Dooriyan in Hindi Love Stories by Mukesh Saxena books and stories PDF | दूरियाँ

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दूरियाँ

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शमा की अर्थी उठ रही थी। अब वह शमा पूर्ण रूप से बुझ चुकी थी जिसमें एक तेज था जिसके मुख से लालिमा फूटती थी तथा जो कुछ दिन पूर्व हँस बोल रही थी जिसने अपने दिल में अनेकों सपने सँजोए थे परन्तु उसे क्या पता था कि उसके वह सपने कभी पूरे नहीं हो पाएंगे और सपने पूरे होने से पूर्व ही वह अपने पूर्व प्रेमी तथा होने वाले प्रियतम 'रोहित' से बहुत दूर चली जायेगी। कोई इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता था कि जिस घर में कल शहनाईयाँ बजने वाली थी, जिस घर से डोली उठने वाली थी, वहीँ आज मातम छाया हुआ था। शमा की लाश के पास उसके माँ बाप तथा भाई बहन बिलख-बिलख कर रो रहे थे। शादी में आए हुए रिश्तेदार 'मेहमान' भी शोकपूर्ण मुद्रा में शमा के परिवार को सांत्वना दे रहे थे। शमा के मरने की खबर जो भी सुनता वही आश्चर्यचकित रह जाता। जबकि रोहित तो इस उम्मीद के सहारे बैठा था कि कल वह और शमा पूरी तरह से एक हो जाएंगे तब ही वह सभी गिले-शिक़वे दूर करेगा तथा अपने अरमान पूरे करेगा। परन्तु कल तो फिर कल ही है उसे क्या पता था कि वह कल अब कभी नहीं आएगा जिसकी उम्मीद लिए वह बैठा है क्योंकि शमा तो अब उससे बहुत दूर जा चुकी थी। जैसे ही शमा के मरने की खबर रोहित तक पहुँची वैसे ही उस पर वज्रपात हुआ। कोई ख़ास प्रतिक्रिया न देते हुए वह गुमसुम सा हो गया। जैसे ही उसकी माँ ने उसकी पीठ पर हाथ रख कर धीरज बँधाया, वैसे ही उसके सब्र का बाँध टूट गया और वह बिलख-बिलख कर रोने लगा। रोते-रोते उसकी स्तिथि पागलों के समान हो गई और वह अपना सर ज़मीन पर पटकने लगा तथा स्वयं अपने बालों को खींचने लगा। रोहित की माँ बराबर रोहित को सांत्वना दे रहीं थीं परन्तु रोहित भला कैसे शांत हो सकता था।

रोहित को तो रह रह कर शमा के साथ बीते हुए दिनों की याद आ रही थी जब उन दोनों की पहली मुलाक़ात हुई थी तथा किस प्रकार शीघ्र ही वह एक दूसरे के नज़दीक आ गए थे। वह समय भी आ गया जब कि दोनों का एक दूसरे के बिना रहना मुश्क़िल हो गया और वह एक होने के लिए बेचैन रहने लगे। अब वह विवाह के पवित्र बन्धन में बँधने के लिए राज़ी भी हो गए थे परन्तु दोनों को अपने अपने घरवालों की ओर से चिंता बनी हुई थी कि दोनों के घरवाले इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे भी अथवा नहीं। रोहित सोच रहा था कि शमा के माँ बाप कभी उसे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि वह एक गरीब परिवार का लड़का था और शमा भी यही सोचती थी कि रोहित की माँ उसे स्वीकार करेंगी अथवा नहीं। परन्तु फिर भी वह दोनों अपने मन में एक आशा की किरण लिए हुए थे। दोनों अपने अपने विचारों में गुम थे। तब इस मौन को आखिर रोहित ने ही भंग किया और बोला, "शमा, आखिर कब तक हम इस प्रकार मिलते रहेंगे?"

शमा ने जबाव दिया, "वहीँ मैं सोच रही हूँ।"

रोहित ने कहा, "अब हमें अपने घरवालों से बात कर ही लेनी चाहिए।"

दोनों ने अपने अपने घरवालों से बात करके दूसरे दिन मिलने का फैसला किया। घर पहुँच कर रोहित ने यह बात अपनी माँ को बताई तो रोहित की माँ ने रिश्ते को स्वीकार कर लिया परन्तु जब शमा ने अपने पिता से इस रिश्ते की बात की तो उसके पिता ने नाराज़गी के साथ साफ़ इन्कार कर दिया। दूसरे दिन जब वह दोनों मिले तो दोनों के चेहरे उतरे हुए थे। रोहित मन में बहुत प्रसन्न था कि उसकी माँ ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया परन्तु शमा को दिखाने के लिए वह गंभीर हो गया था। दोनों एक दूसरे के पास प्रश्नवाचक मुद्रा में आकर खड़े हो गए।

