वो उसके पीछे पीछे रसोई तक जाता है
मुस्कुरा कर कहता है
"भूल गया ना बाबा आज अपनी शादी की सालगिरह है माफ भी कर दो"
"तुम ना निक्षांत हर बार भूल जाते हो"
कहते हुए वो गुस्से में उसे देखती है
"अब देखो ना मुझे तो बस तुम याद रहती हो
तो दूसरी चीज़े कहाँ से याद रहेगी ये भी तो सोचो"
"हाँ आप और आपके ये बहाने कभी खत्म नहीं होते"
"प्यार भी तो खत्म नहीं होता ना"
कहते हुए वो आरोही को जोर से एक झप्पी देता है
आरोही अपना गुस्सा भूल के मुस्कुरा देती है
"मम्मा आपकी और पापा की शादी तैसे हुई ? "
उनकी 3 साल की बेटी जीनु सवाल करती है
दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा पड़ते है
तभी जीवा वहाँ आती है
सबके लिए केक लेकर
अरे बेटा तुम्हें नहीं पता बहुत पापड़ बेले है दोनों ने
तब कहीं जा कर इनको इनके हिस्से की खुशी मिली है
"अच्छा नानी....पल ये तो बताओ हुई तैसे" जीनु सवाल करती है
"अरे मेरी प्यारी गुड़िया आ बैठे यहाँ तुझे सब बताती हू" जीवा कहती है
झमुरे ने आरोही की शादी तय कर दी थी।
जिस दिन शादी होनी थी उस दिन ही तुम्हारे पापा के exam था
पढ़ते पढ़ते ख्याल आता... कहीं मेरी आरोही किसी और की हो गयी तो ,...एक पल रोने का मन करता
पर दूसरे ही पल दिल को समझाता की......वक़्त कम है इसी में मुझे exam clear करना है
बस फिर उसी जुनून से पढ़ने लगते
उधर आरोही हर वक़्त यही सोचती
काश किसी तरह निक्षांत से बात हो जाए
गाँव में बिछिया और छाया पूरी कोशिश करते की वो उसकी मदद कर सके
पर वो भी झमुरे के आगे कुछ नहीं कर पाते
और मुझे तो झमुरे ने शक्त हिदायत दी थी की में आरोही के आस पास ना दिखूँ
खैर जैसे जैसे वक़्त गुजरता गया
आरोही की शादी के दिन नज़दीक आने लगे
आज आरोही सज संवर के बैठी थी
बैठी तो क्या थी
जबरदस्ती बैठाई गयी थी
जिंदगी में इतनी खूबसूरत वो कभी नहीं लगी
पर उसे इंतज़ार था बस निक्षांत का
वक़्त रेत की तरह फिसल रहा था
तभी निक्षांत आता हैं
उसे देख कर उसकी आँखों में से छुपे आँसू छलक जाते है
पर ज्यादा शोर ना हो इसलिए वो कुछ ज्यादा बोल नहीं पाती
निक्षांत उसे अपनी शहजादी की तरह सबसे छुपा कर ले जाता है
पर रास्ते में ही उनकी बाइक को कुछ लोग रोक देते है
वे उन्हें पकड़ कर झमुरे के सामने पेश करते है
किसी मुज़रिम की तरह।
रतना ये सब देख के बहुत दुखी हो जाती हैं
झमुरे के कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ती है
"बिछिया के पापा... आज तक हमने आपकी सारी बाते मानी ....पर आज आपको हमरी बात सुननी पड़ेगी। हम अपनी बेटी के साथ इस बर्ताव क्यों कर रहे,...सिर्फ अपने अहम् के लिये
कभी इस बच्ची की खुशी के बारे में नहीं सोचा
अरे ये निक्षांत बबुआ अब नौकरी पे चड़ने वाला है
खूब खुश रहेगी अपनी बिटिया और भले आप साथ दे ना दे
पर हम अपनी बिटिया का विवाह इसी से करवाएंगे"
जैसे जैसे जीवा ने कहा था रतना ने उसकी लाइने अपने रोबिले अंदाज़ में झमुरे को सुना दी
आज पहली बार झमुरे ने रतना को इतनी कड़क आवाज़ मे सुना था। और सही तो कह रही है बेचारी .. हमेशा मेरी बात सुनी है बस कभी अपने दिल की नहीं की
और आज तो इसकी बात में दम भी है यही सोच के उसने उन दोनों को जाने दिया हालांकि उसने उनकी शादी के लिए हाँ नही की क्युंकि समाज़ का डर उसे आज भी था पर उसने उनको आशीर्वाद जरूर दिया
दोनों खुशी खुशी वहा से चले गए
पर अब झमुरे को गाँव वालों का सामना करने के लिए भी हिम्मत जुटानी थी
पुराने खयालात के लोग थे उनकी नजर में दूसरी जात में ब्याह करना पाप समझा जाता
कुछ दिनों बाद गाँव में बैठक बुलाई गयी। झमुरे और उसके परिवार को गाँव से बाहर करने का फैसला लिया गया। बिना उनकी कोई दलील सुने
पंचो ने अपना फैसला सुना डाला।
तभी वहा पुलिस की कुछ गाड़िया आ के रुकी। थोड़ी देर में एक कार वहा आई उनमे से सूट बुट पहने एक आदमी निकला जिसे सारे पुलिस वाले सलाम कर रहे थे।
शायद कोई बड़ा अधिकारी था
पंचो की मनमानी शिकायत मिलने पर मामले की जांच करने आये थे
क्रमश......