Anchaha Rishta - 17 in Hindi Love Stories by Veena books and stories PDF | अनचाहा रिश्ता - ( फिर मिलेंगे) 17

The Author
Featured Books
Categories
Share

अनचाहा रिश्ता - ( फिर मिलेंगे) 17

" गुस्सा मुझे आना चाहिए ना की तुम्हे।" स्वप्नील ने गाड़ी चलाते हुए उसकी तरफ नजर डाली। मीरा अभी भी कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं थी।

" नाराज भी मुझे होना चाहिए ना की तुम्हे।" उसके बाद भी मीरा ने स्वप्निल को नजरंदाज करना जारी रखा। उसने लेफ्ट ले कर आखिरकार अपनी गाड़ी रोक दी। वो जैसे ही मीरा से बात करने उसकी तरफ घूमा। मीरा उसके सीने से लिपट गई।

" सॉरी। मुझे पता है आप नाराज है। मुझसे गुस्सा है। लेकिन फिर भी मुझे अपने किए का कोई पछतावा नहीं है। प्लीज नाराज मत होए। प्लीज।" अपनी बात खत्म कर के जैसे ही उसने स्वप्निल को छोड़ा, स्वप्निल ने फिर उसे अपनी तरफ खीच लिया। " तुम्हे माफ किया। फिक्र मत करो में कभी तुम्हे तुम्हारे किए का पछतावा नहीं होने दूंगा। बस लोगो के बहकावे मे मत आना। समझी।" अब उसने अपनी पकड़ ढ़ीली कर दी थी। तभी गाड़ी की खिड़की पर दस्तक हुईं।

" जल्दी बाहर निकलो। क्या चल रहा है इधर ?" पुलिस गाड़ी के बाहर खड़ी थी।

" क्या बताऊं रे पवार तेरेको। ये आज कल के बच्चें देख। कब से साइड में गाड़ी रोक के खड़े थे। बोहोत बुरा जमाना आ गया है, अब बच्चें बडो से आगे है। तू देख बस।" हवालदार मोरे ने पवार से कहा। पवार ड्युटी पर नया होने की वजह से आंखे खोल मोरे की हर हरकत नोटिस कर रहा था।

स्वप्निल ने गाड़ी की खिड़की खोली।

" आपको कही देखा देखा लग रहा है।" मीरा ने मोरे से कहा।
" हां । मेरे को भी तुम कही देखी देखी सी लग रही हो।" मोरे ने उसे ध्यान से देखा।

" जस्ट शट अप मीरा। सर मे गाड़ी निकाल रहा हु।" स्वप्निल ने मीरा को पीछे ले कहा। क्यो की मोरे को कहा देखा है, ये याद करने के चक्कर में वो आधी गाड़ी से बाहर निकल चुकी थी।

" ये रुक रुक। याद आया मेरेको। तेरी बीवी पागल थी ना। हा यही वो पागल है।" मोरे को उनकी मुलाकात याद आ गई थी।

" कुछ भी मत कहिए। इनकी बीवी कोई पागल नहीं है।" मीरा तुरंत उस पर गुस्सा हो गई।

" अरे इसी ने मुझे बताया था। पूछ उसको ?" मोरे

" आप लोगो को मेरे बारे मे ऐसी बाते बताते है ? " मीरा फिर स्वप्निल की तरफ मुड़ी।

" अरे मैने पागल नहीं कहा था। मैने कहा था बीमार है। तुम्हे चोट लगी थी उस दिन याद आया।" स्वप्निल के बताते ही मीरा को उसकी दोस्त की शादीवाला किस्सा याद आ गया।

" हा सॉरी। भूल गई में भी तो थी। क्या हवालदार सर आप ने तो हम दोनो के बीच में झगड़ा ही करवा दिया। में बीमार थी उस दिन।" मीरा

" सर क्या आप सच में इन दोनो को जानते है ? ये मिया बीवी है ? लगते नहीं है। लड़का कुछ ज्यादा बड़ा है, और लड़की बोहोत ज्यादा छोटी लग रही है, बातो से।" पवार ने मोरे के कानो मे कहां।

