Atonement - 7 in Hindi Adventure Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्रायश्चित - भाग-7

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प्रायश्चित - भाग-7

आज शिवानी की हॉस्पिटल से वापसी थी। किरण की मदद
से उसकी सास ने उसके स्वागत की पूरी तैयारी कर ली थी।
रिया की उत्सुकता तो देखते ही बनती थी ।अब तक ना जाने कितनी बार किसी भी गाड़ी की आवाज सुनकर गेट तक दौड़ लगाकर वापस आ चुकी थी। जब भी वापस आती तो मुंह बनाते हुए अपनी दादी से कहती " पता नहीं पापा मम्मी, मेरे छोटे भाई को लेकर अब तक क्यों नहीं आए।"
"बस आते ही होंगे मेरी लाडो, तू उदास मत हो। तुझे उदास देखकर तेरे छोटे भाई को अच्छा नहीं लगेगा ना!"

"हां दादी ,यह तो आप सही कह रहे हो क्योंकि मम्मी कहती है, जब मैं उदास होती हूं तो मेरा चेहरा बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।"
"हां ,वही तो मैं कह रही हूं। तू खुश होगी ,तभी तो हमारा छोटा सा बाबू तुझे देखकर खुश होगा।"
दादी पोती की बातें सुनकर किरण भी मुस्कुरा रही थी।

इतनी देर में किसी गाड़ी की आवाज फिर से आई तो रिया दौड़ती हुई गेट पर गई और इस बार चहकती हुई अंदर आई और बोली "दादी, आंटी जल्दी चलो। मम्मी पापा ,मेरे भाई को लेकर आ गए।"
सुनते ही किरण व शिवानी की सासू मां आरती की थाली लेकर गेट पर पहुंचे। बहू और पोते को आरती कर, टीका लगाया और उनकी नजर उतारी।
यह देखकर रिया बोली "दादी मुझे भी टीका लगाओ।"

"हां हां लाड़ो, तुझे तो सबसे पहले लगाना चाहिए था ।देख ना तेरी दादी बूढ़ी हो गई है इसलिए भूल गई ।माफ कर दे अपनी दादी को।" कहते हुए उन्होंने रिया को टीका लगाया और उसकी आरती उतारी।
"कैसी हो दीदी आप!" किरण ने कहा।
"मैं ठीक हूं। तू सुना! "
"मैं भी सही हूं दीदी।" किरण छुटकू को प्यार करते हुए बोली।
"ले, अब इसे अपनी गोद में तो ले ले और मुझे अंदर ले चल। क्या यही खड़े-खड़े सारी बातें कर लेगी।'

"दीदी मैं इसे गोद में !!!!"

"क्यों तू इसकी मौसी नहीं है क्या! चल पकड़ इसे। बहुत शैतान हो गया है ये। हॉस्पिटल में बहुत परेशान किया इसने मुझे।"
किरण ने शिवानी की सास की और देखा तो वह प्यार से बोली "ऐसे मुझे क्यों देख रही है। मैं क्या मना करूंगी। तेरे कारण ही तो यह सही सलामत इस दुनिया में आया है। ले ले बेटा , तेरा हक बनता है।" कहते हुए उन्होंने नन्हे रियान को शिवानी की गोद से लेकर किरण को पकड़ा दिया।

उसे अपनी गोद में लेकर किरण की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे।
शिवानी के आने के बाद भी किरण उसकी सास के साथ मिलकर काम में मदद करवाती ।
शिवानी और उसकी सास उसे मना करती भी तो वह कहती
"दीदी, अम्माजी अकेले काम में लगी रहे, अच्छा लगता है क्या! काम तो बहाना है। मैं तो रिया और रियान के साथ खेलने आती हूं। इस बहाने अम्मा जी से भी कुछ सीखने को मिल जाता है। कितनी अच्छी बातें करती है ये। जैसे मेरी मां करती थी।
पता है दीदी, अपनी दोनों छोटी बहनों को मैंने ही पाला है।
मां तो काम पर चली जाती थी‌। मैं ही उनकी देखभाल करती । उनको खाना खिलाती । नहलाती और उनसे खूब बातें करती । सच में मुझे शुरू से ही बच्चों के साथ खेलना बहुत पसंद रहा है।"
"पर तू तो कह रही थी, तेरी मां सिलाई कढ़ाई करती है।" शिवानी बोली।
"हां दीदी, अब करती है। पहले जब हमारी दादी साथ रहती
थी तो वह हमें उनके पास छोड़कर, कपड़ा फैक्ट्री में जाती थी। दादी हमेशा बीमार रहती और अक्सर चारपाई पर ही लेटी रहती। इसलिए तो मैं अपनी बहनों की देखभाल करती थी। जब दादी चल बसी तो मां ने घर पर ही रहकर सिलाई कढ़ाई करनी शुरू कर दी क्योंकि वह हमें अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। हमारी बस्ती का माहौल अच्छा नहीं था ना दीदी!"
"कभी तू अपने पिता का जिक्र नहीं करती!" शिवानी ने पूछा।
" दीदी, क्या बताऊं उनके बारे में। मैंने तो सिर्फ उनकी तस्वीर देखी है। मुझे तो वह बिल्कुल याद नहीं। मां कहती थी, उनके माता-पिता ने बीमार आदमी के पल्ले उन्हें बांध दिया। हमेशा बीमार होने के कारण वह काम पर जा ही ना पाते थे। शुरू से मां ने ही परिवार की जिम्मेदारी संभाली । हम तीन बहनों को मां की गोद में डाल वह जल्दी ही चल बसे थे। बहुत दुख झेला है मेरी मां ने। अब तो दीदी आपको मेरे परिवार के बारे में सब कुछ पता चल गया‌। आप अक्सर पूछते थे ना। बड़ा ही मुश्किलों भरा दौर था वो। उसे फिर से याद कर ,मैं दुखी नहीं होना चाहती थी इसलिए आपके पूछने पर अक्सर चुप हो जाती थी।"
"ओह! मैंने तेरे जख्मों को फिर से कुरेद दिया। मैं तुझे दुखी नहीं करना चाहती थी। मुझे माफ कर दे।"