रोहित ने कहा, "माँ ने इस रिश्ते के लिए इंकार कर दिया।"

परन्तु शमा चुप ही रही। उसकी आँखों से ऑंसू बह रहे थे।

रोहित शमा के आँसू को देखकर हड़बड़ा गया और पश्चाताप भरे स्वर में बोला, "श...श...शमा, मैं तो मज़ाक कर रहा था। माँ तो राज़ी हैं। उन्होंने तो तुम्हारे फोटो को देखते ही स्वीकृति दे दी थी। मैंने तो तुम्हें चिढ़ाने के लिए यह सब किया था।"

परन्तु फिर भी शमा की आँखों से आँसू गिरते रहे।

वह जैसे ही चुप हुई रोहित ने उससे पूछा, "क्या बात है, शमा? क्या तुम खुश नहीं हो?"

तब शमा ने कहा, "नहीं यह बात नहीं है। रोहित, मेरे पिता ने हम दोनों की शादी के लिए इंकार कर दिया।"

तब रोहित ने सांत्वना भरे स्वर में शमा से कहा, "कोई बात नहीं तुम चिंता मत करो। यदि हमारा प्यार सच्चा होगा तो तुम्हारे पिता को हमारी बात एक दिन ज़रूर माननी होगी।"

शमा ने देखा कि उसकी बात का रोहित पर ज़रा भी असर नहीं हुआ बल्कि वह उसे सांत्वना ही दे रहा है। परन्तु उसे क्या पता था कि ऊपर से सांत्वना देने वाला रोहित अंदर से कितना दुःखी था। रोहित अंदर ही अंदर घुलता जा रहा था। रोहित की माँ को जब उसका यह हाल नहीं देखा गया तो वह शमा के पिता से स्वयं बात करने चल दी। उनकी बात का शमा के पिता पर ऐसा असर हुआ कि उन्होंने तुरन्त अपनी स्वीकृति दे दी और रिश्ते को मंज़ूर कर लिया।

उस दिन शमा और रोहित बड़े प्रसन्न थे। रोहित कह रहा था, "शमा, आखिर हमारा प्यार सच्चा निकला।"

धीरे-धीरे समय बीतने लगा। अब दोनों के एक होने का समय आ गया था। अब वह एक पवित्र बंधन में बँधने जा रहे थे और वह समय आने से एक दिन पूर्व ही शमा की अचानक तबियत ज़्यादा ख़राब हो गई। उसका इलाज भी नहीं हो पाया कि वह हमेशा के लिए इस दुनिया को छोड़ कर चली गई।

इस लम्बी खामोशी के बाद जब रोहित की माँ ने उसका कन्धा पकड़ कर उसे ज़ोर से झकझोरा तो उसकी विचारधारा टूट गई और वह पहले की तरह बिलख-बिलख कर रोने लगा और इसी हालत में, रोता हुआ, शमा के घर पहुँचा। शमा के घर से रोने चीखने की आवाज़ें आ रही थी। शमा को श्मशान घाट ले जाने की तैयारी हो रही थी। रोहित शमा की लाश से लिपट गया और दहाड़े मार मार कर रोने लगा। आखिर किसी प्रकार बड़ी मुश्किल से उसे शमा की लाश से अलग किया गया।

शमा की लाश टिकटी से बँध चुकी थी। उसे श्मशान घाट ले जाया जा रहा था। रोहित बराबर चीख रहा था, "मेरी शमा मुझसे मत छीनो, मेरी शमा मुझसे दूर मत ले जाओ।" शमा की अर्थी के साथ काफी लोग चल रहे थे और उसी में रोता हुआ रोहित भी चल रहा था। उसकी स्तिथि एक ज़िन्दा लाश की तरह हो गई थी। श्मशान घाट ले जाकर शमा की लाश अग्नि के सुपुर्द कर दी गई। उसकी लाश से लपटें उठ रही थी। शमा की लाश फूँक कर सभी लोग वापिस चल दिए परन्तु रोहित काफी देर तक वहीँ बैठा हुआ शमा की चिता को देखता रहा जो अब जल कर राख हो रही थी। अंत में वह भी उठ कर चल पड़ा परन्तु वह बार-बार मुड़-मुड़ कर शमा की चिता को देख रहा था। शमा तो उससे इतनी दूर चली गई थी कि अब वापस नहीं आ सकती थी।

रोहित एक अज्ञान दिशा की ओर रोता हुआ असामान्यों की भाँति बढ़ता जा रहा था और शमा की चिता उसकी आँखों से ओझल हो चुकी थी।....

द्वारा

मुकेश सक्सैना 'अमित'

(पुरानी विजय नगर कॉलोनी,

आगरा, उत्तर प्रदेश – 282004)

वर्ष 1982 में लिखी गई एक कहानी