Adhura Milan in Hindi Love Stories by Mukesh Saxena books and stories PDF | अधूरा मिलन

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अधूरा मिलन

अधूरा मिलन

कॉलेज की छुट्टियों में रश्मि ने इस बार भी घूमने का प्रोग्राम गाँव सुजानपुर का बनाया। हर बार वह अपने घूमने का प्रोग्राम नए-नए शहरों का बनाया करती थी परन्तु इस बार उसकी गाँव घूमने की बड़ी इच्छा थी अतः रश्मि ने कार से सुजानपुर जाने का प्रोग्राम पक्का कर लिया जिसके लिए उसके पिता ने भी स्वीकृति दे दी। और आज वह कार द्वारा अपनी सहेलियों के साथ गाँव सुजानपुर के लिए रवाना भी हो गई। ड्राइवर कार ड्राइव कर रहा था। रश्मि अपनी सहेलियों के साथ गाँव की इस यात्रा का भरपूर आनंद उठा रही थी। कार ने जैसे ही गाँव सुजानपुर में प्रवेश किया तो रश्मि तथा उसकी सहेलियाँ गाँव का जायज़ा लेने लगी। चारों ओर हरियाली और मनमोहक हवाओं का दृश्य दिखाई दे रहा था। सरसों के लहराते खेत तथा नाना प्रकार के वृक्ष थे। एक ओर झरना बह रहा था जिस पर गाँव की लड़कियाँ साथ-साथ नहा रही थी। उनकी कार धीरे-धीरे आबादी के निकट पहुँचती जा रही थी। रश्मि तथा उसकी सहेलियाँ गाँव के इस मनमोहक दृश्य का भरपूर आनंद उठा रही थी। तभी एकाएक कार को एक ज़बरदस्त झटका लगा और इस झटके के साथ ही कार एक ओर झुक कर अपने स्थान पर खड़ी हो गई। झटके के कारण सभी लड़कियाँ एक दूसरे पर गिर पड़ी। ड्राइवर ने कार से उतर कर देखा कि कार का आगे का पहिया एक गहरे गड्ढे में था और उसके बराबर ही एक गहरी खाई थी। उस दृश्य को देखकर तो एक बारगी सभी सहम गए। यदि कार उस खाई में गिर गई होती तो अब तक कार की धज्जियाँ उड़ गई होती। ड्राइवर ने कार को गड्ढे से निकालने का काफी प्रयत्न किया परन्तु निराशा ही हाथ लगी। सभी लोग चिन्तित से खड़े गाँव की ओर टकटकी बाँधें अपनी सहायता के लिए किसी के आने का इंतज़ार कर रहे थे कि तभी एक ओर से उस गाँव गोपाल नाम का हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति आ निकला। ड्राइवर ने हाथ के इशारे से उसे अपने पास बुलाया और सारी परिस्तिथि बताते हुए उसे अपनी सहायता करने के लिए कहा। गोपाल तुरन्त राज़ी हो गया। ड्राइवर और गोपाल के प्रयास से कार तुरंत गड्ढे से बाहर आ गई। कार का गड्ढे से निकलना था कि तभी रश्मि का पैर फिसल गया। यदि गोपाल उसे संभाल न लेता तो अब तक रश्मि उस गहरी खाई में गिर गई होती। अभी तक वह गोपाल की ही बाँहों में झूल रही थी। थोड़ी देर बाद जब वह संभल कर गोपाल से अलग खड़ी हुई तो उसकी आँखें लज़्ज़ा स्वरुप झुकी हुई थी। जब गोपाल ने उनसे जाने की अनुमति माँगी तो सभी लोगों ने गोपाल का शुक्रिया अदा किया। गोपाल एक ओर चला गया परन्तु अभी तक रश्मि, उसकी सहेलियाँ तथा ड्राइवर उसे अपलक निहार रहे थे। जब गोपाल उनकी आँखों से ओझल हो गया तब सभी लोग कार में आकर बैठ गए। कार आगे चल दी परन्तु अभी तक सभी लोग शांत थे। कार गाँव के एक टूटे-फूटे गेस्ट हाउस के सामने जाकर रुक गई। ड्राइवर ने कार का हॉर्न बजाया परन्तु गेस्ट हाउस के बाहर सोया चौकीदार जब नहीं जागा तो ड्राइवर लगातार हॉर्न बजाने लगा। कार का तेज हॉर्न चौकीदार के कान में पड़ते ही चौकीदार हड़बड़ा कर उठ बैठा और बड़े अचम्भे से कार की ओर देखने लगा क्योंकि बहुत दिनों बाद आज किसी ने गेस्ट हाउस के श्मशानी सन्नाटे को तोड़ डाला था। चौकीदार ने जल्दी से गेस्ट हाउस के दरवाज़े खोले और कार से सामान निकाल कर अंदर पहुँचाने लगा। यहाँ आकर सभी लड़कियाँ आपस में बातों का क्रम बनाएं हुयी थी परन्तु रश्मि अभी भी गुमसुम थी। उसे रह रह कर वही घटना याद आ रही थी। रश्मि तथा उसकी सहेलियों को गेस्ट हाउस छोड़कर ड्राइवर ने रश्मि से जाने की इजाज़त मांगी और कार को वापस ले गया। गेस्ट हाउस के चौकीदार ने सभी लोगों से खाने की पूछा और बाज़ार से खाने का सामान लेने चला गया। अभी रश्मि और उसकी सहेलियाँ आराम करने बैठी ही थी कि कहीं दूर से आता हुआ बाँसुरी का स्वर उनके कानों में पड़ा। बांसुरी के उस स्वर को वह समझ तो नहीं पा रही थी परन्तु उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उनका दिल उस बाँसुरी के स्वर की ओर खिंचा जा रहा हो। वह बाँसुरी के उस स्वर में पूरी तरह से डूब गई। उनमें बाँसुरी तक पहुँचने की व्याकुलता पैदा हो गई। अचानक बाँसुरी का स्वर टूट गया। कुछ समय तक तो वह मंत्रमुग्ध सी बैठी रही। तभी चौकीदार ने आकर उनकी तन्द्रा को भंग किया। कुछ समय तक तो उन्हें ऐसा लगा कि जैसे वह अपने होश-हवास खो बैठीं हों और चौकीदार ने उन्हें आकर जगाया हो।