" हा वैसे तो में पहचानता नहीं हू। बस दोनो को एक बार पकड़ा था तब भी बोहोत देर गाड़ी कोने में खड़ी थी। जरूर कुछ गडबड है।" " बाहर निकलो दोनो। बाहर आओ अपनी शादी का सबूत दो। वरना पब्लिक प्लेस में खराब बिहेवियर में अंदर कर दूंगा।" मोरे ने कहा।

" क्या ?" स्वप्निल गाड़ी से बाहर निकला मीरा ने भी बाहर निकलने की कोशिश की लेकीन स्वप्निल ने उसे वही रोक दिया।

" हम दोनो अडल्ट है आप हमारे रिश्ते पर सवाल नही कर सकते।" स्वप्निल ने अपनी बात साफ की।

" में सवाल नही करु और तुम दोनो गाड़ी में जो चाहिए वो करो।" मोरे

" अरे हम कुछ नहीं कर रहे थे। बस बाते चल रही थी।" स्वप्निल

" अच्छा। मिया बीवी हो घर जाओ आराम से बाते करो ये बीच सड़क गाड़ी रोक कर कौन बाते करता है। सुनो हम भी इस उम्र से गए है। अरे शादी के बाद मर्द घर जाकर बीवी से बात ना करे, और तु बीच सड़क गाड़ी रोक कर बीवी से बात करने वाला सबब देगा तो कौन भरोसा करेगा? हैं ना पवार अब समझा इसे ।" मोरे

पवार ने शर्माते हुए कहा, " में नही समझा सकता सर। मेरी अब तक शादी नही हुई।"

मोरे और स्वप्निल ने पवार को देखा, फिर एक दूजे की तरफ देखा, और एक चैन की सास छोड़ दोनो हसने लगे।

" हमे माफ कर दीजिए आगे से ऐसा नहीं होगा। में याद रखूंगा की बाते घर जाकर करनी है। हमे देर हो रही है ? क्या हम जाए ?" स्वप्निल ने शांति से पूछा।

" आगे से ध्यान रखना। जाओ ज्यादा देर मत करो।" मोरे ने दोनो से विदा ली।

" देखा तूने पवार तू क्या समझा? " मोरे।

" यही के अपनी बीवी से सारी बाते घर पर करो, वरना पुलिस को पता चल जायेगा।" पवार

" नहीं रे इसका मतलब था ये दोनो नए शादी वाले है। देख लेना फिर ये हमे जरूर मिलेंगे।" इतना कह हसते हुए मोरे पवार के साथ वहा से चला गया।

" चलो ठीक है। में तुम्हे जल्द ही खुद अपने पास्ट के बारे मे सब सच बताऊंगा। पर अभी दो दिनों बाद तुम्हारे यहां जो पार्टी है उस पर ध्यान देते है। उस के बाद में तुम्हे सब सच बता दूंगा। Ok ???" स्वप्निल ने मीरा की तरफ देखते हुए कहा।

" ठीक है। पार्टी के बाद सब बताना।" मीरा " क्यो ना में पार्टी मे डैड को हमारे बारे मे भी बता दू। इनसे पुछु ? नही। अभी भी ये तैयार नहीं है। इनसे बाद मे बात हो सकती है। पहले डैड से बात जरूरी है।" उसके दिमाग मे अलग अलग खयाल बस आते ही जा रहे थे।

" इतना क्या सोच रही हो ? घर आ गया तुम्हारा।" स्वानिल ने उसे खयालों से बाहर लाते हुए कहा।

" ये घर डैड का है। मेरा घर वहा है, जहा मेरा पति रहेगा। बाय।" वो स्वप्निल से गले मिली, फिर गाड़ी से उतर कर बाहर भागी।

" एक वो थी, जिसे मेरा महल भी घर नहीं लगता था, एक ये है जिसे अपना महल नही मेरा कमरा घर लगता है। या तो लोग अजीब होते है, या मेरी किस्मत अजीब है। जिसे जमीन से आसमान दिखाया, वो मुझे छोड़ आज़ाद हो गई। यहां खुले आसमान का एक आज़ाद पंछी खुद पिंजरा चाहता है।" स्वप्निल

" आप जाइए। फिर में जाऊंगी।" मीरा

" ठीक है। गुड नाईट। बाय।" उस से विदा ले स्वप्निल अपने खयालों के साथ वहा से चला गया।