अतीत के चलचित्र-(2)
पिताजी ने हमें बताया कि हम माताजी पिताजी के साथ राजस्थान जायेंगे सुनकर हम भाई-बहन बहुत ही खुश थे ।हम अपने उत्तर प्रदेश के ब्रजक्षेत्र में रहते थे कभी दूसरे प्रदेशों में जाने का अवसर नहीं मिला था।
हमारी बूआ जी राजस्थान के झुंझुनू जिले के एक गॉंव में रहा करतीं थीं ।बूआ जी के घर पर उनके बेटे की सगाई का कार्यक्रम था ।सगाई वह गॉंव में ही करना चाहती थी और विवाह का कार्यक्रम उन्होंने शहर में करने का विचार बनाया था ।
बूआ जी का मन था कि हम लोग सभी रिश्तेदार उनके गॉंव अवश्य आयें।हमने भी गॉंव नहीं देखा था तो पिताजी ने बच्चों सहित जाने का कार्यक्रम बना लिया ।हमारे दो -दो जोड़ी कपड़े नये बनवाये गये ।
पहली बार रेल से यात्रा करने के लिए हम उत्सुक थे।पिताजी अनेक बार गये थे,हम बच्चों को जाने का पहली बार अवसर था ।
मॉं ने यात्रा में खाने के लिए मठरी और लड्डू बना लिए थे और सूखी सब्ज़ी के साथ पूरी और करेले भी बनाए ।
स्टेशन हम रिक्शे से गये तो रेल आने का समय हो गया ।हम पहुँचे ही थे कि रेल आ गई,हमारी सीटें बुक थी ।हमसब अपनी-अपनी सीट पर बैठ गये ।यात्रा में बहुत ही आनन्द आया रात होने लगी तो सबने भोजन किया और हम अपनी सीट पर सो गए ।
सुबह हमारी ऑंखें खुली तो बाहर का नजारा बहुत ही मन मोहने वाला था ।सुबह कुल्ला,दातून करने के बाद दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर नाश्ता किया फिर हम लोग कहानी की किताबें पढ़ने लगे ।एक स्टेशन पर पिताजी बुक स्टाल से कुछ बच्चों की कहानी की किताबें लेकर आये थे बारी-बारी से हमने पढ़ीं ।
हम झुंझुनू स्टेशन पहुँचे वहाँ बुआजी के बेटे पहले से तैयार खड़े थे।
स्टेशन से गॉंव तीस किलोमीटर दूर था।वहॉं से बस द्वारा हमलोग गॉंव की मुख्य सड़क पर पहुँचे वहाँ से सारा सामान ऊँट गाड़ी में पहुँचाया गया और हम रेतीले रास्ते पर आनंद लेते हुए घर पहुँचे ।वहॉं हमारे अनेक रिश्तेदार इकट्ठे हुए थे सब से मिलकर बहुत ही अच्छा लगा ।
सब लोग थक गए थे शाम को सबसे परिचय हुआ और हमलोग सो गये ।
अगले दिन सगाई समारोह हुआ,बहुत आनंद आया ।समारोह में सभी महिलाओं का वेष लंहगा चुनरियाँ था।
पुरुषों ने धोती कुर्ता के साथ सिर पर पगड़ी बॉध रखी थी ।सभी का वेष बहुत ही व्यवस्थित था।
समारोह के बाद सभी रिश्तेदार देर रात्रि तक बातें करते रहे,हम बच्चों ने भी सभी के साथ बहुत सारी बातें की और पूरे दिन धमा-चौकड़ी के बाद नींद कब आ गई पता ही नहीं चला ।
हमारी लौटने की टिकट अगले दिन की थी।बुआजी ने अपने परिवार की एक लड़की से कहा—
टावरी कठे जाड़ा? हमारे टावरा-टावरी नू गॉंव दिखावा ।
वह हमें अपने साथ ले गई ,रास्ते रेतीले थे।रास्ते में चलते हुए हमारे पैर रेत में घुस रहे थे हमारी चप्पल रेत में जा रही थी ।हम जल्दी नहीं चल पा रहे थे लेकिन जो हमारे साथ थी वह आराम से चल रही थी ।रास्ते में मेहंदी के पेड़ों से हमने मेहंदी के पत्ते तोड़ कर रख लिए ।
हमने देखा कि कुछ महिलाओं के सिर और बग़ल में घड़े है जिनमें पानी भरा है और वह तेज़ी से चली जा रही है।उनके साथ लड्कियॉं भी थी।पानी के कूएँ बहुत गहरे थे और बस्ती से दूर जहॉं से दैनिक उपयोग के लिए सभी घरों में पानी लाया जाता था ।सब लोग पानी बहुत ही कम खर्च करते ,क्योंकि पानी लाने का काम मुश्किल था ।
दैनिक क्रियाओं में पानी किफ़ायत से काम में लिया जाता ।जब हम एक घर में गये तो देखा एक महिला बर्तन साफ़ कर रही थी ।आश्चर्य तो तब हुआ कि वह पानी से बर्तन साफ़ नहीं कर रही थी,वह रेत से बर्तन माँज रही थी उनकी बेटी एक कपड़े से रेत को रगड़ते हुए पोंछ कर साफ़ करते हुए रख रही है ।
हम तो शहर में रहते तो कभी भी पानी का अभाव देखा नहीं हमें जहॉं एक बाल्टी का उपयोग करना होता वहॉं दो बाल्टी पानी खर्च करते ।वहॉं देख कर स्वयं पर हमें बहुत क्रोध आ रहा था।
घर आकर हमारे जाने की तैयारी होने लगी ।बुआजी ने दो तरह के कपड़ों के थान मंगा कर रखे थे।उनके दो अलग प्रिंट (छपाई)थी।जितने रिश्तेदारों के बच्चे लड़के थे उन्हें एक ही प्रिंट के थान में से कपड़ा क़मीज़ के लिए लिए दिया साथ में पैसों का लिफ़ाफ़ा और सभी लड़कियों को दूसरे थान का कपड़ा कुर्ते के लिए और साथ में लिफ़ाफ़ा दिया ।रास्ते के लिए मिठाई और भोजन बुआजी ने बॉध दिया था ।
हमसब बहुत खुश थे मौज-मस्ती के बाद अपने घर जा रहे थे ,हमारी रेल आने का समय हुआ तो हम सब लोग ऊँट गाड़ी से स्टेशन पहुँचे।
रेलगाड़ी आने पर हम बैठे,और मन में वहॉं गॉंव के हालात देखते हुए सोच रहे थे क्या हम भी पानी की बचत कर सकते हैं जिससे हम उन हालातों से न गुजरे,जिससे राजस्थान के गॉंव वाले गुजर रहे थे ।
✍️ क्रमश:
आशा सारस्वत