सुबह का समय था।
बहुत जल्दी। वही घड़ी, जिसे पुराने समय में पुराने लोग "भिनसारे ही" कहा करते थे।
मजे की बात ये है कि जब हम पर अंग्रेज़ों का राज था तब हम "भिनसारे" ही कहते थे पर अब जब अंग्रेज़ सब कुछ हम पर ही छोड़ कर चले गए हैं, हम कहते हैं- अर्ली इन द मॉर्निंग!
तो इसी मुंह- अंधेरे की वेला अर्ली इन द मॉर्निंग में एक बड़ा सा तांगा आकर एक आलीशान बंगले के बाहर रुका।
तांगा बड़ा सा इसलिए दिखाई देता था कि तांगे में जुता अरबी घोड़ा बेहद मजबूत, हट्टा - कट्टा, कद्दावर दिखाई देता था। घोड़े की ऊंची कद- काठी के चलते ही तांगे की शान थी। घोड़े का रंग भी कुछ सफ़ेदी लिए हुए सुनहरा भूरा। शानदार।
तांगे के रुकते ही उसमें सवार एक ख़ूबसूरत सा नवयुवक कूद कर उसमें से उतरा और बंगले का मुख्य द्वार खोल कर भीतर जाने लगा।
लड़के ने सफ़ेद पठान सूट पहन रखा था और उसके घने चमकीले बाल सुबह की हल्की - हल्की ठंडी हवा में लहरा रहे थे।
लड़के ने दरवाज़े की घंटी बजाने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया जाली का दरवाज़ा अपने आप खुद ब खुद खुल गया। ये कोई जादू नहीं था बल्कि सुबह के समय बंगले की कोई नौकरानी कमरे में झाड़ू लगा रही थी और उसी ने भीतर के कचरे को बुहारते हुए यहां तक आकर भीतर से दरवाज़ा खोला था ताकि वह बाहर भी निकल कर आसपास सफ़ाई कर सके।
बस, उसी समय युवक उसके सामने पड़ा।
वह कुछ न बोली। उसने युवक को एक बार देखा और फिर एक ओर को हट कर लड़के को भीतर जाने के लिए रास्ता दे दिया।
लड़के के हाथ में अख़बार के काग़ज़ में लिपटा हुआ एक पैकेट सा था। लड़के ने अंगुलियों से टटोल कर उसे खोला और उसमें से निकाल कर तीन- चार खूबसूरत से फूलों के गुलदस्ते मेज़ पर रख दिए।
वह पलट कर वापस चल दिया। फूलों की महक कमरे में फ़ैल गई।
अब घर की वो युवा नौकरानी जाते हुए लड़के को पीछे से देखती रही।
लड़के ने उछल कर तांगे को संभाला और घोड़े को सरपट दौड़ा दिया।
युवती ने वापस पलट कर जब लड़के के रखे हुए गुलदस्ते उठाए तो वह कुछ झेंप गई। उसे अभी अभी एक नाज़ुक सा अजनबी खयाल आ गया था, उसी के चलते शरमा गई थी।
दरअसल उसके जिगर को फूलों की वो गंध लड़के की सुगंध लगी।
पर ऐसा भी कहीं होता है? खुशबू तो गुलों से ही आती है। अगर थोड़ी सी लड़के के हाथ या कपड़ों से आई भी तो क्या? सुवास तो फूलों की ही थी। लड़के ने तो फूलों को छुआ होगा, उसके गुंचे बनाए होंगे, पानी के छींटे देकर उन्हें सहेजा होगा, और हथेलियों में समेट कर उन्हें यहां तक लाया होगा। बस, इसी से थोड़ी गंध उसके बदन में भी आ गई।
वैसे ही तो, जैसे कोयले की दलाली में हाथ काले होते हैं, गुलों की रखवाली में अर्क की चंद बूंदें लड़के की हथेलियों और कपड़ों पर गिर कर महकने लगीं।
बात ख़त्म!
भीतर जाती - जाती वो युवा नौकरानी कुछ मायूस सी हो गई। एक अजीबो- गरीब ख्याल उसके जहन में आया कि वह भी तो पिछले कुछ समय से धूल मिट्टी और कचरे को बुहार रही थी। तो क्या उसके बदन से कचरे की गंध आने लगी होगी?
पर रोजगार में फ़ालतू बेसिरपैर की बातों के लिए वक्त नहीं होता। लड़का चला गया न! फ़िर? उसे धंधा करना था तो आया और गया।
युवती को भी नौकरी करनी है, घर का काम निपटाना है। तो वही क्यों सोचे?
तो घर की नौकरानी वो लड़की काम में लग गई।
अभी घर के सब लोग जाग जाएंगे, चाय- पानी होगा और घर में चहल- पहल शुरू हो जाएगी।
उसे चहल- पहल से डर नहीं लगता। डर लगता है उस झबरीले खूंखार कुत्ते से, जो अभी तो चुपचाप ज़ंज़ीर से बंधा पिछवाड़े बैठा है पर बच्चों के जागते ही खुल जाएगा और बिटिया उसकी ज़ंज़ीर पकड़ कर उसके पीछे- पीछे दौड़ती हुई उसे सामने के लॉन में दौड़ाने लगेगी।
नौकरानी जल्दी- जल्दी काम समेटने में लग गई।