Pratishodh - 5 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | प्रतिशोध--भाग(५)

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प्रतिशोध--भाग(५)


उधर माया अपनी इस जीत पर अत्यधिक प्रसन्न थीं, उसे स्वयं पर गर्व हो रहा था कि जैसा वो चाहती थीं, बिल्कुल वही हो रहा है, सत्यकाम को मुझ पर दया है और इस दया को अब प्रेम में परिवर्तित होते देर नहीं लगेगी, जिस दिन उस ने अपने हृदय की बात मुझसे कही उसी दिन आचार्य शिरोमणि का नाम धूमिल हो जाएगा और मेरे प्यासे हृदय की प्यास बुझेगी___
माया ये सब मधुमालती से कह रही थीं,तभी मधुमालती बोली___
परन्तु देवी! कल रात को आप समय से अपनी झोपड़ी में ना पहुँच पातीं तो अनर्थ हो जाता,सत्यकाम आपको इस झोपड़ी ना पाकर ना जाने क्या सोचता।।
कैसे ना मिलती झोपड़ी मे? तभी तो महल से झोपड़ी तक मैने सुरंग खुदवा रखी है ताकि सरलता से यहाँ पहुंच सकूं, मेरे बिछावन के नीचे जो लकड़ी का तख्ता है उसके नीचें ही तो सुरंग में नीचें उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हैं, वहीं से मैं सरलता से महल आ जा सकतीं हूँ, योगमाया बोली।।
मान गए देवी! आपकी बुद्धि को ,आप सा कोई भी बुद्धिमान ना होगा, तभी तो आप बड़े बड़े राजाओं को भी अपनी हथेली पर नृत्य करवा लेंतीं हैं,मधुमालती बोली।।
परन्तु, अभी तो सत्यकाम अत्यधिक क्रोधित होगा,क्योंकि रात्रि को तो मैने बहुत ही कटु शब्द बोलें उसे,उसका हृदय टूट गया होगा,योगमाया बोली।।
परन्तु,क्यों देवी! रात्रि को तो आपको उससे प्रेमपूर्वक वार्तालाप करना चाहिए थीं और आपने उसे कटु शब्द बोलें, मधुमालती ने पूछा।।
वो इसलिए कि कहीं उसे ये प्रतीत ना हो कि मैं उससे प्रेम करती हूँ,क्योंकि मैं तो उसे प्रेम करती ही नहीं हूँ, मुझे तो केवल उससे प्रेम का अभिनय करना है,मैं ये चाहतीं हूँ कि वो ही आकर मुझसे कहें कि वो मुझसे प्रेम करता है,योगमाया बोली।।
परन्तु, अब क्या होगा? अब सत्यकाम कैसे आपके निकट आएगा? अब तो आपने उसे रूष्ट कर दिया, मधुमालती ने कहा।।
उसका भी उपाय मेरे पास हैं, योगमाया बोली।।
वो क्या है,मधुमालती ने पूछा।।
बस तुम देखती जाओ,सत्यकाम को कुछ व्याकुल होने दो,कुछ विचलित होने दो,मैं भी तो देखूँ उसके बेकल मन को चैन कहाँ मिलता है और एक माया ही है जो उसके बेकल मन को शांत कर सकती है, ये मैने स्वयं अनुभव किया है, योगमाया बोली।।
तो देखते हैं आपकी आगें की योजना क्या हैं? मधुमालती बोली।।
अभी तो एक दो दिन मैं सत्यकाम से नहीं मिलने वाली,उसे ये भी तो लगना चाहिए कि उस रात्रि की बात मैं उससे अभी तक क्रोधित हूँ, तब तो उसके हृदय मे माया के प्रति प्रेम का बीज अंकुरित होगा,योगमाया बोली।।
तो हम यहाँ क्यों है, तब तक हम महल मे ही रहतें हैं एक दो दिन के पश्चात पुनः झोपड़ी में आ जाएंगे, मधुमालती बोली।।
नहीं, मधु! अभी तो मुझे इसी झोपड़ी में रहकर ही हर दिन प्रातः गंगा तट के मार्ग पर जाना होगा क्योंकि ये देखना है कि मेरे इतने कटु शब्द बोलने के पश्चात् सत्यकाम की क्या प्रतिक्रिया है, वो अब भी मेरे निकट आकर मुझसे वार्तालाप करता है या नहीं, उसके मन में अब भी मेरे लिए कोई दया का भाव है भी या नहीं,योगमाया बोली।।
