Aibi of Bibi in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | बीबी के ऐ जी

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बीबी के ऐ जी


बीबी के" ऐ जी"

सुरेन्द्र शर्मा बड़ा भला सा नाम था उनका छैल- छबीले, बांके जवान उन्होंने शादी क्या की जैसे अपना नाम ही खो दिया जब उनकी पत्नी उन्हें ऐ जी........., सुनते हो जी............ से संबोधित करने लगी उन्हें भी ये संबोधन

अपने उपनाम सा लगने लगा ।पड़ोसी की पत्नि भी अपने पति को ‘ऐ जी’ कहकर बुलाती तो सुरेन्द्र शर्मा जी आता हॅूं कह कर चल देते।इस चक्कर में मोहल्ले के लोग सुरेन्द्र शर्मा जी के चरित्र पर शक करने लगे । ये ‘‘ऐ जी............’’ का संबोधन प्रारंभ से उन्हें अत्यंत ही प्रिय लगता था परंतु समय के साथ-साथ इसे सुनते ही उन्हें लगता कि वो परेड में खड़े है और सावधान होने का निर्देश मिला है । अब वे ‘‘ऐ जी..........’’ सुनकर सावधान हो जाते खॅूटी पर टंगे थैले को उठाने के बाद ही बोलते ‘‘भागवान.......... बाजार से क्या लाना है’’ पत्नी खुश ’’भागवान’’ जो कहा । वो भागवान का अर्थ भाग्यवान से लेती है । सुरेन्द्र शर्मा जी भी खुश वे भागवान का अर्थ भागने का आव्हान करने वाली से लेते है ।

ऐसा भी नहीं कि सुरेन्द्र शर्मा जी जीवन पर्यंत ऐसी ही बने रहे । अब विवाह हुआ था सो उन्हें दो से तीन होना ही था बस उनके घर में मुन्ना आ गया । मुन्ने के नामकरण के साथ ही साथ शर्मा जी को भी दूसरा नाम मिल गया । अब उनकी भागवान उन्हें ‘‘मुन्ने के पापा’’ कह कर संबोधित करने लगी । सुरेन्द्र शर्मा जी ने गौर किया तो पाया कि अकेले में ‘‘ऐ जी............’’, ‘‘सुनते हो जी ...........’’ और ‘‘ओ जी ...........’’ पहले की तरह था परंतु बाहर मेले, विवाह और पार्टियों में वे ‘‘मुन्ने के पापा’’ हो जाते । उनकी पत्नी अक्सर ही जब किसी भद्र महिला से उन्हें रस भरी बातों मे मग्न देखती तो ‘‘मुन्ने के पापा...............’’ संबोधन द्वारा ही उनकी तन्मयता को तोड़ती है । अब वह संबोधन एक तीर से दो निशानों को साधता । एक तो शर्मा जी को याद दिला देता कि भागने का आव्हान हो चुका है दूसरा उस भद्र महिला को भी सचेत कर दिया जाता कि शर्मा जी न केवल विवाहित वरन् मुन्ने के पापा भी है । इन परिस्थितियों में शर्मा जी केवल झुंझला कर रह जाते । उन्होनें कई बार यह समझाने की कोशिश की कि ऐसे अवसर पर उन्हें पढ़ी-
लिखी महिला की तरह उनके नाम से या शर्मा जी कहकर संबोधित किया करे । उनकी बीबी कहाँँ मानने वाली थी कहती मै तुम्हारा नाम नहीं ले सकती ।

ऐसा नहीं कि शर्मा जी के यहाँँ मुन्ने के बाद कोई और न आया हो उसके बाद मुन्नी और गुडडू भी हुए परंतु शर्मा जी मुन्ने के पापा ही रहे । धीरे-धीरे शर्मा जी के वे दिन भी आए कि बालाएँँ उन्हें अंकल बोलने लगी । उनके सर के बीचो-बीच एक हवाई पटटी के आकार का निर्माण होने लगा । दाढ़ी, मूॅछ और सर के बाल सफेद होने लगे । अब बीबी मुन्ने के पापा कहती तो सुरेन्द्र शर्मा के इंजीनियर पुत्र को उनसे अधिक बुरा लगता ।

अब मुन्ना बुरा मानने योग्य जो हो गया है । वो भी अपने इस उपनाम के सार्वजनिक होने में शर्म महसूस करता है । धीरे-धीरे शर्मा जी की बीबी को यह लगने लगा कि यह संबोधन उचित नहीं है । इसलिये कभी-कभी धीरे-धीरे से बुढढा, खडूस और बुढऊ संबोधन का प्रयोग करने लगी । शर्माजी को प्रारंभ में आपत्तिजनक लगा लेकिन पुराने संबोधन की ही तरह उन्होने इसे भी स्वीकार ही लिया।

हमारे शर्मा जी बदले हुए संबोधनों के साथ जीवन जीने को विवश रहे उनकी इस विवशता का कारण भी उनकी एक और केवल एक अदद पत्नी रही । वे मरते दम तक बुढ़ऊ बने रहे वे जब अंतिम सांस भी ले रहे थे तो बस एक ही आस थी कि उनकी बीबी एक बार कह दे ‘‘बुढ़ऊ बहुत हुआ नाटक चल उठकर बैठ जा।’’ सच कहता हॅूं उनकी बीबी अगर एक बार ऐसा कह देती तो वे चटपट घबराकर उठ कर बैठ जाते और आज उनकी फोटो पर माला न टंगी होती ।





आलोक मिश्रा