Chapter-1.3: कीर्ति का परिचय
Continues from the previous chapter…
कुछ महीनों की मेहनत और थोड़े दिनों का इंतज़ार रंग लाया, अखबार में विज्ञापन दी गई थी, पार्श्व गायक और पार्श्व गायिका की जरूरत है। एक छोटा सा ऑडिशन देना पड़ेगा और उसमें अगर पास हो जाए तो किसी टीवी सीरियल या फिर फ़िल्म में गाने का मौका मिलेगा।
कीर्ति ने तुरंत अपनी आवाज़ रेकॉर्ड कर के खत के साथ उस पते पर एप्लीकेशन भेज दी। उसके कुछ दिन बाद ही कीर्ति के दिये गए लैंडलाईन नंबर पर कॉल आया।
“हैल्लो!” सामने से एक खूबसूरत सी आवाज़ आई।
“हैल्लो?”
“मिस कीर्ति जैन से बात हो रही है?”
“जी हां! आप कौन?”
“जी मैं सुरवंदना संगीत में से बात कर रही हूं, आपने अपनी आवाज़ रेकॉर्ड कर के एप्लीकेशन भेजी थी। आपके लिए ख़ुशखबरी है, आप का सिलेक्शन बेस्ट 50 लोगों में हो चुका है।”
“अच्छा, अब मुझे क्या करना होगा?”
सामने वाली लेडी थोड़ा आश्चर्य में पड़ गई, क्योंकि उसने कीर्ति को इतनी अच्छी ख़बर दी पर कीर्ति की प्रतिक्रिया बिलकुल साधारण थी।
“जी अब आपको अगले हफ़्ते सोमवार को, विज्ञापन में दिए गए पते पर सुबह 9.30 बजे आना होगा।”
“जी बढ़िया, और कुछ?”
“जी नहीं, तो फिर मिलते है आपसे अगले…”
वो लेडी अपनी बात पूरी करें इससे पहले कीर्ति ने कॉल काट दिया था।
कीर्ति अगले हफ़्ते के सोमवार ठीक 9.30 बजे दिए हुए पते पर पहुंच गई, वहां पर पहुंचने पर उसने देखा तो वहां भारी भीड़ थी। एक छोटे से कमरे में 50 की मात्रा में लोग इकट्ठा हुए थे। सभी को एक फॉर्म दिया गया था।
कीर्ति को भी एक जगह पर बिठाया गया और एक आदमी उसे एक फॉर्म दे गया और उसने सिर्फ इतना कहा, “इसे भर के टेबल पर रख देना।”
कीर्ति के पास फॉर्म भरने के लिए पेन नहीं था इसीलिए वो इधर उधर देखने लगी, जब तक वो उस आदमी से पेन मांगती तब तक वो वहां से जा चुका था। कीर्ति ने देखा उसके आगे बैठे आदमी ने अपना फॉर्म भर दिया था, कीर्ति ने उससे पूछा, “माफ़ी चाहती हूं, पर क्या आप मुझे अपनी पेन दे सकते है?”
“जी जरूर। पर आप 2 मिनिट रुक सकती है, मैं अपना फॉर्म भर के तुरंत देता हूं।”
“पेन नहीं देनी तो ना कह दीजिये, झूठ क्यों बोल रहे है?” कीर्ति ने गुस्से भरे स्वर में कहा।
“माफ करना, मैंने आपको पेन देने से मना नहीं किया है, और न ही कोई झूठ बोला है।”
“आपका फॉर्म तो आपने पूरा भर लिया है, फिर पेन देने में क्या एतराज है आपको?”
“हद है आपकी, मैंने फॉर्म भर लिया या नहीं ये मुझे मालूम होगा या आपको?”
“मैंने देखा आपका फॉर्म इसीलिए मैं कह रही हूं।”
“हे भगवान! ये फॉर्म मेरा नहीं है, ये तो मेरा दोस्त दे गया मुझे, वो दूसरा फॉर्म लेने गया है मेरे लिए।”
“तो जब तक वो फॉर्म लेकर ना आए, तब तक तो आप पेन दे ही सकते है ना?”
“अजीब जबरदस्ती है! पहली बात ये की ये फॉर्म और ये पेन दोनों मेरे दोस्त के है, और दूसरी बात ये की मैं आपसे जितनी विनम्रता से बात कर रहा हूं आप उतनी ही बदतमीजी से बात कर रही है।”
“बदतमीजी? यानी आपने मुझे बदतमीज कहा? आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे बदतमीज कहने की? आज तक मेरे माँ-बाप ने भी मुझसे इस तरह से बात नहीं की।” कीर्ति ने अपनी आवाज़ और ऊंची करते हुए कहा।
“काश, आपके माँ-बाप ने आपको तमीज़ सिखाई होती, तो आज आप यहां पर ये बकवास ना कर रही होती।”
“हाऊ डेर यू? तुम होते कौन हो मेरे माँ-बाप के ख़िलाफ़ कुछ भी बोलने वाले?”
