Defeated Man (Part 21) in Hindi Fiction Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | हारा हुआ आदमी (भाग21)

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हारा हुआ आदमी (भाग21)

"निशा भी?"उसने अपने आप से सवाल पूछा था।
"मन से तो वह पहले ही तुम्हारी हो चुकी है।आज तन से भी तुम्हारी हो जाएगी?"
"सच?"अपने दिल कि बात सुनकर देवेन का चेहरा गुलाब सा खिल उठा।उसने सेंट की शीशी उठायी और अपने कपड़ों पर स्प्रे कर लिया।उसने अपने बालों को सँवारा और फिर चल दिया।
रमेश की पत्नी रूपा और सुरेश की पत्नी सविता ने सुहागकक्ष को गुलाब,मोगरा और चमेली के फूलों से सजाया था।देवेन को देखकर रूपा बोली,"दुल्हन कब से दूल्हे राजा के इन्तजार मे पलके बिछाय बैठी है।और तुम्हे अब फुरसत मिली है।"
"आ तो गए।हमारी बहन फूलो सी नाजुक है।आज की रास्त जरा ख्याल रखना।जरा आज की रात ख्याल रखना।कही हमारी नाजुक कली को पहली रात मे ही घायल मत कर देना।अभी अनाड़ी और नादान है।ज्यादा तंग मत करना।"सविता ,देवेन को समझाते हुए बोली थी।
"अभी अनुभव नही है।पहली रात है।सीखने में समय लगेगा।"
सविता और रूपा, देवेन से हंसी ठिठोली करके अपने घर चली गई थी।
उनके जाने के बाद देवेन अपने बेडरूम में पहुंचा जो आज सुहागकक्ष बनकर तैयार था।निशा पलँग पर बैठी थी।इतने बड़े पलँग पर छुई मुई सी एक कोने में।लाल रंग के सुहाग जोड़े में वह स्वर्ग से उतरी अप्सरा सी लग रही थी।
देवेन खुले विचारों का आफ्मी था।निशा मॉडर्न और खुले विचारों की फॅशनबल लडक़ी थी।देवेन और निशा अजनबी नही थे।वे दोनों दोस्त थे।और एक दूसरे से अच्छी तरह घुले मिले हुए थे।निशा,देवेन से खूब बाते करती,हंसी मजाक करती थी।लेकिन आज दुल्हन बनकर ऐसे बैठी थी।मानो पहली बार मिल रही हो।निशा मॉडर्न थी लेकिन देवेन को आज का पुरातन रूप भी पसंद आया था।
देवेन, निशा के पास पलंग पर बैठते हुए बोला,"तुम तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे हम पहली बार मिल रहे है।आज से पहले तो तुम कभी नही शरमाई फिर आज इतनी लज्जा,झिझक क्यो?आज तो तुमने अपना चांद सा चेहरा पर्दे में छुपा रखा है।"
देवेन की बाते सुनकर भी निशा नही बोली।वह उसी तरह प्रतिमा बज बैठी रही मानो साड़ी शो रूम के बाहर पुतला।
"लगता है मेरी महबूबा गूंगी बहरी हो गई है
देवेन, निशा के करीब किसकते हुए बोला,"लगता है हमारे दिल की रानी का घुघन्ट हमे ही हटाना पड़ेगा।"
निशा का घूंघट हटाते ही ऐसा लगा मानो आसमान का चांद सुहागकक्ष में चला आया हो।निशा सूंदर तो पहले से ही थी।दुल्हन के श्रंगार में अप्सरा लग रही थी।स्वर्ग से उतरी देवकन्या।
देवेन ने निशा के चेहरे को ऊपर उठाया।निशा ने पलके मुंड ली।
"मेनका लग रही हो।किस विश्वामित की तपस्या भंग करने का इरादा है।
देवेन, निशा को देने के लिए कीमती हार लाया था।वह हार उसे पहनाकर बोला,"आंखे खोलकर बताओ कैसा लग रहा है।"
"तुम ही बता दो।"और काफी देर बाद निशा के होंठ हिले थे।
"बहुत सुंदर लग रही हो।तुम्हे देखकर जी चाहता है
देवेन ने निशा को बांहों में भरकर अपने प्यार की पहली निशानी उसके नाजुक होठो पर अंकित कर दी।
"चलो हटो
निशा ने शरमाकर मेहंदी लगे हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया
देवेन ने निशा को बांहों में भर लिया।निशा बोली,"यह क्या कर रहे हो?"
"कुछ भी नया नही कर रहा।वो ही कर रहा हूँ,जो आज की रात दूल्हा अपनी दुल्हन के साथ करता है।"
और देवेन ने निशा के गुलाबी गालो पर चुम्बन अंकित कर दिया