सुरेश पाण्डे सरस डबरा का काव्य संग्रह 7
सरस प्रीत
सुरेश पाण्डे सरस डबरा
सम्पादकीय
सुरेश पाण्डे सरस की कवितायें प्रेम की जमीन पर अंकुरित हुई हैं। कवि ने बड़ी ईमानदारी के साथ स्वीकार किया है।
पर भुला पाता नहीं हूँ ।
मेरे दिन क्या मेरी रातें
तेरा मुखड़ा तेरी बातें
गीत जो तुझ पर लिखे वो
गीत अब गाता नहीं हूँ
अपनी मधुरतम भावनाओं को छिन्न भिन्न देखकर कवि का हृदय कराह उठा। उसका भावुक मन पीड़ा से चीख उठा। वह उन पुरानी स्मृतियों को भुला नहीं पाया
आज अपने ही किये पर रो रहा है आदमी
बीज ईर्ष्या, द्वेष के क्यों वो रहा है आदमी
आज दानवता बढ़ी है स्वार्थ की लम्बी डगर पर
मनुजता का गला घुटता सो रहा है आदमी
डबरा नगर के प्रसिद्ध शिक्षक श्री रमाशंकर राय जी ने लिखा है, कविता बड़ी बनती है अनुभूति की गहराई से, संवेदना की व्यापकता से, दूसरों के हृदय में बैठ जाने की अपनी क्षमता से । कवि बड़ा होता है, शब्द के आकार में सत्य की आराधना से । पाण्डे जी के पास कवि की प्रतिभा हैं, पराजय के क्षणों में उन्होंने भाग्य के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है।
कर्म, भाग्य अस्तित्व, दोनों ही तो मैंने स्वीकारे हैं।
किन्तु भाग्य अस्तित्व तभी स्वीकारा जब जब हम हारे हैं।।
इन दिनों पाण्डे जी अस्वस्थ चल रहे हैं, मैं अपने प्रभू से उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूं तथा आशा करता हूं कि उनका यह काव्य संग्रह सहृदय पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा
रामगोपाल भावुक
सम्पादक
तुम चली आओ
तुम चली आओ अनूठा प्यार दूंगा।
जिन्दगी अपनी तुम मैं पर वार दूंगा।।
तुम चली आओ................
नेह के आंगन में यह तन का खिलौना।
है गगन की छांव है धरती बिछौना।।
जीवन सागर में तरणों ऐसी डालूंगा।
हर्षित होगा तेरे मन का एक-एक कोना।।
जिन्दगी की खे सके नौका प्रिये जो।
वह सरस समधुर तुम्हें पतवार दूंगा।।
तुम चली आओ................
प्रीत मेरी गीत तुम सम्मान हो।
चैन बेचैनी तुम्ही मम प्राण हो।।
तुम मिलो तो चैन आलिंगन करे।
तुम सरस सौन्दर्य का अभिमान हो।।
डूब जाओगी चिरन्तन सुख के सागर में।
प्रीत वीणा की मधुर झनकार दूंगा।।
तुम चली आओ................
पहले मिलते थे मगर यह बात ना थी।
अब तो हर पल याद तेरी ही सताती।
आग तुझमें भी लगी है जानना था।।
इस जन्म में कृष्ण-राधा प्रीत अपनी।
अगले जनम शिव-शक्ति का संसार दूंगा।।
तुम चली आओ................
कैसी कहानी
देखिये कैसी व्यथा, कैसी कहानी है।
जब तरसती महकने को, रात ही में रात रानी।।
देखिये कैसी व्यथा.................
जो खिली बचपन बिताया, इक महकते बगियाने।
आज की भी यह कहानी, भाग्य की कल कौन जाने।।
चढ़ चली दहलीज यौवन, रूप सी खुद को सजाने।
डोलते चहुँ ओर जिसको, वासना के भ्रमर पाने।।
छू सके यौवन न उसका, रूप में जिसका न सानी।
देखिये कैसी व्यथा.................
