उपन्यास-
भाग—6
अन्गयारी ऑंधी—6
--आर. एन. सुनगरया,
ट्रान्सफरेबल जॉब, खाना बदोश जीवन के समान होता है। इसमें कुछ भी स्थाई नहीं होता; सभी कुछ अस्थाई, कोई ठौर-ठिकाना नहीं। यहॉं तक कि आचार-विचार, व्यवहार, रहन-सहन, पसन्द भावनाऍं, इच्छायें, सामाजिक मेल-जोल, नाते-रिश्ते, सम्बन्ध, सहायता, सहानुभूति एवं सम्पूर्ण सरोकार समय के साथ समाप्त प्राया हो जाते हैं। अतीत के गर्त में।
‘’कब आये शक्ति!’’ हेमराज ने दस्तक दी।
‘’काफी पहले....!’’शक्ति ने पूछा, ‘’तुम कहॉं, लेट हुये?’’
‘’घर, द्वार और परिवार.....।‘’
‘’हॉं यार, बीबी-बच्चे ही, सब कुछ होते हैं।‘’ शक्ति ने अपना दृष्टिकोण जाहिर किया, ‘’सार्थक जीवन का आधार होता है परिवार।‘’
हेमराज सोचने लगा, ‘वाह शक्ति परिवार की फिक्र! और तुम!’
शक्ति प्राया, परिवार के मसले पर उदासीन हो जाया करता था। अपनी पूरी परेशानियों की जड़ बीबी-बच्चों को ही मानता था। बारम्बार, घर गृहस्थी से विरक्त महसूस करता था। पारिवारिक चर्चाओं से हमेशा भागता था। पलभर में ऊबकर चल देता था। गमगीन होकर बैठा रहता था।
हेमराज को राहत महसूस हुई कि शक्ति का नजरिया, बदला-बदला सा प्रतीत हो रहा है। क्योंना समय-बे-समय बाल-बच्चों एवं पत्नि की कुशलक्षैम की चर्चा की जाये। पूरे माजरे का पता लगाया जाये! अब शक्ति बिदगेगा नहीं। बलकि चाव से चर्चा में चाहेगा शामिल होना!
शक्ति अधलेटा सा सोफे पर कुछ ख्यालों में खोया है.........
..........कमरा मध्यम गुलाबी रोशनी से रौशन, पलंग पर पैर मोड़कर हाथों की उंगलियों की कैंची बनाकर घुटनों को पकड़े, सटाये हुये, आधे घूँघट से शक्ति को नशीली नजरों से निहार रही है। शक्ति जड़ हुआ, उसे एकटक, बिना पलकें झपकाये देखे जा रहा है। कुछ ही क्षणों के उपरान्त मूर्तीवत बैठी सपना के ओंठों पर मस्त मुस्कान उभर आई, जो कमरे में व्याप्त वायु में घुलमिल कर मदहोशी में बदल गई। शक्ति अर्धचेतन अवस्था में सपना के समीप आ खड़ा हुआ। शक्ति सिर्फ स्वप्न समान अपने आगोश में समेटकर महफूज़ रख लेना चाह रहा है। इतना प्यारा मोहक, सुहाना, सुन्दर सपने का एहसास करना चाहता है। केवल भावनाओं में महसूस करना आशातीत लग रहा है। ध्यान साधना बाधित करना उचित नहीं।
हेमराज की सोच और आंकलन के अनुसार शक्ति एक पहेली सा प्रतीत होता है। अनसुलझी, अनजान एवं क्लिष्ट-कठिन। शक्ति का व्यक्तित्व अनापेक्षित रहस्यमय बनता जा रहा है। अब वह एकदम जुदा ही शक्ल में उभर रहा है। अनुसंधान का विषय जान पड़ता है। हेमराज को शक्ति के दबे-छुपे आन्तरिक कर्मकाण्डों एवं कारनामों को कुरेदने में, खोलकर, सुलभ समाधान करने में बहुत रूचि है। अभूतपूर्व आनन्द की अनुभूति एवं तसल्ली की खुशी मिलती है। जो शक्ति से सम्बन्धों की घनिष्ठता का प्रमाण भी है।
‘’किन ख्यालों में, शक्ति आजकल।‘’ हेमराज उसके करीब बैठ गया, ‘’हॉं-हॉं कहो।‘’
‘’सम्पूर्ण सांसारिक सुख सुविधा, समग्र प्राकृतिक-देन, वरदान परिवार में ही समाहित है। मनोयोग से उन्हें अपने अनुकूल सुलभ करने हेतु स्वभाविक प्रत्येक प्रयत्नों की जिम्मेदारी पूर्वक चेष्टा की आवश्यकता है।‘’
वाह शक्ति, हेमराज मन ही मन सोच में पड़ गया, लम्बे-लम्बे गूँढ़, दार्शनिक प्रवचन। कौन सी घुट्टी ग्रहण करके बैठे हो। दिमाग पूरी तरह सात्विक एवं सनातनी विचारों से ओत-प्रोत हो गया, कदाचित! पारिवारिक महत्व की सकारात्मक व्याख्या! कमाल है!
