Asylum - 2 in Hindi Moral Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | शरणागति - 2

Featured Books
Categories
Share

शरणागति - 2

अध्याय 2

शरणागति वृद्धाश्रम ! करीब-करीब 3 एकड़ जमीन पर एक ऊंची इमारत पेड़ों के झुंड के बीच में खड़ा था ।

ठंडी-ठडी हवाएं ! फूलों की भीनी-भीनी खुशबू, सुंदर-सुंदर फूलों से लदे पेड़ों को देखकर मन को बहुत सुकून मिला ।

यहां-वहां सीमेंट के बेंच- छोटे-छोटे मंडप बने हुए थे और उनके बीच में कृष्ण, राम, शिवलिंग ऐसे ही कई पेंट किए हुए मूर्तियां रखी हुई थी।

सीमेंट के बेंचों पर यहां-वहां बुजुर्ग कुछ लोग बैठे हुए थे। एक टैक्सी में आकर रंजनी उतरी इस वातावरण को ध्यान से देखते हुए कार से उतर कर पैदल चलने लगी।

सामने ही उस वृद्धाश्रम की बिल्डिंग उसे दिखाई दी। उसके बाहर ही वृद्धाश्रम में काम करने वाले सहायक रामास्वामी खड़े थे।

"आप रंजनी हैं ?"

"हां मैं ही हूं। हमारे पत्रिका की तरफ से साक्षात्कार के लिए बात करने वाली मैं ही हूँ।"

"वेलकम.... वेलकम..." -वे रंजनी को लेकर उनके डायरेक्टर रामकृष्णन के कमरे में घुसे।

सुहाता हुआ ए.सी, लवंडर की खुशबू, कमरा आरामदायक ठंडा था। सामने चमचमाती हुई कैन की कुर्सी पर बैठे हुए रामकृष्णन के चेहरे पर ही पवित्रता झलक रही थी।

"नमस्कार सर....."

"नमस्कार अम्मा..... आइए... बैठिए....."  - वह भी सामने पड़ी कुशन के कुर्सी पर बैठी।

"कहिए..... कोई साक्षात्कार लेना है आपने बोला?"

"हां सर..... हमारी मासिक पत्रिका में इस बार जो अंक हम निकाल रहे हैं वह बुजुर्गों के लिए है। अत: बुजुर्गों से संबंधित बातों को हमने अच्छी तरह से लाने का इरादा किया है।"

"बुजुर्गों के अनुभव, उनके मन का आरोग्य, उनके शारीरिक स्वास्थ्य सभी समाचारों को इकट्ठा करके हम एक लेख लिखेंगे। इसलिए बुजुर्गों से साक्षात्कार लेकर उनकी भावनाओं को वैसे का वैसा ही मैं बाहर लाने की सोच कर आई हूं।"

"बहुत अच्छी बात है। इस संस्था का निर्माण कर्ता मैं ही हूं। मुझसे पूछने के लिए आपके पास कुछ है क्या ?"

"बहुत कुछ है सर। इस वृद्धाश्रम के बारे में मैंने बहुत कुछ सुना है। हवादार प्राकृतिक वातावरण में शहर से दूर एकदम शांति पूर्ण स्थान है। इस जगह पर है आप कोई लॉज नहीं तो शॉपिंग मॉल भी बना सकते थे। वैसे तो कोई कारखाना भी बना सकते थे। परंतु आपके वृद्धाश्रम खोलने का कारण मैं जान सकती हूं?"

"बहुत बढ़िया प्रश्न। मैं इसका जवाब जरूर दूंगा। उससे पहले आप अंदर जाकर सब को देख कर उन लोगों का साक्षात्कार लेकर आ जाइए......"

"क्यों सर.... अभी आप मेरे प्रश्न का जवाब क्यों नहीं दे सकते ?"

"कभी भी दे सकता हूं। परंतु यहां पर रहने वाले बुजुर्गों को देखकर आने के बाद उसे सुनना ठीक रहेगा और आपके लेख के लिए स्ट्रक्चर बहुत अच्छा रहेगा ।ऐसा मैं सोचता हूं। उसके बाद मुझसे पूछने की जरूरत नहीं हो ऐसा फैसला भी आप ले सकती हैं....."