चौकीदार ने कहा, "मेमसाहब, खाना आप अभी लेंगी?"

परन्तु रश्मि ने चौकीदार की बात का जबाव दिए बिना कहा, "तुम्हारा नाम क्या है?"

चौकीदार ने जबाव दिया, "जी, राधेलाल।"

सुनो राधेलाल, तुम्हारें गाँव में बाँसुरी कौन बजाता है?

मेमसाहब वो हमारे गाँव का गोपाल है ना, वह बहुत अच्छी बाँसुरी बजाता है और मेमसाहब वह मेरा दोस्त है।

राधेलाल क्या तुम अपने दोस्त को बुला सकते हो? जी मेमसाहब, अभी बुला कर लाता हूँ।

यह कह कर राधे गोपाल को बुलाने उसके घर चल दिया परन्तु गोपाल उसे रास्ते में आता हुआ ही मिल गया। उसने गोपाल को आवाज़ दी। जब गोपाल उसके पास आ गया तो राधे बोला, "गोपाल, यार तू मेरे साथ थोड़ी देर के लिए चल।"

गोपाल ने पूछा, "कहाँ?"

राधे ने कहा, "आज गेस्ट हाउस में एक मेमसाहब आकर ठहरी हैं। उन्होंने तुझे बुलाया है।"

गोपाल बोला, "क्यों?" परन्तु राधे उससे यही कहता रहा तू चल तो सही। राधे ने गोपाल को रश्मि के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया और बोलने ही वाला था, "मेमसाहब यह आ गया गोपाल।" कि तभी गोपाल रश्मि को देखकर बोला आ....आ....आप मेमसाहब।

रश्मि ने कहा, "मेरा नाम मेमसाहब नहीं 'रश्मि' है। मैं यहाँ घूमने के लिए आई थी। वह जो अभी बांसुरी की आवाज़ आ रही थी, वह तुम बजा रहे थे?"

जी थोड़ी थोड़ी बजा लेता हूँ।

यहाँ बजा सकते हो?

