Recharge of Cholbe Na - 3 - 370 in Hindi Comedy stories by Rajeev Upadhyay books and stories PDF | चोलबे ना - 3 - 370 का रीचार्ज

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चोलबे ना - 3 - 370 का रीचार्ज

टीवी खोला ही था कि एक धमाका हुआ। एक जबरदस्त धमाका। धमाका देखकर मेरे बालमन का मयूर नाच ही उठा। जवानी के बालमन का मयूर होता ही ऐसा है। जब तक उटपटांग घटनाओं पर नाचे उसे संतोष ही नहीं होता है। विघ्नसंतोषी सा जो होता है। वैसे मयूर भी कई प्रकार के होते हैं। एक बालमन का, एक युवामन का, तो एक अधेड़मन का। ये चर्चित मयूर हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है कि वृद्धमन का नहीं होता है परन्तु बहुत ही कम वृद्धों का मयूर नृत्य करता है। खैर!

बालमन का मयूर था तो नर्तक का नौसिखिया होना तो लाजमी ही था। परन्तु नौसिखिए नर्तक के साथ सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि उसे हर काम में ‘साथी हाथ बढ़ाना’ वाले भाव में एक साथी की आवश्यकता महसूस होती है। उसको नाचने में मजा तभी आता है जब कोई साथ देने वाला हो। मेरे पास मेरे ही पिता द्वारा सुचिन्हित, सुयोग्य एवं सुव्यवस्थित पत्नी के होने का माघ महीने सा घनघोर सुख प्राप्त था। मैंने खुश होकर श्रीमती जी को आवाज लगाई,

“एक बात जानती हो?”

उनके कान फगुनहटा बयार से प्रभावित पीपल के पत्ते की तरह फड़फड़ा उठे और शोएब अख्तर के गेंद की तरह उनकी आवाज मेरे कान के हेलमेट से टकराई,

“क्या?”

मुझे लगा मैं आउट ही हो जाऊँगा। फुल लेन्थ की बॉल थी फिर भी सम्भाल लिया। वैसे भी विवाहित पुरूष एक खिलाड़ी से कम नहीं होता है। खैर। मैंने कहा,

“अरे भाई! कश्मीर से 370 खत्म हो गया।“

श्रीमती जी ने बड़े मासुमियत से पूछा, “मतलब 370 का रीचार्ज खत्म हो गया!“

वैसे पत्नी की मासुमियत और शेर की अँगड़ाई में बहुत फर्क नहीं होता। बहरहाल, मैं हैरान होकर उनकी ओर देखा। अभी अपने तरकश से संधान करने के लिए बाण निकालने ही वाला था कि आकाशवाणी की तरह उनकी आवाज मेरे ऊँचे भवन में गूँजी,

“तुम यही फालतू बात बताने के लिए खुश हुए जा रहे थे?”

मैंने मन ही मन झल्ला गया परन्तु अपने भावों को शब्दों में उच्चारित किया,

“नहीं यार! सरकार ने कश्मीर से धारा 370 हटा दिया है।“

श्रीमती जी ने कौतुहल से उत्तर दिया,

"अच्छा! वो वाला 370।“

मैं संतुष्ट भाव से हाँ कहने वाला था कि उससे पहले ही उन्होंने पूछ मारा

“और 35ए का क्या होगा?"

मुझे लगा श्रीमती को मेरी बातों में इंटरेस्ट आने लगा है तो मैंने खुश होकर कहा, "जब 370 खत्म हो गया तो वह भी खत्म हो ही जाएगा।"

कश्मीर के बर्फ की तरह चिनार के पेड़ पर चढ़कर उन्होंने तकरीर की, "अच्छी बात है लेकिन...।"

‘लेकिन’ शब्द सुनते ही मेरे भीतर का देशप्रेमी चीख उठा, "लेकिन क्या?"

श्रीमती का लेकिन मुझे अन्दर तक हिलाकर रख दिया। मुझे अपने घर में एक संभावित बुद्धिजीवी के पैदा हो जाने का डर समा गया था। उन्होंने मेरी चीख सुनकर पान की तरह चबा जाने वाली नजर से देखते हुए परन्तु बडे ठंडे अंदाज में कहा,

"यही कि मेरे कश्मीर से ना तो कुछ खत्म होगा और ना ही कुछ नया लागू होगा!"

उनके इस बयान मात्र से 370 और 35ए ने राहत की साँस ली तो बेचारी 377 और 497 ना उम्मीदी में सिर झुकाकर चलती बनीं।