The gift of fortune - Surendra Mohan Pathak in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | तक़दीर का तोहफ़ा- सुरेन्द्र मोहन पाठक

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तक़दीर का तोहफ़ा- सुरेन्द्र मोहन पाठक

यूँ तो अब तक के जीवन में कई तरह की किताबें पढ़ने का मौका मिलता रहा है मगर वो कहते हैं कि वक्त से पहले और किस्मत से ज़्यादा कभी किसी को कुछ नहीं मिलता। अगर तक़दीर मेहरबान हो तो तय वक्त आने पर हमारे हाथ कोई ना कोई ऐसा तोहफ़ा लग जाता है कि मन बरबस खुश होते हुए.. पुलकित हो..मुस्कुरा पड़ता है। दोस्तों.. आज मैं बात कर रहा हूँ एक ऐसे कहानी संकलन की जो मँगवाने के बाद भी कम से कम एक साल तक मेरे द्वारा अपने पढ़े जाने की बाट जोहता रहा। मगर मुझे क्या पता था कि तक़दीर की मेहरबानी से एक तोहफ़ा अपने पढ़े जाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रहा है।

जी..हाँ..आज मैं बात कर रहा हूँ लुगदी साहित्य के बेताज बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के रहस्यमयी कहानियों के प्रथम संग्रह 'तकदीर का तोहफा' और उसमें छपी दस कहानियों की। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी अब तक 300 जासूसी/थ्रिलर उपन्यास लिख चुके हैं। इस किताब में वे बताते हैं कि उनके लेखन की शुरुआत में उन्हें घोस्ट लेखन या फिर फिलर के रूप में काम करना पड़ा। फिलर अर्थात जब किसी अन्य लेखक का उपन्यास तयशुदा पृष्ठों से कम संख्या का रह जाता था तो बाकी के पेजों को भरने के लिए इन्हें बेनामी रूप में कोई जासूसी/थ्रिलर कहानी लिखने के लिए कहा जाता था जोकि बस उतने ही पेज की होती थी जितने पेज खाली होते थे।

चलिए..अब बात करते हैं इस संग्रह की कहानियों की तो इनमें किसी कहानी में एक ऐसा शख्स नज़र आता है जिसका इस बात पर अडिग विश्वास है कि पारिवारिक से ले कर अपने पेशे तक के हर रिश्ते में वो बदकिस्मत है। बतौर मेहरबानी अपनी बदकिस्मती से मय सबूतों के वो एक ऐसे कत्ल के इल्ज़ाम में फँस जाता है जो दरअसल उसने किया ही नहीं।

टीपू सुल्तान की डायरी और उस पर रिसर्च कर रहे विद्यार्थी के कत्ल के इर्दगिर्द घूमती एक इन्वेस्टिगेटिव कहानी में क्या पुलिस असली कातिल तक पहुँच पाती है?

एक अन्य कहानी में अपनी खूबसूरत नर्स को पाने के चक्कर में एक अधेड़ डॉक्टर अपनी बीवी की हत्या के कई असफ़ल प्रयासों के बाद अंततः सफल तो हो जाता है मगर अपनी फूलप्रूफ प्लैनिंग के बावजूद क्या वो पुलिस के चंगुल में आने से बच पाता है?

भूत प्रेत के अस्तित्व जुड़ी हाँ..ना की बहस के बीच एक ऐसी कहानी का जिक्र आता है जिसमें समय के अत्यधिक पाबंद राजा साहब की मौत अचानक ठीक उसी समय हो जाती है जब उनसे तंग आ कर उनका भतीजा, जो कि उनका इकलौता वारिस भी है, उनकी मौत की दुआ माँगता है। अब सारी खोजबीन इस बात पर टिकी हुई है कि ये मौत इत्तेफ़ाक़न हुई है या फिर इसके पीछे किसी गहरी साजिश का हाथ है?

बहुत ही रोचक.. रोमांचक और कहीं कहीं रौंगटे तक खड़े कर देने की काबिलियत रखने वाली इस संकलन की धाराप्रवाह शैली में लिखी सभी इन्वेस्टिगेटिव कहानियाँ बहुत बढ़िया एवं सम्मोहित करती हैं मगर चूंकि इन्हें बहुत पहले लिखा गया था और अब टीवी और फिल्मों वगैरह में इसी तरह का रहस्य रोमांच देख चुकने से किसी किसी में मुजरिम का अंदाज़ा पहले से ही लग जाता है मगर लेखक की खूबी ये कि वे अंत तक अपने पाठकों को बाँधे रखने में सफल रहे हैं।

कुछ स्थानों पर छोटी मोटी प्रूफ रीडिंग की कमियों की वजह से मात्रात्मक त्रुटियाँ दिखाई दी जिनमें मुख्य रूप से पेज नम्बर 167 पर ध्यान जाता है जहाँ पर मुख्य किरदार ब्लैकमेलर को दस हज़ार रुपए देने में असमर्थता जताते हुए टेबल पर 2 हज़ार रुपए रख कर उन्हें ही उसे ऑफर करता है। ब्लैकमेलर के दो हज़ार रुपए लेने से साफ इनकार करने पर मुख्य किरदार अपनी असमर्थता जताते हुए जब उन्हीं पैसों को उठा कर जेब में डालने लगता है तो चमत्कारिक ढंग से वो दो हज़ार रुपए दस हज़ार में बदल जाते हैं जबकि असलियत में वहाँ पर दो हज़ार रुपए से एक रुपया भो ज़्यादा नहीं होता। दूसरी तरफ ब्लैकमेलर फिर भी दस हज़ार रुपए पर अड़ा रहता है।

237 पृष्ठीय इस बहुत ही रोचक एवं रोमांचक उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है सूरज पॉकेट बुक्स के ही इंप्रिंट Bookemist ने और इसका मूल्य रखा गया है 150/- रुपए। जो कि किताब की क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए बहुत ही जायज़ है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।