गोपाल ने कहा, "जी हाँ। यदि आप कहें तो।" (आज गोपाल रश्मि को देखकर बड़ा प्रसन्न था।)

गोपाल ने बाँसुरी बजाना शुरू कर दिया। रश्मि और उसकी सहेलियाँ बांसुरी में इतना खो गई कि उन्हें इस बात का आभास तक नहीं हुआ कि कब गोपाल ने बाँसुरी बजानी बंद कर दी।

गोपाल ने पूछा, "क्या आपको पसंद नहीं आई बांसुरी, मेमसाहब?" तब रश्मि और उसकी सहेलियों ने चौंक कर तालियाँ बजाना शुरू किया।

घर से निकले हुए गोपाल को अब काफी समय हो गया था इसलिए उसने उन सब से यह कहकर जाने की इजाज़त मांगी कि उसकी माँ उसका इंतज़ार कर रही होंगी। परन्तु जाने से पहले रश्मि ने दूसरे दिन आने का वादा ले लिया।

इसी तरह दिन बीतते रहे। रोज़ाना रश्मि को बाँसुरी सुनाने आता तथा वह हर तरह से रश्मि का ख्याल रखने लगा था। इतने दिनों में वह आपस में पूरी तरह से खुल गए थे तथा दोनों ने एक दूसरे का नाम लेना शुरू कर दिया था और इस प्रकार उनकी निकटता बढ़ती ही जा रही थी। वह दोनों एक दूसरे के इतना समीप आ गए थे कि वह एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे। दोनों को एक दूसरे के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता था। रश्मि तो गोपाल की बाँसुरी में रम कर ही रह गई थी। उन दोनों ने जल्दी ही एक होने का फैसला भी कर लिया था।

धीरे-धीरे रश्मि की छुट्टियाँ समाप्त होती जा रही थी और उनके बिछड़ने का समय भी नज़दीक आ रहा था। यही सोचकर दोनों गुमसुम रहने लगे थे।

आज वह दिन भी आ गया जब कि रश्मि की छुट्टियाँ समाप्त हो गई और उसे अपने शहर को वापस जाना था। ड्राइवर भी कार ले आया था। दोनों को बिछड़ने का काफी गम था। लेकिन वह कर भी क्या सकते थे। जाने से पहले रश्मि ने गोपाल को बम्बई में अपने फ्लैट का पता दे दिया तथा उससे यह भी कहा कि वह घर पहुँच कर जल्दी ही अपने पिता से इस बारे में बात करके उसे पत्र लिखेगी। यह कह कर रश्मि ने गोपाल, राधे तथा गाँव सुजानपुर से विदा ली। रश्मि तथा उसकी सहेलियाँ कार में बैठ चुकी थीं। सभी लोगों की आँखें आंसुओं से भीगी हुई थी।

कार जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी रश्मि तथा गोपाल को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह हमेशा के लिए बिछड़ रहे हों। कार की गति से फासला धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा था। घर पहुँचने के दो तीन दिन बाद जब रश्मि ने गोपाल के साथ अपने विवाह की बात पिता को बताई तो सारी परिस्तिथि को जानकार उसके पिता ने विवाह के लिए इंकार कर दिया। जब काफी कहने का भी पिता के ऊपर कुछ असर नहीं हुआ तो रश्मि गुमसुम रहने लगी और निराश होकर एक दिन उसने अपना घर छोड़ दिया। इस बीच गोपाल ने कई पत्र रश्मि के पास डाले किन्तु एक भी पत्र का उत्तर न मिलने पर गोपाल निराश मन से बम्बई के लिए रवाना हो गया। परन्तु रश्मि के घर पहुँच कर उसे पता चला कि रश्मि काफी दिन पूर्व घर छोड़ कर न जाने कहाँ चली गई है। रश्मि की काफी खोज की गई परन्तु रश्मि का कहीं भी पता नहीं चला।

गोपाल यह सब सुनकर इतना स्तब्ध हुआ कि पागल प्रेमियों की भाँति रश्मि को दर-दर ढूंढता फिर रहा है। परन्तु आज तक रश्मि का कहीं भी पता नहीं है। यह कोई नहीं जान सका कि उनका वो अधूरा मिलन कभी पूरा हुआ भी होगा या नहीं। कौन जाने ईश्वर ने उन दोनों के भाग्य में एक अधूरा मिलन ही लिखा हो।....

द्वारा

मुकेश सक्सैना 'अमित'

(पुरानी विजय नगर कॉलोनी,

आगरा, उत्तर प्रदेश – 282004)

वर्ष 1982 में लिखी गई एक कहानी