“साइलेंट प्लीज़! वहां पे इतना शोर क्यों हो रहा है?” वहां के व्यवस्थापक ने पूछा।
“आप देखिए ना, ये आदमी कब से मेरे और मेरे परिवार के बारे में कुछ भी बोले जा रहा है।” कीर्ति ने उस व्यवस्थापक से कहा।
“भाई साहब, इन मेडम को पेन चाहिए था फॉर्म भरने के लिए, पर अभी मैंने ख़ुद का फॉर्म नहीं भरा तो इनको पेन कैसे दे सकता हूं? इसी बात को लेकर ये मोहतरमा मुझे कुछ भी बोले जा रही है।”
“मेडम, आपको पेन ही चाहिए थी तो मुझसे मांग लेती।” ये कहकर व्यवस्थापक ने कीर्ति को पेन ला कर दी।
पर कीर्ति को अब भी संतुष्टि नहीं हुई।
“वो सब तो ठीक है, पर ये आदमी मेरे और मेरे परिवार के बारे में जो बोला उसके लिए इसे मुझसे माफ़ी मांगनी होगी।”
“आपको जो चाहिए था वो मिल तो गया, अब बात को क्यों आगे बढ़ा रही है आप?” व्यवस्थापक ने कहा।
“पहली बात तो ये कि आपने कॉल कर के मुझे जब बुलाया तो यह बात बताना शायद भूल गए थे कि यहां पर मुझे फॉर्म भरना होगा, अगर आप बता देते तो मुझे किसी से भिख मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ती।”
वो व्यवस्थापक मन ही मन बड़बड़ाया, “हे प्रभु, ये लड़की अब ले देकर हमारे पीछे पड़ गई, ये तो मानेंगी नहीं ऐसा लग रहा है, इस लड़के को ही माफ़ी मांगने के लिए मनाता हूं।”
“भाई साहब, जो भी हो आप माफ़ी मांग के इस बात को यहीं पर रफा-दफा कर दीजिए।”
“जब मेरी कोई गलती है ही नहीं तो मैं माफ़ी किस बात की मांगू?”
तभी उस व्यवस्थापक ने उस लड़के को इशारे में आँख मारी, और वो लड़का समझ गया।
“कोई बात नहीं, जो भी हुआ सो हुआ। मैंने आपके साथ जो बदसलूकी की उस के लिए मैं आपसे माफ़ी मांगता हूं। सॉरी।”
कीर्ति ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
ये देख कर वो व्यवस्थापक और वो लड़का दोनों ही एक दूसरे की ओर देखने लगे, और फिर अपने अपने काम में लग गए।
कुछ ही देर में सब को एक-एक करके ऑडिशन के लिए बुलाने लगे, और करीबन 10 घंटे के बाद नतीजा आया, 10 लोगों को शॉर्टलिस्ट किया गया। उसमें से एक कीर्ति भी थी। बाकी लोग वहां से मायूस हो कर लौट गए।
चुने गए 10 लोगों को एक कमरे में बुलाया गया, और वहां पे प्रतीक्षा करने को कहा गया। कुछ ही देर में एक आदमी आया, उसने सफारी शूट पहनी हुई थी और हाव भाव से वह वहां का मैनेजर लग रहा था। आते ही उसने कहा, “गुड़ इवनिंग दोस्तों, काफ़ी मेहनत की आप लोगों ने और इसी का नतीजा है कि आप लोग 50 लोगों में से सिलेक्ट हो कर टॉप 10 में आये है।”
“माफ कीजिएगा सर, क्या आप हमें बता सकते है, हमें करना क्या और कैसे है?” 10 में से एक ने पूछा।
“जी बिलकुल, सब से पहले तो मैं अपना परिचय देता हूं, मेरा नाम रमेश अग्रवाल है और मैं इस सुरवंदना संगीत का मालिक हूं।”
सभी एक साथ अपनी अपनी जगह से खड़े हो गए और रमेश को गुड इवनिंग विश किया। सिर्फ कीर्ति अपनी जगह पे खड़ी नहीं हुई और उसने ना ही गुड इवनिंग विश किया।
रमेश अग्रवाल ने ये बात नज़रअंदाज़ की, और अपनी बात को आगे बढ़ाया, “इस संस्था में हम लोग आपको गाने की तालीम देंगे और हमारी पहोंच बॉलीवुड तक है। जो भी आप में से अच्छा गाता होगा उसके लिए हम बॉलीवुड के दरवाजे खोल देंगे। आप लोग बेशक अच्छे गायक/गायिका है, पर आप लोगों को और भी अच्छा बनना पड़ेगा और उसकी जिम्मेदारी आप लोग हम पर छोड़ दीजिए।”
रमेश जी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “आप 10 लोगों को पूरी तालीम दी जाएगी, और उसमें शायद 2 महीने का वक़्त लगेगा, और उसके बाद आप सब की टेस्ट ली जाएगी, जिसमें आपको लिखित में हर प्रश्न के सही उत्तर लिखने होंगे, इस टेस्ट के 50 मार्क्स होंगे, और बाकी के 50 मार्क्स में आप लोगों को गाना गा के सुनाना पड़ेगा। जिस टाइम आप लोग गा रहे होंगे उसी टाइम आप लोगों को जज करने के लिए बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार लोग आएंगे, उसी टाइम आप में से कोई एक विजेता बनेगा और उसे कॉन्ट्रैक्ट भी मिलेगा हिंदी फिल्म में गाना गाने का। तो क्या आप लोग तैयार है?”
