जूते की आत्मकथा
मैं एक जूता हुँ , अरे साहब वही जूता जो आप सर्दी,गर्मी और बरसात में बिना मुर्रवत के रगड़ते रहते है , अरे वही जूता जो सम्मान का प्रतीक बन कर आप के चरणों में सजता रहा हूं, वही जूता जो सर पर पड़े तो अपमान का प्रतीक होता है और वही जूता जिसकी बहनों को चप्पल ,सेंड़ल और स्लीपर के नाम से भी जाना जाता है । आप तो बस युं समझ लीजिए की जूता होना मेरा भाग्य भी है ,कर्म भी और कर्तव्य भी । सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि केवल उछाले जाने को छोड़ कर मैं कभी भी अकेला नहीं पाया जाता । हम तो पैदा ही जोड़ियों में होते है और हमारी जोड़ियां साथ जीने साथ मरने के लिए ही बनती है ।
साहब आप जब हमें खरीदने दुकान पहुंचते है तो आपको नहीं मालूम हमें किसी अनाथ से भी अधिक खुशी होती है । उस समय हमें लगता है कि बाज़ार के उबाऊ माहौल से निकल कर अपना एक घर मिलने का यह सुनहरा अवसर है । आप भी तो हम में से किसी एक को ही पसंद करते है जो आप के साथ जा पाता है । हम में से वो बड़ा ही तकदीर वाला होता है जिसे एक जोड़ी पैर के साथ ही साथ अपना एक घर नसीब होता है । आप जब अपने कुत्ते को वफादार कहते है तो हमे बहुत दुख होता है कि आपने हमारी वफादारी को नज़रंदाज किया है । हम आपके साथ यहां-वहां,जहां-तहां घूमते है । हम जहां जाते है आपके पैरों के साथ ही उनकी रक्षा में जाते है । हम वहां भी आपके साथ होते है जहां आपके अपने आपके साथ नहीं होते और वहां भी जहां आप अपनों से घिरे होते है । घर में भी आपने खास हमारे ही लिए स्थान दे रखा है । कभी - कभी आप खुद या किसी और से जब हमारी मालिश करते या करवाते है तो हमें बड़ा ही मजा आता है । इस मालिश के बाद जब हमारा रुप निखर आता है तब लोग हमारी तारीफ नहीं करते वे तो आपके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते है । हमे तो बहुत ही खुशी होती है क्याेंकि हम भी आपके व्यक्तित्व का हिस्सा ही तो है ।
हम आपके पैरों के निशान के रुप में भी जाने जाते है । अक्सर हमारे बुरे कर्म करने वाले मालिक हमारे निशानों के कारण ही जेल की हवा खाते है । हमे अपने सौभाग्य का तब पता चलता है जब कोई हमें अपने घर तक मंगवाने के लिए हेलीकप्टर भिजवाते है । बस हमें भगवान के दर्शन का सौभाग्य जीवन भर प्राप्त नहीं हो पाता । देव स्थान के बाहर आपकी प्रतिक्षा करते हुए अपने ऊपर होने वाले इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के बारे में सोचता हूं और आपके चरणों में सब भूल जाता हूं । मैं जब भी उछाला जाता हुं ,अपने जोड़ीदार के बिना इन्सानों के बीच खुद को अकेला पाता हुॅं । ऐसे समय पर मै समाचारों की ब्रेकिंग न्यूज बन जाता हुॅं । समाचार वाचक बार-बार मुझे ही ज़ूम कर के दिखाता हुआ इठला-इठला कर बताता है कि किस कोण पर मै किसी के चेहरे पर टकराया या नहीं । मै जब से भरत की आराधना का प्रतीक हुआ हुॅ तब से ही छोटे व्ही.आई.पी. बड़े व्ही.आई.पियों के जूते साफ करने को अपना सौभाग्य समझने लगे । अब तो अनेक लोग अपनी जेब में अलग से एक रुमाल लेकर चलने लगे है ; कब कहां मुझे साफ करने का अवसार प्राप्त हो जाए । इस तरह देखा जाए तो आज अनेकों की प्रगति में हमारा योगदान आपको साफ दिखाई देगा । हम वो है जो कविसम्मेलनों में उछल कर कवियों को लिखना सिखाते है । हम निशाने से चूकते है तो जूता मार वीडियो गेम की प्रेरणा बन जाते है । हमें मालूम है कि देश-विदेश में होने वाली प्रगति हमने नहीं की है लेकिन इस प्रगति में हमारा भी योगदान तो है ही ।
आप हमे जोड़ी में ही महत्व देते है ;इसमें दोष आपका नहीं है आपकी बनावट का है ,भगवान ने आप को दो पैर जो दिए है । हमारी जोड़ी में से एक के खोने ,खराब होने या फट जाने पर आपके लिए दूसरा भी बेकाम हो जाता है । हम भी समझ जाते है कि हमारे रिटायरमेंट का समय आ गया है । कभी-कभी यदि हम रिटायरमेंट के समय भी जोड़ी में हुए तो हमें दूसरा मालिक भी नसीब हो जाता है । ये नया मालिक छोटे घर वाला , हमें थोड़ा बहुत सिलवा कर पहनता है । दूसरे मालिक के लिए हम कीमती होते है और वो हमारा बहुत खयाल रखता है । वो अक्सर पंगत में खाना खाते समय हमें अपने पास ही रखता है । वो शादी -ब्याह में हमारी जोड़ियों को कुछ अधिक ही दूर-दूर उतारता है । वो हमारे खुलते हुए मुह को कई बार सिलवा कर बंद करवाता है । हमारे लिए मालिक - मालिक में कोई अंतर नहीं है । हमारे लिए तो पैर ही मालिक है । हमें धन-दैालत से क्या लेना देना ? हम जिस के पैरों में सजे वही तो कंकड़ और कांटों से बचे ।
अब हम रिटायरमेंट के बाद उदास आपके घर के कोने पड़े धूल खा रहे है । इससे पहले कि आप मेरे बदले चाय छन्नी या मग्गा ले लें मै ने सोचा कुछ लिख ही लूं । लो साहब आपने मेरी आत्मकथा के कुछ अंश पढ भी लिए है । अब आप भी याद रखना कि वो मैं ही हुॅ जो आप के प्रति वफादार है । अब जब भी आप आईने में अपनी शक्ल देखें तो एक बार मेरी ओर भी नज़र -ए - इनायत जरुर करें ।
आलोक मिश्रा