kahani me tathy aur kalatmak santulan in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | कहानियों में कथ्य और कलात्मक संतुलन

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कहानियों में कथ्य और कलात्मक संतुलन

कहानियों में कथ्य और कलात्मक संतुलन

प्रश्नोत्तर- महावीर अग्रवाल कीं रामगोपाल भावुक से वार्ता-

1 महावीर अग्रवाल- अब तक छपी कहानियों में कौन सी कहानी आपको अधिक प्रिय है और क्यों

रामगोपाल भावुक - अभी तक देश-विदेश की अनेक पत्र पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित होती रहीं हैं। उनमें ग्वालियर से निकलने वाले स्वदेश के रविवारीय अंक में रत्नावली पर एक कहानी प्रकाशित हुई थी। कुछ ही दिनों में वह रत्नावली उपन्यास का रूप धारण कर गई। उस कहानी पर मप्र तुलसी अकादमी भोपाल के सचिव डॉ भगवान स्वरूप शमा‘चैतन्य’ मेरे दर पर पधारे और मुझ से उस कहानी को अकादमी की पत्रिका में प्रकाशित करने के लिये माँगने लगे। मैंने कहा- ‘वह कहानी तो उपन्यास के रूप में बदल गई है।’

वे बोले-‘ ‘उसे ही दीजिए।’

मैंने वह रत्नावली उपन्यास उन्हें दे दिया। जिसे उन्होंने 1998 ई में म. प्र. तुलसी अकादमी भोपाल से प्रकाशित किया था।

2. महावीर अग्रवाल- अच्छा यह बताइये, आपकी पहली कहानी कब और किस पत्रिका में छपी?

रामगोपाल भावुक -मेरा पहला नाटक दहेज ‘सौम्या मंजरी’ सापताहिक पत्रिका में वर्ष 1979ई प्रकाशित हुआ था। उसके बाद में कहानी की ओर मुड़ा। मेरी पहली कहानी ‘हड़ताल’ स्वदेश की साप्ताहिक पत्रिका में 31.01.1982 में प्रकाशित हुई।

3 महावीर अग्रवाल- आप कहानियाँ क्यों लिखते हैं?

रामगोपाल भावुक -समाज में जो विसंगतियाँ देखता हूँ, उनसे व्यथित होकर कहानी लिख जाती हैं।

4 महावीर अग्रवाल-कहानियों में कथ्य और कलात्मक संतुलन की कोई सीमा तय होनी चाहिए या कहानी कथ्य प्रधान होना चहिए?

रामगोपाल भावुक -कहानी में कथ्य के साथ कलात्मकता नहीं होगी तो वह सपाट कथन बनकर रह जायेगा। इसकी सीमा तो लेखक के विवेक पर निर्भर होगी।

5 महावीर अग्रवाल- कहानी की भाषा कें सम्बन्ध में अपने विचार बताइए?

रामगोपाल भावुक - कहानी हिन्दी भाषा के मानकों को स्पर्श करते हुए जन सारधारण की भाषा में लिखी जानी चाहिए, जिससे कहानी जिनके लिए लिखी गई है उन तक पहुँच सके। बैसे हर कहानी की कहन एवं भाषा अपनी होती है।

6 महावीर अग्रवाल- क्या लेखन के कारण आपको व्यक्तिगत जीवन में कभी संधर्ष का सामना करना पड़ा? कोई अविस्मरणीय घटना?

रामगोपाल भावुक - बात सन् 1972 ई0 की है। उन दिनों मैं डाकू समस्या पर ‘बागी आत्मा’ उपन्यास लिख चुका था। आत्मसमर्पित बागी नाथूसिंह ग्वालियर जेल में थे। उनके परिवार के लोग मेरे गाँव में रहने के लिये आ गये थे। मुझे उनके जीवन पर कुछ लिखने की इच्छा हुई। मैं अपने मित्र वेदराम प्रजापति के साथ बागी आत्मा की पाण्डुलिपि को लेकर जेल में गया था। जेल में प्रवेश के बाद एक नीम के पेड़ की छाया में कुछ आत्म समर्पित बागी बैठे थे। हम बहाँ पहुँच गये। संयोग से मैंने मास्टर माधोसिंह से नाथू सिंह के वारे में पूछा तो उनसे मेरा परिचय हो गया। वे बोले- क्या लिखते हो?मैंने बागी-आत्मा की पाण्डुलिपि को उनकी ओर बढ़ा दिया। वे उसे लेते हुये बोले-‘ आप नाथूसिंह जी से मिल कर लौट आयें, तब तक मैं इसे देख लूँ। मैने देखा वे उसे पढ़ने बैठ गये थे। हम दोनों मित्र नाथू सिंह से मिलकर एक धन्टे वाद लौटे। वे वहीं बैठे उसे पढ़ रहे थे। मुझे देखते ही बोले-‘ अभी एक हजार व्याने के लिये जाओ। तुम मेरे नाम से लिखो। तुम्हारे क्षेत्र की राजनीति आपके अनुसार चलेगी। यह मेरा जुम्मा रहा। तुम्हारें पास पैसे की कमी नहीं रहेगी। आपके विचार देश-विदेश में पहुँचेगें ही। उनपर नाम मेरा होगा। सोच लें। मैंने वह पाण्डुलिपि उनके हाथ से लेते हुये कहा-‘ मैं सोंचकर बतलाता हूँ।’ उसके बाद वे अपने साथियें के साथ मुझे जेल के गेट तक छोड़ने आये थे। उनकें साथी मुझे इस काम के लिये मुझे प्ररित करते रहे। मैं चुपचाप विचार करने का बहाना लेकर चला आया था। आज सोचता हूँ, उन दिनों मुझे पैसे की बहुत जरूरत थी। जवान बहिन विवाह के लिये थी। उसके बाद भी मैं विका नहीं, इस बात का मुझे गर्व है।

