--राह अपनी मोड़ दो--
शाह के दरबार कीं,
खूब लिख दी है कहानी।
शाज, वैभव को सजाने,
विता दी सारी जवानी।।
चमन की सोती कली को,
राग दे, तुमने जगाया।
अध खिली को प्रेम दे कर,
रूप यौवन का दिखाया।।
नायिका की, हर नटी पर,
गीत गाकर, तुम लुभाऐ।
दीन, पतझड़ की कहानी,
के कभी क्या गीत गाए।।
फूल पतझड़ के चुनो अब,
छोड़कर, वैभव-खजाने।
वीरान को, सुन्दर बनाने।
गीत धरती के ही गाने।।
और कब तक, यूँ चलोगे।
अठखेलियां अब छोड़ दो।
वीरान को, सुन्दर बनाने,
राह अपनी, मोड़ –दो।।
--वेदना की यामिनी--
दर्द के इस कटघरे में,
नच रहा है, आज जीवन।
लोभ के फन्दा फसे हैं,
हर घरी पर आज टीभन।।
छोड़कर सोते-जिगर को,
उदर की रचने कहानी।
रात के अन्तिम प्रहर से,
जा रहीं हैं, वे जबानी।।
उस भयाबह, सून्य निर्जन-
प्रान्त में जो चल रही है।
लकडि़यों के गट्ठरों को,
बेचकर जो पल रहीं हैं।।
देखता है क्या उसे जग,
दर्द अनशन पर, पड़ा है।
वेदना की यामिनी में,
मौत का साख खड़ा है।।
आज भी जागो सिया ही,
कलम को कर में संभालो।
आह पीडि़त मानवी की-
इस धरा के गीत गालो।।
-बेसहारा--
ढो रहे पत्थर, धरे शिर,
शिशिर के कम्पन प्रहर में।
मानवी निर्माण के हित,
जी रहे, पीकर जहर भी।।
कठिन मग को सरल करने,
स्वर्ग को भू पर उतारें।
आज उनकी वेदना में,
आ रहीं हैं क्या बहारैं।।
सोचलो, महिलों के राजा,
यह तुम्हारी, सुख कहानी।
पल रही हैं, उन्हीं ने कर
त्याग कर दीनी, जवानी।।
उस कहानी की तरफ भी,
क्या कमी, तुमने निहारा।
रच रहा निर्माण पथ जो,
चल रहा, वह बेसहारा।।
दे सहारा उन्हें पथ में,
मार्ग को कुछ सरल कर दो।
जिंदगी की मृदु बहारें,
उल कराहों में भी भर दो।।
--फिर कहो कैसे चलेगी--
तप रहा मौसम भयानक,
हो रही वायु भी, सन-सन।
जिंदगी के मधुर घट से,
घट रहा जीवन-भी, छन-छन।।
आज की भूखी धरा को,
पेट भर, भोजन न मिलता।
देख कर ऐसी दुर्दशा,
क्या तुम्हारा, दिल न टिकता।।
चल रही गाढ़ी ढकेलां
निर्माण पथ कमजोर है।
वेदना की चरम स्मृति,
जिंदगी ज्यों, शोर है।।
बदल दो। इसके पुर्जे,
घिस गए, खट-खट खलेगी।
व्यवस्था की रेलगाड़ी,
फिर कहो कैसे चलेगी।।
नए शिरे से, इसे साधो,
कर्म पथ सुदृढ़ बनालो।
उड़ी छानें झोंपड़ी की।
मानवी की छान छालो।।
--खटमल--
हंस रही हो आज बैठे,
इस चहर दीवार में तुम।
पड़ रहे हो, लाल –पीले,
सो रहे हर हाल में तुम।
जिंदगी का जो मजा सब,
बस- तुम्हीं को मिल रहा है।
श्रमिक यह, जीवन व्यथा में,
तप्त लू में, जल रहा है।।
कर रहा है कठिन मेहनत,
बनाकर, खूँ का पसीना।
दुर्दशा को देखकर भी,
हंस रहे हो, यह हंसी ना।।
चल रहा जो शान्ति पथ पर,
खून तुम उसका पियोगे।।
दूसरों की जिंदगी पर,
और अब कब तक जियोगे।।
इसलिए ही हो गया है,
खटमली जीवन तुम्हारा।
चूशते हो खून युग का,
कब बदल दोगे ये धारा।।