Ravish Bhaiya Kanhaiya aur Mera Sapana in Hindi Comedy stories by Rajeev Upadhyay books and stories PDF | चोलबे ना - 4 - रवीश भाई, कन्हैया और मेरा सपना

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चोलबे ना - 4 - रवीश भाई, कन्हैया और मेरा सपना

कल अचानक ही रवीश भाई से मिलना हो गया।

कौन?

अरे भाई! वही अपने रवीश भाई जी! कमाल है अभी भी आप नहीं समझे! अरें भई रवीश कुमार के बारे बात कर रहा हूँ। अब तो आप समझ गए न!

हाँ तो फिर ठीक है। तो हुआ ये कि कल रवीश भाई से मिलना हुआ। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उनसे मिल रहा था। एकदम्मे भक्क मार दिया था मुझे। उनको देखकर मुँह खुला का खुला रह गया था। फिर खुद को यकीन दिलाने के लिए हाथ पाँव मारा तो पता चला कि मैं उनसे सचमुच में नहीं बल्कि वो मेरे सपने में मुझे दर्शन देने आए थे! एकदम किसी देवता सरीखे प्रकट हुए थे!

हाँ। तो जब वो सपने में आए थे तो कहने लगे, ‘वत्स उठो, जागो, कन्हैया को गरीब मानो और जब तक सभी उसे गरीब ना मान लें तब तक सबको मनाते रहो।’


मैं ठहरा मोटी बुद्धि का आदमी और वो भी नवाज शरीफ के देहाती औरत के जैसा। मगज में कुछ घुसा ही नहीं तो समझ कहाँ से आता। पहले तो यकीन ही नहीं हुआ मगर रवीश भाई तो साक्षात सामने खड़े मुस्करा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे युद्ध भूमि के बीच खड़े होकर वो स्वयं कृष्ण की तरह इस अर्जुन को ज्ञान दे रहे हों। खैर।

जब झक मार कर मुझे यकीन हो चला तो मैंने सिर खुजलाते हुए पूछ मारा, ‘खैर ऊ तो ठीक है भाईजान! हम मजूर आदमी हैं आप जो कहेंगे सब करेंगे परन्तु मन में कुछ सवाल खुदबुदा रहा है और पूछने का बहुत मन कर रहा है।’

मेरी बात सुनते ही रवीश भाई के चेहरे एक विशेष तरह की हँसी फैल गई वैसे ही जैसे विदूर को देखकर कृष्ण मुस्कुराते थे। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘पूछो वत्स! तुम्हारे मन में क्या संशय है?’


जब वह यह बातें कह रहे थे तो उनकी आँखों से एक विशेष तेज निकल रहा था। खैर उनकी यह बात सुनकर मेरे मन का डर खत्म हुआ और मैंने भी पूछ डाला, ‘यदि इसी बीच चुनाव खत्म हो गए और लोगों ने कन्हैया को गरीब नहीं माना तो क्या करना होगा भाई?’

भाई शब्द व्यक्ति के मन में अधिकार और बराबरी का भाव उगाता है ठीक वैसे ही जैसे गमले में बोनसाई का वृक्ष!

ये सवाल सूनते ही रवीश भाई ठठाकर हँसे और बड़े अपनत्व से आसमान को निहारते हुए बोले, 'भाई, राजकुमार है अपना कन्हैया कुमार! लोग मानेंगे क्यों नहीं?’ उनका आवाज में कोई विशेष तत्व घुल गया था जैसे कोई वितरागी संत हो और कहने लगे, ‘आजतक इस देश में किसी ने राजकुमारों की बातों को नकारा है क्या कभी? तुम पूरे मन से प्रयास करो। मैं थोड़ा व्यस्त हूँ। अभी प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेने जा रहा हूँ। वापस आकर बात करता हूँ।'


मैं फिर से हैरान हो गया कि रवीश भाई ये क्या कह रहे हैं? तो फिर से आश्चर्य और संशय का भाव लिए हुए पूछा,'किस देश के प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेने जा रहे हैं?'


रवीश भइया पुनः संत भाव से मुस्कराए; कुछ देर तक मुझे देखते रहे और फिर उठकर मेरे चेहरे पर एक धीरे से थाप दिया जैसे खुश होकर पिता देता है। मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरा चेहरा किसी के प्रेम में सराबोर हो जलमग्न हो चुका है। परन्तु जैसे ही ज्वार भाटा मेरे चेहरे को बाढ़ में डूबाने लगा तभी अचानक मेरी आँख खुली गई तो देखा कि मेरे पड़ोसी का जर्मन शेफर्ड अपने जिह्वा से अपने अनुराग का इजहार कर रहा है।

मैं अब ज्यादा ही हैरान था। सिर खुजलाकर याद करने की कोशिश कर रहा था कि अभी-अभी जो मेरे साथ हुआ था उसमें सच कितना है? सच है भी कि नहीं!

अन्ततः हार मान व इसे रवीश माया समझकर मैंने भी अपने सिर खुजलाना छोड़ दिया और पड़ोसी के जर्मन शेफर्ड के सिर को सहलाना शुरू कर दिया। सुना है पड़ोसी के कुत्ते को सहलाने से पड़ोसियों में प्यार बढ़ता है। इस तरह मैं अपने 'मिशन प्यार बढ़ाओ' पर लग गया।