calculation in Hindi Moral Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | हिसाब

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हिसाब

समाज में ज्यादातर लोग बड़े पुरजोर शब्दों में बराबरी का दावा करते हैं, परन्तु स्वयं उसका पालन नहीं करना चाहते।
कविता विवाह के पश्चात हर वर्ष जाड़ों, गर्मियों की छुट्टियों में अपने दोनों बच्चों के साथ मायके मां-पिताजी से मिलने अवश्य आती थी।मां, पिताजी, बच्चे एवं कविता छुट्टियों का बेसब्री से इंतजार करते थे।बड़े भाई अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते थे, जो दो-तीन वर्षों में चार छः दिनों के लिए आते थे वो भी अक्सर अकेले क्योंकि भाभी एवं बच्चों का मन छोटे शहर में नहीं लगता था।वास्तविकता सभी जानते थे कि भाभी अपने सास-ससुर से सामंजस्य स्थापित नहीं करना चाहती थीं।भाई काफ़ी ऊंचे पद पर आसीन थे,दिल्ली में खुद का एक बड़ा घर ले चुके थे।
ईश्वर की कृपा से कविता को भी किसी चीज की कमी नहीं थी।ससुर जी के बनवाए मकान में वो सास-ससुर के साथ सपरिवार रहती थी, पति का वहीं फलता-फूलता व्यपार था।उसे ससुराल में पूरा मान-सम्मान, अधिकार प्राप्त था।उसकी एक छोटी मित्रवत नन्द थी जिसका विवाह अभी दो वर्ष पूर्व सम्पन्न हुआ था।
इस वर्ष गर्मी की छुट्टियों में मायके आए हुए मात्र चार दिन ही हुए थे कि भाई-भाभी के आकस्मिक आगमन से सुखद आश्चर्य से भर उठी।पिता अपने बेटे-बहू की प्रकृति से वाकिफ थे,लेकिन मां की ममता उनके आगमन से प्रफुल्लित हो हिलोरें मार रही थी।मां ने कविता से कहकर बेटे के पसन्द के कई सारे व्यंजन बनवा लिए थे।
दो दिन पश्चात सभी ड्राइंग रूम में बैठे थे, कविता चाय बनाकर ले आई।चाय समाप्त होते ही भाभी का इशारा पाकर भाई ने गम्भीर स्वर में कहना प्रारंभ किया कि मां आपने अपने जेवर कविता एवं मुझमें आधा आधा बांटने का निश्चय किया है जो हमें स्वीकार नहीं क्योंकि एक तो उसके विवाह में आप पर्याप्त धन खर्च कर चुके हैं तथा जेवर भी दे चुके हैं,मकान की वसीयत भी अब हमारे नाम कर दीजिए, जिससे आपके बाद हमें किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।उनका इशारा समझकर कविता का मन दुःखी हो गया, लेकिन पिता जी के क्रोध का पारावार न रहा कि तुम्हें हिसाब करते हुए शर्म नहीं आई।जब हिसाब कर ही लिया है तो बेटा आज अबतक का सारा हिसाब-किताब कर ही लेते हैं।सुनो,तुम्हारे पैदा होने से लेकर अबतक का हिसाब।चलो माना कि तुम्हें जन्म देना हमारी इच्छा थी,तुम्हारी परवरिश हमारी जिम्मेदारी थी, वो रातों को जागना,तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए सारे प्रयास, तुम्हारे लिए हमारा लाड़-प्यार तुम्हारे लिए शायद कोई मायने नहीं रखते।जब तुम्हारी माँ के पैरों में फ्रेक्चर हुआ था तो तुम्हारी पत्नी की भी तबियत खराब हो गई थी।जब मुझे हर्ट अटैक आया था तो तुम्हें मात्र दो दिन की छुट्टी मिल पाई थी।हर बार कविता ही हमारे साथ खड़ी थी।साल में दो दिन भी मां-पिता से मिलने के लिए नहीं निकाल पाते हो,लेकिन अपने परिवार के साथ घूमने के लिए समय निकल जाता है।
अब रुपये की बात….तुम्हारी पढ़ाई में जितना लगा उतने में कविता की शादी हो गई, जितना जेवर उसे दिया उससे अधिक तुम्हारी पत्नी को दिया,तुम्हारी ससुराल से मैंने एक पैसा नहीं लिया था, यह तो तुम्हें याद ही होगा।जब तुमने मकान लिया, बीस लाख रुपए मैंने दिए, जो यदि फिक्स होते तो अब तक चालीस लाख हो जाते।इस छोटे से शहर के छोटे से मकान की कीमत पच्चीस लाख से ज्यादा तो नहीं है।अच्छा हुआ जो तुमने अपनी छोटी मानसिकता जाहिर कर दी, तुम दोनों जा सकते हो।भाई-भाभी अपना सा मुँह लेकर चले गए।पर इस बार पिताजी ने मेरे लाख मना करने पर भी मकान की वसीयत मेरे बच्चों के नाम कर दिया साथ ही एक अमूल्य सीख भी दी कि अपने बेटे एवं बेटी की परवरिश इस तरह करना जिससे वे हमेशा एक दूसरे को बराबर समझें तथा तुम अपने ससुराल की पैतृक संपत्ति अपने एवं अपनी नन्द में बराबर बराबर बांटना।कविता के पति ने उसकी बात का सम्मान रखते हुए अपने पिता जी से समस्त चल अचल संपत्ति का आधा हिस्सा अपनी बहन के नाम करवा दिया।
कितना दोहरा व्यवहार है समाज का,बेटे एक से अधिक हों,तो उनमें बराबर बांटने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होती,किंतु बहन-बेटी को कुछ देना भार प्रतीत होता है।
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