हेमराज की खोज परक योजनाऍं धूमिल लगने लगीं। शक्ति के क्रोध का दौरा प्रकरण अथाह गहराइयों में, दफ़न होता प्रतीत होता है। मगर वह घटना यर्थाथ है, देखी-परखी है। उसके तार, भूतकाल एवं भविष्य के परिणामों से जुड़े हुये हैं। इसे नजर अन्दाज किया जाना किसी अन्जान जोखिम को खुला आमन्त्रण होगा। इस मसले पर गौर तो करते ही रहना होगा। भले ही धीमी गति से ही सही।
हेमराज के गम्भीर मुखमंडल का नजर निरीक्षण करते हुये शक्ति ने कहा, ‘’बहुत नीरस इन्सान हो हेमराज।‘’ वाक्य में प्रताड़ना का पुट था।
‘’अनुसाशन, सभ्यता, संस्कार, संस्कृति, मर्यादा भी तो सुसभ्य समाज के जनजीवन में स्वीकृत तत्व है।‘’ हेमराज ने एक ही सांस में, सामाजिक परम्पराओं के निर्वहन की सीख दे डाली।
कुछ पल चुप्प रहकर शक्ति ने नर्म स्वर में अपनी मंशा जाहिर की, ‘’अन्तरंग मित्रों से अनुभवों का आदान-प्रदान नहीं होगा तो....’’
‘’ये सर्वविदित स्वसिद्ध कार्य कलाप है।‘’ हेमराज की बातों में विरोध का समावेश प्रतीत हो रहा था, आगे बोला, ‘’गुप्त को गुप्त ही रहने दो, रहस्य की भी अपनी मर्यादा होती है।‘’
‘’मर्यादा का उलन्घन ना सही।‘’ शक्ति ने अप्रत्येक्ष दबाब डाला, ‘’परन्तु सांकेतिक रूप में तो दृश्य–परिदृश्य उजागर करने में कोई संकोच-शरम महसूस नहीं होनी चाहिए।‘’ शक्ति मन्द-मन्द मुस्कुराता रहा।
‘’........।‘’ हेमराज खामोश।
‘’मात्र सामान्य जिज्ञासावश....।‘’ शक्ति।
‘’शादी-सुदा जानता है।‘’ हेमराज झुंझलाया, ‘’क्या है, पर्दे के पीछे, गोपनीय!’’
‘’दोनों के बीच!’’ फरियादी लहजे में शक्ति ।
‘’जग जाहिर है।‘’ हेमराज ने टालमटोल की, ‘’बिना प्रचार-प्रसार के!’’
‘’फिर भी.....।‘’ शक्ति ने जोर डाला।
‘’नितांत-निजि क्षणों के अँधेरे में झॉंकना।‘’ हेमराज ने चतुराई से इन्कार किया, ‘’ना ही बैधानिक है और ना ही मर्यादित।‘’ शक्ति की ओर मुस्कुराते हुये देखकर कहने लगा, ‘’समझे शक्ति, किसी भी दृष्टि से ये सभ्यता के विपरीत कार्य है।‘’
दोनेां ठहाका मारकर खिलखिलाने लगे। दोनों हाथों की हथेलियों की थाप एक-देसरे को देकर स्वच्छन्दता पूर्वक हँसने लगे। काफी देर तक हंसी-दिल्लगी का चटकारे दार आनन्द-मजा लेते रहे।
हेमराज ने तर्कों का भ्रमजाल फैलाकर अन्तरंग क्षणों के रहस्यमय क्रियाऍं-प्रतिक्रियाऍं उद्घाटित ना करके तो शक्ति से पीछा छुड़ा लिया, लेकिन अपने दिल-दिमाग में उभरते हुये रंगीनीयों के सुनहरे चमकीले पल स्मृतियों के परिसर में मस्तीभरी अटखेलियों से नहीं बच पाया। अँधेरे छट गये। दुधिया चॉंदनी सी रोशनी में समग्र झॉंकियॉं जीवित-तरो-ताजा हो उठीं। हेमराज उन दृश्य-परिदृश्यों में एैसा घुलमिल गया, जेसे उसका अस्तित्व ही ना हो। सौन्दर्य सागर में गोते पर गोते लगाता रहा था भरपूर रसास्वादन में लीन-तल्लीन हो गया। ये है कुदरत का अविश्मर्णिय-अमूल्य नजराना, जिसका उपभोग सीमा रहित.....शब्दों से परे......।
मन-मन्दिर में गुप्त स्थान में कैद, गोपनीय स्मृतियों के घोड़े सुरक्षा सीमा लॉंघकर स्वतंत्र विचरण करते हुये, ऑंखों में उतर आये, एहसास करते ही पलकें स्वत: बन्द हो गईं...........
