Sholagarh @ 34 Kilometer - 30 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 30

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 30

डायरी


बख्तावर खान की हवेली शहर के पास के एक कस्बे संदलगढ़ में थी। संदलगढ़ का पुराना नाम चंदनगढ़ था। अंग्रेजों ने जिस तरह से तमाम जगहों के नाम अपने विशेष उच्चारण की वजह से बदल दिए थे, वैसे ही इस जगह को भी उन्होंने चंदनगढ़ से सैंडलगढ़ कर दिया। बाद में लोगों ने अपने उच्चारण के मुताबिक उसे संदलगढ़ कर दिया। इस इलाके में कदम रखने पर ऐसा लगता था, जैसे स्वर्ग में आ गए हों।

बड़ा शांत इलाका था। 25 किलोमीटर के इलाके में चंदन के जंगल फैले हुए थे। जंगल के पश्चिम की तरफ एक कुदरती झील भी थी। झील इस तरह की बनवाट की थी कि नदी होने का एहसास कराती थी। उत्तर की तरफ मिट्टी के ऊंचे पहाड़ बने हुए थे, उन पर भी ऊंचे-ऊंचे पेड़ उगे हुए थे। इसकी वजह से बारिश के बाद निचले इलाकों में पानी के चश्मे यानी सोते फूट पड़ते थे। उनमें से मिठास लिए खुश्बूदार पानी बहता था।

जंगल की मिल्कियत पुश्तैनी तौर पर बख्तावर खान के पास थी। कभी अंग्रेजों ने उनके परदादा को इसकी रियासत दी थी। बख्तावर खान को इस जंगल से बहुत प्यार था। टिंबर माफिया से चंदन के पेड़ों को बचाने के लिए उन्होंने बाहरी इलाके में हर पांच किलोमीटर पर ऊंचे टॉवर बना रखे थे। वहां से गार्ड 24 घंटे निगरानी करते थे। जंगल के एक हिस्से में आबादी थी। उसी आबादी के बीच में बख्तावर खान की बड़ी सी हवेली थी।

हाशना ने इंस्पेक्टर कुमार सोहराब की अपने दादा से मुलाकात कराई और बहाना बनाकर वहां से खिसक ली। वह नहीं चाहती थी कि इस दौरान वह वहां मौजूद रहे।

बख्तावार ने सोहराब का बड़ी खुशदिली से स्वागत किया। वह 78 साल का एक नौजवान था। यकीनन नौजवान ही था। कद-काठी ही नहीं चेहरे-मोहरे से भी वह कहीं से भी बूढ़ा नजर नहीं आता था। उसने सोहराब से जब हाथ मिलाया तो उसके हाथों की मजबूत पकड़ से सोहराब को भी इसका अंदाजा हो गया था।

बख्तावर खान का रंग सफेद-लाल सा था। बड़े से लंबोतरे चेहरे पर घनी मूंछे उस पर फबती थीं। सर पर घने घुंघराले बाल थे। सफेद हो चले बालों पर अगर उसने खिजाब लगा लिया होता तो जानना मुश्किल होता कि उसकी उम्र क्या है। वह इस उम्र में भी गजब का चुस्त-दुरुस्त था।

बख्तावर खान ने उसे बड़ी सी बैठक में ले जाकर बैठा दिया। पुराने तौर-तरीके की बैठक थी। दीवारें काफी मोटी और छत आज के मुकाबले दोगुनी ऊंची। ऊंची दीवारों पर रोशनदान लगे हुए थे। दीवारों के बीच में बड़ी-बड़ी खिड़कियां थीं। इसकी वजह से बिना बल्ब के भी बैठक में खूब रोशनी थी। दीवारों पर पेड़ों की खूबसूरत डिजाइन वाले पर्दे पड़े हुए थे। दीवार के एक तरफ बख्तावर के बुजुर्गों की बड़ी-बड़ी सी पेंटिंग लगी हुई थीं। दूसरी तरफ बारहसिंघे की कई सारी सींगें जड़ी हुई थीं।