"मैं सब समझती हूं दीदी! आप कभी मेरा बुरा नहीं चाह सकती । पहली बार कोई मिला है, जिससे मैंने अपने दिल का दर्द कहा। वरना आपको पता ही है, मैं चुप रहना ही पसंद करती हूं। लोग रोकर सुनते हैं और हंस कर उड़ा देते हैं। मैंने तो अपने इतने साल के अनुभव से यही समझा है।"

"बस बिटिया ,मेरी तो भगवान से यही प्रार्थना है। तेरे जीवन में और दुख ना आए। तेरा शादीशुदा जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहे। अच्छे इंसान का भगवान भी अच्छा ही करता है बिटिया! मेरा भी यही अनुभव है!"
"पता नहीं अम्मा जी। मेरे जीवन में सुख लिखा भी है या नहीं या अपनी मां की तरह मेरी जिंदगी भी यूं ही दुखों की भेंट चढ़ जाएगी।" कहते हुए किरण के आंसू निकल आए।

"ना मेरी बच्ची मायूस मत हो। भगवान तेरी झोली जल्दी खुशियों से भरेगा। तेरे घर भी किलकारी गूंजेगी। आशीर्वाद है यह मेरा।"
"अम्मा जी, अभी ये आशीर्वाद मत दे।"

"ऐसा नहीं कहते बेटा! भगवान बुरा मान जाएगा।"

"मुझे पता है अम्माजी लेकिन आपको मेरे घर के हालात नहीं पता। दीदी को सब पता है इसलिए मैं ऐसा कह रही हूं।
आशीर्वाद देना हीं है तो इतना दीजिए कि मेरे आदमी को सद्बुद्धि आ जाए। वह काम धंधा करें। तभी तो आने वाले बच्चों का भविष्य बना सकेंगे ।वरना मेरी तरह उनका जीवन भी फांकों में गुजर जाएगा।"
"सही कह रही है मां वो। लगता है अपनी मां की तरह यह भी अपनी किस्मत में दुख ही लिखवाकर आई है । वरना इतनी सुंदर, सुशील लड़की को आदमी के वेश में जानवर जैसा आदमी मिलता । उसे इसकी कद्र ही नहीं। बात बेबात लडता ही रहता है इससे और तो और......!!!"

"रहने दीजिए दीदी! क्या फायदा बार-बार इन बातों को कहने से।"
"सही कह रही है तू। हम सब औरतों का यही हाल है। आदमी चाहे कितना भी बुरा हो। किसी के सामने फिर भी उसकी बुराई नहीं करते !"
शिवानी की सास ने किरण के सिर पर हाथ रखते हुए कहा "निराश मत हो बेटा। देखना तेरी अच्छाइयों का फल जरूर तुझे मिलेगा। सब दिन एक से नहीं होते। ऊपर वाले पर विश्वास रख।"
"उसी विश्वास के सहारे तो जी रही हूं। अच्छा चलूं दीदी!"

" अरे, बिटिया शाम की चाय तो पीकर जा।"

"मन नहीं है अम्माजी।"

"तेरा मन नहीं, हमारा तो मन है ना! तेरी हाथ की चाय पीने का।" शिवानी मुस्कुराते हुए बोली।
"हां तो मैं आपके लिए बना देती हूं।"

"हम अकेले नहीं पिएंगे। तुझे भी हमारा साथ देना होगा।" किरण कुछ नहीं बोली और चुपचाप किचन की ओर चल दी।
सबको चाय पिलाकर वह बोली " अच्छा अब तो चलूं दीदी! उनके आने का समय हो गया। अब यह मत कहना खाना खिला कर भी जा। मैं आपकी बातें खूब समझती हूं। आपके साथ रहते हुए, मुझे भी थोड़ी थोड़ी दुनियादारी आ गई है। " किरण हंसते हुए बोली

"चलो, मेरे साथ रहकर कुछ तो सीखा तुमने!" कहते हुए शिवानी मुस्कुरा दी।
"बहुत ही प्यारी व समझदार लड़की है।" शिवानी की सास
उसे जाते हुए देख कर बोली।
"हां मां, पर पता नहीं किस मजबूरी के कारण उस कसाई के पल्ले इसकी मां ने इसे बांध दिया।" शिवानी दुखी होते हुए बोली।
क्रमशः
सरोज ✍️