तो ठीक है, आप यही रहिए, आपकी आवश्यकता की वस्तुएं, मैं सायंकाल लेकर आ जाऊँगी और इतना कहकर मधुमालती चली गई।।
प्रातः हुई,नियमानुसार सत्यकाम चला गंगातट पर एवं मार्ग पर माया ने पुनः अपना अभिनय प्रारम्भ कर दिया,उसकी दासियाँ वृक्षों की ओट मे छुपी थी,उन्होंने दूर से ही आते हुए सत्यकाम को देखा और भागकर उसे सूचना दी कि सत्यकाम इसी मार्ग से आ रहा है, आप अपना भजन प्रारम्भ कर दीजिए और माया ने अपने इकतारे पर भजन प्रारम्भ कर दिया,परन्तु सत्यकाम उसे अनदेखा करके आगें बढ़ गया,माया को लगा सत्यकाम अभी क्रोधित है इसलिए ऐसा कर रहा है,कल सब ठीक हो जाएगा।
इसी प्रतीक्षा में दूसरा दिन भी आ गया और सत्यकाम ने पुनः माया के संग वैसा ही व्यवहार किया,सत्यकाम को अब कोई भी अन्तर ना पड़ता माया को देखकर, अब तो माया के क्रोध का पार ना रहा,वो प्रतिशोध की अग्नि में जल उठी ,ऐसे ही कई दिन निकल गए परन्तु सत्यकाम ने माया के निकट जाने का प्रयास ही नहीं किया।।
माया भजन गाती रहती,सत्यकाम उसी मार्ग से निकलता और आगे बढ़ जाता,स्नान करके लौटता ,माया भी उसकी प्रतीक्षा करती रहती कि कदाचित सत्यकाम का हृदय तनिक द्रवित हो जाएं, परन्तु सत्यकाम ने भी मन को कड़ा कर लिया था,उस रात्रि के कठोर शब्द जो माया ने उसे बोले थे वो उसे भूल नहीं पाया था।।
रात्रि का समय सत्यकाम भोजन करके अपनी कुटिया में विश्राम कर रहा था,तभी उसे एकाएक माया का ध्यान आ गया, उसने सोचा मैं इतने दिन से माया को अनदेखा करके आगें बढ़ जाता हूँ, वो तो नेत्रहीन है भला! मुझे ना देख पाती होगी परन्तु मैं तो उसे देख सकता हूँ और मैने मानवता के नाते उससे ये भी नहीं पूछा कि उस दिन के बाद से वो स्वस्थ है भी या नहीं, परन्तु मैं क्यों पूछूँ, वो तो चाहती ही नहीं हैं कि मैं उसके निकट जाऊँ नहीं तो उस दिन वो मेरे संग ऐसा व्यवहार करती ही नहीं, बहुत से प्रश्न चल रहें थे सत्यकाम के अन्तःमन में और वो स्वयं ही उसके उत्तर भी ढू़ढ़ लेता और यही खेल खेलते खेलते उसे निंद्रा आ गई।।
और उधर, आज रात्रि योगमाया बहुत दिनों के उपरांत अपने महल के मलमल के बिछावन पर लेटी थी और मधुमालती से वार्तालाप कर रही थीं____
देवी! ये तो ठीक नहीं हो रहा है, सत्यकाम का ध्यान तो आपकी ओर होता ही नहीं, ऐसा प्रतीत होता है कि उसका मन कुछ अधिक ही खिन्न हो गया है,आपके शब्दों ने उसके हृदय पर गहरा प्रहार किया है और यदि सत्यकाम ने आप पर प्रेम भरी दृष्टि ना डाली तो आपका प्रतिशोध कैसे पूरा होगा,मैं तो बहुत चिंतित हूँ, ऐसा ना हो कि आपका प्रण अधूरा रह जाएं,मधुमालती बोली।।
कदापि नहीं, मैं कदापि ऐसा नहीं होने दूँगी, मैं अपना अपमान इतनी सरलता से बिसार दूँ,आचार्य शिरोमणि को क्षमा कर दूँ,मेरे लिए तो ये डूब मरने वाली बात होगी, योगमाया आवेश मे आकर बोली।।
इतना क्रोध ना करें देवी!नहीं तो आपके सौन्दर्य पर प्रभाव पड़ेगा, परन्तु आपने कुछ तो सोचा होगा, कुछ तो इसका उपाय निकाला होगा,कोई तो योजना बनाई होगी,मधुमालती बोली।
हाँ,बनाई तो है, योगमाया बोली।।
परन्तु,क्या देवी,मधुमालती ने पूछा।।
कल,प्रातः गंगाघाट पर हम भी स्नान करनें चलेंगे और वहाँ मुझे ऐसा कुछ करना होगा कि सत्यकाम को मुझ पर विश्वास हो जाए और अपनी सारी योजना योगमाया ने मधुमालती के कान में कह सुनाई।।
