Baingan - 4 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 4

Featured Books
Categories
Share

बैंगन - 4

( 4 )
अब मैं सचमुच बिफर पड़ा। मैंने बच्चों के सिर पर हाथ फेरा, भाभी को नमस्कार किया और फ़िर भाई की ओर कुछ गुस्से से देखते हुए मैं वाशरूम में चला गया और दरवाज़ा भीतर से बंद कर लिया।
मैं मन ही मन तिलमिला रहा था कि यहां आने के बाद से हर कोई मुझसे बात- बात पर मज़ाक कर रहा है। स्टेशन पर भाई के आदमियों ने मज़ाक किया, यहां घर आकर ख़ुद भाई ने।
मैंने मन में ठान लिया कि अब मैं भी इन सब लोगों को मज़ा चखाऊंगा। वाशरूम में बैठ जाऊंगा और चाहे जो हो जाए, दरवाज़ा खोलूंगा ही नहीं। करने दो सबको इंतजार, अब चाहे दरवाज़ा तोड़ना ही क्यों न पड़े।
मैं चुपचाप भीतर बैठ गया।
मैंने मन में सोच लिया कि चाहे जितनी देर हो जाए, मैं भीतर से किसी की बात का जवाब भी नहीं दूंगा। होने दो सबको परेशान। नए घर के शानदार दरवाज़े को तोड़ेंगे तब जाकर अक्ल आएगी कि दूसरों से मज़ाक करने का क्या नतीजा होता है। जाने क्या सीख कर अाए हैं विदेश से ये लोग! मेरा गुस्सा थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।
बाहर से आवाज़ें आ रही थीं। भाभी भाई को बता रही थीं कि बच्चों के स्कूल एडमिशन के लिए बात करने वे लोग जहां गए थे वहां क्या हुआ। उन्हें दोबारा कब बुलाया है आदि आदि।
भाई भी भाभी और बच्चों को बता रहा था कि मेरी गाड़ी कितना लेट थी और मैं घर कैसे कैसे आया।
कुछ देर बाद बाहर खामोशी हो गई। मुझे लगा, अब इन सबकी बातें ख़त्म हो गईं, अब इनका ध्यान मेरी ओर जाएगा फ़िर मुझे आवाज़ लगेगी। सबको अचंभा होगा कि मुझे इतनी देर क्यों लग रही है।
मैं मन में ख़ुश होता हुआ इंतजार करने लगा कि भाई अब बेचैन होकर मुझे आवाज़ लगाए और फ़िर मैं कोई जवाब न देकर सबको आश्चर्य में डाल दूं। बाहर थोड़ी खलबली मच जाएगी और फ़िर मैं अन्दर बैठा- बैठा चुपचाप आनंद लूंगा।
मुझे याद आया कि शौचालय में बहुत ज़्यादा देर तक बैठने के बारे में भी मेरा एक दिलचस्प अनुभव था। मैं कभी- कभी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र भी जाया करता था। वहां के एक चिकित्सक तो कहते थे कि हमारे शरीर की आधे से ज़्यादा समस्याएं तो हमारे पेट से ही शुरू होती हैं। क्योंकि हम दिनभर में जो कुछ खाते हैं, जितनी मात्रा में खाते हैं वही हमारे शरीर को नियंत्रित करता है। ऐसे में उनका कहना था कि सप्ताह में कम से कम एक बार तो हमें बिल्कुल निश्चिंत होकर शौचालय में देर तक बैठना ही चाहिए। यदि हम बिना बात के बैठे रहने में उलझन महसूस करें तो हम वहां पढ़ने के लिए भी कुछ ले जा सकते हैं।
और युवा पीढ़ी तो मोबाइल हाथ में लेकर घंटों कहीं भी गुज़ार सकती है, ऐसा वो कहते थे। मुझे तो ऐसा लगता था कि युवा ही नहीं बल्कि बुज़ुर्ग लोग भी मोबाइल के सहारे आराम से समय काट सकते हैं।
जो भी हो, आज मैं इन सब को छका कर ही रहूंगा। आख़िर इन लोगों ने समझा क्या है? क्या मज़ाक करना केवल इन्हें ही आता है? अब देखना कैसे सब परेशान होंगे!