डाइनिंग टेबल का महत्व-व्यंग्य in English Comedy stories by Rishi Katiyar books and stories PDF | डाइनिंग टेबल का महत्व-व्यंग्य

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डाइनिंग टेबल का महत्व-व्यंग्य

नहीं ,नहीं। मैं सफिस्टिकैटड होने की ऐक्टिंग नहीं कर रहा, ना ही अमीरों जैसे रुतबा दिखाने की कोशिश कर रहा हूँ और न ही मेरे ‘पर’ निकल आए हैं, फिर भी अक्सर मुझे तो यह सोच के भी हैरानी होती है कि लोग बिना डाइनिंग टेबल के कैसे रहते होंगे? मलतब ‘हाऊ मैन हाऊ’ (वैसे तो ये बस एक इक्स्प्रेशन है पर इससे पहले लोग फेमिनिज़म के सवाल उठाएं, ‘हाऊ वुमन हाऊ’।

डाइनिंग टेबल सिर्फ एक टेबल नहीं है जिसपे खाना खा सकते हैं। डाइनिंग टेबल का उपयोग हमारे घर में गाँव के सरकारी स्कूल की तरह होता है जो अपने मूल उद्देश्य को छोड़ के हर काम के लिए प्रयोग होती है। बिना डाइनिंग टेबल के लोग घर का सारा सामान, जैसे बर्तन, कपड़े, गिलास, तौलिया,कुकर का ढक्कन,सब्जी का झोला,सुपरमार्केट की सामान सहित पन्नियाँ, खाली बोतलें,पोंछे का कपड़ा, अचार-मुरब्बे के मर्तबान, चाय के जूठे कप, सब्जियों के डंठल-छिलके, बच्चों के खिलौने, डायपर पेन-पेंसिल,किताबें कहाँ रखते होंगे। बिना डाइनिंग टेबल की कुर्सियों के चादरें, तौलिए, तकिये के कवर कहाँ सुखाते होंगे? डाइनिंग टेबल एक शादीशुदा इंसान के घर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।

हालाँकि डाइनिंग टेबल पाई वहीं जाती है जिसे ‘डाइनिंग एरिया’ कहा जाता है,(मुख्यत: किचन के बाहर वाली जगह या कच्चे घरों मे चौके के बाहर वाली रास्ता),पर ये ध्यान से देखने पर नजर आ जाएगी। या फिर तब जब इसपे जमा मलबा हटा के जिस जगह पर इसके होने का अंदेशा हो ,वहाँ खुदाई की जाए तब। डाइनिंग टेबल का मूल रंग क्या था, यह बहस का मुद्दा है। मुझे लगता है ये कि हल्के भूरे रंग की है, जबकि श्रीमती जी का दावा है कि हमने चॉकलेटी कलर की खरीदी थी और सिर्फ दो साल पहले की ये बात मैं भूल कैसे सकता हूँ?कैसे आखिर कैसे?

पर जितना महत्त्व डाइनिंग टेबल का शादीशुदा लोगों के लिए है उतना बैचलर्स के लिए नहीं है। क्योंकि बैचलर्स के पास डाइनिंग टेबल पाई ही नहीं जाती है। उनके लिए उनकी दुनिया उनके बिस्तर तक सीमित होती है। उनके कच्छे, तौलिया, कपडे, लैपटॉप,फ़ोन,चार्जर,मैग्गी का गन्दा भगौना,दालमोठ के पैकेट, चिप्स,कोल्ड ड्रिंक्स,किताबें उनके साथ ही बिस्तर पे पाई जाती हैं।अगर दुनिया बाहर खत्म भी हो जाए, तब भी एक बैचलर अपने बिस्तर पे हफ़्तों सर्वाइव कर जाएगा।

घर हो या बाहर, क्या आज के दौर में सब कुछ व्यवस्थित और सही तरीके से होने की कामना करना किसी मानसिक व्याधि के लक्षण हैं? लेकिन कई बार हम स्वयं अव्यवस्थाग्रस्त स्थितियों में रहते हुए इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि व्यवस्था, सलीका और काम को सही तरीके से करना बहुत विचलित करने लगता है।

जो चीज जिसके लिए है उसका उसके लिए इस्तेमाल सीखा ही नहीं, या कहो ये सीखना या सिखाया जाना कभी हमारे सिलबस में रहा ही नहीं।'बादशाह फिल्म के जैसे हम फ्रीज़ में कपडे रखते हैं, बिस्तर में खाना खाते हैं, सोफे पे सोते हैं, आउटडोर गेम्स रूम में खेलते हैं, मैदान में फ़ोन में खेलते हैं।

आखिर थर्मोडाइनैमिक्स के नियम से बंधे हुए हैं हम लोग और एन्ट्रॉपी कोई हमारे हाथ मे थोड़े ही है। तो भैया, डाइनिंग टेबल हमारे लिए हर मर्ज़ की एक दवा है।