सभी ने हां में सर हिलाया, कीर्ति ने अपना हाथ ऊंचा किया और कहा, “सर, बाकी के 9 लोगों का क्या होगा?”
“उनको वापिस से तालीम दी जाएगी, और पहले से बेहतर बनाया जाएगा, और जो कमी पहली बार में रह गई होंगी वो कमी हम दूर करने की कोशिश करेंगे।”
“उसमें से भी एक गायक या गायिका पसंद किया जाएगा, बॉलीवुड में गाने के लिए?”
“जी बिलकुल।”
“बाकी के 8 लोगों का फिर क्या होगा?”
“जी मेडम, हम सब को तब तक प्रशिक्षण देंगे जब तक वो बॉलीवुड में गाने के लिए सक्षम ना हो जाए, अगर किसी को 2 महीने बाद ही हमारी संस्था छोड़ देनी हो तो वो बेशक छोड़ के जा सकते है।”
“तालीम के लिए आप लोग कितनी फीस लेंगे?” कीर्ति ने पूछा।
“सिर्फ 100 रुपये!”
ये उस समय की बात है जब 100 रुपये बहुत बड़ी तो नहीं पर फिर भी बड़ी रकम मानी जाती थी। सभी लोग आपस में बातचीत करने लगे, यह देखकर रमेश जी ने कहा, “जरूरी नहीं है कि आप लोग अभी के अभी यह रकम जमा कर दे, पर आप लोगों को 15 दिन का वक़्त मिलेगा, उतने दिनों में आप लोगों को इतनी रकम भरनी होंगी।”
सभी लोग इस बात से सहमत हो गए, 15 दिन में तो सभी लोग इतने पैसो का इंतज़ाम कर ही लेंगे पर कीर्ति की बात अलग थी, वो अपने माँ-बाप से पैसे नहीं मांग सकती थी। उसने फिर से अपना हाथ ऊंचा किया और पूछा, “पर सर, अगर हम 100 रुपये जमा ना कर पाए तो?”
“माफ कीजिएगा मेडम, यहां पर बैठे किसी भी व्यक्ति को कोई दिक्कत नहीं है, अगर आपको ही सबसे ज़्यादा दिक्कत हो तो आप मुझसे मेरे ऑफिस में मिल सकती है।”
“एक्सक्यूज़ मी सर, सिर्फ इनको ही नहीं मुझे भी यही सवाल आपसे पूछना था।”
रमेश जी और कीर्ति ने उस शख़्स की और देखा, ये वही शख़्स था जिससे सुबह ही कीर्ति की तकरार हुई थी।
“और किसी के मन में कोई द्विधा है?” रमेश जी ने पूछा।
किसी को कोई द्विधा नहीं थी, इसीलिए रमेश जी ने कहा, “आप दोनों मेरे साथ चलिए मेरे ऑफिस में, वहां पर चल कर आगे की चर्चा करते है। बाकी के सभी लोग अपने अपने घर जा सकते है और कल से हर सुबह आप लोगों को 10 से 2 बजे तक तालीम के लिए आना होगा।”
Chapter 1.4 will be continued soon…
यह मेरे द्वारा लिखित संपूर्ण नवलकथा Amazon, Flipkart, Google Play Books, Sankalp Publication पर e-book और paperback format में उपलब्ध है। इस book के बारे में या और कोई जानकारी के लिए नीचे दिए गए e-mail id या whatsapp पर संपर्क करे,
E-Mail id: anil_the_knight@yahoo.in
Whatsapp: 9898018461
✍️ Anil Patel (Bunny)