Pagal - 1 in Hindi Moral Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | पागल - 1

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पागल - 1

लेखक : ब्रजमोहन शर्मा

( वह l लगातार स्वयं से बातें करते हुए अपने तीन मंजिले मकान में बड़ी फुर्ती से ऊपर नीचे चढ़ता उतरता रहता I

वह अपने रास्ते में आने वाली हर सजीव व निर्जीव वस्तु से इशारे करके उसकी खैरियत पूछता रहता I

कुए में दिखाई देने वाला उसका हमशकल उसका बड़ा गहरा मित्र था I वह उस हमसाये से बहुत देर तक न जाने क्या क्या बातें करता रहता I यदि कोई शरारती युवक उसे रोकने का प्रयास करता तो वह शोर मचाता,“ देखो भैया ये मान नहीं रहा है, यह लड़का मुझे तंग कर रहा है I “ वह तब तक जोर जोर से शोर मचाता जब तक कि उसे छोड़ नहीं दिया जाता I कुछ समय बाद उसकी पत्नि सुशीला को पढ़ाने कोई जवान शिक्षक आने लगे I सुशीला कुछ देर तक तो पढने का नाटक करती I फिर वह चारों ओर सावधानी से देखकर कमरे के दरवाजे बंद कर लेती I उधर विष्णु दरवाजे की दरारों से झांककर यह जानने का भरपूर प्रयास करता कि कमरे के अन्दर मास्टरजी द्वारा कौन सा पाठ पढाया जा रहा है I अपने प्रयास में निराश होने के बाद वह मास्टरजी व अपनी पत्नि को बाहर से अपने इशारों से शुभकामना देते हुए आगे बढ़ चलता )


समर्पण : भगवान शिव के श्री चरणों में यह पुष्प

ॐ नमः शिवाय

भूमिका :
यह निष्ठुर बनावटी समाज मानसिक रोगियों को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है I शरारती लड़के उस पर पत्थर फेंकते हैं I उसे निर्ममता से मारते हैं, उसे चिढाते हैं ;

उसके कपडे खींचते हैं I राहगीर शैतानों को रोकने के बजाय तमाशा देखते हैं I

मैने अनेकों दिल दिमाग को हिला देने वाली निष्ठुरता पूर्ण घटनाएँ स्वयं अपने आँखों से देखी है I मानसिक रोगियों की समस्याओं के लिए आम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पाठक वृन्द के सामने मानसिक रोगियों का यह सजीव चित्रण पेश कर रहा हूँ I

लेखक: ब्रजमोहन शर्मा एम्.एस.सी. बी.एड. आयुर्वेद रत्न, ज्योतिष विशेषग्य, योग, आसन, ध्यान,

एक्युप्रेशर,आयुर्वेद रत्न, ४० वर्षों का दीर्घ अनुभव

 

 


अध्याय १
(मासूम पर अत्याचार)

बचपन
नरेंद्र जब बच्चा तीन साल था तो वह बड़ा विचित्र था ।

वह सदैव अपनी माता से चिपका रहता था । कोई उससे बात करता तो वह चिढ़ जाता ।

कोई खेलते हुए उसे धीरे से छू देता तो वह उसे मारने दौड़ता ।

बच्चा समझकर सब उसे चिढ़ाते रहते किन्तु वह खेलने के बजाय उन्हे मारने दौड़ता ।

कोई गुब्बारा बेचने वाला घर के सामने से निकलता तो नरेंद्र गुब्बारे लेने की जिद करता ।

वह उस गुब्बारे वाले के पीछे दूर तक चला जाता ।

कोई पहचान का व्यक्ति उसे गोद मे उठाकर घर लाता और उसकी माता को सौपता ।

एक बार तो वह गुब्बारे वाले का पीछा करता हुआ बहुत दूर निकल गया ।

वह रास्ते व लोगों से अंजान अपनी ही धुन मे चला जा रहा था ।

उस समय उसके पापा अपने काम के सिलसिले मे बाहर गए हुए थे । माता घर के कामकाज मे व्यस्त थी ।

गुब्बारा बेचने वाला भी एक बच्चा था । बड़ी मुश्किल से एक व्यक्ति जो नरेंद्र को जानता था उसे घर लेकर आया ।

इसके घटना के बाद परेशान होकर उसकी माता उसका एक पैर खूँटे से बांध देती । नरेंद्र बहुत देर तक रो रोकर और चिल्लाते हुए माता और खूटे पर अपनी खीज निक।लता रहता । फिर नरेंद्र पर सख्त निगरानी रखी जाने लगी ।

एक बार तो वह फिर से नजर चुराकर एक बस मे चढ़ गया जो वहाँ से बहुत दूर जाने वाली थी ।

तभी ए4क युवक उसे पहचानकर घर ले आया । उसके माता पिता उस घटना के बाद बहुत भयभीत होकर उस पर नजर रखने लगे । बच्चों को एक बार बाहर जाने की आदत लगी तो वे बिना आगा पीछा सोचे नई दुनिया के खतरे की परवाह किए बिना घर से निकाल पड़ते है ।