योजना सुनकर प्रसन्नता से मधुमालती की आँखें चमक उठीं और वो बोली____
देवी! जब पुरूष दया और प्रेम से वश मे ना पाएं तो काम का ही आश्रय लेना पड़ता है, मधुमालती बोली।।
और कल प्रातः मैं यही करने वाली हूँ, योगमाया बोली।।
तो अधिक बिलम्ब ना करें देवी! शीघ्र ही विश्राम करें, कल प्रातः जो जागना हैं आपको ,मधुमालती बोली।
और दोनों विश्राम करने लगीं।
प्रातःकाल योगमाया और मधुमालती गंगाघाट पर झाड़ियों मे छिपकर सत्यकाम की प्रतीक्षा करने लगीं,
अत्यधिक सुन्दर दृश्य था गंगा का,नदी की लहरें उछाल पर थीं,सीढ़ियों से उतरकर छोटा सा घाट था केवल स्नान हेतु, अगल बगल घनी झाड़ियाँ लगीं थीं,गंगा के उस ओर के तट पर पहाड़ों से सूरज हल्की हल्की लालिमा के संग अपना प्रकाश बिखेर रहा था,मन को मोह लेने वाला दृश्य था,शीत बयार भी चल रही थी।।
तभी दूर से ही मधुमालती को सत्यकाम आता हुआ दिखा ,उसने योगमाया को सूचित किया और योगमाया अपने कार्य को सफल बनाने चल पड़ी।।
सत्यकाम ने धरती पर अपना सामान रखा और सीढियों से गंगा में उतरकर कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगा,तभी कुछ समय पश्चात उसे किसी का स्वर सुनाई दिया,कोई बचाओ....बचाओ...करके पुकार रहा था,सत्यकाम ने अपनी दृष्टि दौड़ाकर देखा तो कोई स्त्री डूब रही थी,जब तक वो उसके निकट तैरकर पहुँचा, वो डूब चुकी थी,सत्यकाम ने डुबकी लगाकर शीघ्रता से उसे बाहर निकाला और उसे बचाकर तट तक अपनी बाँहों में लेकर आ रहा था,तब सत्यकाम ने उसका मुँख देखा तो वो तो माया थी,परन्तु सत्यकाम ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी, उस समय योगमाया को सत्यकाम की सुडौल बाहों में कुछ विचित्र सा अनुभव हुआ,सत्यकाम के शरीर की महक में मादकता थी,परन्तु वो बेसुध सी उसकी बाँहो में मूर्छित होने का अभिनय कर रहीं थीं, उसकी भींगें हुए वस्त्रों से उसका अंग अंग झलक रहा था,उसके लम्बे खुले केशों से जल बूँद बूँद करके टपक रहा था,उसके गीले होंठ लरझ रहें थे और शीत से उसका बदन काँप रहा था,तभी सत्यकाम ने माया को धरती पर लिटाकर उसके पेट को दबाकर जल निकाला,तब भी माया के शरीर में कोई गति नहीं हुई,तभी सत्यकाम ने माया के मुँख में अपने मुँख से श्वास भरी,इससे माया के शरीर मे कुछ गति हुई और वो अचानक उठकर बैठ गई।।
और पूछा कौन हैं आप?मैं तो डूब रही थी,मेरे प्राण बचाने के लिए धन्यवाद,माया बोली।।
जी,मै सत्यकाम और आपके प्राण बचाना मेरा कर्तव्य था,आपकी स्थान पर और कोई होता तब भी मैं ये ही करता और सत्यकाम ने अपना सामान उठाया और वहाँ से चला आया।।
माया उस समय और कुछ ना कह पाई।।
तभी मधुमालती भी झाड़ियों से निकलकर बोली___
देवी! कुछ और करना होगा, ये सरलता से मानने वाले नहीं हैं, ये शिरोमणि के शिष्य हैं उनकी ही भाँति हठी हैं।।
मैं भी देखती हूँ कि ये कैसे मेरे प्रेमजाल में नहीं फँसता,मैं भी इससे अधिक हठी हूँ और अपना प्रतिशोध अवश्य लेकर रहूँगी,आचार्य शिरोमणि को उस गुरूकुल में स्त्रियों को प्रवेश देना होगा और मैं ये करके ही मानूँगी, इसलिए मुझे चाहें कुछ भी करना पड़े,अब मै अपने पग पीछे धरने वाली नहीं,योगमाया विषाक्त नागिन से फुँफकारती हुई बोली।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा___