credit card-debit card in Hindi Human Science by ramgopal bhavuk books and stories PDF | क्रेडिट कार्ड - डेविट कार्ड

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क्रेडिट कार्ड - डेविट कार्ड

मैनें पाँचवी कक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली थी। कक्षा छह में नियमित पढ़ने जाने लगी। इन दिनों मुझे याद आ रही है जब मैं कक्षा तीन में पढ़ती थी, एक दिन पापा नया- नया मोबाइल खरीद कर लाये थे। मैंने पापा से कहा -‘ मुझे भी मोबाइल चलाना सिखा दो ना।’

पापा जी बोले-‘ खुशी, तू अभी बहुत छोटी है कक्षा पाँच पास कर ले, मैं तुझे भी मोबाइल चलाना सिखा दूँगा।’ यह कहते हुए उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और उसे खोलना और बन्द करना मोबाइल चलाकर मुझे सिखाने लगे। उन्होंने मोबाइल में मेरे मामा जी की लडक़ी बन्दना का नम्बर फीड करके उसे लगा दिया और उससे मेरी बात करा दी। मैं उनकी सिखाई तरकीब को मन ही मन कई बार दोहराती रही।

एक दिन की बात है पापा जी घर में मोबाइल रखा छोड़कर कहीं चले गये। मैंने मोबाइल रखा देखा तो बिना पापा-मम्मी की अनुमति के उसे चुपचाप उठा लिया और चलाने का प्रयास करने लगी थी। मैंने उनके बतलाये अनुसार मामा जी की लड़की का नम्बर निकाल कर लगा दिया। नम्बर लग गया, रिंग जाने लगी। उधर से हेल्लो ...शब्द सुनाई पड़ा। मैंने बन्दना दीदी से बात कर ली । बाद में मैंने पापा जी के बतलाये अनुसार मोबाइल बन्द करके यथा स्थान रख दिया। पापा जी जैसे ही घर आये, प्रश्न्नता में यह बात मैंने उनसे कह दी। यह सुनकर पापा बहुत खुश हुए पर बोले-‘ बेटे, कहीं तुमने इसको ठीक ढंग से बन्द नहीं किया तो सारा बेलेन्स साफ हो जायेगा।’ उस दिन उन्होंने मुझे उसे पुनः ठीक ढंग से बन्द करना सिखाया था।

इस तरह मैं मोबाइल चलाना कक्षा तीन में ही सीख गई थी। मम्मी मोबाइल चला न पाती थीं। उन्हें अपनी माँ को फोन करना होता तो वे मुझसे कहतीं-‘ खुशी, नानी को फोन तो लगा दे।’

मैं चट से उनका नम्बर ढूंढ कर लगा देती। मम्मी यह देख कर बहुत खुश होतीं। मुझे उसके कई फंगसन बचपन से ही चलाना आ गये थे। मैं मोबाइल से गेम खेलने लगी थी। जब मैं गेम खेल रही होती तो पापा कहते इतना गेम नहीं खेलना चाहिए, इससे पढ़ाई में डिस्टर्व होता है। उनकी बात मानकर मैंने गेम खेलना कम कर दिया था। मुझे मोबाइल से जोड़-बाकी, गुणा-भाग करना आ गया था। जब मैं अपनी सहेलियों से मिलती तो अपने मोबाइल चलाने की बात बड़े शान से उन्हें बतलाती। मेरे सभी सहेलियाँ मोबाइल चलाना सीखना चाहतीं थीं। इन्हीं दिनों पापा जी टच वाला मोबाइल ले आये थे। उन्होंने पहले वाले मोबाइल को मम्मी को दे दिया और बोले-‘ यह तुम्हारे पास रहेगा। तुम भी इसे खुशी से चलाना सीख लो। मैं उन्हें मोबाइल चलाने की तरकीब सिखाने लगी थी। अब तो मैं स्कूल जाती तब उसे अपने साथ लिये जाती। उससे अपनी सहेलियों को मोबाइल चलाना सिखाने लगी। अरे! जो काम हम सीख जाते हैं वह हमें सरल लगने लगता हैं।

रोज सुबह मम्मी कहतीं, ‘मुझे अखबार पढ़ना चाहिए।’ सुबह जैसे ही घर में अखबार आता, मैं लपक कर दरवाज़े से उठा लेती। उसे पढ़ना शुरू कर देती। मम्मी उसमें से मंडी के भाव पूछने लगतीं । मैं उसमें खोज कर उन्हें बतला देती। इन दिनों अखबारों में नोंट बन्दी के समाचार भरे रहते। बैंकों में लम्बी कतारों के फोटो अखबारों में छपे रहते। मैं उन्हें बड़े ध्यान से देखती। नोंट बन्दी के फायदे जानने का प्रयास करती। मैं जान गई थी कि सरकार ने कुछ सोचकर ही यह फैसला लिया होगा। कुछ ही दिनों में यह जान गई थी कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए सरकार का यह सही कदम है। इन दिनों मैं दिन भर इसी के बारे में सोचती रहती। कक्षा में सहेलियाँ इसी विषय को लेकर चिन्तित रहती। हममें इसी विषय को लेकर कक्षा में बहस छिड़ जाती। एक दिन कक्षा में चन्दन नाम के लड़के ने कहा-‘ पापा रोज मजदूरी करने जाते थे, अब वे नोट बदलने के लिए तीन दिन से बैंक की लाइन में लग रहे हैं। अब घर का काम कैसे चले? आज तो हमारे घर सब्जी ही नहीं बनी।’

मेरी मम्मी ने पाँच- पाँच सौ के कुछ नोंट खर्च में से पापा से छिपाकर बचा लिए थे। उनकी सारी पोल खुल गई। उनके कुच्चे के पैसे सबके सामने आ गये। कहते हैं सरकार ने लोगों के नम्बर दो के पैसे निकलवाने के लिए यह सब किया है। इधर तो मम्मी ने घर गृहस्थी में से पेट काटकर जो बचा लिए उनका कुच्चा सामने आ गया। वे नोंट पापा को लाइन में लग कर बैंक में जमा करना पड़े हैं।

यह ठीक रहा सरकार ने गरीब लोगों के बैंक में खाते पहले से ही खुलवा दिये हैं इसलिये लोगों को अपने रुपये बैंक में जमा करने में परेशानी नहीं हो रही है। उन्हें कुछ खर्च के लिए बदलना पड़ रहे हैं तो लम्बी लाइनें लगी है। इस समय गरीब आदमी का तो मरना हो रहा ह्रै। लाइन में लगें कि मजदूरी करने जाये। लम्बी- लम्बी लाइनें देखकर प्राण ही सूखते हैं। सुना है लाइन में लगाने के लिए पुलिस मारपीट भी कर देती है। अखबार में पढ़ा है लाइन में लगे कुछ वुढ़्ढ़े लोगों के मौत भी हो गई।

मेरी सहेली रानी कह रही थी कि उसे मामा ने एक पाँच सौ का नोंट दिया था, उसने उसे किताब में छिपाकर रखा था, जब उसकी मम्मी ने उपना कुच्चा निकाला तो उसे भी अपना पाँच सौ का नोट निकाल कर पापा को देना पड़ा। पापा उसे बैंक मैं जमा कर आये। पापा अब दें न दें। यों कुछ अन्याय भी हुआ है । कोई कह रहा था

सरकार को बड़ा काम करने में कुछ समस्यायें आती ही हैं। देश के हित में हमें कुछ कष्ट भी उठाना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। उसी की बातें गुनते हुए मैं स्कूल से घर लौट आई थी।

इसी समय भारत गैस की गाड़ी हमारा सिलेन्डर लेकर आ गई। वे पापा से बोले-‘ यदि आप हमें अपने ए टी एम कार्ड से पैसा देते हैं तो जो रेट है उससे पाँच रुपये कम लगेंगे। आपको नगद भी नहीं देना पड़ेंगे। आपके खाते से हमारे खाते में पहुँच जायेंगे। मेरे पापा जी ने अभी तक आलस में ए टी एम कार्ड नहीं बनवाया है। वे कहते हैं ए टी एम से पैसा निकालने में कुछ देर हो गई तो पैसा बापस उसी मशीन में चला जाता है। कुछ लोग मदद के नाम पर ए टी एम कार्ड ही बदल देते हैं और पैसा निकाल ले जाते हैं। इसी डर से उन्होंने ए टी एम कार्ड नहीं बनवाया है। हमारे पास ए टी एम कार्ड नहीं था इसलिए पाँच रुपये नगद के साथ अधिक भी देने पड़े। हमारे पड़ोसी रामरतन काका का दरवाज़ा हमारे पास में ही है। वे भी अपना सिलेन्डर लेने निकल आये। वे अपना ए टी एम कार्ड साथ में लेकर घर में से वाहर निकले थे। मैं देख रही थी, गैस वाले अपनी गाड़ी के साथ एक छोटी सी मशीन लिये थे। रामरतन काका ने अपना ए टी एम कार्ड उस मशाीन से लगाया। उस मशीन पर अपना गुप्त नम्बर टाइप किया। उस मशीन से एक पर्ची निकली। वे बोले तुम्हारे खाते से पैसे हमारे खाते में आ गये हैं। उन्होंने उन्हें गैसे का भरा सिलेन्डर दे दिया। उन्हें पाँच रुपये हमसे कम भी देना पड़े। अब मैं समझ गई कैश’-लेस व्यवस्था अच्छी है। मैंने पापा को समझाया- आप बैक जाकर अपना ए टी एम कार्ड बनवा लें।

एक दिन मैंने अपने कक्षा शिक्षक से पूछा-‘ सर हमें कैश- लेस व्यवस्था के बारे में समझाओ?’

मेरा प्रश्न सुनकर वे कुछ समय तक कुछ सोचते रहे, फिर बोले-‘ बच्चों, खुशी ने यह बहुत अच्छा प्रश्न किया है। मेरे लिए भी यह नया विषय है। कल मैं इस वारे में आप सब को ठीक ढंग से समझा पाउंगा।’

मैं समझ गई सर को भी इस विषय में जानकारी नहीं हैं इसीलिए वे हमें कल समझाने की बात कह रहे हैं।

दूसरे दिन सर इस विषय पर अच्छी तैयारी करके आये होंगे। आते ही बोले-‘ छात्रों, अपनी कक्षा की छात्रा खुशी के, द्वारा कल पूछे गये प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ। सुनें। यह सुनकर मैंने उनकी बातें नोट करने के लिये अपनी नोटबुक निकाल ली और सर की बातें नोट करने लगी-हमारी सरकार एक ऐसी व्यवस्था लागू करने का प्रयास कर रही है जिसमें बिना कैश के हमारे दैनिक जीवन के सारे लेन- देन सुचारु रूप से चलते रहें। हमारे पास बैंक में पैसा जमा है, बैक का क्रेडिट कार्ड, अथावा डेविड कार्ड साथ में हो, हम जिस दुकान पर जायें वहाँ उनके पास एक छोटी सी मशीन रखी होगी। उससे अपने ए टी एम कार्ड को लगा दें, फिर अपना गुप्त नम्बर उसमें डायल कर दें। उसी समय हमारा पैसा बैंक से कट जायेगा। उस मशीन से पैसा कटने की रशीद निकल आयेगी। आपके मोबाइल पर भी इसकी सूचना आ जायेगी। वह पैसा दुकानदार के खाते में जमा हो गया। वह हमारी आवश्यकता की चीज हमें दे देगा। इस तरह हमें नगद पैसे की आवश्यकता नहीं रहेगी और हमारी आवश्यकता की वस्तु हमें मिल सकेगी। मोबाइल फोन से भी लेन- देन हो सकता है। सारी व्यवस्था कैश ट्रॉसफर करने पर ही सम्भव है।

छात्रों पहले जमाने में पैसे का अभाव था तो लोग वस्तु-विनिमय प्रणाली से अपना काम चला लेते थे। वे दुकानदार के यहाँ अनाज लेकर जाते और अपनी आवश्यकता की सभी चीजें उससे ले आते थे। अब आज के आधुनिक युग में वस्तु- विनिमय के स्थान पर बैंकिंग प्रणाली से काम आसान हो गया है। नये युग की इस नई प्रणाली को सीखकर हम नये युग में प्रवेश कर इस प्रणाली का स्वागत करें। शुरु-शुरु में हर काम कठिन लगता है बाद में वही सरल लगने लगता है। पहले हम मोबाइल चलाना नहीं जानते थे। हाथ में आया तो सब सीख गये। अब तो हम टच मोबाइल भी चलाने लगे हैं। हम सीखना चाहेंगे तो जैसे पढ़ना- लिखना सीख गये बैसे ही मोबाइल से कैश-लेस प्रणाली भी सीख जायेंगे। आदमी के लिये कोई काम कठिन नहीं है। बस हममें सीखने की ललक हो।

दूसरे दिन प्रार्थना के बाद हमारे प्रधानाध्यापक इस विषय में हमें कैश-लेस प्रणाली के बारे में बतलाने लगे- मुझे बहुत प्रश्न्नता है कि हमारे कक्षा छह की बालिका खुशी ने अपनी कक्षा में इसी विषय पर प्रश्न अपने कक्षा शिक्षक से पूछा था। मैं भी इसी विषय पर आप सभी से चर्चा करना चाहता हूँ। उनकी यह बात सुनकर मैंने अपनी जेब से डायरी निकाल ली और उसमें उनकी कही बातें नोट करने लगी- बच्चो, तुम्हें इस प्रणाली को समझने की जरूरत है। हम किसी यात्रा पर जाते हैं तो बड़े नोट साथ ले जाते है । अब हमें नोट साथ ले जाने की जरूरत नहीं है। हम यात्रा पर जाते समय छोटी छोटी चीजें घर भूल आते हैं। इस प्रणाली से हम अपनी चीजे बाजार से क्रय कर सकते हैं। हमारी जेब में ए टी एम कार्ड, क्रेडिट कार्ड अथवा डेविट कार्ड हमारी जेब में हो।

कैश-लेस भुगतान की यह सबसे अच्छी बात यह है कि हम अपना बैंक अपनी जेब में रख कर चलते हैं। हर किस्म की चिल्लर अथवा बड़ी रकम चाहे वह लाखों में हो, साथ लेकर चल सकते हैं। चोरी का अथवा जैब कटने का भय भी नहीं रहता है। यदि आपका कार्ड चोरी हो भी गया तो उसका गुप्त कोड नम्बर आपके मन में रहता है। कोई उसमें से आपके रुपये निकाल ही नहीं सकता इस तरह आप सुरक्षित तरीके से यात्रा कर सकते हैं।

आधुनिक कैश-लेस भुगतान की प्रणाली में केडिट कार्ड, डेेबिट कार्ड अथवा ई- वालेट जैसी टेक्नालॉजी का उपयोग होता है। इसमें इन्टरनेट प्रणाली का सुरक्षित प्रयोग बनाया गया है। हम कम्पूटर एवं मोबाइल से भी नेट के द्वारा लेन- देन कर सकते हैं। इसमें बैंक से हमें एक कोड़ लेना पड़ता है। जिसे गुप्त रखने की जरूरत रहती है।

इसी समय हमाी कक्षा के एक छात्र ने प्रश्न किया-‘ सर, क्या इसमें बैंक के समय में ही यह प्रणाली कार्य करेगी।’

उन्होंने उत्तर दिया-‘ बच्चों जैसे ए टी एम हर समय कार्य करते हैं बैसे ही इस प्रणाली में चौबीस घन्टे कैश उपलव्ध रहने की सुविधा है। अब तो केडिट कार्ड की तरह प्रीपेड कार्ड, पेट्रो कार्ड आदि भी आ गये हैं। इनसे घर बैठे लेन- देन किया जा सकता है। इन दिनों एन एफ सी और आर एफ आई डी जैसे सिस्टम भी आ गये हैं। इनके द्वारा भी आसानी से भुगतान किया जा सकता है।

बच्चों इनमें से किसी एक प्रणाली को हम सीख लें, आसानी से हम अपना कार्य कुशलता पूर्वक चला सकते हैं। इस प्रणाली से हम विश्व स्तर पर भी सफल हो सकते हैं।

मैंने सीखने के उदेश्य से पूछा-‘ सर, हमें बताये ? हम किसी दुकान पर पहुँचे , हमारे पास हमारा ए टी एम कार्ड है। उससे हम कैसे भुगतान करेंगे?’

प्रधानाध्यापक ने हमें समझाया-‘ आप ,किसी दुकान पर पहुँचे। आपने अपने ए टी एम कार्ड से उस दुकान पर रखी स्वाइप मशीन पर अपने कार्ड को उससे लगायें, मशाीन ने आपके ए टी एम कार्ड को पढ़ लिया। वह आपके खाते को पहचान गया। उसके बाद आपने अपना गुप्त नम्बर डायल कर दिया। उसमें रुपये भर दीजिये। यस करने पर उन्हें वह भुगतान हो गया । वह दुकानदार आपको उतने रुपये की वस्तु प्रदान कर देगा। इस तरह छोटी- बड़ी धन राशी से आसानी से लेन- देन बिना नगद पैसे के हो सकेगा। इस तरह आप कैश-लेस व्यवस्था में सम्मिलित हो सकतें हैं।

आप कहीं ऐसे कस्बे में पहुँच जाते हैं , जहाँ सभी स्थानों पर कैश-लेस लेन- देन की व्यवस्था है। वहाँ आपकी जेब में रखे रुपये, काम देने वाले नहीं हैं। वहाँ तो आपको अपना काम चलाने के लिये कैश-लेस उपकरण ही काम में लेना पड़ेगा। नहीं तो आप वहाँ भूखे रह जायेंगे। आपको ठहरने की जगह भी नहीं मिल पायेगी। उस जगह आपको एक अजनवी की तरह जीवन व्यतीत करना पड़ेगा।

आप सब के यहाँ ए टी एम कार्ड, क्रेडिट कार्ड अथवा डेविट कार्ड होंना चाहिए। उनसे आप यह सब आसानी से लेन देन कर सकते हैं। जिसके यहाँ यह व्यवस्था नहीं है वे बैंक जाकर अपना कार्ड बनवा सकते हैं।

कुछ ही दिनों में पापा जी का ए टी एम कार्ड बनकर आ गया। अब तो पापा जी हर जगह उसका उपयोग करने लगे हैं। गाड़ी में पैट्रोल भरवाने जाते कार्ड साथ ले जाते हैं। वे कह रहे थे ए टी एम कार्ड से पैट्रेासे सस्ता मिलता है। न चोरी का डर न जेब कटने की समस्या बिना पैसे के सारे काम चलने लगे हैं। केवल छोटे दुकानदारों को नगद देना पड़ता है क्योंकि उनके पास पैसे लेने की मशीन नहीं होती है।

एक दिन मुझे पापा जी के साथ ग्वालियर जाना पड़ा। मैं पापा जी से उनका ए टी एम कार्ड साथ लेकर गई थी। मैंने तय कर लिया था कि मैं इसका उपयोग करुंगी। स्टेशन पर टिकिट के लिए लम्वी लाइन लगी थी। एक दूसरी खिड़की पर कैश- लेस टिकिट हेतु खिड़की खाली पड़ी थी। पापा जी उस खाली पड़ी खिड़की पर पहुँच गये। उन्होंने वहाँ रखी एक मशीन पर अपने ए टी एम कार्ड को लगाया, उस पर अपना गुप्त कोड डायल किया अन्दर बैठे किलर्क ने पूछा कहाँ जाना है । पापा जी बोले‘ ग्वालियर। ’

उसने पैसे बातलाये । पापा जी ने उस मशीन पर उतने पैसे अंकित कर दिये। हमें बिना लाइन में लगे टिकिट मिल गया। इस तरह यह हमारा पहला कैश -लेस टिकिट था। उस दिन मे। कैश- लेस का महत्व समझ गई। और अन्य लोगों से हमें टिकिट के लिए कुछ कम दाम खर्च करना पड़े। इस तरह हमें अपने मोबाइल से घर बैठे टिकिट प्राप्त कर सकते हैं। कहीं ठहरने के लिए होटल बुक कर सकते हैं।

मेरे पापा जी किसान हैं। गेहूँ की फसल आ गई। पापा जी ट्राली भरवा कर मन्डीं में बेच आये। वहाँ से पहले तो नगद मिला करते थे अब की वार नगद न मिलकर एक लाख का चैक मिला। उसे बैंक में जमा कर दिया । दूसरे दिन पैसा खाते में जमा हो गया। जिसकी सूचना पापा जी के मोबाइल पर आ गई। पापा जी हर माह की तरह इस माह भी घर के लिये किराने का सामान लेने मुझे साथ लेकर गये । जिससे सामान लाने मैं मदद कर सकूँ। अब की वार दुकानदार की दुकान पर पैसे लेने की मशीन रखी थी। पापा जी ने सामान लेकर मुझ से कहा -‘ मेरा यह क्रडिट कार्ड है, इसी माह बनवा लिया है। अब की वार इससे दुकानदार को सामान के पैसे मुगतान करेंगे। किराने का सामान लेने के वाद विल के पैसे जोड़कर बतला दिए। भुगतान के लिए पापा जी ने अपने ए टी एम कार्ड की तरह इसे भी उस मशीन से लगाया । उस में अपना गुप्त नम्बर डयाल किया। यस का बटन दबाने पर पैसा दुकानदार के खाते में पहुँच गया। न हमें बैंक से पैसा निकालकर लाना पड़ा, न दुकानदार को पैसे जमा करने बैंक की लाइन में लगना पड़ा। इस तरह कैश-लेस व्यवस्था से हम अपना सामान लेकर घर चले आये।

अब तो मैं इस बात की चर्चा अपनी सहेलियों से करती रहती हूँ जिससे वे भी इसी व्यवस्था में हिस्सेदारी कर सके।