नारेन्द्र को बाहर जाने का चस्का लग चुका था जो परिवार के लिए एक बड़ा खतरा था ।

 
मोनू बचपन से ही बहुत सीधा सादा लड़का था I

उसके सहपाठी उसे तंग करने में बहुत मजा लेते थे I

शरारती लड़कों की संख्या बहुत ज्यादा थी I अकेला मोनू उनका मुकाबला नहीं कर पाता था I

क्लास में जब सर पढ़ा रहे होते तो पीछे बैठा एक लड़का उसके सर पर जोर से मार देता I

जब मोनू पीछे मुड़ता,” किसने मारा, सर से शिकायत करूँ ?”, वह पीछे बैठे लड़कों से कहता I

एक लड़का कहता, “ हमने तुझे थोड़ी मारा “I

मोनू के पलटते ही वे फिर से उसकी पीठ पर जोर से धौल जमा देते I

मोनू ने सर से कहा, “ देखिये सर ! ये पीछे बैठे लड़के मुझे सर पर और पीठ पर मार रहे है I”

इस पर अध्यापक उन लड़कों से पूछते, “ क्यों रमेश, तूने मोनू को क्यों मारा ?”

रमेश ने तपाक से कहा, “ सर, यह मोनू ही हमें बार बार मुड़कर तंग कर रहा है I”

पास में बैठे लड़के ने उसका समर्थन करते हुए कहा, “ हाँ सर ! यह मोनू हमें तंग कर रहा है I”

इस पर सर ने मोनू को डांटते हुए खड़ा रहने की सजा दी I

ऐसी घटनाएँ अनेक बार होती रहती और शरारती लड़कों के बजाय उसे ही दण्डित किया जाता I

निराश होकर मोनू ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया I

 

मोनू बहुत दिनों से स्कूल नहीं जा रहा था I

उसकी मम्मी जब उससे स्कूल नहीं जाने का कारण पूछती तो वह स्कूल में छुट्टी होने का बहाना बना देता I इस पर एक दिन उसकी मम्मी ने उसके पापा से कहा, “ देखियेजी ! मोनू बहुत दिनों से स्कूल नहीं जा रहा है I

जब मै इससे पूछती हूँ तो यह छुट्टी होने का बहाना बना देता है I”

इस पर उसके पापा ने कहा मै आज स्कूल आकर देखता हूँ कि क्या स्कूल में छुट्टियाँ चल रही है”

उस दिन मोनू स्कूल में उपस्थित हो गया I

कुछ देर बाद शर्माजी उसकी क्लास में पहुंचे I

उन्होंने शिक्षक से पूछा, “ सर क्या पिछले कई दिनों से स्कूल में छुट्टियाँ चल रही है ?”

सर ने कहा, “ नहीं श्रीमान ! स्कूल रोज नियमित रूप से लग रहा है I आपका पुत्र ही स्कूल नहीं आ रहा हॅ I”

इस पर शर्माजी ने वहीँ पर मोनू को जोर से तमाचा जड़ दिया I

मोनू दर्द से बुरी तरह तिलमिला गया I

वह रोते हुए शरारती लड़कों की और इशारा करके कहने लगा, “ पापा वो मेरे पीछे बैठे छात्र मुझे पीछे से मारते रहते है I वे मेरे कपडे खींचते है I मेरी पुस्तक छीन लेते है I”

इस पर सर ने बीच में टोकते हुए कहा, “ मोनू तुमने मुझे इन लड़कों की शिकायत क्यों नहीं की ?”

“ मैंने आपसे दो तीन बार इनकी शिकायत की किन्तु आपने उनके बजाय मुझे ही डांटकर खड़े रहने का दंड दिया I “

यह सुनते ही शर्माजी दनदनानाते हुए प्राचार्य के कक्ष में जा पहुंचे व उन्हें सारी समस्या बतलाई I

शर्माजी उस विद्यालय में पूर्व में अध्यापक रह चुके थे I

प्राचार्य ने पहले तो शिक्षक को तलब किया फिर उन्होंने उन शैतान बच्चों की खूब मरम्मत की I

उसके बाद उन लड़कों ने मोनू को तंग करना बंद कर दिया I

मोनू उस वर्ष मिडिल परीक्षा में फ्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ I

 
अवसाद
उस दिन,

मोनू रोड पर बहुत देर से खड़ा पी. टी. की मुद्रा में हाथ पैर चला रहा था I

उसके पिता का मित्र रवि उधर से गुजरा तो उसने उत्सुकतावश मोनू से पूछा,

“ क्या कर रहा है मोनू ?”

मोनू ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया और उसे कुछ देर तक घूरता रहा I

रवि उसे पकड़कर शर्माजी के पास लाया व उनसे कहने लगा, “ शर्माजी ! संभालिये अपने लाडले को,यह रोड पर खड़ा होकर हाथ पैर चला रहा था “ I

शर्माजी ने अपने पुत्र से पूछा, “ मोनू तू सड़क पर खड़ा होकर हाथ पैर क्यों चला रहा था ?”

मोनू ने पहले तो कोई उत्तर नहीं दिया फिर अधिक पूछने पर कहने लगा, “ मुझे नहीं मालूम मै कब हाथ पैर चला रहा था ?”

मोनू को कोई होंश ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है I उसे अपने मस्तिष्क व अपने हाथ पैरों के मूवमेंट पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था I वह मानसिक रोगी हो चला था I