do the bail- ik hira ik moti in Hindi Animals by ramgopal bhavuk books and stories PDF | दो थे बैल-इक हीरा इक मोती

Featured Books
Categories
Share

दो थे बैल-इक हीरा इक मोती

‘भैया मोती, मुझे मुंशी प्रेमचन्द्र के समय की बातें याद आ रही हैं। उन्हें हमारी कितनी चिन्ता रही होगी, उनके कारण लोग हमें भूले नहीं हैं, लेकिन वह जमाना तो बीत गया। हमारे कई जन्म गुजर गये। लोगों ने हमारे क्या क्या नाम नहीं रखे? इस जमाने में आकर भी उन्हीं नामों से हमारी पहचान है।’

‘ठीक कहते हो हीरा, हमने क्या क्या नहीं देखा! हमने वह जमाना भी देखा है जब तक मालिक हमें भर पेट नहीं खिला देता था तब तक वह भी खाना नहीं खाता था। उसे अपने से पहले हमारी चिन्ता घर के सदस्यों की तरह रहती थी। मुझे याद है मेरा बड़ा भाई मनिया बूढ़ा हो गया था। ठीक से चल नहीं पाता था तो भी मालिक अपने घर के बुजुर्गों की तरह उसकी सेवा में लगा रहता था। हमने अपने मालिक मनोहर कक्का से सुना है कि उन्होंने उसके जन्म के लिये हीरा भुमिया से मन्नत मांगी थी।’ जिस दिन उसने प्राण त्यागे ,सभी घर वाले उस बुढे ़बैल के लिये उसकी सेवाओं को याद करके फूटफूट कर रोये थे।

भैया मोती, हम तो बूढ़े भी नहीं हुए, पहले खेती- किसानी हमारे ही ऊपर निर्भर थी। अब तो जमाना ही बदल गया है। जब से टेªक्टर का जमाना आया है, हम बिना काम के हो गये । जब काम ही नहीं रहा तो हमारा क्या उपयोग? इसीलिये हमारा मालिक अब हमें शहर में लाकर छोड़ गया है। भगवान भला करे मनोहर काका का, उसके पास हमें खरीदने अनेक कसाई आये। दूसरे किसानों ने तो अपने बैल उन्हें बेच दिये। हमारे मोटे ताजें मांस को देखकर उन्होंने अच्छी- खासी कीमत भी लगाई किन्तु मनोहर कक्का ने साफ- साफ कह दिया, मैं इन्हें नहीं बेच सकता। मैंने इनकी कमाई खाई है, मैं यह पाप अपने सिर पर नहीं ले सकता और उसने हमें कसाई के यहाँ नहीं बेचा। बड़ा धर्मात्मा था। जब तक हम उसके यहाँ रहे, कभी भूखे नहीं मरे।

हमारे मोहल्ले के कुढ़ेरा कक्का की याद आती है वे अपने एक वीधा खेत में गेहूँ की बोनी कराना चाहते थे। टेªक्टर बाले के घर उनने सैकड़ो चक्कार लगाये, मेरी बोनी करवा दंे। बह बोला- बीधा भर खेत में टेªक्टर ठीक ढ़गं से घूम भी नहीं सकता। इतने छोटे काम के लिये मैं अपना समय बर्वाद नहीं करना चाहता। कुढ़़ेरा ने उसकीे तमाम मिन्नतें की, पर वह उसकी बोनी करने नहीं गया। उसका खेत सालभर खाली पड़ा रहा। हम समझ रहे हैं , अब हम छोटे किसानों के ही काम के रह गये हैं। उसके यहाँ हम होते तो उसे यह दिन तो न देखना पड़ता।

इधर हमारे घर में कोई काम न रहा। मालिक का भूषा ही खतम हो गया फिर वह वेचारा क्या करता! अब तो मशीन से सीधा गेंहूं निकल आता है। भूसा निकाल ने के अलग पैसे लगते हैं। हम बिना काम के हो गये हैं। हमारे मलिक की गाड़ी टूट गई। गाँव में हल बखर कोई बनबाा न रहा था तो बढ़ई वेकार हो गये। वे गाँव छोड़कर शहर भाग गये। वहाँ पहुँचकर वे फरनीचर का काम करने लगे। उनकी वहाँ अच्छी आमदानी हो गई।

भैया ,मशीन से चट से गेंहू निकाले और जाकर मन्डी में बेच आये। अब तो भूषा निकालने की जरूरत ही नहीं रही। इस मशीन के युग में भूषा की जरूरत ही खत्म। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

अरे हीरा, इस शहर में आकर तो हमें एक एक रोटी मांगने के लिये घर- घर दस्तक देना पड़ती है। पुण्य अर्जित करने के चक्कर में लोग हैं कि गाय को तो रोटी खिला भी देते हैं , हमें देखकर तो डण्डे फटकाते हैं। इस सुन्दर से शहर में किसी को हमारी कोई जरूरत नहीं है। हमें यहाँ भी यह डर लगा रहता है कि कहीं चोरी - छिपे कोई कसाई न हाँक ले जाये।

एक जमाना था तब घर के छोटे बच्चों की तरह हमें शहर देखने की बड़ी चाह रहती थी। मालिक हमें गाड़ी में जोत कर शहर लाते थे। मण्ड़ी में गाड़ी बिकी कि शहर घूमने की मौका लग जाता था। उस जमाने में शहर बड़ा अच्छा लगता था। शहर अच्छा क्यों न लगे। पहले जब गाँव के बड़े- बड़े सेठ साहूकार डाकुओं के डर से गाँव छोड़ने को मजबूर हो गये थे तब हम सोचते थे शहर में रहना यहाँ से सुरक्षित है। अब यहाँ आकर हमें पता चल रहा है कि यहाँ के लोग बड़े कमीने हैं।

सभी लोगों की तरह हमने अपनी रक्षा के लिये संगठन बनाना चाहा। कैसे भी भाग दौडकर एक सभा का आयोजन किया, उसमें तय किया गया कि हम लोगों के, डण्डे मारने का विरोध करें।

हमारे किसी साथी ने गुस्से में किसी को मार दिया तो हम सभी को वे मरखा बैल ही समझ रहे हैं। जैसे सांप को देखकर लोग उसे मारने दौड़ते हैं ठीक बैसे ही हमें भी दूर से देखते ही मारने दौड़ पड़ते हैं। भूख- प्यास के मारे दम निकल रहा है। हम पेट भरने कहीं मुँह मारते हैं तो डण्डे से अच्छी पिटाई होती है। अब तो हम खुले साँड़ की तरह यहाँ- वहाँ भटक रहे हैं। कहीं कोई पूछ परख नहीें है। एक जमाना था जब हम चोरी हो जाते थे,गाँव भर का चैन हराम हो जाता था।

भैया मोती,तुम इतना निराश न हो। कहते हैं कि, इस प्रजातंत्र के युग में सरकारे बड़ी संवेदन शील हैं। वे हमारे बारे में कोई न कोई रास्ता जरूर खोजेंगी। सुना है बड़ी- बड़ी गोशाला हर शहर में बनाई जा रही हैं। उनमें गायों की बड़ी सेवा होती है। बड़े- बडे धर्मात्मा खुलकर दान दे रहे हैं।

हीरा, वे गोशालायें अपने लिये नहीं बन रही हैं। अब इस संसार में अपनी किसी को कोई जरूरत ही नहीं रही है। अब तो सीमन से सैकडों गायों का गर्वाधान हो जाता है। संसार में अनुपयोगी पदार्थ नष्ट होकर ही रहता है। लोग हमें कूडे करकट की तरह झाड़कर घर के बाहर फेंक रहे हैं।

भैया, मुझे आशंका है कि किसी दिन हमारा अस्तित्व ही विलुप्त हो जायेगा। मानव संस्कृति में स्त्री- पुरुष बरारबर होना चाहिए, इसके लिये वे लोग चिन्तित दिखाई देते हैं। इस विषय पर बड़ी -बड़ी बहसें चल रहीं हैं।

हीरा, तुम समझ की तो बड़ी- बड़ी बातंे करते हो अभी तो भूख लगी है। कुछ खाने को ही मिल जाता तो आत्मा को जरा राहत मिलती। चल उठ, चल फिर कर कहीं खानेपीने की जुगाड़ करते हैं।