.......मोहनी..मोहनी......पुकारते प्रेमपूर्वक हेमराज, उसके समीप पहुँचने से पूर्व ही ठिठक गया......मोहनी करीने से अपने बदन पर साड़ी लपेट रही थी.....अन्तिम क्षण में, पल्लू लहराते, बलखाते, लचकते हुये अपने कन्धे पर डाल रही थी कि हेमराज उसके आगोश में लिपट गया, चॉंदनी सी चादर की भॉंति साड़ी के सिरे ने, मोहनी का कन्धा व हेमराज का सर एक साथ ओढ़नी से ढक गया। हेमराज को एैसा प्रतीत हुआ, जैसे सुन्दर सितारों की बारिष ने नहला दिया। सॉंसों में बदन की गुलाबों सी सुगन्ध, घुलती जा रही है। हेमराज बेखुदी के आलम का लाभ उठाते हुये, मोहनी को अपनी बाहों में भर लेता है। दोनों की संयुक्त उन्मुक्त हँसी की सरगम खनकने लगी।
........हेमराज दहलीज पर बनी सीडि़यों पर बैठा संतरा छीलते हुये, मोहनी के विभिन्न आयामों को गौर से अवलोकन कर रहा था। वह किचिन गार्डन के पूर्ण खिले फूलों का स्पर्श करती है, हल्के छुअन द्वारा हेमराज ने ध्वनि संकेत के माध्यम से मोहनी का ध्यान आकर्षित करता है। मोहनी ने मुस्कुराते हुये उसे देखा, नशीली-निगाहों से। अपनी बगिया का ताजा-तरीन खिला फूल तोड़कर हेमराज के समीप आने लगी, धीमी गति, झूमती हुई।
‘’लो फूल! प्यार का परिचायक।‘’ मोहनी ने महकता-मुस्कुराता पुष्प बढ़ाया।
‘’बहुत खूब।‘’ हेमराज ने फूल लेने के बहाने कलाई पकड़ली, होले से खींचकर अपने सामने खाली सीड़ी पर बैठा ली। मोहनी खुशी-खुशी तत्काल स्वइच्छापूर्वक बैठ गई, अपनी कोहनियों को हेमराज के मुड़े हुये घुटनों पर टिका ली। हाथ में पकड़े हुये फूल को सहलाने लगी। उसके खुशबूदार खुले केश हेमराज के सीने पर बिख्,ार कर मचलने लगे। मिलि-जुलि मिश्रित महक माहौल को खुशनुमा बना रही थी। हेमराज ने संतरे की कली उँगलियों से पकड़कर, मोहनी को खिलाने का संकेत दिया। बिखरे अस्त-व्यस्त जुल्फों को दूसरे हाथ की उँगलियॉं फंसाकर कंघी जैसा फेरते हुये, अपनी मंशा व्यक्त की। मोहनी ने उसके सीने से सर का पिछला हिस्सा रगड़ते हुये, अपनी ठुड्डी ऊपर की, हेमराज ने अपना चेहरा मोहनी की दीप्तीमान सूरत के पास लाकर, संतरे की कली, उसके थर्थराते, भरेपूरे, अद्धखुले ओठों के बीच रख दी। अद्भुत, अनुभूति....दो कलियों के बीज तीसरी कली। स्पष्ट कहना कठिन,..कि रस, किस कली के दबाब से फूट पड़ा! तीनों कलियॉं रसीली प्रतीत होती हैं। उसने अपना सर और नीचे झुकाया।
......कभी-कभी जिन्दगी एैसे चिरकालिक क्षणों की चश्मदीद बन जाती जिन्हें बिसारना वश की बात नहीं...। एैसे स्वर्णिम ख्यालों को सजा-सहेजकर सम्पदा समान आत्मीय मन-मन्दिर में महफूज कर निहाल महसूस करता हूँ, शेयर हरगिज नहीं........।
न्न्न्न्न्न्
क्रमश: --7
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय-
समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं
स्वतंत्र लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
न्न्न्न्न्न्