आज वह दिन आ गया, शहनाईयां बजने लगी।
चंचल चमेली कुमुदनी, चम्पा सभी सजने लगी।।
रात रानी की सजावट से, दमकता चमन सारा।
खुश रहे फूले फले, जोड़ी सभी का एक नारा।
अर्पित करे अपना हृदय, उससे बड़ा जग कौन दानी।
देखिये कैसी व्यथा.................
बाबुल का घर छोड़, पिया की घर दहरी जब आई।
दुल्हा दुल्हन लिये सभी ने, गवने लगी बधाई।।
पैर छुये सबके फिर गोदी, बैठा हर श्रृंगार।
स्पर्श हुये कर कंकर छूटा, उमड़ा कितना प्यार।
पिया सैन से बोले रानी, पूजन चलो भवानी।।
देखिये कैसी व्यथा.................
रात आने से ही पहले नागने, पति डस लिया था।
और जीवन भर विरह विष, रातरानी ने पिया था।।
कलंकनी, कुलटा, कुटिल, व्यंग की बातें सहीं।
घोर तम पीड़ा भयानक, काटती रातें सहीं।
सामाजिक बन्धन के आगे, बूढ़ी हुई जवानी।।
देखिये कैसी व्यथा.................
भूल जा प्रीत
तेरे एक खत ने, हिला डाली जिन्दगी मेरी
भूल जा प्रीत, नीर ही देगा प्यार
मेरी खातिर ना करो, बरबाद अपने गुलशन को
बाट जोहता होगा, कहीं पर श्रृंगार तेरा
भूल जा प्रीत.................
मैं चलूं चाहे मगर, तुझको अंधेरा ना मिले
मैं गलूं तू तो, महकते हुए गुलशन में खिले
मेरा जीवन तो खत्म होने को है हो जाये
मौत आ जाये मुझे, उम्र मेरी तुझको मिले
मेरी सारी खुशियां, प्रीत पर न्यौछावर है
तू बहुत भोली है, समझाना है अधिकार मेरा
भूल जा प्रीत.................
तू खुश रहे तो, मुझे कितनी खुशी होती है
मेरे अंधियारे की, तू ही तो एक ज्योति है
बुझ गयी तू तो, जीवन मेरा अंधियारा है
मिल तो सकते ही नहीं, स्वप्न क्यों संजोती है
भूल तो मैं नहीं पाऊँगा, तुझे तेरी कसम
मौत का दिन होगा, सबसे बड़ा त्योहार मेरा
भूल जा प्रीत.................
बार-बार पढ़के तेरे खत को जलाया जब था
कितना छनका होगा, रक्त मुझको ज्ञात नहीं
इस जन्म में न मिले, सब्र जरा और करो
अगले जनमों में, मिलेंगे तो कोई बात नहीं
अपने गम सारे इस जनम में, मुझे दे देना
प्रीत स्वीकार मुझे, प्यार का उपहार तेरा
भूल जा प्रीत.................
प्रीत भरी पाती
प्रीत तेरे नाम
प्रीत भरी पाती
प्रीत तेरे नाम
सरस प्रीत मुझको
अर्पित सभी कलाम, प्रीत भरी पाती..............
हर पल तस्वीर तेरी
नयनों में रहती है
मेरी हर सांस प्रिये
प्रीत-प्रीत कहती है
मन खोया रहता है
तेरी ही यादों में
मेरी हर रात प्रीत
नींद कसक सहती है
तेरी ही याद रही
भूला हर काम, प्रीत भरी पाती..........
हर मग में, हर पग पर
तेरी कमी खलती है
प्रीत हुई जब से सरस
बेचैनी पलती है
जीवन के सागर में
प्रीत नाव नाविक तो
बेचैनी पतवारों
से ही आगे चलती है
मन्जिल तक पहुंच नहीं
पाये हुई शाम, प्रीत भरी पाती...............
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