ekanki dahej in Hindi Drama by ramgopal bhavuk books and stories PDF | एकांकी- दहेज

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एकांकी- दहेज

एकांकी-

दहेज

रामगोपाल भावुक

(शहर के आम चौराहे पर शर्मा रेस्टारेन्ट में दो अधेड़ अबस्था के व्यक्ति चाय की चुस्कियों के साथ बातें कर रहे हैं।)

विजयवर्गीय- आनन्द बाबू आज सुस्त क्यों दीख रहे हो? आफिस में काम करते समय भी गुमसुम लगे रहे और लंच के समय में भी......।

आनन्द- आज मन ठीक नहीं है।

विजयवर्गीय-क्यों क्या बात हो गई?

आनन्द- कुछ नहीं यों ही....।

विजयवर्गीय-अरे यार! अपनों से कोई बात छिपाई नहीं जाती।

आनन्द- यही अपनी बच्ची बन्टी है ना, उसके लिये लड़का देखने गया था। विजयवर्गीय- तो क्यार हुआ?

आनन्द-वे एक लाख रुपये दहेज माँग रहे थे। साहव आप तो जानते ही हैं। मैं रिश्वत नहीं लेता। बस तनख्वाह में काम चलाना पड़ता है। उसमें से क्या........?

विजयवर्गीय- आज की मेहगाई के जमाने में एक क्लर्क ईमानदारी से कुछ भरी नहीं वचा सकता।

आनन्द- अब एक लाख कहाँ से लाऊँ? पचासे लड़के देख चुका । किसी ने इससे नीचे बात ही नहीं की।

विजयवर्गीय-भई, शादी- व्याह के मामले में तो पैसे की ही खीर है। तुम हो कि ईमानदारी में बनले रहे। अरे! कुछ दन्द-फन्द कर लेते तो आज काम न देता।

आनन्द- दन्द-फन्द करने के लिए आत्मा स्वीकार नहीं करती। ऐसा करना देश हित में नहीं है।

विजयवर्गीय- एक लाख रुपये दहेज में देना भी आत्मा स्वीकार नहीं करती, पर देना ही पड़ेंगे। चाहे कुछ करो।

आनन्द- कुछ क्या करें यही तो समझ में नहीं आता।

विजयवर्गीय- भैया, यहाँ तुम्हारी ईमानदारी को कोई देखने वाला नहीं है। यहाँ तो नोट चाहिए नोट।( अब तक चाय खत्म हो गई थी तो दोनों उठ खड़े हुए)

आनन्द- चलो साहब , थेड़ी ही देर हुई कि साहब.....।

विजयवर्गीय- अपने साहब भी ईमानदार और मेहनती लोगों से ही कह पाते हैं।

(दोनों होटल से निकलकर चले जाते हैं। )

शाम पाँच बजे आनन्द बाबू घर पहुँचे। अपनी साईकल रखी और कुर्सी खीचकर बैठ गये। अपने मौजे जूते उतारने लगे।

आनन्द- बेटी...इ..इ..बन्टी...इ...इ...।

बन्टी- आई पापा( कहते हुए कमरे में आ गई)

आनन्द- संजय भैया कहाँ हैं?

बन्टी- वे केमिस्ट्री की किताब लेने बाजार गये हैं।

( बन्टी का माँ शीला का कमरे में प्रवेश)

शीला- अरे! सुनते हो।(पति की ओर देखकर)

आनन्द- कहो क्या कहती हो?

शीला- अरे! धीरे-धीरे समय निकलता जा रहा है। बन्टी पच्चीस वर्ष की हो गई। इस

वर्ष शादी नहीं हुई तो पंचाग में फिर तीन

साल तक शादी नहीं बनती।

आनन्द- यह तुम से किसने कह दिया? अरे! शादियाँ तो हर साल बनती हैं जब चाहे

करलो।

शीला- ऐसे कैसे करलो। अपने पण्डित जी कह रहे थे कि तीन...।

आनन्द- वे क्या जाने? किसी बड़े पण्डित से.........।

शीला- वे क्या छोटे पण्डित हैं। वे नहीं जानते तो क्या तुम जानते हो?

आनन्द- ठीक है तीन साल नहीं बनती, लेकिन ढंग का लड़का भी तो मिले। अरे!

बन्टी एम. ए. पास है तो लड़का भी तो.....।

शीला- तुम अब एम. ए. वैमे के चक्कर में मत पड़ो। अब तो कैसे भी बन्टी के हाथ

पीले हो जायें।

(बन्टी कुछ बोलना चाहती थी लेकिन चुप ही रही।)

आनन्द- ठीक है, तुम कहती हो तो दधीच साहब के गाँव में एक लड़का है। शायद

बी ए पास है।

शीला- ठीक है, गाँव में ही सही।

आनन्द- ठीक है, तुम कहती हो तो बात करुंगा। क्यों बेटी बन्टी ठीक है ना?