दोनों कुछ ही कदम साथ- साथ चले कि कही सफेद, हरी, पीली ,पन्नियाँ दिखी। दोनों उनमें मुँह मार- मार कर फुस- फुस करते हुए नथुनों से संूध संूधकर कुछ खोजने का प्रयास करने लगे। भूख मिटाने के लिये उन्हें मुँह में ले ली। वे मुँह में करकराने लगी। वे मुर ही नहीं रहीं थी तो मुँह से निकालने का प्रयास किया। वे मुँह निकल ही नहीं रही थी। उन्हें मजवूरी में अन्दर गटकना पड़ा। इससे दिनभर बेचैनी बनी रहीं। भूख के मारे दोनों शहर से बाहर जाने को उतावले हो गये। कुछ दूरी पर खेत दिखाई दिये। मन को कुछ राहत मिली। शायद अब कुछ खाने को मिल जायेगा। वे दोनों उस खेत की मेढ़ पर पहुँच गये। वहाँ कांटेदार तारों की बाड़ लगी थी। खड़े- खड़े लहलहाती हरी-भरी फसल को देखते रहे। लगा, छलांग लगाकर बाड़ पार कर ली जायें। उसी समय लठठधारी किसान सामने आता दिख गया। वह एक नये- नवेले जवान बछड़े को, जो छलाँग लगा कर भोजन की तलाश में बाड़ कंूद गया था, वह किसान लठ्ठ लिये उसका पीछा कर रहा था। उस बछड़े ने आव देखा न ताव, पिटने से बचने के लिये खूब जोर से छालांग लगाई और आसानी से बाड़ कूंद गया। हम इतना साहस नहीं जुटा सके। उस किसान ने पीछे से आकर हमें पुनः शहर की ओर खदेड़ दिया। हम पिटने के डर से भूखे-प्यासे हांफते हुये भागकर शहर के दूसरे चौराहे पर आकर खड़े हो गये।

वहाँ एक मंच पर नेता जी भाषण दे रहे थे। वे गोहत्या पर आक्रोश व्यक्त कर हे थे- आवारा गायांे के लिये गो शालायें बनाई जावें तथा बैलों के लिये बृषभ अभ्यारण्य हों। ’

यह सुनकर हमें लगा- चलो, ये लोग हमारी भी चिन्ता तो कर रहे हैं। शासन द्वारा वहाँ हमारे खाने- पीने और सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था होगी, हम मौज से वही रहेंगे।

हीरा ने मुझे समझाया,- भैया, हमारा यह सोचना गलत है,जब हम किसी काम के ही नहीं रहे तो कोई हमारी क्यों चिन्ता करें। सुसरे ट्रेक्टरों ने हमारी कुगति ही कर दी है। जमाने की हवा है। अब तो हम विलुप्ति के कगार पर पहुँच रहे हैं। केवल कटने के काम के रह गये हैं। देखना, किसी दिन हम बैलों की संस्कृति ही धरती से विलुप्त हो जायेगी। रही गायों के लिये सीमन की बात तो किसी दिन ये विज्ञान बाले सीमन के इन्जेक्सन ही बना लेगे। हमारी सीमन की जरूरत ही नहीं रहेगी फिर गाय का अस्तिव इन्जेक्सन पर निभर्र होगा। सुना है दूध के लिये गायों के रखने वाले अब कोई बछड़ा नहीं चाहते। सभी को बछिया अच्छी लगती हैं। अब तो ऐसा इन्जेक्शन बन गया है कि बछिया ही होगी। ऐसे ही आदमी पुत्र चाहते हैं। वहाँ भी ऐसा इन्जेक्सन बन जाये कि लड़का ही हो। आज नहीं तो कल ये विज्ञान वाले ऐसा इन्जेक्सन बना ही लेंगे। आदमी चन्द्रमा पर बर्षों पहले पहुँच ही गया है। अब तो मंगल यान पर पहुँचने की तैयारी में है। देखना, जैसे हमारा अस्तित्व मिट रहा है बैसे ही इस घरती से धीरे- धीरे स्त्री जाति ही समाप्त हो जायेगी, लेकिन आदमी का काम बिना स्त्री के चलने वाला नहीं है इसलिये वह मजबूर है। वह यह चाहता है कि लड़की अपने घर में नहीं दूसरे के घर में जन्मे,

हीरा,हमें तो अपनी चिन्ता है, जीवन का कोई उपाय ही नहीं सूझ रहा है। अब तो हम ऐसी जगह के लिये बचे हैं जहाँ उनका टेªक्टर काम नहीं देता, छोटे किसानों के मतलब के रह गये है। वे भी वड़े किसानों की होड़ में श्रम से जी चुरा रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्र में हमारा धोड़ों-गधों की तरह उपयेग हो सकता है। चलो यही सही कैसे भी कटने से तो बचेंगे।

भैया, यहाँ आकर हमें भिखमंगों की तरह भीख मांगना पड़ रही है। हम श्रम जीवी हैं, हम मुफ्त की खाने वाले नहीं है, हम से कोई काम लिया जाये। जिससे हम सम्मान पूर्वक जी सके।

हीरा, तुम ठीक कहते हो बस यह व्यवस्था हो जाये कि हम बिना काम के न रहंे। हमें श्रमिकों की तरह आज काम की तलाश है।

00000

सम्पर्क- कमलेश्वर कोलोनी (डबरा) भवभूतिनगर

जि0 ग्वालियर ;म0 प्र0 475110

मो0 9425715707,म्उंपस.जपूंतप तंउहवचंस5/हउंपण्बवउ