रामकृष्णन अपनी बातों को बहुत ही स्पष्ट और गंभीरता से बोले। रंजनी  ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। उसी समय उसके पीने के लिए चाय और उसके साथ चार मोटे-मोटे बिस्कुट लेकर आए।

"इसे खाइए और यह चाय और बिस्कुट दोनों ही स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे हैं। यह हर्बल चाय विशेष तौर से शुगर पेशेंट को देते हैं।"

उनकी बातों को सुनकर उसने चाय पिया। अच्छी गरम चाय और उसकी खुशबू भी बढ़िया थी। उसके साथ जो बिस्कुट था आधा मीठा बहुत अच्छा लग रहा था। उसे पसंद आया।

"यह अलग तरीके का है..."

"पसंद आया ?"

"बिल्कुल..... यह कांबिनेशन मेरे लिए नया है!"

"ऐसी बहुत सी बातें जो हमें पता नहीं वह नई होती है। परंतु सचमुच में वह नई है ऐसा नहीं होता। इस भूमि में शुरू से ही जो वस्तुएं हैं वही हैं यह सब नई नहीं हैं ।"

चाय और बिस्कुट पर उन्होंने जो जवाब दिया उसमें तत्व था। उस जवाब से पता चलता है यह बड़े गंभीर और गहरे आदमी हैं यह बात रंजनी के समझ में आ गई।

"तुम्हारे अप्पा-अम्मा क्या करते हैं.... वे कैसे हैं...."

उनसे जिस प्रश्न की उसे उम्मीद थी वहीं उन्होंने पूछा। रंजनी थोड़ी आश्चर्यचकित हुई फिर भी जवाब दिया ।

"वे लोग अच्छी तरह से हैं। मेरे साथ ही रहते हैं। आप हमारे अप्पा-अम्मा जैसे ही हो अत: आप मुझे तुम ही बोलिए.... प्लीज..."

"ओ.... तुम्हारे साथ पैदा हुए भाई बहन कितने हैं ? -तुरंत ही उन्होंने बड़े आराम से बातें शुरू की।

"सॉरी सर। मेरे पेरेंट्स की मैं इकलौती हूं।"

"तुम 30 साल की होगी ?"

"आपने ठीक बोला। 8 साल की एक लड़की भी मेरी है।"

"अब चौथी कक्षा में पढ़ रही होगी । ठीक है ?"

"एक्जेक्टली...."

"तुम्हारे पति क्या करते हैं ?"

इस प्रश्न ने स्पीड-ब्रेकर का काम किया जिससे वह थोड़ा चुप हुई। चेहरे की सहजता भी बदली।

"क्यों अम्मा... कुछ गलत पूछ लिया क्या ?"

"नहीं सर। परंतु मेरे लिए यह एक बेकार प्रश्न है। कोई मुझसे यह प्रश्न नहीं पूछना चाहिए ऐसा मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं।"

"समझ रहा हूं.... डाइवोर्स हो गया ?"

वे फट से दूसरे प्रश्न पर पहुंच गए।

"हां..." वह धीरे से बोली।

"ठीक है। अब मैं तुम्हारे परिवार के बारे में कुछ नहीं पूछूंगा। परंतु तुम जाने या अनजाने में एक सही जगह ही आई हो। तुम जाकर अपने साक्षात्कार को लेकर आओ। तुम्हारे पहले प्रश्न का उत्तर मैं आखिर में दूंगा।"

वे कुर्सी से उठकर खड़े हुए उनका बोलना गंभीरता लिए हुए था। उसने सोचा थोड़ी देर पहले जो मिलना हुआ वह बढ़िया रहा अब खत्म हो गया है उसे ऐसा लगा ।

अंदर आते समय जो वेग और उत्साह था वह अब नहीं है। फिर भी वह अपने आप को उत्साहित करके खड़ी हुई।

उसे उन्होंने अपने सहायक रामास्वामी के साथ जाने के लिए कहा! सब बातों को विस्तार से बताने के लिए भी बोला......

***