Bhola's Bholagiri - 9 (20 wonderful stories of Bhola for children) in Hindi Children Stories by SAMIR GANGULY books and stories PDF | भोला की भोलागिरी - 9 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

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भोला की भोलागिरी - 9 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

भोला की भोलागिरी

(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

कौन है भोला ?

भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.

उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.

भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.

भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.

और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!

और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.

तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’

... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.

कहानी - 15

भोला घर में पुलिस लाया

एक दिन भोला के घर दूर गांव से एक दूर का रिश्तेदार आया. उम्र यही कोई ४५-५०. गाल पर मस्सा. तनी हुई मूंछें. नारंगी कुर्ता, लाल पैजामा. डरावनी आवाज. भोला को ये मेहमान पसंद नहीं आया जो पहले ही दिन नाश्ते में बीस पूरियां और चार कटोरी आलू की सब्जी खा गया.

मगर चाचा-ताऊ से उसकी अच्छी बनती थी. भोला को तो वो जब देखता, बस एक ही गाना गाने लगता-भोला रे भोला, तू क्यों है इतना भोला!

और भोला चिढ़ जाता. वह मन ही मन सोचता-ये आदमी, क्यों आया है? कब जाएगा?

भोला को जाने क्यों लगा कि इस आदमी ने मुखौटा लगा रखा है. इसका असली रूप कुछ और है. ठग, लुटेरा, खूनी, आतंकवादी, अपराधी.

और वह उस दूर के रिश्तेदार पर नज़र रखने लगा. अगले दो दिन वह आदमी, जिसका नाम नटवर था, सुबह घर से निकलकर रात को लौटा. बैग भर कर सामान के साथ. फिर उसने स्टोर रूम में रखे अपने बड़े से सूटकेस में उन चीजों को भरा. और रात को खाने के समय ऐलान किया कि उसका काम हो गया है, वह कल दोपहर का भोजन करके अपने गांव लौट जाएगा.

रात को जब सब सो गए, भोला चुपके से स्टोर रूम पहुंचा. साथ लायी चाबियों से नटवर का सूटकेस खोला. और उसके अंदर की चीजें देखकर उसके होश उड़ गए. उसकी चींख निकलने वाली थी , बस किसी तरह खुद को रोका. सूटकेस बंद किया और अपने बिस्तर पर लौट आया.

**

सुबह-सवेरे पुलिस वालों को लेकर भोला घर आ पहुंचा. इंस्पेक्टर ने नटवर को घूरते और घेरते हुए कहा, ‘‘ हमें तुम्हारे सूटकेस की तलाशी लेनी है!’’

नटवर घबराया सा नजर आया. चाचा-ताऊ-बुआ सब हैरान-परेशान. सिर्फ़ भोला के चेहरे पे थी जीत की मुस्कान.

सब स्टोर रूम पहुंचे. नटवर ने सूटकेस खोला. अन्दर चार पिस्तौलें, दो सुनहरे मुकुट, कुछ हार, और कुछ नोटों की गड्‍डियां.

इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘‘ ये क्या है?’’

नटवर ने कहा, ‘‘नाटक मंडली का सामान!’’

इंस्पेक्टर: अच्छा पिस्तौल, मुकुट, हार, नोट सब कुछ!

नटवर: जी सब नकली है!

इंस्पेक्टर ने पिस्तौल, मुकुट, नोट का मुआयना किया और ठंडी सांस लेकर कहा- हां, ये सचमुच सब नकली है.

ताऊ बोला, ‘‘ इंस्पेक्टर साब ये नटवर अपने गांव का मशहूर नौटंकीबाज है,’’

और फिर सबकी नज़रें भोला की तरफ घूम गई जो अब भागने का रास्ता देख रहा था.

कहानी - 16

भोला ने जूते का सूप बनाना सीखा

उस दिन ताऊ बड़े मूड में थे. भोला से सामना हुआ तो बोले, ‘‘ भोला रे, तू स्कूल जाना कब शुरू करेगा? पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो यह दुनिया तुझे बुद्धू बनाएगी.’’

ताऊ को मूड में देखकर भोला ने पूछा, ‘‘ जो किसी को बुद्धू बनाए उसे क्या कहेंगे?’’

ताऊ ने कहा, चतुर! या अकलमंद!!

भोला ने आगे पूछा, ‘‘ तो ताऊ तुम्हें किसी ने कभी बुद्धू बनाया?’’

ताऊ ने हंसते हुए कहा, ‘‘ मैं तो कई बार बुद्धू बना हूं! वैसे मेरा बापू यानी तेरा दद्‍दू भी एक बार

‘फुद्‍दू’ बन गया था.

भोला ने भोलेपन से पूछा ‘फुद्‍दू’ क्या होता है?’’

ताऊ बोले, ‘‘ फुद्‍दू होता है पहले दर्जे का बुद्धू! यानी बुद्धू से भी बड़ा बुद्धू! और मेरा बाप खुद को बड़ा होशियार मानता था ना, इसलिए उसे फुद्‍दू बनना पड़ा.’’

भोला: वो कैसे?

ताऊ: तो सुन, बापू ने खुद सुनाई थी यह कहानी.

-एक बार सर्दी की रात दो मुसाफिरों ने हमारे घर की कुंडी खटखटाई और पूछा कि क्या वे रात चबूतरे में गुजार सकते हैं?

कंजूस बाप ने कहा, ‘‘ चारपाई पर सो सकते हो, पर खाना वाना कुछ नहीं मिलेगा.’’

उन्होंने कहा, ‘‘ कोई बात नहीं, हम जूते का शोरबा बना कर सो जाएंगे. ‘‘ बापू हैरान. जूते का शोरबा?’’

फिर उन्होंने बापू से एक पतीला मांगा. बरामदे में ही ईंट जोड़ कर एक चूल्हा जलाया. और उसमें पतीला चढ़ा दिया. जब पानी खौलने लगा, उसमें से एक बोला, ‘‘ बाबूजी थोड़ा नमक और दो मिर्चे तो दे दो.’’

बापू अंदर से नमक मिर्च ले आया. उसे हैरानी हो रही थी, जूते का शोरबा कैसे बनेगा. यह तमाशा देखने दादी भी अंतर से चली आई. थोड़ी देर बाद उनमें से एक बोला, इसमें चार आलू और दो टमाटर पड़ जाते तो जूते का शोरबा इतना स्वादिष्ट बनता कि मजा आ जाता.

तब दादी अंदर से चार आलू और दो टमाटर ले आई. उन्होंने पत्थर से आलू, टमाटर को तोड़कर पतीले में डाल दिया.

थोड़ी देर बाद एक बंदा चम्मच से पतीले में उबलते शोरबे को चखते हुए बोला, ‘‘ बस थोड़ी सी कसर रह गई है, एक मुट्‍ठी मक्की का आटा और चम्मच भर घी इसमें पड़ जाता.’’

यह सुन बापू अंदर जाकर आटा और घी ले आया. उन्होंने वह आटा और घी उसमें डाल दिया और दो मिनट बाद एक बंदा बोला-‘‘ वाह!वाह! जूते का शोरबा तैयार!’’

बापू बोला, ‘‘ तुमने जूते कहां डाले शोरबे में? ये जूते का शोरबा कहां है?’’