अन्नदा पाटनी
सड़क के किनारे अपने सामान के साथ आरती खड़ी थी । किधर जाए, कुछ नहीं सूझ रहा था । आज अपना घर होता तो शायद यह स्थिति नहीं आती । इतने घर होते हुए भी कहने को उसका अपना एक भी घर नहीं था । वह सोचने को मजबूर हो गई ।
जन्म मिला माता पिता के घर। बहुत लाड़ प्यार से पली। हर इच्छा पूरी की जाती रही । उच्च शिक्षा मिली पर एक दिन ऐसा नहीं गया जब जन्म लेने के समय से अब तक अपने लिए ‘पराया धन’ न सुना हो । मन करता कि कह दे कि ‘अपना धन’ क्यों नहीं कह पाते । उसे महसूस होता कि यह जैसे उसका घर नहीं हो ।
फिर विवाह हो गया । सब बहुत प्रसन्न थे कि सब कुछ सुचारू रूप से संपन्न होकर बेटी पराए घर चली गई । यह उसके पति का घर था । अपने अथक परिश्रम से उसने इस घर को मज़बूत बनाने की हर संभव कोशिश की ।फिर भी कोई उसे इतना सा भी श्रेय न देकर कह पाया कि यह उसका घर है।
फिर आँगन में किलकारियाँ गूँजी । बेटी बेटा पा कर पूरा परिवार पुलकित था । आरती को जैसे स्वर्ग मिल गया हो । अपना पूरा जीवन उनके जीवन को सँवारने में लगा दिया । दोनों बच्चे उच्च शिक्षा पा कर ऊंचे पदों पर आसीन हो गए । बेटी को होनहार दामाद मिला और वह विवाह के बाद अच्छे परिवार में चली गई । वह कितनी बार आरती से पूछा करती थी,”मम्मी, दादी और नानी मुझे हमेशा ‘पराया धन, पराया धन’ क्यों कहती रहती हैं ।” आरती उसे अपने गले लगा कर प्यार करती और कहती,” कहने दे, तू तो मेरा धन है । मेरा सबसे अनमोल धन ।” उसे अपना समय याद आ जाता ।
सब ठीक ठाक चल रहा था पर नियति को कुछ और मंज़ूर था । आरती के पति का असामयिक निधन हो गया । बहुत सोच विचार कर यह तै किया गया कि यह घर बेच कर पैसा आरती के जीवित रहने तक उसके अकाउंट में रहेगा । उसके मरने के उपरांत वह राशि बेटा और बेटी में बराबर में आधा आधा बाँट लेंगे ।
अब वह बेटे के घर में थी । उसकी पत्नी को यह नागवारा था । आरती ने अपनी तरफ से बहुत प्रयत्न किया कि बहु उसे अपनी माँ समान समझ अपना ले पर बहु ने उसे झिटकते हुए कहा, “ मेरी मम्मी की जगह तो कोई ले ही नहीं सकता ।” आरती के पास इसका कोई जवाब नहीं था ।ज़रा ज़रा सी बात लेकर बहु बेटे से चुग़ली करती और बेटा हर बार उसका कोर्ट मार्शल करता हुआ उसे ही एडजस्ट करने को कहता ।
सबसे अधिक चोट आरती को तब पहुँचती जब बहु कहती,” यह घर मेरा है, मेरे हिसाब से चलेगा।” उसे लगा कि अब तो बेटा जरूर अपनी पत्नी को डाँटेगा कि मत कहो ऐसा यह मम्मी का घर भी है । पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टे उसे अकेले में बेटे ने समझाया कि घर की मालकिन तो उसकी पत्नी ही रहेगी और आरती को यह असलियत स्वीकार करनी ही पड़ेगी ।
बस उसी दिन आरती वह घर छोड़
बाहर निकल आई, अपने घर की तलाश में ।