“भाई मैंने तुम्हारी बड़ी तारीफें सुन रखी हैं। माशाअल्लाह तुम अब काफी बड़े हो गए हो। मैंने तुम्हें बचपन में देखा था।” बख्तावर खान ने सोहराब को एक खूबसूरत सोफे पर बैठाते हुए कहा।

कुमार सोहराब ने बख्तावर की तरफ आश्चर्य भरी नजरों से देखा। बख्तावर खान उसका मतलब समझ गया। उसने कहा, “तुम मुझे नहीं पहचानते होगे। दरअसल तुम्हारे दादा कुमार महताब मेरे जिगरी दोस्त थे। यूं तो वह उम्र में मुझसे बड़े थे, लेकिन हम में गजब की यारी थी। मेरी तरह उन्हें भी शिकार और घूमने का बड़ा शौक था। जंगल में ही डेरा होता था। हम महीनों जंगल में ही रहते थे। वहीं शिकार होता था और वहीं खाना-सोना। अब तो बस किस्से बचे हैं।”

“बारहसिंघे की यह सींघे उसी दौर की निशानी हैं शायद!” सोहराब ने पूछा।

“मैं काफी दिनों से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।” बख्तावर ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा।

“जी मैं काफी पहले आ जाता, लेकिन थोड़ा व्यस्त रहा इधर।” सोहराब ने जवाब दिया।

“बेटे, तुम उम्र में मुझसे काफी छोटे हो। लिहाज तुमसे कुछ कहते नहीं बन रहा है, लेकिन मजबूरन कहना पड़ेगा।” बख्तावर खान ने सोहराब की तरफ देखते हुए कहा।

“जी आप खुल कर अपनी बात कह सकते हैं। मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि यह बातें मेरे और आपके बीच ही रहेंगी हमेशा।”

इसके बाद बख्तावर ने पेरिस में मॉडल से शादी और उसकी न्यूड पेंटिंग के बारे में वह सभी बातें दोहरा दीं, जो हाशना ने सोहराब को बताई थीं। बख्तावर ने कुछ ऐसी बातें भी कहीं, जिन्हें सुन कर सोहराब चौंक पड़ा। इसके बाद बख्तावर ने कहा, “बेटा! मैं चाहता हूं कि तुम वह पेंटिंग तलाश करो, लेकिन इस बात का किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए।”

“मैं फिर आपसे वादा करता हूं कि यह बात किसी को भी पता नहीं चलेगी।” सोहराब ने कहा, “पेंटिंग के साथ और क्या चोरी हुआ है?”

“यही तो ताज्जुब की बात है कि पेंटिंग के सिवा कुछ भी चोरी नहीं हुआ है।”

“क्या मैं वह जगह देख सकता हूं, जहां से पेंटिंग चोरी हुई है?”

“मैं चाबी लेकर आता हूं।” बख्तावर खान ने कहा और उठ गया।

कुछ देर बाद बख्तावर खान चाबी लेकर लौट आया और सोहराब को लेकर वह हवेली के पीछे वाले हिस्से में चला गया। एक दरवाजे के सामने पहुंचकर वह रुक गया। उसने बड़े से दरवाजे का ताला खोल दिया। उसके पीछे सोहराब भी वहां दाखिल हो गया। यह एक बड़ा सा हाल था। यहां चारों तरफ खूबसूरत पेंटिंग लगी हुई थीं। हाल के बीच में एक बड़ी सी मेज और सोफा पड़ा हुआ था।

हाल के एक तरफ एक दरवाजा नजर आ रहा था। बूढ़े ने उसका दरवाजा खोल दिया। यह इस बड़े से हाल से सटा एक छोटा सा हाल था। यहां एक तरफ एक बक्सा रखा हुआ था। बूढ़े ने बक्से का ताला खोल दिया। बक्से में भी कुछ पेंटिंग रखी हुई थीं।

“क्या यहां हमेशा ऐसे ही ताले लगे रहते हैं।” सोहराब ने पूछा।

“नहीं पेंटिंग चोरी होने के बाद ताला लगाया गया है।” बख्तावर खान ने जवाब दिया।

सोहराब को हाशना यह बता चुकी थी कि पेंटिंग उसने ही विक्रम को दी थी। इसके बावजूद उसने मैग्नीफाइंग ग्लास निकाल लिया और हाथों पर दस्ताने चढ़ाकर जांच करने की एक्टिंग करने लगा।

“मैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूं। तुम्हें बिना चाय-पानी कराए सीधे यहां ले आया।” बख्तावर खान ने चौंकते हुए कहा, “तुम बेटा मसला हल करो मैं नाश्ते का इंतजाम कराता हूं।”

उसके जाने के बाद कुमार सोहराब ने बक्से को उलट-पुलट डाला। उसे उस डायरी की तलाश थी, जिसका जिक्र हाशना ने किया था। आखिरकार उसे वह डायरी एक कोने में मिल गई। सोहराब ने डायरी निकाल ली और उसे तेजी से पढ़ने लगा। सोहराब कुछ लाइनें पढ़ने के बाद आगे बढ़ जाता था, क्योंकि वह बातें उसके काम की नहीं होती थीं।

पन्ने पलटते-पलटते एक जगह वह रुक गया। वहां पेरिस की उस मॉडल से मुलाकात, शादी और अलग होने का जिक्र था। यह पूरा किस्सा कई पन्नों में फैला हुआ था। सोहराब ने मोबाइल निकालकर तेजी से उन पन्नों को स्कैन करना शुरू कर दिया। जल्द ही वह इस काम से फारिग हो गया और उसने डायरी को उसी तरह से रख दिया। तभी उसे कदमों की आहट सुनाई दी।

“हां बेटे! किस नतीजे पर पहुंचे।” बख्तावर खान ने आते ही पूछा।

“खान साहब! मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आपकी गायब पेंटिंग मैं आप तक पहुंचा सकूं।”

बख्तावर खान ने बक्से में ताला लगा दिया और फिर दोनों हाल से बाहर आ गए। इसके बाद उसने दरवाजे में भी ताला लगा दिया। इसके बाद बख्तावर खान ने बहुत मुहब्बत से सोहराब को नाश्ता कराया, हालांकि सोहराब को नाश्ते की एकदम ख्वाहिश नहीं थी।

इंस्पेक्टर सोहराब शाम को संदलगढ़ से वापस आ गया। आते ही वह सीधा कोतवाली पहुंचा था। उसने मनीष से विक्रम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट तलब की। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने सोहराब के शक को सही ठहराया था। विक्रम ने नींद की ज्यादा गोलियां खाकर खुदकुशी की थी।


नकाबपोश


रात के एक बजे थे। शेयाली के बंगले को सील कर दिया गया था। गेट के बाहर एक सब इंस्पेक्टर की अगुवाई में चार कांस्टेबल रखवाली में तैनात थे। तभी एक नकाबपोश पीछे की चहारदीवारी पर चढ़ने के बाद बड़े आराम से अंदर कूद गया। उसने रबर के जूते पहन रखे थे, इसलिए जूतों की धमक ज्यादा पैदा नहीं हुई। इसके बाद वह पाइप के सहारे ऊपर चढ़ता चला गया और पीछे की बालकनी में पहुंच गया। वहां उसे एक खिड़की खुली हुई मिल गई और वह बड़ी आसानी से अंदर दाखिल हो गया।

अंदर जाने के बाद उसने टार्च जला ली। टार्च की रोशनी किसी बारीक लकीर जैसी थी जो एक प्वाइंट की शक्ल में चीजों पर रेंग रही थी। नकाबपोश बड़े इत्मीनान में था। वह कमरे के हर सामान की तलाशी लेने लगा। इसके बाद उसने अलमारी खोल ली। वहां भी उसने पूरी तसल्ली से तलाशी ली।

वहां से निकलने के बाद वह दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गया। उसने हैंडल घुमाकर दरवाजा खोलने की कोशिश की। कमरा लॉक था। यह शेयाली का कमरा था। नकाबपोश ने जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला और कुछ मशक्कत के बाद ताला खुल गया। वह कमरे में दाखिल हो गया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

*** * ***


विक्रम ने खुदकुशी क्यों की थी?
क्या विक्रम की मौत के पीछे हाशना का हाथ था?
पीले रंग का बाल किसका था?
वह नकाबपोश कौन था?

इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...