7 महावीर अग्रवाल- आप किन कथाकारों से अधिक प्रभावित रहे हैं?

रामगोपाल भावुक - मुझे मुंशी प्रेमचन्द एवं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने अधिक प्रभावित किया है।

8 महावीर अग्रवाल-नये कहानीकारों की कुछ उल्लेखनीय कहानियों के साथ कथाकारों के नाम भी बताइये अपनी दृष्टि से।

रामगोपाल भावुक - मैं अपने अध्ययनकाल में ही उपन्यास लिखने की सोचने लगा था। क्षेत्र की डाकू समस्या ने लिखना शुरू करा दिया। राजनाराण बोहरे की कहानी मुखबिर,गोस्टा, गवाही एवं ए0 असफल की कहानी ‘अंत अच्छा है, ‘दूसरी पारी’ ने उनके निकट पहुँचा दिया है।

9 महावीर अग्रवाल-क्या रचनाकार के लिए वैचारिक प्रतिबद्धता का होना आप जरूरी मानते हैं? यदि हाँ तो क्यों?

रामगोपाल भावुक - आज देश में जातिवादी एवं सम्प्रदायिक समस्यायें चरम पर हैं। इनसे कैसे निजात मिले? बस यही वैचारिक प्रतिबद्धता मुझे लिखने के लिये प्रेरित करती रही है।

10 महावीर अग्रवाल-कहानी के साथ- साथ किस विधा (नाटक, उपन्यास, कविता) में लिखना आपको अच्छा लगता है?

रामगोपाल भावुक- मेरा लेखन उपन्यास, से शुरू हुआ है। ‘बागी-आत्मा’ उपन्यास सबसे पहले लिख गया। कहानी उसके पीछे- पीछे चलती रही है। नाटक, कविता एवं आलेखों पर भी कलम चली है।

11 महावीर अग्रवाल-रूस और फ्रांस की क्रन्ति के समान ही आज की बदलती हुई परिस्थितियों में लेखन द्वारा सामाजिक, वैचारिक और क्रन्तिकारी परिवर्तन सम्भव है?

रामगोपाल भावुक -हम मानवीय संवेदनाओं को प्रभावित करने के लिए लिखते हैं। जो रचना यह नहीं कर सकती, समझ नहीं आता फिर लिखा ही क्यों जा रहा है?

12 महावीर अग्रवाल-रचना के लिए सामाजिक दायित्व का बोध बहुत जरूरी माना जाता है। साम्प्रदायिक दंगों की इस आग को बुझाने में लेखक को अपनी भूमिका किस रूप में अदा करना चाहिए?

रामगोपाल भावुक - हमें साम्प्रदायिक दंगों की आग को ही बुझाने के लिये नहीं बल्कि जातिवादी विद्वेष को हल करने के लिये भी देश हित में भावात्मक कलम चलानी चाहिए। जिससे हमारी एकता सुदृढ हो।

13 महावीर अग्रवाल-कहानी की आलोचना पर अपने विचार बताइए?

रामगोपाल भावुक - आज बाजारबाद का अन्धड चल रहा है। इसमें कहानी का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है लेकिन समस्या से हमे ही निपटना पड़ेगा। धन्यवाद

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पुस्तक : कथायन

सम्पादन : महावीर अग्रवाल

पृष्ठ : 192

मूल्य : - 100-

प्रकाशक : श्री प्रकाशन A-14 Durg

पता- रामगोपाल भावुक

कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

मो 0 -09425717707

सम्पर्क-रामगोपाल भावुक

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