bhavbhuri se sakshatkar in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | भवभूति का साक्षात्कार -प्रभुदयाल मिश्र

Featured Books
  • ફરે તે ફરફરે - 41

      "આજ ફિર જીનેકી તમન્ના હૈ ,આજ ફિર મરનેકા ઇરાદા હૈ "ખબર...

  • ભાગવત રહસ્ય - 119

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૯   વીરભદ્ર દક્ષના યજ્ઞ સ્થાને આવ્યો છે. મોટો...

  • પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21

    સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ...

  • ખજાનો - 85

    પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 118

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૮   શિવજી સમાધિમાંથી જાગ્યા-પૂછે છે-દેવી,આજે બ...

Categories
Share

भवभूति का साक्षात्कार -प्रभुदयाल मिश्र

पुस्तक – महाकवि भवभूति’

लेखक- रामगोपाल भावुक

प्रकाशक- कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन

मूल्य – रुपये – 250/

भवभूति का साक्षात्कार

-प्रभुदयाल मिश्र

रत्नावली, एकलव्य,शम्बूक ,भवभूति आदि भारतीय सांकृतिक धरोहर के उपन्यास लिखने वाले श्री रामगोपाल तिवारी ‘भावुक’ने अब ‘महाकवि भवभूति’ उपन्यास लिखा है जिसे प्रतिष्ठित कालिदास अकादमी ने प्रकाशित कर उसे एक प्रामाणिकता प्रदान की है ।

कृति के दूसरे अध्याय ‘कवि उवाच’से ही जैसे कृति-पुरुष भवभूति का स्वगत-साक्षात्कार शुरू हो जाता है । पाठक को कभी, कहीं यह अनुमान कठिन जा सकता है कि भवभूति को आखिर इतनी साफ-सफाई देने की आवश्यकता क्यों आ पड़ी है ? यह उनकी स्वयं की आवश्यकता है या समाज, इतिहास या लेखक की ? और इसके कारण यदि कथा विस्तार में गति भंग या बाधा आ रही है तो उसे सहलाने और संभालने की लेखक ने कितनी चिंता की है ? पर हिन्दी के इस विद्वान ने संस्कृति के स्रोत संस्कृत के सूत्रों से कितना कार्य सम्पन्न किया है, यह संस्कृत का कोई अधिकारी विद्वान ही बता सकता है, जो मैं कदापि नहीं हूँ, अस्तु !

लेखक की विषयाशक्ति का मूल कथानक में आंचलिकता की व्याप्ति प्रधानता से रही है और इस तथ्य को पुस्तक की भूमिका में स्वीकार भी किया गया है । पुस्तक में भवभूति के तीन नाटकों – महावीरचरितम्, मालतीमाधवम् और उत्तररामचरितम् के कथ्य और शिल्प का सूत्रबद्ध ताना बाना बुना गया है । इन नाटकों की रचना, इनके कथानकों के विस्तार में नाटककार भवभूति के संस्कार और शिक्षा का हस्तत्क्षेप तथा इनके मंचन और प्रस्तुतीकरण द्वारा उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के विस्तार को अभिचित्रित किया गया है। महावीरचरितम् और उत्तररामचरितम् में राम द्वारा सीता के परित्याग और शंबूक-वध से जैसे भवभूति स्वत: बहुत आहत हैं अत: वे वाल्मीकि से भिन्न कथानक गढ़ते हुये सीता का राम से अंतत: पुन: मिलन करा देते हैं तथा शंबूक को भी जीवन मुक्ति प्रदान करते हैं । शंबूक स्वयं इसके लिए अपनी कृत कृत्यता इस प्रकार प्रकट करता है –

“ स्वामी, आपके प्रसाद का यह महत्व है । तपस्या से भला क्या ? अर्थात् तपस्या ने बड़ा उपकार किया है । संसार में अन्वेषण करने योग्य लोकनाथ, शरणागत की रक्षा करने वाले मुझ शूद्र को ढूँढ़ते हुये सैकड़ों योजन लांघकर यहाँ आए । यह तपस्या का ही फल है । “ (पुस्तक पृष्ठ 116)

पुस्तक के कथानक में प्रथम और तृतीय पुरुष प्रस्तोता की अदलाबदली इतनी आकस्मिकता से हो जाती है कि इससे यदा कदा इसका प्रवाह अरुद्ध हो जाता है । ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक अपने केंद्रीय पात्र की तादात्मीयता में इतना अभिभूत हो चलता है कि कथानक का अतीत जैसे वर्तमान में घुलने लगता है ।

पुस्तक का मुद्रण पुराने तरीके से हुआ है तथा इसमें प्रूफ की बहुत बड़ी संख्या में त्रुटियाँ रह गईं हैं ।

अंत में भावुक के साहस की मैं निश्चित ही प्रशंसा करूंगा । उन्होने असाध्य वीणा के तार को संभाला है और इस कृति के माध्यम से सनातन जीवन द्वंद्व के संगीत का आवश्यक कला रूपक प्रस्तुत किया है । उनकी यह कला जीवन का पर्याय बनकर पाठकों को उद्बुद्ध करे, ऐसी अभिकामना है ।

प्रभुदयाल मिश्र

35 ईडन गार्डन, चूना भट्टी कोलार रोड भोपाल, 16