After you - 3 in Hindi Poems by Pranava Bharti books and stories PDF | तुम्हारे बाद - 3

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तुम्हारे बाद - 3

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इंतज़ार किया सदा ही उस हसीन पल का

होगी ख्वाबों की ताबीर, बदलेगी अपनी तकदीर

फूल खिलेंगे मन के गुलशन में, चह्केंगी खुशियाँ आँगन में

बादलों की छाँह दुलारेगी हमें, प्यार की कूक पुकारेगी हमें

ज़िंदगी मुस्कुराएगी मन में, रोशनी के दिए जलाएगी

पाँवों में होगी गति, झूमेंगी, नाचेंगी, महकेंगी, बहकेंगी फिजाएँ

हर ओर होंगी प्यारी अदाएँ

चमकेंगे सितारे, तुम्हारे–हमारे

कोई नया गीत सुनेंगे रोज़ मिलकर सारे

भरे होंगे भंडार, न होगी हा-हाकार

सुबह से साँझ तक चलेगी मस्त बयार

तभी भरेंगे मन में मादक गीत, सुमधुर संगीत

क्यों इंतज़ार में ही ख़त्म हो जाता है जीवन?

छूट जाते हैं रिश्ते, टूट जाते हैं तन-मन

ढूंढते रह जाते हैं बहार, नहीं सुन पाते कोई पुकार

तभी आती समझ जीवन की ये सच्चाई

मगर हो जाती है देरी बहुत तब तलक

ह्थेली पर लिए आस का दीपक खड़े रह जाते हैं

इंतज़ार करने की सज़ा पा जाते हैं ------||

 

 

14 -----

तलाशा है ज़िंदगी को हरेक कोने में

पत्ते पत्ते से लिपट कोशिश करी है छूने की

हरेक पल में, हरेक लम्हे में छूना चाहा

कहीं तो झाँकती सी मिल सके, नन्ही सी भी

तो करूँ कैद उसको, मुट्ठियों में कर लूँ बंद

उसमें भर दूँ गीत, गज़ल, सारे ही छंद

न ज़िक्र हो कभी उस बेबसी का जो ढोई है

वो ज़िंदगी सरे आम लिपट जो रोई है

आज करना है आज़ाद उसे तन्हाई से

कुछ नहीं मिल सकेगा उसे रुसवाई से

वो झूमे हर दिल में प्यार की अदा बनके

वो कदम चूमे सबके दिलों की सदा बनके

वो तो बस एक बार ही सबको मिलती है

गर हम न संभाल पाएं, लो किसकी गलती है ||

 

 

15 ----

थक के चूर हुई जाती हूँ जाने क्यों?

किसी लिबास में भी जंच नहीं मैं पाती हूँ

दिल के कोने में छिपी याद से घबराती हूँ

उन किनारों पे जाके बैठ जाती हूँ यूँ ही

जिनकी यादें मुझे देती खरोंच हैं अब तक

और उसके भीगते अहसास भिगो देते हैं

मेरी आँखों में वो भर देते हैं तन्हाई सी

जैसे मैं रेत की ढेरी पे जाके बैठी हूँ

जिसमें धँस जाऊँगी भीतर किसी भी पल में मैं

कुछ भी तो पास नहीं बेवज़ह ही ऐंठी हूँ

थकन दूर हो कैसे कोई बता दे तो

मेरी खुशियों से कोई गर मुझे मिला दे तो

मेरी आँखों में वो ही सपने उगें फिर से

और जन्नत की खुशियाँ तैर जाएँ आँखों में

जीने की सही कोशिश कोई करा दे तो ||

 

16 ----

जीने की आरज़ू की वजह नज़र नहीं आती

किसी खुशबू की कोई खबर नहीं आती

न बादलों की गुफ़ाओं में नमी लगती है

औ’ न ही हरी-भरी सी ये जमीं लगती है

ये अचानक तुम्हारे गुम होने से हो गया क्योंकर

मैं तो समझी थी बहुत जांबाज़ है मेरा ये जिगर

पर कैसी है नमी जो मेरे मन में है

तू तो हर सू मेरे खाव्बों, मेरे हर पल में है

फिर मैं बेसुध सी क्यों हुई जाती हूँ

क्यों उभरते हुए अंधेरों से घबराती हूँ

तू मेरे साथ सदा है, हर सू ही तेरा साया है

ये आवजावी ही तो ज़िंदगी की रौनक है

ये जो रह जाती है खुशबू, यही तो जन्नत है||

 

17  --

जीना चाहा है मैंने बंद होके साँसों में

और कुछ रंग-बिरंगे फूल भी खिलाए हैं

वो जो सतरंगी सा इन्द्रधनुष दिखता है

वो हमारी-तुम्हारी हसरतों के साए हैं

बातों-बातों में ज़िरह के बहुत फ़साने हैं

यहाँ तो लोग कुछ ज़्यादा ही सयाने हैं

भोले रिश्तों को बना देते हैं कड़वा अक्सर

और खींच देते हैं लकीरें सभी के सीनों पर

बंद कर देते हवा फूलों को नचाती है जो

घोट देते हैं गले हसरतों के बस यूँ ही

शायद, इसमें उन्हें संतोष मिला करता है

उनमें ये ‘आज का रावण’ है जिया करता है |

 

18 -------

मेरी धड़कन में जो बनके खुदा बैठा है

वो मुझे टोकता है, रोकता है हर पल ही

मेरी आँखों की कोरों को सुखाने के लिए

वो मुस्कुरा के मेरा चेहरा थाम लेता है

ये वो आँसू हैं बदल जाते हैं स्वाति में कभी

फिर कभी सीप में ढल मोती भी बन जाते हैं

एक लम्हा ही बहुत है भरपूर ज़िंदगी के लिए

कुछ लरजती हुई साँसें ही जिंदा रहती हैं

उसकी साँसों ने जब से छूआ है रूह को मेरी

गुनगुनी साँझ सा हर पल ही लगा करता है

सुरमई आसमान झाँकता है मुझमें तब

और आँखों में गुलमुहर फूल जाते हैं

रात की रानी कभी खुशबुएँ भरती मुझमें

उगता सूरज कभी कुछ याद दिला जाता है

एक लमहे में खुशबू ज़िन्दगी की बसती है

और ज़िंदगी मुस्कुराती चलती जाती है

इसी लमहे में बसी पास तेरे आती हूँ

और तुझे अपनी कहानी कभी सुनाती हूँ

इस तरह तुझसे कभी दूर नहीं जाती हूँ ||