शीला- अरे! उससे क्या पूछते हो? वह क्या जाने?

(यह सुनकर वे चुपचाप अन्दर चले जाते हैं,उनके पीछे ही शीला पहुँच जाती

है।)

दृश्य परिवर्तन

(बन्टी और संजय अपने स्टडी रूम में अध्ययन कर रहे हैं। आन्द बाबू उसी

कक्ष में आते हैं और कुर्सी खीच कर बैठ जाते हैं।)

आनन्द- क्यों संजू तुम दोनों भाई बहिन क्या पढ़ रहे हो।

संजय- पापाजी कल हमारे कॉलेज में वाद-विवाद प्रतियोगिता है।

आनन्द- वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय?

संजय- दहेज के पक्ष और विपक्ष में।

आनन्द- तुम किस विषय पर बोल रहे हो?

संजय- मैं दहेज के विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करुँगा।

आनन्द- हम भी तो सुनें , किस मुद्दे को लेकर अपना पक्ष रख रहे हो?

संजय- दहेज ,पूँजीवाद का प्रतीक है यह मानव की लोभ प्रवृति के कारण विकराल

रूप धारण करता जा रहा है।

बन्टी- लेकिन भैया, इस प्रवृति पर त्याग से ही विजय संभव है।

संजय- बहिन त्याग की हम बातें ही करते हैं पर त्याग नहीं।

बन्टी- भैया लोभ की प्रवृति आपके समाज से कभी समाप्त होने वाली नहीं है। आनन्द- बेटी इसी करण तो दहेज का लेन-देन कभी समाप्त नहीं हो सकता। संजय- फिर?

बन्टी- फिर क्या? मैं साचती हूँ।

आनन्द- कह- कह प्रतियोगिता में शर्माया थोड़े ही जाता है।

बन्टी- मैं सोचती हूँ शादी ही न करूँ।

आनन्द- (चीखकर) पागल हो गई है क्या? कोई बाप अपनी बेटी को क्वांरी रखना

पसन्द करेगा? उसके दिल पर तो यह बहुत बड़ी चोट होगी।

बन्टी- तो फिर किसी भी लड़के से सम्बन्ध तय कर दीजिए।

आनन्द- ऐसा करके तेरे अरमानों का आरग में झोंक दूँ।

बन्टी- आग में क्यों ? मैंतो उम. ए. पास हूँ मैं नौकरी करुँगी।

आनन्द- वाह ! यह कौनसा तरीका है।

बन्टी- आप नौकरी करते हैं। मम्मी घर रहतीं हैं तब......।

अनन्द- लड़का पढ़़ा- लिखा तो हो।

बन्टी- इससे भी क्या फर्क पड़ता है। कई नारियाँ तो बिलकुल पढ़ी-लिखी नहीं

होतीं तब पुरुष कैसे चला लेता है। अतः जब पुरुष पढ़ा-लिखा नहो तो

नारियों को भी चला लेना चाहिए।

संजय- फिर तो उम्र के सम्बन्ध में भी छूट होनी चाहिए। जब नारी की उम्र कम

होती है तो पुरुष तो चला लेता है। इसी तरह पुरुष की उम्र कम होने पर

नारी को भी चला लेना चाहीए।

बन्टी- दहेज के विरोध में हमें सब कुछ करना पड़ सकता है।

आनन्द- पर बेटी पुरुष इतनी लोभी प्रवृति का होता है कि इतने पर भी वह अपने को

नारी से श्रेष्ठ समझेगा और अपनी श्रेष्ठता की कीमत दहेज में चाहेगा। बन्टी- यह कीमत लड़की के पिता की स्वेच्छा होगी।

संजय- मैंने देखा है, कुछ पुरुष अपने से अधिक पढ़ी-लिखी पत्नी स्वीकार नहीं

करते।

बन्टी- भैया लोभी वर्ग इसे कभी अस्वीकार नहीं कर सकता, बल्कि जिस तरह नारियाँ

कहतीं हैं कि हमारे पति ये हैं, वो हैं। बैसे ही पुरुष भी कहते फिरेगा कि मेरी

पत्नी ये है वो है।

आनन्द-लेकिन बन्टी मम्मी....।

बन्टी- जब हम सब मिल गये है जब मम्मी को भी हमारे ही दल में मिल जाना

पड़ेगा।

आनन्द- सच, तब तो चलें तुम्हारी मम्मी से बात करते हैं।

संजय-लेकिन मुझे तो अभी और प्वाइन्ट चाहिए।

बन्टी- भैया , चलो ना शायद कुछ प्वाइन्ट मम्मी से भी मिलें।

(सभी स्टेज से बाहर चले जाते हैं।)

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सम्पर्कसूत्र-

कमलेश्वर कालोनी(डबरा) भवभूति नगर

जिला ग्वालियर म0प्र0475110

मो0-09425715707