकर
देखता वही एक ही दृश्य । समस्त खाया हुआ बाकि
स्टडी रूम में बिखरा हुआ और मूर्ति के मुख पर दो एक
दाना लगा रहता है ।
उसके लिए देवी मां के इस असीम करुणा को देखकर
उसके आंखों से आंसू की धारा बह निकलती ।……

एक महीने के बाद , सबेरे के समय प्रताप के घर आये
भवेश बाबू । एक दिन पहले शाम को थाना में गए थे
वो , पुलिस पुष्पा की कोई खबर न पाकर केस बंद
कर रहा है । यही बात बताने मध्य दिसंबर की सुबह
वह प्रताप के घर आये थे । पुष्पा के जाने के बाद
प्रतिदिन आना बंद कर दिया है भवेश बाबू ने । किन्तु
यह खबर देना जरूरी था ।
बाहर का दरवाजा खुला ही था शायद दूध व पेपर के
लेने के लिए , अंदर जाते ही ठहर गए भवेश बाबू ।
स्टडी रूम के सामने हाथ जोड़कर खड़ा है प्रताप , मां मां
की ध्वनि सुनाई दे रही है । पीछे डुमरी खड़ी है , वह
खुद के इंद्रियों से समझ गयी कि कोई आया है और
तुरंत रसोईघर में चली गई ।
भवेश बाबू ने एक बार धीरे से उसे बुलाया , प्रताप
ने कोई जवाब नही दिया । इसके बाद आगे आकर
प्रताप के कंधे पर हाथ रखा भवेश बाबू ने । प्रताप
मुड़ के खड़ा हुआ , गाढ़ा लाल आंख अद्भुत उज्वल
दृष्टि , भारी गले से प्रताप बोला – " काका आ गए ,
देखिए मां ने मेरा दिया हुआ भोग खाया है , देखे , मां
ने मेरा बुलावा सुना है । कहाँ है आपके वो पंडित पुरोहित
बुलाइये उन्हें , आकर देख ले बालक के बुलाने पर
मां सुनती है नही । घर के अंदर के दृश्य को देखकर
शरीर सहम गया भवेश बाबू का , एकदम अंधकार
बंद घर में हवा के साथ मिला हुआ है बासी , सड़ने
की गंध । इस सुबह में भी एक नाइट लैम्प जल रहा
है उस प्रकाश में और भी भयानक दिख रही हैं वो
तिब्बती देवी मूर्ति । कितना भयानक , कितना गंदा
वह दृश्य है । कुछ अमंगल की आशंका में सहम गए
वो । जोर से खींचकर बाहर लाकर बैठाया प्रताप को
भवेश बाबू ने , ठीक से देखने पर लगा प्रताप इन दिनों
में बहुत पतला हो गया है , गाल बैठ गया है , गले की हड्डी
ऊंची हो गयी है , आंख के नीचे गाढ़ा कालेपन आ गया है ।
हाथ की नसें स्पष्ट दिख रहीं हैं । केवल आँख , केवल
आंख ही उज्वलता से भरा हुआ है । अब गाढ़े लाल से
धीरे - धीरे सामान्य हो रहा है क्रमशः , उसी तरफ देखकर
आंख से आंख मिलाकर पूछा भवेश बाबू ने – " ये सब
कब से हो रहा है प्रताप ? "
उत्साह से पूरी कहानी बताता चला गया प्रताप कुछ
भी नही छोड़ता ।
कुछ देर मूर्ति की तरफ देखते रहे भवेश बाबू फिर बोले
– " मुकेश का दुकान पार्क स्ट्रीट में कहाँ है ठीक
बताओ तो मुझे । "……..

।।क्रमशः।।


@rahul